होम विदेश सोवियत संघ के परमाणु हथियारों की जासूसी के लिए शीत युद्ध अभियान...

सोवियत संघ के परमाणु हथियारों की जासूसी के लिए शीत युद्ध अभियान में CIA और PLA ने ऐसे मिलाए थे हाथ

पत्रकार जेन पेरलेज एक सनसनीखेज खुलासा करते हुए प्रोजेक्ट चेस्टनट पर कुछ नया ब्योरा सामने लाईं, जो सीआईए और पीएलए को साथ ला देने वाला एक असाधारण शीत युद्ध ऑपरेशन था.

वाशिंगटन में पेंसिल्वेनिया एवेन्यू के साथ अमेरिका और चीन के झंडे | डीसी एंड्रयू हैरर / ब्लूमबर्ग

नई दिल्ली: 1989 में गर्मियों के दौरान सब पखवाड़े पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के ट्रक शिनजियांग में किताई के पास धूलभरी सड़कों के बीच स्थित एक बेस से बीजिंग के लिए 3,000 किलोमीटर की यात्रा शुरू करते. इनमें सैकड़ों मैग्नेटिक-टेप स्पूल होते, जिसमें इंटरसेप्टेड रेडियो सिग्नल और सेस्मिक इंफॉर्मेशन होती थी जिन्हें आगे अमेरिका के अल्बुकर्क भेज दिया जाता था.

इस डाटा के आधार पर तमाम कड़ियां जोड़कर वहां के विश्लेषक तत्कालीन सोवियत संघ के परमाणु-मिसाइल कार्यक्रम की स्थिति का लगाने की कोशिश करते.

उसी साल के शुरू में चीन ने थ्येन ऑन मन चौक पर सैकड़ों—अनुमानत: हजारों—प्रदर्शनकारियों को मौत के घाट उतार दिया था, जिस पर नाराज अमेरिका ने सैन्य बिक्री प्रतिबंधित के अलावा चीन के साथ राजनयिक संपर्क भी तोड़ लिए थे. लेकिन सार्वजनिक तौर पर दोनों देशों में तनातनी के बीच अमेरिकी केंद्रीय खुफिया एजेंसी (सीआईए) और पीएलए दोनों का गुपचुप तरीके से सहयोग करना जारी था.

पत्रकार जेन पेरलेज एक सनसनीखेज खुलासा करते हुए प्रोजेक्ट चेस्टनट पर कुछ नया ब्योरा सामने लाईं, जो सीआईए और पीएलए को साथ ला देने वाला एक असाधारण शीत युद्ध ऑपरेशन था.

पेरलेज की रिपोर्ट के मुताबिक, 1979 में चीन के नए नेता देंग शियाओपिंग ने देर रात गुपचुप तरीके से वाशिंगटन स्थित सीआईए मुख्यालय की यात्रा की थी ताकि यह समझ सकें कि प्रोजेक्ट चेस्टनट के स्टेशन कहां स्थित होंगे.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

इससे पता चलता है कि कैसे जब देश एक-दूसरे के खिलाफ कड़े विरोध में खड़े नजर आते हैं तब भी खुफिया सेवाएं अपने साझा दुश्मन के खिलाफ हाथ मिलाने में कोई गुरेज नहीं करती हैं.


यह भी पढ़ें– जिया शासन के ‘गैंग ऑफ फोर’ जनरलों की स्विस बैंक खातों में अकूत संपत्ति ने पाकिस्तान में भ्रष्टाचार की पोल खोली


प्रोजेक्ट चेस्टनेट

डिक्लासीफाइड डॉक्यूमेंट दर्शाते हैं कि प्रोजेक्ट चेस्टनट की शुरुआत 1970 की शरद ऋतु में हुई थी जब पूर्व अमेरिकी विदेश मंत्री हेनरी किसिंजर ने पाकिस्तानी सैन्य शासक जनरल याह्या खान के माध्यम से चीन के साथ बातचीत शुरू करने का रास्ता तलाशा. इस बातचीत का ही नतीजा था कि 1971 की गर्मियों में किसिंजर बीजिंग की चर्चित गोपनीय यात्रा पर पहुंचे थे.

1972 में राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन की औपचारिक यात्रा ऐसे समय पर हुई थी जबकि कुछ साल पहले ही अमेरिकी जनरलों ने एक ‘व्यवहार्य समाज’ के तौर पर चीन को खत्म कर देने के लिए परमाणु युद्ध की योजना तैयार की थी.

1972 के अंत में बीजिंग-वाशिंगटन के बीच एक नया सैन्य बैक-चैनल बनाया गया, जिसमें संयुक्त राष्ट्र में चीनी मिशन के राजनयिकों के अलावा मंदारिन-भाषी विद्वान माइकल पिल्सबरी भी शामिल थे.

1975 में पिल्सबरी ने फॉरेन पॉलिसी मैगजीन में एक लेख लिखा, जो एक तरह से उनके सैन्य अनुसंधान और सरकार के भेजे गए मेमो का एक डिक्लासीफाई वर्जन था, जिसमें वाशिंगटन से आह्वान किया गया था कि वह चीन को रक्षा प्रौद्योगिकी के ट्रांसफर और खुफिया सूचनाएं साझा करने पर एकदम आंख मूंदकर प्रतिबंध लगा देने की मौजूदा सार्वजनिक नीति को खारिज करे.’

किसिंजर ने उसी वर्ष पिल्सबरी की सलाह पर राष्ट्रपति गेराल्ड फोर्ड को इस बात पर राजी कर लिया कि ब्रिटेन द्वारा चीन को उन्नत जेट इंजन तकनीक बेचने दी जाए. अगले साल अमेरिका ने खुद चीन को सैन्य इस्तेमाल वाले दो उन्नत कंप्यूटर बेचे.

फिर, 1979 में जब अमेरिका ने ईरान में क्रांति की वजह से वहां अपनी जासूसी चौकियों को गंवा दिया तो सोवियत संघ के मिसाइल कार्यक्रम की निगरानी के उद्देश्य से जासूसी स्टेशन स्थापित करने के विचार के साथ उसने चीन से संपर्क साधा.

चीन इस पर सहमत हो गया—लेकिन शर्त रखी कि औपचारिक राजनयिक संबंध स्थापित होने के बाद ही ऐसा करेगा. सीआईए मुख्यालय में देंग की देर रात की यात्रा तभी हुई थी जब राजनयिक संबंधों की बहाली का संकेत देने के लिए वह अमेरिका दौरे पर पहुंचे थे.

नए दोस्तों के बीच घनिष्ठता

प्रोजेक्ट चेस्टनट से जुड़ी कुछ सार्वजनिक जानकारियों पर वाशिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट बताती है कि जासूसी स्टेशन स्थापित करने की प्रक्रिया के अंतिम चरण में अमेरिकी टेक्नीशियन भेजने की व्यवस्था तब की गई थी जब उस समय एक अनजान से सीनेटर रहे जो बाइडेन ने 1979 में देंग शियाओपिंग से मुलाकात की.

पेरलेज ने लिखा, ‘अमेरिकी तकनीशियन झिंजियांग प्रांत की राजधानी उरुमकी के लिए उड़ान भरते. फिर एक छोटे विमान के जरिये सोवियत संघ की सीमा के पास स्थित एक छोटे से एयरपोर्ट पर पहुंचते. इसके बाद पहाड़ी रेगिस्तानी इलाके की ऊबड़-खाबड़ सड़कों से होते हुए अंतत: दूरस्थ जासूसी स्टेशनों तक पहुंचते.’

उनके मुताबिक, ‘अमेरिकी लगभग हमेशा जोड़े में वहां जाते थे क्योंकि स्टेशन बाकी जगहों से एकदम कटा हुआ था और सीआईए को आशंका थी कि यदि किसी को अकेले भेजा गया तो उसके मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ सकता है. जासूसी स्टेशनों में बीयर और यहां तैनात चीनियों के पसंदीदा स्नैक स्पैम का भंडार रहता था.’

किताई और कोरला स्थित अमेरिका के नए लिसनिंग स्टेशनों ने मध्य एशिया, खासकर कजाकिस्तान के ट्यूरेटम और सरीशगन, में सोवियत मिसाइल परीक्षणों पर तमाम डेटा जुटाया. बताया जाता है कि भौगोलिक स्थिति के कारण यहां से जुटाए गए डेटा की गुणवत्ता ईरान से हासिल डेटा की तुलना में बेहतर थी.

इसके बाद सालों तक अमेरिका और चीन के बीच खुफिया सहयोग फलता-फूलता रहा. यही नहीं पीएलए ने अफगानिस्तान में सोवियत संघ विरोधी मुजाहिदीन (इस्लामी गुरिल्ला) के लिए सीआईए को चीन निर्मित हथियार भी मुहैया कराए.

सोवियत संघ से खतरा महसूस करने वाले शीत युद्ध के समय के दोनों साझेदारों का रिश्ता यूएसएसआर के पतन के साथ ही टूट गया और वे कट्टर दुश्मन बन गए. सीआईए के 18 एजेंट अकेले 2010 से 2012 के दौरान चीनी काउंटर-इंटेलिजेंस अभियान के शिकार बने और उन्हें या तो मार दिया गया या कैद कर लिया गया. पीएलए द्वारा वित्त पोषित हैकिंग नेटवर्क ने कई मौकों पर पूरी सफलता के साथ अमेरिका को निशाना बनाया.

इसके जवाब में अमेरिका ने भी चीन को निशाना बनाने के लिए इस्तेमाल होने वाले अपने संसाधनों को बढ़ा दिया है लेकिन देश के शीर्ष नेतृत्व को भेदने पाने में सफल न होने से कथित तौर पर उसे निराशा ही हाथ लगी है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें- कोविड से सीख लेकर मोदी सरकार AI को बड़े पैमाने पर देगी बढ़ावा, देशभर में करेगी बीमारियों की निगरानी


 

Exit mobile version