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लोकतांत्रिक व्यवस्था में इमरान खान सार्वजनिक कार्यालय में बने रहने के लिए संभवत: उपयुक्त नहीं: पाकिस्तान मीडिया

इस्लामाबाद, चार अप्रैल (भाषा) पाकिस्तानी मीडिया ने नेशनल असेम्बली भंग किए जाने के कदम पर सवाल खड़े करते हुए सोमवार को टिप्पणी की कि इमरान खान ने संवैधानिकता को एक ‘‘घातक झटका’’ दिया है और इस बात को लेकर बड़ी चिंताएं पैदा कर दी हैं कि वह लोकतांत्रिक व्यवस्था के भीतर सार्वजनिक पद पर बने रहने के लिए संभवत: उपयुक्त नहीं हैं।

पाकिस्तान में एक विवादास्पद कदम उठाते हुए खान की तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) पार्टी के सदस्यों ने अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान को रविवार को बाधित कर दिया था और राष्ट्रपति से संसद को भंग करा दिया था। इस फैसले को स्तब्ध विपक्ष ने कानूनी चुनौती दी है।

खान ने दावा किया है कि अविश्वास प्रस्ताव उन्हें हटाने के लिए अमेरिकी षड्यंत्र का हिस्सा था, लेकिन अमेरिका ने इस आरोप को खारिज किया है।

‘डॉन’ समाचार पत्र ने ‘लोकतंत्र का विनाश’ शीर्षक वाले अपने संपादकीय में कहा, ‘‘देश स्तब्ध है।’’

समाचार पत्र ने कहा, ‘‘गहरी अवमानना कर पद पर बने हुए एक नेता के आदेश पर संसदीय प्रक्रिया की धज्जियां उड़ा दी गईं। पाकिस्तान को एक संवैधानिक संकट के अंधेरे रसातल में धकेल दिया गया है। पुरानी बातों की समीक्षा के बाद ऐसा लगता है कि कप्तान ने इस कायराना दांव को चलने की योजना बनाई थी।’’

उसने पाकिस्तानी क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान के बारे में कहा, ‘‘यह एक कठोर झटका है: खेल की भावना के प्रतिकूल उठाया गया यह कदम स्व-घोषित ‘यौद्धा’ के व्यवहार में गिरावट को दिखाता है।’’

संपादकीय में कहा गया कि ‘‘अंतिम गेंद तक खेलने के बजाय’’ खेल के नियमों की धज्जियां उड़ाकर 69 वर्षीय खान ने ‘‘संवैधानिकता को एक बड़ा झटका दिया और इस बात की गहरी चिंताओं को बढ़ा दिया कि वह लोकतांत्रिक व्यवस्था में सार्वजनिक कार्यालय पर बने रहने के संभवत: योग्य नहीं हैं।’’

‘द एक्सप्रेस ट्रिब्यून’ समाचार पत्र ने अपने संपादकीय में लिखा कि लोकतंत्र की भावना के अनुरूप उचित तरीके से खेल नहीं खेला गया।

उसने कहा, ‘‘खेल में स्वयं एक महान पथ प्रदर्शक रहे प्रधानमंत्री को पता होना चाहिए था कि आगे क्या होने वाला है। विकेट पर उनकी स्थिति कमजोर थी और वह सत्ता में रहने के लिए आवश्यक 172 अंक हासिल नहीं कर सके।’’

समाचार पत्र ने कहा कि खान को पीछे आ जाना चाहिए था और विपक्ष को आगे आने देना चाहिए था और यदि वह सदन में अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान में हार भी जाते, तो आसमान नहीं गिर जाता।

अन्य विशेषज्ञों की तरह ‘डॉन’ समाचार पत्र ने भी कहा कि अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान लंबित होने के बीच खान संवैधानिक रूप से नेशनल असेंबली को भंग नहीं कर सकते थे।

‘द न्यूज इंटरनेशनल’ समाचार पत्र ने टिप्पणी की कि रविवार को जो हुआ, वह अप्रत्याशित है कि एक असैन्य प्रधानमंत्री ने अविश्वास प्रस्ताव का सामना करने के बजाय सदन को भंग करने का रास्ता चुना।

भाषा सिम्मी उमा

उमा

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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