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भारतीय ज्ञान परंपरा को हिंदी के जरिए दुनिया की बड़ी आबादी तक पहुंचाया जा सकता है: विश्व हिंदी सम्मेलन

(निर्मल पाठक)

नांदी (फ़िजी), 17 फरवरी (भाषा) भारत और फ़िजी समेत विश्व के अन्य देशों के प्रतिनिधियों ने यहां 12वें विश्व हिंदी सम्मेलन में एक सुर में यह बात कही कि कृत्रिम मेधा (एआई) जैसी आधुनिक सूचना, ज्ञान एवं अनुसंधान तकनीक का हिंदी माध्यम में प्रयोग कर भारतीय ज्ञान परंपरा और अन्य पारंपरिक ज्ञान प्रणालियों को विश्व की बहुत बड़ी जनसंख्या तक पहुंचाया जा सकता है।

सम्मेलन के अंत में जारी एक प्रतिवेदन के अनुसार, विश्व हिंदी सचिवालय को बहुराष्ट्रीय संस्था के रूप में विकसित करने तथा प्रशांत क्षेत्र सहित विश्व के अन्य भागों में इसके क्षेत्रीय केंद्र स्थापित करने की आवश्यकता पर जोर दिया गया।

हिंदी के प्रति लगाव रखने वाले विश्व के सभी नागरिकों के बीच हिंदी को संपर्क-संवाद की भाषा के रूप में विकसित करने के लिए नियमित अंतराल पर आयोजित विश्व हिंदी सम्मेलनों की कड़ी में 15 से 17 फरवरी 2023 तक प्रशांत क्षेत्र के फ़िजी देश के नांदी शहर में 12वें विश्व हिंदी सम्मेलन का आयोजन किया गया।

भारत और फिजी सहित विश्व के अन्य देशों के सभी प्रतिनिधियों ने प्रतिवेदन में इस सम्मेलन को सफल बताते हुए इस बात पर सहमति जतायी कि कृत्रिम मेधा (एआई) जैसी आधुनिक सूचना, ज्ञान एवं अनुसंधान की तकनीक का हिंदी के माध्यम से प्रयोग करते हुए भारतीय ज्ञान परंपरा और अन्य पारंपरिक ज्ञान प्रणालियों को विश्व की बहुत बड़ी जनसंख्या तक पहुंचाया जा सकता है।

प्रतिवेदन में कहा गया कि प्रतिस्पर्धा पर आधारित विश्व व्यवस्था को सहकार, समावेशन और सह-अस्तित्व पर आधारित वैकल्पिक दृष्टि प्रदान करने में हिंदी एक महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन कर सकती है।

इसमें कहा गया है कि ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ (पूरी पृथ्वी ही परिवार है) और ‘सर्वे भवन्तु सुखिन:’ (सभी प्राणी सुखी रहें) के आधार पर अंतरराष्ट्रीय आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वैश्विक बाजार का निर्माण किया जा सकता है।

प्रतिवेदन में कहा गया कि सूचना प्रौद्योगिकी एवं एआई जैसी आधुनिक ज्ञान प्रणालियों का समुचित उपयोग करते हुए हिंदी मीडिया, सिनेमा और जनसंचार के विविध नए माध्यमों ने हिंदी को विश्व भाषा के रूप में विस्तारित करने की नई संभावनाओं के द्वार खोले हैं।

हिंदी में प्रवासी साहित्य के योगदान को महत्वपूर्ण बताने के साथ ही प्रतिवेदन में कहा गया कि प्रवासी हिंदी साहित्य को विश्वव्यापी बनाने और विश्व की अन्य संस्कृतियों के श्रेष्ठतर मूल्यों का हिंदी में समावेश करने के लिए एआई, मशीनी अनुवाद और अनुवाद की पारंपरिक विधियों का सामंजस्यपूर्ण प्रयोग आवश्यक है।

प्रतिवेदन के अनुसार, 12वें विश्व हिंदी सम्मेलन ने अनुभव किया कि वैश्विक स्तर पर उपर्युक्त भूमिका का निर्वहन केवल सरकारों का ही दायित्व नहीं है बल्कि इसके लिए विश्व के समस्त हिंदी सेवी और समर्थक जन को सामूहिक प्रयास करना होगा तथा श्रेष्ठ एवं सुखमय विश्व के निर्माण में अपनी भूमिका सुनिश्चित करनी होगी।

भाषा एन. पाठक नरेश

नरेश

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