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‘वो मेरे पैर तोड़ सकते हैं, हौसला नहीं’: RTI कार्यकर्ता ने कहा-‘बाड़मेर ‘राजस्थान का काला पानी’

राजस्थान वो जगह है जहां 1990 के दशक के अंत में RTI आंदोलन शुरू हुआ था. इसके बावजूद बाड़मेर के बहुत से RTI कार्यकर्त्ताओं का कहना है कि भ्रष्टाचार का पर्दाफाश करने के प्रयास में उनका नियमित रूप से हमलों और धमकियों से सामना होता है.

आरटीआई कार्यकर्ता अमरा राम गोदारा के पिता जोधपुर के एमडीएम अस्पताल में अपने बेटे से मिलते हुए | फोटो: प्रवीण जैन | दिप्रिंट

बाड़मेर/जोधपुर: सूचना अधिकार (आरटीआई) कार्यकर्त्ता 30 वर्षीय अमरा राम गोदारा, जोधपुर के एमडीएम अस्पताल में एक बिस्तर पर स्थिर पड़े हुए हैं. पिछले महीने उन पर बेरहमी से हमला हुआ था जिससे उनकी दोनों टांगें टूट गई हैं और वो अपना धड़ भी हिला नहीं पा रहे हैं. गोदारा उस हमले का कारण भ्रष्टाचार और अवैध शराब कारोबार के खिलाफ अपने अभियान को बताते हैं.

गोदारा को नहीं मालूम कि वो फिर से चल पाएंगे कि नहीं लेकिन वो वापस जाकर अपने लोगों के लिए काम करने के लिए बेचैन हैं. उन्होंने कहा, ‘ये लोग मेरे पैर तोड़ सकते हैं, पर हौसला नहीं’.

कार्यकर्त्ता का दावा है कि 21 दिसंबर को उन्हें उनके घर के पास से एक एसयूवी में अग़वा कर लिया गया था. उन्होंने कहा, ‘मैं अपने घर के पास एक बस से उतरा और मैंने देखा कि कुछ लोग अपने चेहरों को ढके हुए मेरा इंतज़ार कर रहे थे. मुझे रोज़ाना धमकियां मिलती हैं इसलिए मैंने जान बचाकर भागना शुरू कर दिया. पहले उन्होंने अपनी गाड़ी मुझपर चढ़ाने की कोशिश की. इसमें नाकाम रहने पर उन्होंने मुझे उठा लिया और मुझे टॉर्चर करने लगे’.

गोदारा ने आगे कहा, ‘उन्होंने मेरे पैरों में कीलें घुसा दीं, डंडों और रॉड्स से मुझे पीटा और फिर मुझे पेशाब पीने को मजबूर किया. इसके बाद उन्होंने मुझे मरा हुआ समझकर गाड़ी से बाहर फेंक दिया’.

गोदारा के अनुसार, उन पर बुनियादी रूप से बाड़मेर की ‘कंपूलिया ग्राम पंचायत में व्याप्त भ्रष्टाचार का पर्दाफाश’ करने के लिए हमला किया गया था. उनका कहना है कि उन्होंने गांवों में शराब के अवैध कारोबार, प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना और महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) में व्याप्त भ्रष्टाचार का भंडाफोड़ किया था.

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वो कहते हैं कि उन्होंने ये मुद्दे ‘प्रशासन गांव के संग’ अभियान के तहत, राज्य सरकार की ओर से आयोजित एक विशेष बैठक में उठाए थे.

राजस्थान ही वो जगह है जहां 1990 के दशक के अंत में (अजमेर में) सूचना अधिकार आंदोलन शुरू हुआ था. फिर भी, बाड़मेर के बहुत से आरटीआई कार्यकर्त्ताओं का कहना है कि ‘भ्रष्टाचार का पर्दाफाश’ करने के कोशिश में उनको नियमित रूप से हमलों और धमकियों का सामना करना पड़ता है. उनका ये भी आरोप है कि उनकी आरटीआई याचिकाएं, अकसर चार-चार साल तक रोक कर रखी जाती हैं.

आरटीआई आंदोलन की एक पथ-प्रदर्शक सामाजिक कार्यकर्त्ता अरुणा रॉय ने कहा, ‘बाड़मेर में हिंसा का हाल विशेष रूप से बुरा है’.

उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘जब भी शक्तिहीन लोग शक्तिशाली लोगों से सवाल करते हैं तो भ्रष्ट और ताक़तवर अभिजात वर्ग के लिए वो एक समस्या बन जाती है. लंबे समय से दबे कुचले आ रहे लोग जब अपनी आवाज़ उठाते हैं तो उस वर्ग की ओर से हिंसक प्रतिक्रिया होती है जिसने समाज में सभी विशेषाधिकारों पर अपना एकाधिकार बनाया हुआ है’.

रॉय ने कहा, ‘सच्चाई और लोगों के अधिकारों को दबाने के लिए वो हिंसा का सहारा लेते हैं. ख़ासकर बाड़मेर में ये प्रतिक्रिया उसका नतीजा है कि आरटीआई कार्यकर्त्ता निचले स्तर के सरकारी अधिकारियों के भ्रष्टाचार और ताक़त के मनमाने इस्तेमाल का पर्दाफाश करते हैं’. उन्होंने आगे कहा, ‘ये कर्मचारी सामंती व्यवस्था के शक्तिशाली अभिजात वर्ग के साथ साठ-गांठ कर लेते हैं. एक साथ आकर इनका मेल ताक़तवर बन जाता है, समुदायों पर अपनी पकड़ और सरकारी पैसे तक पहुंच में किसी भी तरह की कमी का विरोध करता है’.


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‘हर रोज़ कम से कम दो धमकी भरी कॉल्स आती हैं’

लबराउ गांव के एक 36 वर्षीय आरटीआई कार्यकर्त्ता भगवान सिंह बाड़मेर को ‘ख़ासकर आरटीआई कार्यकर्ताओं के लिए राजस्थान का काला पानी,’ बताते हैं.

अपने ऑफिस में खड़े हुए जहां हर ओर उनके दायर किए हुए आरटीआई आवेदनों से जुड़े कागज़ों के ढेर हैं, उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘जिस दिन मुझे कम से कम दो धमकी भरी फोन कॉल्स नहीं आतीं, उस दिन मेरा खाना हजम नहीं होता. ये एक सामान्य बात हो गई है कि लोग मुझसे कहते हैं कि वो मुझे यातनाएं देंगे, मार देंगे’.

लबराऊ गांव में आरटीआई कार्यकर्ता भगवान सिंह | फोटो: प्रवीण जैन | दिप्रिंट

सिंह का आरोप है कि पिछले साल उन पर पत्थर फेंके गए थे उन्होंने उस समय एक स्थानीय ‘घोटाले’ का पर्दाफाश किया था, जिसमें गांव की 1,600 हेक्टेयर साझा ज़मीन पर, ऊंची जाति के लोगों ने ‘अवैध कब्ज़ा कर लिया था’.

उन्होंने कहा, ‘आरटीआई कार्यकर्त्ताओं को बहादुर होना पड़ता है क्योंकि उन्हें कोर्ट केस, फर्ज़ी एफआईआर, धमकियां, हमले और पुलिस प्रताड़ना इन सबका सामना करना पड़ता है. राष्ट्रीय भ्रष्टाचार-विरोधी एवं मानवाधिकार संगठन के संस्थापक सिंह ने आगे कहा कि उन्होंने इस इकाई का गठन इसलिए किया कि उन्हें ‘काम करने के लिए एक परचम
की तलाश थी’.

उन्होंने आगे कहा, ‘मैंने राजस्थान की सभी जेलों में एक पीसीओ सेवा शुरू कराने के लिए भी काम किया जहां क़ैदी कम से कम फोन कॉल्स कर सकें’.

सिंह के संगठन में फिलहाल देश के 22 प्रांतों के 2,855 प्रतिभागी हैं. इनमें से 350 कार्यकर्त्ता राजस्थान से हैं जिनमें एक तिहाई बाड़मेर ज़िले से हैं.

हालांकि सिंह पास बाड़मेर में हाल ही में कितने आरटीआई कार्यकर्त्ताओं पर हमले हुए इसका सही डेटा नहीं है लेकिन  उनका कहना है कि पिछले दो सालों में कम से कम छह कार्यकर्त्ता हमलों का सामना कर चुके हैं.

उन्होंने बताया कि आरटीआई कार्यकर्त्ता जगदीश गोलिया 2019 में ‘पुलिस हिरासत में मारा गया था’.

उन्होंने कहा, ‘एक वरिष्ठ कार्यकर्त्ता पर हमला किया गया था जो अवैध रेत खनन में भ्रष्टाचार को बेनक़ाब कर रहा था. बालोतरा के आरटीआई कार्यकर्त्ता सुमेरी लाल शर्मा, बाड़मेर शहर के कार्यकर्त्ता और वकील सुज्जन सिंह भाटी पर भी तीन बार हमले हो चुके हैं. मेरे ऊपर फरवरी में हमला हुआ था. अन्य कार्यकर्त्ताओं मुकेश शर्मा, देवी लाल झाकर और नव सिंह डेका पर भी हमले हो चुके हैं’.

उन्होंने आगे कहा, ‘अगर कार्यकर्त्ता शिकायत दर्ज कराने पुलिस थानों में जाते हैं तो ज़्यादातर उन्हें लौटा दिया जाता है’.

पचपदरा के थाना प्रभारी (एसएचओ) प्रदीप डागर ने पुलिस उदासीनता के आरोपों से इनकार किया.

उन्होंने कहा, ‘2019 में, गोलिया की मौत के समय तब के एसएचओ समेत शिफ्ट में बाड़मेर तमाम पुलिसकर्मियों को निलंबित कर दिया गया था. एक आंतरिक जांच इस निष्कर्ष पर पहुंची कि गोलिया की मौत क्रूरता से नहीं बल्कि दिल का दौरा पड़ने से हुई थी’.

उन्होंने आगे कहा, ‘भगवान सिंह पर हुई हिंसा के मामले में एक एफआईआर दर्ज की गई और दो लोगों को गिरफ्तार किया गया है. जिन दोनों मामलों में मुकेश शर्मा को पीटा गया था. उनमें अभियुक्त को ज़मानत मिल गई और वो केस फिलहाल बाड़मेर ज़िला न्यायालय में है’.

सुज्जन सिंह के लिए कोतवाली बाड़मेर एसएचओ प्रेम प्रकाश ने कहा कि उनके पास विस्तृत ब्यौरा नहीं है. जहां तक सुमेरी लाल शर्मा का सवाल है बाड़मेर पुलिस स्टेशन एसएचओ बाबूलाल ने कहा कि ‘वो बहुत पहले हुआ था और उस पर बोलने के लिए मैं सही व्यक्ति नहीं हूं’.

‘तारीख़ पे तारीख़’

भगवान सिंह ने ये भी कहा कि उनकी ज़्यादातर अपीलें बरसों से लंबित पड़ी हैं.

उन्होंने आगे कहा, ‘राजस्थान सूचना आयोग हमें अदालतों की तरह तारीख़ पे तारीख़ देता रहता है. वो हमारी अपीलों पर कार्रवाई नहीं करता. मेरी अपीलें क़रीब चार वर्षों से अदालतों में लंबित पड़ी हैं’.

‘कमीशन आरटीआई आवेदनों का देर से जवाब देने के लिए लोगों पर जुर्माना भी नहीं लगाता. हालांकि क़ानून के तहत उन्हें हर दिन के लिए 250 रुपए जुर्माना लगाना होता है. आरटीआई कार्यकर्त्ता जिस कष्ट और परेशानी से गुज़रते हैं उसके लिए उन्हें भी मुआवज़ा मिलना चाहिए लेकिन कुछ नहीं दिया जाता’.

जब दिप्रिंट ने राजस्थान के मुख्य सूचना अधिकारी डीबी गुप्ता से कार्यकर्त्ताओं की शिकायतों के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि 2018 के बहुत कम मामले अभी लंबित हैं.

दिप्रिंट के सवालों का जवाब देते हुए उन्होंने व्हाट्सएप पर लिखा, ‘ये आंकड़े कोर्ट 3 के पास हैं जो बाड़मेर के मामले देखती है. 2018 के बहुत थोड़े मामले लंबित हैं. मुख्य कारण (लंबित मामलों का) ये है कि पार्टियां सुनवाई के लिए निर्धारित तिथि पर पेश नहीं होतीं या कोई जवाब नहीं मिलता (जो पक्ष आरटीआई आवेदन संबोधित होते हैं)’.

‘2020 और 2021 में, महामारी की वजह से अदालतें तीन महीना बंद रहीं इसलिए आगे की तारीख़ें नहीं दी गईं थीं’.

‘7-8 टांके लगाए गए’

हीरा की धानी गांव के एक आरटीआई कार्यकर्त्ता मुकेश शर्मा का दावा है कि उनके ऊपर दो बार हमला हुआ. एक बार 2017 में और दूसरी बार 2019 में.

21 वर्षीय शर्मा ने कहा, ‘2017 में मैंने ग्राम पंचायत से कुछ जानकारी मांगी थी. तब के सरपंच और उसके सहायकों ने रात के 1.30 बजे, मुझे मेरे घर से उठा लिया जब मैं सो रहा था और मेरे सर पर डंडा मारा. मेरे सर पर 7-8 टांके लगाने पड़े थे’.

उसकी शिकायत पर ज़िले के गीदा पुलिस थाने में एक एफआईआर दर्ज की गई लेकिन कोई गिरफ्तारी नहीं हुई.

शर्मा ने कहा कि उसकी सबसे बड़ी प्रेरणा स्वतंत्रता सेनानी स्वर्गीय भगत सिंह हैं. उसने कहा, ‘मुझे बताइए भगत सिंह के पास क्या था? कुछ नहीं. फिर भी उन्होंने आपकी और मेरी बेहतरी के लिए निस्वार्थ भाव से सब कुछ न्योछावर कर दिया. यही कारण है कि मैं आज ये काम करता हूं, हालांकि मेरे पीछे कुछ नहीं है’.

जसोदों की बेरी गांव के रहने वाले गोदारा की जड़ें भी बहुत मामूली हैं.

उसका घर या जिसे स्थानीय बोली में धानी कहा जाता है. तीन कच्चे ढांचों से मिलकर बना है जो थार मरुस्थल के एक अज्ञात से स्थान पर है. यहां गोदारा की पत्नी इंदिरा राम अपने तीन बच्चों के साथ पति के लौटने का इंतज़ार कर रही है. बाड़मेर के इस हिस्से में कोई मुश्किल से ही कंक्रीट से बने घर में रहता है.

जसोदों की बेरी गांव में अपने घर के बाहर बच्चों के साथ आरटीआई कार्यकर्ता अमरा राम गोदारा की पत्नी इंदिरा देवी | फोटो: प्रवीण जैन | दिप्रिंट

गोदारा का आरोप है कि उसपर शराब की अवैध बिक्री और प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना के कार्यान्वयन में धोखाधड़ी का पर्दाफाश करने पर हमला किया गया जो केंद्र सरकार की ‘सबके लिए आवास’ की एक फ्लैगशिप योजना है.

उसने दावा किया, ‘ग़रीबों को इस स्कीम से बाहर रखा जाता है और उसके सारे फायदे सत्ताधारी सरपंच के कुटुम्ब और जातियों को पहुंचा दिए जाते हैं’.

उसने कहा, ‘ऐसी ही एक मिसाल परेयु गांव के प्रकाश नाम के एक व्यक्ति की थी. स्कीम के अंतर्गत जारी की गई राशि को उसी नाम के एक और व्यक्ति को पहुंचा दिया गया. जब मैंने पंचायत समिति में इस मामले को उठाया, तो आवश्यक कार्रवाई की गई’.

खंड विकास अधिकारी सतीश सिंह ने स्वीकार किया कि एक विसंगति हुई थी: ‘पीएम आवास योजना के अंतर्गत एक ग़लत आवंटन हो गया था जिसे गोदारा ने सामने रखा था. जब ये बात मेरे संज्ञान में आई तो मैंने वो पैसा वापस लेकर उसे सरकारी ख़ज़ाने में जमा करा दिया’.

गोदारा का कहना है कि आरटीआई के ज़रिए, उसने मनरेगा जैसी अन्य स्कीमों, गांवों में सड़क और शौचालय निर्माण जैसी परियोजनाओं में व्याप्त भ्रष्टाचार का भी पर्दाफाश करने की कोशिश की है.

मनरेगा के अंतर्गत, स्थानीय ग्रामीणों को सार्वजनिक इस्तेमाल के लिए वर्षा जल संचयन की टंकियां बनाने का काम दिया जाता है लेकिन ग्रामीणों का दावा है कि उन्हें कम भुगतान किया जाता है.

जसोदों की बेरी गांव के सरूपा राम का कहना है कि उसे उसकी मज़दूरी का पूरा पैसा नहीं दिया गया. उसने आगे कहा, ‘ठेकेदार और सरपंच मेरा आधा पैसा खा गए. उन्होंने पानी की इस टंकी को बनाने वालों की सूची में फर्ज़ी नाम शामिल कर दिए. केवल हम पांच लोगों ने टंकी पर काम किया था जबकि इस परियोजना पर काम करने वालों की सूची में 17 नाम दिखाए गए हैं’.

जसोदों की बेरी गांव में सरूपा राम | फोटो: प्रवीण जैन | दिप्रिंट

दिप्रिंट ने कंपूलिया ग्राम पंचायत समिति के कई गांवों का दौरा किया जहां गोदारा रहता है और जो बाड़मेर ज़िले का सबसे पिछड़ा हुआ क्षेत्र है. ज़मीन बंजर है, कोई सिंचाई व्यवस्था नहीं है और लोगों की आय का प्रमुख स्रोत मवेशी पालन है. सही सड़कें न होने के कारण फासले और अधिक बढ़ जाते हैं. गोदारा का कहना है कि उसने अपना पूरा जीवन ‘ग्राम पंचायत में व्याप्त भ्रष्टाचार से लड़ाई को समर्पित कर दिया है’.

जोधपुर के एक अस्पताल में आरटीआई कार्यकर्ता अमरा राम गोदारा | फोटो: प्रवीण जैन | दिप्रिंट

जोधपुर में अस्पताल के अपने बिस्तर से उसने कहा, ‘मैं उन गिने-चुने लोगों में से हूं जिसने कुछ पढ़ाई की थी. मैं अपने समाज के लिए काम करना चाहता हूं. यही कारण है कि भले ही मैं ग़रीब हूं पर 2011 से आरटीआई कार्यकर्त्ता का काम कर रहा हूं’.

40 की उम्र पार कर चुके आरटीआई कार्यकर्त्ता उम्मेद सिंह सोधा जो ज़िले के गदरा गांव में रहते हैं उन्होंने कहा कि उन्हें इतनी बार धमकियां नहीं मिलतीं लेकिन उन्होंने समझाया कि ऐसा क्यों होता है.

उन्होंने कहा, ‘मैं एक राजपूत हूं. मैं ख़ुशहाल हूं इसलिए मुझे धमकाने की किसी की हिम्मत नहीं होती. लेकिन अगर मैं किसी निचली जाति या ग़रीब पृष्ठभूमि से होता तो मेरे लिए चीज़ें ज़्यादा मुश्किल हो जातीं हैं’.

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