होम विदेश डेंगू से निपटने के लिए बैक्टीरिया आधारित एक नया समाधान हो सकता...

डेंगू से निपटने के लिए बैक्टीरिया आधारित एक नया समाधान हो सकता है कारगर

उत्तराखंड के सीएम पुष्कर सिंह धामी | एएनआई
इसरो वैज्ञानिक एन. वलारमथी | ट्विटर/@DrPVVenkitakri1

(रिरिस अंदोनो अहमद, यूनिवर्सिटास गदजाह मादा, योग्याकार्ता)

योग्याकार्ता (इंडोनेशिया), 22 अप्रैल (360इंफो) जलवायु परिवर्तन के चलते मौसम में आए बदलाव के कारण मच्छर जानलेवा बीमारियां फैला रहे हैं। एक बैक्टीरिया आधारित समाधान इससे निपटने में अहम साबित हो सकता है।

डेंगू के बुखार के कारण दुनियाभर में लोगों की मौतें हो रही हैं तथा जलवायु परिवर्तन इस स्थिति को और बदतर बना रहा है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने 2023 में 80 से अधिक देशों में डेंगू के 50 लाख से अधिक मामले और 5,000 से अधिक मौतें दर्ज कीं जो कि रिकॉर्ड रखने से लेकर अब तक का सबसे गर्म साल रहा।

करीब 80 प्रतिशत यानी 41 लाख मामले अमेरिका में और ब्राजील में 16 लाख से अधिक मामले आए। आश्चर्यजनक रूप से ब्राजील में इस साल महज तीन महीनों में ही यह आंकड़ा पार हो गया है।

इन चौंका देने वाले आंकड़ों का मतलब है कि मच्छर जनित बीमारियों के खिलाफ लड़ाई तेज हो रही है। लेकिन इस लड़ाई में हमारे स्वास्थ्य की रक्षा के लिए कुछ हथियारों का इस्तेमाल किया जा रहा है।

इंडोनेशिया में सरकार पांच शहरों में डेंगू के प्रसार को नियंत्रित करने के लिए बैक्टीरिया की एक प्रजाति वोल्बाचिया के साथ मच्छरों के उपयोग से संबंधित एक कार्यक्रम चला रही है।

मच्छर जनित बीमारी के खिलाफ लड़ाई में नया मोर्चा देनपसार है जो छुट्टियां मनाने के लिए मशहूर द्वीप बाली का प्रवेश द्वार है। सीमारंग, बांडुंग, पश्चिमी जकार्ता, बोंटांग और कुपांग में भी परीक्षण किए जा रहे हैं।

वोल्बाचिया तकनीक डेंगू को नियंत्रित करने के लिए एक आशाजनक जैविक विकल्प के रूप में सामने आती है। यह एक इंट्रासेल्युलर जीवाणु है जो आमतौर पर दुनिया भर में 60 प्रतिशत से अधिक कीट प्रजातियों में पाया जाता है, जिसका अर्थ है कि यह किसी अन्य जीव की कोशिकाओं के अंदर रहता है।

मोनाश विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने एक सूक्ष्म सुई का उपयोग करके वोल्बाचिया को लार्वा में इंजेक्ट किया। 2011 के एक अध्ययन में जंगली मच्छरों की तुलना में वोल्बाचिया संक्रमित मच्छरों में डेंगू वायरल की मात्रा में बड़ी कमी देखी गई।

उदाहरण के लिए अल-नीनो जैसी मौसमी परिस्थितियों के साथ जलवायु गर्म होती रहेगी तो डेंगू और मलेरिया जैसी मच्छर जनित बीमारियों का जोखिम बढ़ेगा जिसके मद्देनजर इसकी आवश्यकता पड़ेगी।

अल-नीनो ऐसी मौसम परिस्थिति है जिसमें मध्य प्रशांत में समुद्र की सतह का तापमान बढ़ता है जिससे अधिक बारिश होती है।

अध्ययनों में पाया गया है कि जैसे-जैसे तापमान बढ़ेगा तो बीमारियां भी बढ़ेंगी।

मच्छरों पर नियंत्रण डेंगू के प्रसार को रोकने के लिए अब भी सबसे ज्यादा अपनायी जाने वाली रणनीतियों में से एक है। लेकिन रासायनिक तरीकों से मच्छरों के असर को कुंद किया जा सकता है।

ऐसे में वोल्बातिया जैसी अन्य पद्धतियों के परीक्षण महत्वपूर्ण साबित हो सकते हैं।

360इंफो डॉट ओआरजी गोला नरेश

नरेश

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

Exit mobile version