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जंगलों में आग लगने की घटनाओं में वृद्धि, पौधों-पशुओं की संकटग्रस्त प्रजातियों को बचाने की कवायद जारी

(ल्यूक केली, यूनिवर्सिटी ऑफ मेलबर्न/ टिम कुरेन, लिंकन यूनिवर्सिटी/ सोफी विल्किंसन, मैकमास्टर यूनिवर्सिटी, मेलबर्न)

मेलबर्न, 19 जनवरी (360इन्फो) अमेरिका के कैलिफॉर्निया में पाए जाने वाले ‘जायंट सिक्वॉय’ नामक पेड़ों को पृथ्वी पर सबसे विशाल और सबसे पुराने पेड़ों में शुमार किया जाता है। इनकी लंबाई 100 मीटर तक हो सकती है। लेकिन बीते दो वर्षों में कैलिफॉर्निया के जंगलों में लगी आग के चलते इस संकटग्रस्त प्रजाति के बेशुमार पेड़ जलकर राख हो गए हैं। अकेले साल 2021 में लगी आग में ही ऐसे लगभग 3,600 पेड़ राख बन गए, जो इनकी कुल संख्या का लगभग पांच प्रतिशत हिस्सा है।

कुछ पौधे और पशु ऐसे होते हैं, जिन्हें आग की जरूरत होती है जबकि कुछ को इसकी जरूरत नहीं होती। ऐसे में वैज्ञानिक इस बात का पता लगाने में जुटे हैं कि किस क्षेत्र में आग लगना सही है और किस क्षेत्र में नहीं। इसके अलावा वे इस बात का भी पता लगा रहे हैं कि लचीला पारिस्थितिकी तंत्र कैसे बनाया जाए।

मानव व्यवहार में बदलाव के कारण होने वाली आग संबंधी घटनाओं के चलते दुनियाभर में पेड़ों की 4,400 से अधिक प्रजातियों के सामने संकट पैदा हो गया है। शोधकर्ता तेजी से इस बात का पता लगा रहे हैं कि जलवायु परिवर्तन और भूमि उपयोग किस प्रकार आग लगने से संबंधित सांचों को बदल रहे हैं और आग की घटनाओं से अच्छी तरह निपटने के लिये क्या कुछ किया जा सकता है।

आग से निपटने के लिये बेहतर तरीके इस्तेमाल करना मनुष्यों और पारिस्थिकी तंत्र दोनों के लिये मददगार हो सकता है। इससे विभिन्न प्रजातियों और संसाधनों को बचाने में मदद मिलेगी। ब्राजील के उष्णकटिबंधीय सवाना में स्वदेशी अग्नि प्रबंधन की निरंतरता इस संबंध में एक मिसाल है।

सवाना में जावांते प्रजाति के लोग आग के जरिये वनस्पति विकास और कुछ पशु खाद्य पदार्थों को बढ़ावा देते हैं। इस प्रजाति के नियंत्रण वाले क्षेत्रों में वनों की कटाई और खरपतवार के नुकसान की संभावना कम होती है। ऑस्ट्रेलिया, उत्तरी अमेरिका और उसके बाहर स्वदेशी ज्ञान को पुनर्जीवित करने से भी अग्नि प्रबंधन के इन तौर-तरीकों को बढ़ावा मिलने की संभावना है जो जैव विविधता और लोगों को लाभान्वित करते हैं।

वैज्ञानिक प्रयोगों और व्यवस्थित निगरानी के माध्यम से डेटा एकत्र करना नवीन अग्नि प्रबंधन को प्रोत्साहित करता है। उदाहरण के लिए, यह जानना कि पौधे कब फलते-फूलते हैं और बीज पैदा करते हैं। यह जानकर पता लगाया जा सकता है कि कब आग की जरूरत होती है और कब नहीं।

जलवायु के लिहाज से अर्ध-शुष्क माने जाने वाले ऑस्ट्रेलिया में, कंप्यूटर मॉडलिंग का उपयोग कर यह पता लगाने की कोशिश की गई कि क्या नियोजित तरीके से जंगलों में आग लगाने से पक्षियों, सरीसृपों और छोटे मार्सुपियल्स को नुकसान का खतरा कम हो सकता है। प्रारंभिक अध्ययनों से संकेत मिलता है कि नियोजित तरीकों से जंगल में आग लगाने से से आग का दायरा कम हो सकता है, जिससे कुछ संकटग्रस्त प्रजातियों को लाभ पहुंचा सकता हैं।

कई समशीतोष्ण जंगलों में एक नयी रणनीति के तहत तब आग लगाई जाती है, जब स्थिति चरम पर नहीं होती है। ऐसी स्थिति में आग लगाने से विभिन्न प्रजातियों को लाभ होता है। इसके अलावा भी कई और तरीकों से पारस्थितिकी तंत्र को बचाए रखते हुए, जंगलों में आग जैसी परिस्थितियों को प्रबंधित किया जा सकता है।

(360 इन्फो डॉट ओआरजी) जोहेब माधव

माधव

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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