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PM Modi के UAE दौरे पर कई समझौते- अबू धाबी में खुलेगा IIT दिल्ली का कैंपस, UPI से पेमेंट

अबू धाबी में आईआईटी परिसर की स्थापना के पीछे का विचार आईआईटी की शैक्षणिक उत्कृष्टता को व्यापक अंतरराष्ट्रीय समुदाय तक पहुंचाना है.

यूएई से दिल्ली के पालम हवाई अड्डे पर पहुंचे पीएम मोदी | ANI

अबू धाबी (यूएई) : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तीन दिन की फ्रांस और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) की यात्रा खत्म हो गई है. इस दौरान यूएई भारत के बीच शिक्षा, तकनीक जैसे क्षेत्रों में कई अहम समझौते हुए. पीएम मोदी भारत वापस लौट आए हैं.

यात्रा के अंतिम चरण में प्रधानमंत्री अबू धाबी पहुंचे, जहां उनका अबू धाबी के प्रिंस शेख खालिद बिन मोहम्मद बिन जायद अल नाहयान ने जोरदार स्वागत किया. प्रधानमंत्री ने शानदार कसर अल वतन में शेख मोहम्मद के साथ औपचारिक गार्ड ऑफ ऑनर का भी मुआयना किया. दोनों नेताओं ने द्विपक्षीय और वैश्विक मुद्दों पर व्यापक बातचीत की. भारत-यूएई

फरवरी 2022 में अपने वर्चुअल शिखर सम्मेलन के दौरान दोनों नेताओं के जाहिर किए गए विज़न स्टेटमेंट के अनुरूप भारत-यूएई संबंध तेजी से बदल रहे हैं. यात्रा के दौरान, दोनों नेता तीन ऐतिहासिक समझौता ज्ञापनों (एमओयू) के आदान-प्रदान के गवाह बने.

भारतीय शिक्षा मंत्रालय के बीच अबू धाबी में आईआईटी दिल्ली के एक परिसर की स्थापना के लिए एक समझौता ज्ञापन का आदान-प्रदान किया गया.

भारतीय शिक्षा मंत्रालय, संयुक्त अरब अमीरात के अबू धाबी शिक्षा और ज्ञान विभाग और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, दिल्ली (आईआईटी) के बीच अबू धाबी में आईआईटी दिल्ली के एक परिसर की स्थापना को लेकर समझौता ज्ञापन का आदान-प्रदान किया गया.

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यह मध्य पूर्व/उत्तरी अफ्रीका (एमईएनए) क्षेत्र में स्थापित होने वाला पहला आईआईटी है. यह एक लैंडमार्क प्रोजेक्ट है जो इन नेताओं के विजन को दिखाता है और यह भारत और संयुक्त अरब अमीरात के लोगों के लिए एक भेंट होगी, जो कि दोनों देशों के ऐतिहासिक संबंधों की रीढ़ हैं.

अबू धाबी में आईआईटी परिसर की स्थापना के पीछे का विचार आईआईटी की शैक्षणिक उत्कृष्टता को व्यापक अंतरराष्ट्रीय समुदाय तक पहुंचाना है. इस परिसर को एक वैश्विक परिसर बनने की आकांक्षा है, जिससे संयुक्त अरब अमीरात और क्षेत्र में बड़ी संख्या में भारतीय प्रवासियों को भी लाभ होगा.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट किया है, “यह हमारे शैक्षिक अंतर्राष्ट्रीयकरण में एक महत्वपूर्ण प्रगति का प्रतीक है और यह भारत के इनोवेशन कौशल का प्रमाण है. शिक्षा वह बंधन है जो हमें एकजुट करता है, यह एक चिंगारी है जो इनवोवेशन को प्रज्ज्वलित करती है.”

भारतीय रिजर्व बैंक और संयुक्त अरब अमीरात के सेंट्रल बैंक के बीच सीमा पार लेन-देन के लिए भारतीय रुपये (INR) और संयुक्त अरब अमीरात दिरहम (AED) के इस्तेमाल को सक्षम बनाने के लिए स्थानीय मुद्रा निपटान (LCS) प्रणाली समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए.

यह भारत का पहला एलसीएस है और जो लेन-देन की लागत और समय कम होने व लोकल करेंसीज पर निर्भरता बढ़ाएगा. इससे व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौते (सीईपीए) से मिलने वाली तरजीही शर्तों में और इजाफा होगा.

व्यापारी आपसी सहमति के आधार पर पेमेंट करेंसी को चुन सकते हैं. इसके अलावा, स्थानीय मुद्राओं में सरप्लस बैलेंस का इस्तेमाल लोकल करेंसी वाली परिसंपत्तियों जैसे कॉर्पोरेट बॉन्ड, सरकारी प्रतिभूतियों, इक्विटी बाजार आदि में निवेश के लिए किया जा सकता है. एलसीएस के न केवल द्विपक्षीय आर्थिक संबंधों पर बल्कि दुनिया भर में बड़े आर्थिक संबंधों पर परिवर्तनकारी प्रभाव पड़ने की संभावना है.

नये क्रियान्वित एलसीएस सिस्टम के तहत, पहले लेन-देन में संयुक्त अरब अमीरात के एक प्रमुख स्वर्ण निर्यातक से 25 किलोग्राम सोने की बिक्री शामिल थी, जिसका बिल लगभग 12.84 करोड़ रुपये बना. सोना, रत्न और आभूषण भारत और संयुक्त अरब अमीरात के बीच दूसरी सबसे अधिक कारोबार वाली वस्तुएं हैं. पिछले साल भारत और यूएई के बीच दोतरफा व्यापार 20 अरब अमेरिकी डॉलर का था, जो दोनों देशों के बीच कुल गैर-तेल व्यापार का लगभग 42 प्रतिशत था.

दोनों नेताओं ने भारतीय रिजर्व बैंक और संयुक्त अरब अमीरात के केंद्रीय बैंक के बीच भुगतान और संदेश प्रणाली जोड़ने को लेकर द्विपक्षीय सहयोग पर समझौता ज्ञापन का भी आदान-प्रदान किया. एमओयू भारत के यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस (यूपीआई) और यूएई के इंस्टेंट पेमेंट प्लेटफॉर्म (आईपीपी) के इंटग्रेशन की सुविधा प्रदान करेगा.

यह दोनों देशों – रुपे स्विच और यूएईस्विच के इंटरलिंकिंग कार्ड स्विचेज को आपस में जोड़ने की सुविधा भी प्रदान करेगा, इससे उनके घरेलू कार्डों की पारस्परिक स्वीकृति और किसी अन्य नेटवर्क पर भरोसा किए बिना सीधे कार्ड लेन-देन की प्रॉसेसिंग की सुविधा मिल सकेगी.

बड़ी अहम बात यह है कि यूएई का सेंट्रल बैंक आरबीआई द्वारा विकसित स्ट्रक्चर्ड फाइनेंशियल मैसेजिंग सिस्टम (एसएफएमएस) से लाभान्वित हो सकता है. इन लिंकेज से वैकल्पिक भुगतान-स्विचिंग प्रणाली प्रदान कर लंबे समय में एलसीएस तकनीक को और सुविधाजनक बनाने की भी उम्मीद है.


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