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लोकसभा चुनाव में कम मतदान से उर्दू प्रेस चिंतित, कहा- ‘इससे कमजोर होती हैं लोकतांत्रिक प्रक्रियाएं’

दिप्रिंट का राउंड-अप कि कैसे उर्दू मीडिया ने पूरे सप्ताह विभिन्न समाचार घटनाओं को कवर किया, और उनमें से कुछ ने संपादकीय रुख क्या अपनाया.

चित्रणः वासिफ खान । दिप्रिंट
नई दिल्ली: इस सप्ताह उर्दू प्रेस में चुनाव से जुड़ी ख़बरें हावी रहीं, कम से कम दो संपादकीय में चुनाव के दौरान मतदान प्रतिशत के बारे में चिंता जताई गई.

भारत निर्वाचन आयोग ने मतदान के पहले चरण में 66.1 प्रतिशत और दूसरे चरण में 66.7 प्रतिशत मतदान होने का अनुमान लगाया है. इसकी तुलना 2019 के आम चुनाव के पहले चरण में 69.4 प्रतिशत और दूसरे चरण में 69.2 प्रतिशत से की जा रही है.

जबकि 29 अप्रैल को इंकलाब के संपादकीय में चुनाव के पहले दो चरणों के दौरान मतदान में उल्लेखनीय गिरावट पर प्रकाश डाला गया, रोज़नामा राष्ट्रीय सहारा ने इस बात पर अफसोस जताया कि चुनावी बैठकों और रोड शो के शोर के बावजूद, जब वास्तविक मतदान की बात आती है तो “चुप्पी” होती है. संपादकीय में कहा गया, कम मतदान प्रतिशत सभी पार्टियों के लिए चिंता का विषय है.

इसमें कहा गया है, “लोगों को यह भी विचार करना चाहिए कि कम मतदान लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कमजोर करता है, और इससे अवांछित उम्मीदवार भी जीत सकता है, इसलिए उन्हें मतदान में सक्रिय रूप से भाग लेना चाहिए.”

इस सप्ताह कवर किए गए अन्य विषयों में मुसलमानों के लिए आरक्षण, रायबरेली और अमेठी के लिए उम्मीदवारों की घोषणा में कांग्रेस की देरी और उत्तर प्रदेश की कक्षा 10 की बोर्ड परीक्षा में टॉपर प्राची निगम की साइबर ट्रोलिंग शामिल हैं. फार्मास्युटिकल प्रमुख एस्ट्राजेनेका के इस स्वीकारोक्ति के बारे में खबर कि भारत में कोविशील्ड के रूप में बेची जाने वाली उसकी COVID-19 वैक्सीन, थ्रोम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम (टीटीएस) के साथ थ्रोम्बोसिस नामक एक दुर्लभ लेकिन संभावित जीवन-घातक दुष्प्रभाव का कारण बन सकती है, इस सप्ताह भी खबर बनी.

इस सप्ताह उर्दू प्रेस में सभी प्रमुख विषयों का सारांश यहां दिया गया है.

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चुनाव

चुनावी बुखार पूरे सप्ताह गर्म रहा, उर्दू अखबारों ने अटकलें लगाईं कि कां/ग्रेस ने अपनी दो सबसे महत्वपूर्ण सीटों – अमेठी और रायबरेली – के लिए अपने उम्मीदवारों की घोषणा करने में देरी क्यों की और पिछले 10 वर्षों में किए गए कार्यों के लिए सत्तारूढ़ भाजपा से जवाबदेही की मांग की.

इंकलाब के 3 मई के संपादकीय में इस बात पर जोर दिया गया कि कांग्रेस ने गांधी परिवार के गढ़ माने जाने वाले अमेठी और रायबरेली के लिए उम्मीदवारों की घोषणा क्यों नहीं की.

इस संपादकीय के प्रकाशित होने के कुछ घंटों बाद ही कांग्रेस ने इन दोनों सीटों के लिए अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी. जबकि वायनाड के सांसद राहुल गांधी रायबरेली से चुनाव लड़ेंगे, वहीं अमेठी की सीट जिस पर पिछले सात दशकों से उनके परिवार का कब्जा है कांग्रेस नेता किशोरी लाल शर्मा चुनाव लड़ेंगे.

3 मई की सुबह अपने संपादकीय में, इंकलाब ने कांग्रेस सूत्रों के हवाले से कहा कि न तो राहुल और न ही उनकी बहन प्रियंका गांधी वाड्रा निर्वाचन क्षेत्रों से चुनाव लड़ना चाहते थे.

यह कहते हुए कि गांधी भाई-बहन शायद इस धारणा को दूर करना चाहते हैं कि कुछ ही निर्वाचन क्षेत्र गांधी-नेहरू परिवार के विशिष्ट डोमेन हैं, संपादकीय में कहा गया, “राहुल गांधी वायनाड को पसंद करते हैं, और उनके लिए अमेठी जीतने के बाद इसे छोड़ना उचित नहीं होगा. इसी तरह, प्रियंका गांधी ने अन्य निर्वाचन क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान दिया है, और यह अच्छा नहीं होगा यदि उन्होंने रायबरेली जीतने के बाद उन्हें छोड़ दिया,”

30 अप्रैल को अखबार के संपादकीय में कहा गया कि 2014 और 2019 में जो “नारे” हवा में थे, वे इस बार नहीं सुने जा रहे हैं. इनमें देश को पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था में बदलने का वादा और सरकार की स्मार्ट सिटी और स्मार्ट विलेज पहल शामिल हैं. इसमें पूछा गया, “लोग सोच रहे हैं कि अच्छे दिनों के वादे का क्या हुआ? सत्ताधारी दल के नेता चुप क्यों हैं?”

2 मई को सहारा में एक संपादकीय में बैलट पेपर की वापसी की मांग करने वाली याचिकाओं को खारिज करने के सुप्रीम कोर्ट के 26 अप्रैल के फैसले पर भी रोशनी डाली गई. इस संपादकीय में वकील प्रशांत भूषण द्वारा दिए गए तर्कों की प्रभावकारिता पर सवाल उठाया गया, जो इस मामले में चुनाव सुधार गैर-लाभकारी संस्था – एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) का प्रतिनिधित्व कर रहे थे. संपादकीय में तर्क दिया गया कि वकील ने ईवीएम छेड़छाड़ के सबूत दिखाने के बजाय केवल इतना कहा कि ऐसी छेड़छाड़ संभव है.

“ईवीएम से वीवीपैट पेपरों पर निशान आने की शिकायतें आई हैं लेकिन भाजपा चुप रही है, जिससे चिंताएं गहरा रही हैं. वरिष्ठ वकीलों को इस मुद्दे को ठोस सबूतों के साथ अदालत में उठाना चाहिए था, आरोपों को साबित करना चाहिए था और दोषियों को सजा दिलाने की कोशिश करनी चाहिए थी.” इसमें कहा गया है कि मामले में अदालत का काफी समय ”बर्बाद” हुआ.

मई दिवस और प्राची निगम की ट्रोलिंग

1 मई को सहारा का संपादकीय श्रमिकों के अधिकारों पर केंद्रित था. संपादकीय, जिसका शीर्षक ‘वी डिमांड द वर्ल्ड’ है और ‘मई दिवस’ या ‘मजदूर दिवस’ पर प्रकाशित हुआ है, में कहा गया है कि जबकि जलवायु परिवर्तन के कारण वैश्विक तापमान बढ़ रहा है, ऐसी परिस्थितियों में श्रमिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कोई कानून नहीं बनाया गया है.

संपादकीय में कहा गया, “दुनिया के 80 प्रतिशत से अधिक श्रमिकों को शरीर के तापमान में वृद्धि के कारण गंभीर बीमारी और मृत्यु का खतरा है. दुनिया भर के श्रमिकों को न केवल जलवायु परिवर्तन के (प्रभावों से) सुरक्षित रखने की जरूरत है बल्कि उन्हें बराबरी के अवसरों की उपलब्धता उचित व्यवहार किए जाने की भी जरूरत है.” आगे इसमें यह भी कहा गया कि अगर ऐसा नहीं हुआ तो पूंजीवाद के खिलाफ विद्रोह होगा.

इंकलाब के 2 मई के संपादकीय में यूपी कक्षा 10 की बोर्ड परीक्षा की टॉपर प्राची निगम को चेहरे के बालों के कारण हुई साइबर धमकी की निंदा की गई.

ट्रोलिंग को “बेहद दुर्भाग्यपूर्ण” बताते हुए संपादकीय ने लोगों को “बोलने से पहले सोचने” की सलाह दी और विचार किया कि उनका व्यवहार उनके आसपास के लोगों को कैसे प्रभावित करता है.

“जब सोशल मीडिया नहीं था तो हर कोई बोलने से पहले सोचता था. अब, चूंकि जिस व्यक्ति को ट्रोल किया जा रहा है वह उनके सामने नहीं है, इसलिए जो मन में आए बोल देने का चलन आम हो गया है.”

मुसलमानों के लिए आरक्षण

सियासत में दो संपादकीयों में मुसलमानों के लिए आरक्षण की वकालत की गई, और उन्हें समाज के सबसे हाशिए पर रहने वाले वर्गों में से एक बताया गया. ये संपादकीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा यह स्पष्ट किए जाने के बाद आए कि वह किसी भी धर्म-आधारित आरक्षण की “अनुमति” नहीं देंगे.

उन्होंने तेलंगाना के जहीराबाद में अपने भाषण में कहा, ”जब तक मैं जीवित हूं, मैं धर्म के आधार पर मुसलमानों को दलितों, आदिवासियों, ओबीसी का आरक्षण नहीं देने दूंगा.”

3 मई को अपने संपादकीय में, सियासत ने केंद्र सरकार से सच्चर आयोग की सिफारिशों को लागू करने का आग्रह किया. भारत में मुसलमानों की सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक स्थिति का अध्ययन करने के लिए मार्च 2005 में स्थापित आयोग ने सार्वजनिक जीवन में भारत के सबसे बड़े अल्पसंख्यक का प्रतिनिधित्व बढ़ाने के लिए उपाय करने की सिफारिश की.

संपादकीय में कहा गया है, ”भाजपा के विरोध के बावजूद, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना ने मुसलमानों के लिए 4 प्रतिशत आरक्षण लागू किया है.” इसमें कहा गया है कि अगर निष्पक्ष रूप से देखा जाए तो मुसलमान ऐसे कोटा के ”सही दावेदार” हैं.

अखबार के 1 मई के संपादकीय में “जन कल्याण की उपेक्षा करने और वास्तविक मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए धार्मिक उग्रवाद पर भरोसा करने” के लिए नरेंद्र मोदी सरकार की आलोचना की गई है.

संपादकीय में कहा गया है, ”यह चिंताजनक है कि नेता देश में महत्वपूर्ण योगदान के बावजूद वोट हासिल करने के लिए मुसलमानों को निशाना बना रहे हैं.” संपादकीय में कहा गया है कि देश के प्रधानमंत्री और गृहमंत्री को भारत के सभी नागरिकों की भलाई को प्राथमिकता देनी चाहिए, चाहे उनका धर्म कुछ भी हो.”

28 अप्रैल को अपने संपादकीय में – मोदी के जहीराबाद भाषण से दो दिन पहले – सियासत ने कहा कि समाज की वास्तविक और निष्पक्ष जांच से पता चलेगा कि आरक्षण केवल हिंदुओं को दिया गया है. इसने भाजपा पर कोटा को पूरी तरह खत्म करने का इरादा रखने का भी आरोप लगाया.

संपादकीय में कहा गया है कि आरक्षण संविधान में निहित है, जिसे भाजपा ने लागू किया है, “आरक्षण धर्म पर आधारित है. चूंकि आरक्षण से लाभान्वित होने वाले लोग दलित और पिछड़े वर्ग हैं, इसलिए यह तथ्य भाजपा को परेशान करता है, जिससे उन्हें उच्च जातियों को खुश करने के लिए आरक्षण को पूरी तरह से खत्म करने की योजना बनानी पड़ती है.”

संपादकीय में कहा गया है,“फिर भी भाजपा बंद दरवाजे के पीछे संविधान में संशोधन की बात करती है. सभी नागरिकों के लिए इसके डिज़ाइन के बारे में जागरूक होना आवश्यक है,”

27 मई को, सियासत ने भारत के चुनाव आयोग से “चुनावों के दौरान धर्म के ज़बरदस्त इस्तेमाल के खिलाफ तत्काल कार्रवाई” करने का आग्रह किया.

“इसके अलावा, मतदाताओं को यह विचार करने की आवश्यकता है कि जो लोग लोगों की सेवा करने के लिए वोट मांगने के बजाय धर्म का शोषण करते हैं, वे हमेशा लोगों की सेवा करने के बजाय विभाजनकारी राजनीति और सांप्रदायिकता का सहारा लेंगे.”

मतदाताओं से ऐसे नेताओं से सावधान रहने का आग्रह करते हुए संपादकीय में कहा गया, “विकास और निर्माण योजनाओं का समर्थन करते समय, आपको (मतदाता) अपने राजनीतिक कौशल का भी प्रदर्शन करना चाहिए.”


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