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फोटो के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने वाले पत्रकारों के खिलाफ कदम उठाना कितना जायज

उत्तराखंड के सीएम पुष्कर सिंह धामी | एएनआई
इसरो वैज्ञानिक एन. वलारमथी | ट्विटर/@DrPVVenkitakri1

(लारा वैगनरीब मैकडॉनल्ड्स, क्रिमिनोलॉजी में पीएचडी अभ्यर्थी, सिडनी विश्वविद्यालय)

सिडनी, 19 अप्रैल (द कन्वरसेशन) बॉन्डी जंक्शन में एशली गुड की हत्या के 24 घंटे से भी कम समय बाद, उसके परिवार ने एक बयान जारी कर मीडिया से उन तस्वीरों को हटाने का अनुरोध किया जो उन्होंने एशली और उसके परिवार की सहमति के बिना इस्तेमाल की थीं। उन्होंने कहा कि इससे उनके प्रियजनों को अत्यधिक परेशानी हुई है।

उनकी अपील तुरंत समझ में आती है – ऐसी दर्दनाक घटना के बाद हर जगह किसी प्रियजन की तस्वीरें देखकर कई लोग परेशान हो जाएंगे।

जाहिर तौर पर मीडिया को अपनी खबरों में इन तस्वीरों का इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं थी। जब उन्होंने कई प्लेटफार्मों पर तस्वीरें प्रसारित और प्रदर्शित कीं तो उन्होंने परिवार की गोपनीयता के बारे में कतई नहीं सोचा।

किसी ‘‘खबर लायक’’ मौत के बाद सोशल मीडिया पर उसके बारे में तस्वीरों और सामग्री की खोज करना पत्रकारिता की आम प्रथा है और इस बारे में उल्लेखनीय टिप्पणियाँ की गई हैं।

मेरा पीएचडी शोध उस परिप्रेक्ष्य में और अंतर्दृष्टि प्रदान करता है जिसे शायद ही कभी साझा किया जाता है: हत्या के कारण शोक संतप्त परिवारों का दृष्टिकोण।

हालाँकि मैं गुड के परिवार के लिए बोलने की कल्पना नहीं कर सकता और न ही ऐसा करूंगा, मैंने हत्या के कारण शोक संतप्त परिवारों का साक्षात्कार लिया है और उन्होंने मीडिया में अपने प्रियजन की तस्वीरों के बारे में अपना अनुभव साझा किया है।

सार्वजनिक डोमेन में निजी तस्वीरें

शोक संतप्त लोगों के लिए, प्रियजनों की तस्वीरें गहराई से अर्थपूर्ण होती हैं। वे महज़ वस्तुओं से कहीं अधिक हैं, यादृच्छिक रूप से कैप्चर किए गए क्षणों से कहीं अधिक हैं।

वे खुद में विशिष्ट यादें समेटे होती हैं और यादगार के रूप में संजोई जाती हैं।

जब ये तस्वीरें हत्या के बाद सार्वजनिक डोमेन में आती हैं, तो वे पीड़ित की तस्वीरें बन जाती हैं।

इस नए डोमेन में, निजी तस्वीरें पूरी तरह से अलग-अलग उद्देश्यों की पूर्ति करती हैं। वे वर्तमान और भविष्य की मीडिया कहानियाँ प्रस्तुत करते हैं। उनके मूल संदर्भ और व्यक्तिगत अर्थ को आमतौर पर परिवारों की सहमति के साथ ओवरराइड या हटा दिया जाता है।

मेरा शोध इंगित करता है कि यह एक ऐसा मुद्दा है जो हत्या की घटना के बाद भी, मीडिया और सार्वजनिक हित समाप्त होने के बाद भी लंबे समय तक बना रहता है।

दूसरे शब्दों में, यह परिवारों को वर्षों तक आघात पहुँचाने की क्षमता रखता है।

पीड़ितों के साथ न्याय करना

हालाँकि फ़ोटो की खोज एक मामला है, फिर मीडिया द्वारा उनका उपयोग कैसे किया जाता है और जनता द्वारा उनकी व्याख्या कैसे की जाती है, यह अलग बात है।

मेरा शोध यह उजागर करता है कि किसी फोटो के विवरण को दूसरों की कीमत पर कैसे हाइलाइट किया और तोड़ा-मरोड़ा जा सकता है। उदाहरण के लिए, शोक संतप्त परिवारों ने मुझे बताया कि यह कितना दुखद था जब मीडिया ने उनके प्रियजनों की अप्रिय और अनुचित तस्वीरें दोबारा छाप दीं जो सिर्फ दोस्तों और परिवार के लिए थीं।

एक माँ को याद आया कि कैसे उसका बेटा शरारती पोज़ देता था और उनकी पारिवारिक तस्वीरें बर्बाद कर देता था। वह एक सामान्य किशोर था, लेकिन जब मीडिया ने उन तस्वीरों को अपनी बनाई कहानी के साथ दोबारा पेश किया तो उन तस्वीरों के मायने बदल चुके थे। इसके बजाय, माँ ने लेख के नीचे लोगों द्वारा की गई टिप्पणियाँ पढ़ीं जिनमें कहा गया था कि उसका बेटा हत्या के लायक था। लोगों ने उन तस्वीरों के आधार पर उनके बेटे के बारे में अंदाजा लगाया।

इसी तरह, एक बहन तब परेशान हो गई जब मीडिया ने सोशल मीडिया से उसकी और उसके भाई की एक तस्वीर उठाई जिसमें वह अच्छा नहीं लग रहा था। वे एक पार्टी में थे और तस्वीर लेने से पहले के क्षण की एक दिल छू लेने वाली कहानी है। उसने बताया कि उसे यह फोटो बहुत पसंद है; यह उनके लिए एक सुखद स्मृति है, उन्होंने कहा कि यह उनके परिवार के लिए प्यारी तस्वीर है लेकिन लोगों के लिए नहीं कि वे इस फोटो को देखकर उनके भाई के बारे में धारणाएँ बनाएं।

ये उदाहरण इस बात पर प्रकाश डालते हैं कि परिवारों के लिए यह कितना महत्वपूर्ण है जब मीडिया संदर्भ से बाहर, बिना अनुमति के एक तस्वीर लेता है और इसे विशिष्ट आख्यानों के अनुरूप बनाता है।

निश्चित रूप से, यह एक ऐसी प्रथा है जो आघात को बढ़ा देती है।

नियंत्रण का अधिकार

मैंने परिवारों से इस बारे में भी बात की कि उन्होंने कैसे तय किया कि उन्हें कौन सी तस्वीरें सार्वजनिक डोमेन में चाहिए।

एक परिवार, जिसकी बेटी की हत्या सोशल मीडिया को पत्रकारिता उपकरण के रूप में इस्तेमाल करने से पहले ही कर दी गई थी, ने मुझे बताया कि जब उनसे तस्वीरें मांगी गईं, तो उन्होंने अपनी पसंदीदा तस्वीरों को अपने पास रखने का विकल्प चुना।

शोक संतप्त परिवार चाहते हैं कि तस्वीरें उनके प्रियजन का सटीक, प्रस्तुत करने योग्य और उचित चित्रण हों।

ई तस्वीरें किसी विशिष्ट स्मृति या भावना से जुड़ी हो सकती हैं, वे अपनी गोपनीयता बनाए रख सकती हैं, उन्हें चुना जा सकता है क्योंकि उन्हें संदर्भ की आवश्यकता नहीं होती है, या वे वही हो सकते हैं जिनके बारे में उनका मानना ​​​​है कि उनका प्रियजन चाहता होगा।

शोक संतप्त लोगों को इस बारे में फैसले का हक होना चाहिए। उन्हें अपनी मर्जी से किसी भी फोटो को दोबारा छाप देने का विकल्प स्वयं चुनने की अनुमति देना शोक संतप्त परिवारों के दुख को और बढ़ा देता है।

द कन्वरसेशन एकता एकता

एकता

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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