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भारत बनाम पाकिस्तान मुकाबले का अब क्रिकेट से वास्ता नहीं रहा, ये बस कोलाहल और अति-राष्ट्रवाद है

समाचार चैनलों पर अति राष्ट्रवादी माहौल में होने वाली तीखी चर्चाओं से उत्साहित दोनों देशों के लोगों के बड़बोलेपन और सोशल मीडिया पर प्रशंसकों के उन्माद ने एक क्रिकेट मैच को अलग तरह के तमाशे में बदल डाला है.

भारतीय क्रिकेट टीम | फेसबुक

मैनचेस्टर, इंग्लैंडइट्स नॉट अबाउट द बाइक (बात साइकिल की नहीं है). टूर डि फ्रांस के सात बार के चैंपियन, और बाद में डोपिंग के लिए बदनाम, लांस आर्मस्ट्रांग ने ये नाम करिअर के शीर्ष पर लिखी अपनी किताब को दिया था.

मैनचेस्टर में सातवें भारत-पाकिस्तान वर्ल्ड कप मैच के लिए जुटे भारतीयों की भावना भी कुछ ऐसी ही है: बात क्रिकेट की नहीं है.

समाचार चैनलों पर अति-राष्ट्रवादी माहौल में होने वाली तीखी चर्चाओं से उत्साहित दोनों देशों के लोगों के बड़बोलेपन और सोशल मीडिया पर प्रशंसकों के उन्माद ने एक क्रिकेट मैच को अलग तरह के तमाशे में बदल डाला है.

पर सच्चाई ये है कि भारत-पाकिस्तान प्रतिद्वंद्विता भले ही ऐतिहासिक और भावनाओं में उबाल लाने वाली रही हो, पर विश्व कप मुकाबलों में मामला बिल्कुल एकतरफा रहा है.

1992 से अब तक इस प्रतियोगिता में दोनों देशों की सभी छह भिड़ंतों में भारत ही जीता है, साथ ही इस दरम्यान दोनों टीमों का चरित्र पूरी तरह बदल चुका है. पाकिस्तान टीम में जावेद मियांदाद, जिनकी ससुराली पसंद भी असाधारण है, जैसी बड़ी हस्तियां हुआ करती थीं.

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और उनके पास इमरान ख़ान थे जिनके पास हॉलीवुड स्टार वाला चेहरा-मोहरा, मैच जिताने का करिश्मा और भरपूर आत्मविश्वास था, और जो आगे चलकर देश का प्रधानमंत्री बने हैं. साथ ही उनके पास डबल डब्ल्यू थे- वसीम अकरम और वकार युनूस, संभवत: क्रिकेट जगत का अंतिम गेंदबाज जोड़ा जो अपने बल्लेबाजों द्वारा जुटाए गए किसी भी स्कोर को सम्मानजनक साबित कर सकता था.


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बनावटी प्रतिद्वंद्विता

औसत उम्र के हवाले से देखें तो मौजूदा पाकिस्तानी टीम वर्ल्ड कप की सबसे युवा टीम है, भले ही शोएब मलिक और मोहम्मद हफीज़ 38 साल के हों. इस पाकिस्तानी टीम के अधिकांश खिलाड़ी यदि मुंबई या दिल्ली के किसी बाज़ार में पहुंच जाएं तो संभव है उन्हें कोई न पहचाने.

सच कहें तो भारत के कितने क्रिकेटप्रेमियों को हसन अली का चेहरा याद रहता होगा? किस युवा भारतीय प्रशंसक के कमरे में इमाद वसीम का पोस्टर होगा? 1970 के दशक से लेकर 1990 के दशक तक की पाकिस्तानी टीम का अपना एक आभामंडल हुआ करता था. और तब की एक और उल्लेखनीय बात थी, वहां की क्रिकेट फैक्ट्री से निकलने वाले प्रतिभाशाली और सचमुच के तेज गेंदबाज़ों की लंबी कतार.

उन दिनों भारत के पास शातिर स्पिनर और महज मध्यम गति के तेज गेंदबाज़ हुआ करते थे, और भारतीय प्रशंसक पाकिस्तान की ज़बर्दस्त बॉलिंग लाइनअप को देखकर कुढ़ा करते थे. आज भारत के पास जसप्रीत बुमराह, मोहम्मद शमी और भुवनेश्वर कुमार की आक्रामक तिकड़ी है जो दुनिया की किसी भी टीम की खबर ले सकती है.

अगर सचमुच की क्रिकेट प्रतिद्वंद्विता की बात करें तो हाल के दिनों में भारत का मुकाबला ऑस्ट्रेलिया से रहा है. हालांकि दोनों टीमों के बीच इतने मैच हो गए हैं कि इस प्रतिद्वंद्विता में भी वो पहले वाली बात नहीं रह गई है, साथ ही इसका एक कारण पुनर्निर्माण की प्रक्रिया से गुजर रही ऑस्ट्रेलिया की टीम का पहले जैसा वर्चस्व नहीं होना भी है.

भारत को इंग्लिश क्रिकेट से भी शिकायत रहती थी, जो उसे ज्यादा महत्व नहीं देते हुए अक्सर उसके मैचों को छोटी जगहों पर रखते थे, और वो भी घरेलू सीज़न के शुरुआती दिनों में जबकि गर्मियां शुरू भी नहीं होती थी. पर वो स्थिति भी बदल चुकी है, अब क्रिकेट के प्रशासन में भी भारत की इतनी तूती बोलती है कि इंग्लैंड एंड वेल्स क्रिकेट बोर्ड बहुत पीछे छूट चुका है.


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‘कूल’ कोहली

सच कहें तो भारतीय क्रिकेटर भी ये सब जानते और महसूस करते हैं.

मैच से पूर्व संवाददाता सम्मेलन में विराट कोहली से पहले सात सवाल पाकिस्तान से मुकाबले को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने की कोशिश के तहत किए गए थे. पर कोहली ने मानो इस चक्कर में नहीं फंसने की ठान ली थी. उनका जवाब था, ‘देखिए, न तो मैं यहां टीआरपी के लिहाज से कुछ कहने आया हूं, न ही कोई चटपटी खबर बनाने. आप मुझसे सहमत हों या नहीं, पर मेरे सामने कोई भी गेंदबाज होता है तो मेरी नज़र सिर्फ सफेद या लाल गेंद पर होती है.’

कोहली ने कहा, ‘आपको गेंदबाजों के कौशल का सम्मान करना होता है. दक्षिण अफ्रीका से मैच से पहले मैंने रबाडा के बारे में भी यही कहा था. आपको हमेशा चौकन्ना रहना पड़ता है और क्रिकेट जगत के प्रभावशाली गेंदबाजों को लेकर सावधानी बरतनी होती है. पर साथ ही, आपको अपनी क्षमता पर भी पूरा यकीन करना होता है कि आप किसी भी गेंदबाज के सामने रनों का अंबार लगाने में सक्षम हैं.’

‘इसलिए, मेरे लिए कभी किसी से प्रतियोगिता की बात नहीं रहती है. न तो मैं किसी से प्रतिद्वंद्विता रखता हूं और न ही मैं कभी इस तरह सोचता हूं कि मुझे जाकर प्रतियोगिता जीतनी है और दुनिया को दिखाना है. ऐसी बातें मेरे दिमाग में आती ही नहीं हैं. ये सब बाहर की बातें हैं. मैंने कभी भी ऐसी बातों पर न तो ध्यान दिया है, और न ही दूंगा.’

कोहली ने ये भी कहा कि पेशेवर क्रिकेटर के रूप में भारतीय टीम के हर सदस्य को पता है कि उनका कुछ दायित्व है, और परिणाम जो भी हो, जिंदगी आगे बढ़ती जाती है, और वो भी खुशी-खुशी.

कोहली ने कहा, ‘बाहर कही जा रही बातों से निपटने का सबसे बढ़िया तरीका ये है कि इस बात पर गौर करो कि ये मैच एक निश्चित समय पर शुरू होगा और फिर एक निश्चित समय पर खत्म हो जाएगा. यानि ये किसी के लिए जीवन भर की बात नहीं होनी चाहिए, भले ही आपने बढ़िया खेला या नहीं.’

‘और यही सोच, एक क्रिकेटर के रूप में, आपको हमेशा ज़मीन पर टिकाए रखती है और आपका ध्यान खेल में लगाए रखती है, क्योंकि ये टूर्नामेंट इसी मैच पर खत्म नहीं होने वाला है, भले ही टीम के रूप में हम अच्छा करें या नहीं.’

नया इतिहास

हालांकि कुछ लोग मैच को अतिशय महत्व देने के दबाव में फंसते दिख रहे हैं.

पाकिस्तान के कोच मिकी आर्थर अपने खिलाड़ियों की हौंसला अफजाई में कोई कसर नहीं रख रहे.

आर्थर ने कहा, ‘मैं इसे खेल जगत की सबसे बड़ी प्रतिद्वंद्विता का तमगा नहीं देना चाहता, पर मैंने कुछ आंकड़े देखे हैं जिसके अनुसार फुटबॉल वर्ल्ड कप फाइनल को 1.6 अरब लोगों ने देखा था. इस मैच को देखने वालों की संख्या 1.5 अरब रहने की संभावना है.’

‘ड्रेसिंग रूम में अपने खिलाड़ियों से मैं यही कहता हूं कि ये मैच आपको हीरो बना सकता है. इसका कोई पल आपके करिअर को मोड़ दे सकता है. आप मैच में कुछ असाधारण कारनामा करें, आप हमेशा याद रखे जाएंगे. हमारे साथ 15 असाधारण क्रिकेटर हैं, और हम उनसे सवाल करते रहते हैं कि आप खुद को किस रूप में याद किए जाते देखना चाहेंगे? आप 2019 की टीम हैं. इतिहास आपके बारे में क्या कहेगा?’

कैसे इस प्रतिद्वंद्विता में पासा पलट चुका है.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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