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अग्निपथ योजना इस बात का प्रमाण है कि मोदी सरकार बदलाव ला सकती है, लेकिन खुला दिमाग लेकर आगे बढ़ें

पूरे भारत के लिए,, अयोध्या जैसे धार्मिक मुद्दों पर पहले जब चर्चा की जाती थी तब शालीनता का एक झीना परदा उसके ऊपर रहा करता था मगर अब तो नफरत का खुला प्रदर्शन करने से कोई परहेज नहीं किया जाता है.

भारतीय सेना के जवानों की प्रतीकात्मक तस्वीर | कॉमन्स

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने तीनों सेनाओं के अध्यक्षों और सैन्य मामलों के विभाग के अस्थायी प्रमुख की मौजूदगी में 14 जून को जिस ‘अग्निपथ’ योजना की घोषणा की उसके तहत सेना में सैनिकों की चार साल के लिए ठेके पर भर्ती की जाएगी, जिसमें उन्हें पेंशन और ऐसी दूसरी सुविधाएं नहीं मिलेंगी. इस योजना की तैयारी पिछले दो साल से चल रही थी और सेना के अंदर विचार-विमर्श तथा सेवानिवृत्त सेना अधिकारियों की अगुआई में सार्वजनिक बहस के बाद इसमें काफी सुधार भी किए गए.

इस योजना का मूल मकसद सेना के बढ़ते पेंशन बिल को कम करना है ताकि रक्षा बजट का बेहतर उपयोग किया जा सके और सेना में युवा बढ़ें. इसका राजनीतिक मकसद रोजगार के अवसर पैदा करना भी माना जा रहा है, जो कि इसके मूल मकसद से मेल नहीं खाता. सेवानिवृत्त सैनिक और कुछ हद तक प्रशंसक लोग इसकी आलोचना कर रहे हैं क्योंकि उनका मानना है कि यह जाति/धर्म/क्षेत्र पर आधारित रेजीमेंट सिस्टम (जो समय की कसौटी पर खरी पाई गई है), और यूनिट/सब-यूनिट वाली तालमेल (जो कि लड़ाई के मैदान में कामयाबी के लिए जरूरी है) वाली व्यवस्था को चोट पहुंचा सकती है.

मेरा मानना है कि सेना में मानव संसाधन के प्रबंधन और निरंतर बढ़ते पेंशन बिल के मामलों में बुनियादी सुधार करने का दूरगामी फैसला किया जा चुका है. इन सुधारों का सेना के गठन, चरित्र और उसकी संस्कृति पर प्रभाव पड़ेगा. अब ज़ोर इस बात पर दिया जाना चाहिए कि इसे पारदर्शी, निष्पक्ष और शोषण मुक्त ढंग से लागू करने के लिए इसे और कितना बेहतर बनाया जा सकता है.
अंदर और बाहर दोनों ओर से जबकि ‘परिवर्तन का प्रतिरोध’ किया जा रहा है, मैं इन सुधारों को काफी संशोधन के साथ लागू करने के पक्ष में हूं. इस लेख में मैंने उन संशोधनों को प्रस्तावित किया है.

अलग-थलग सुधार

दुर्भाग्य से, यह योजना सेना के समग्र परिवर्तन से कटी हुई अलग-थलग सुधार की योजना है. समग्र परिवर्तन में आजमाए हुए क्रम से सुधार किए जाते हैं, रणनीतिक समीक्षा की जाती है, औपचारिक राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति तैयार करना, रक्षा नीति, और समयबद्ध तथा राजनीतिक निगरानी में क्रियान्वयन की जाने वाली योजना तैयार करना. चूंकि सेना को 21वीं सदी वाली लड़ाइयों के लिए तैयार किए जाने के हिसाब से बदला जा रहा है इसलिए इस पद्धति का पालन करना उपयुक्त होगा.

इस योजना को मानव संसाधन प्रबंधन से संबंधित उन सुधारों से भी जोड़ना है, जो मानव शक्ति के अधिकतम उपयोग या उसे कम करने तथा पुनर्गठन पर आधारित हों. राहत की बात यह है कि इस सुधार को नरेंद्र मोदी सरकार ने औपचारिक रूप से अपनाया है और स्वीकृति दी है. इसलिए जल्द ही यह नतीजे देने लगेगी.

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‘अग्निपथ’ को अवसर में बदलें

अधिकारियों और सैनिकों की अल्प अवधि के लिए सेवा लेना मानव शक्ति के प्रबंधन और सेना में पेंशन बिल को कम करने का आजमाया हुआ तरीका है और भारतीय सेना भी इससे अनजान नहीं है. 1976 तक वह 7-10 साल की एक्टिव/कलर सर्विस और 8-5 साल की रिज़र्व सर्विस सिस्टम का पालन कर रही थी. दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान जब सेना की ताकत 2 लाख से बढ़कर 25 लाख हो गई तब उसने शोषणकारी ‘सेवा तब तक जब तक आपकी जरूरत होगी’ मॉडल को अपनाया था. सैनिक अधिकतर मोर्चों पर लड़ते और जीतते थे लेकिन 1946 में सेना से सेवा समाप्त किए जाने पर प्रतीकात्मक ग्रेच्युटी लेकर घर गए जबकि उन्हें कोई पेंशन भी नहीं दी गई. 1947-48, 1962 और 1966 में अफसरों की कमी पड़ने पर इमरजेंसी/शॉर्ट सर्विस कमीशन व्यवस्था लागू की गई जिसमें 5 साल के लिए सेना में भर्ती की गई और पेंशन की कोई व्यवस्था नहीं की गई.

अल्प अवधि सेवा स्कीम की सफलता के लिए दो बुनियादी बातों का पालन जरूरी है. पहली यह कि यह सेवा वेतन और सुविधा के लिहाज से सेवा काल में और सेवानिवृत्ति के बाद भी आकर्षक हो. दूसरे, एक कल्याणकारी शासन व्यवस्था में यह सेवा शोषणकारी न दिखे. ‘अग्निपथ’ योजना अपने वर्तमान रूप में इन दोनों कसौटियों पर कमजोर दिखती है.

व्यापक बेरोजगारी और युवाओं की बढ़ती संख्या के कारण इस योजना के लिए स्वेच्छा से आगे आने वालों कमी नहीं होगी. वास्तव में, सेना योग्य उम्मीदवारों के चयन के लिए चयन प्रक्रिया को और बेहतर बना सकती है. न्यूनतम शैक्षिक योग्यता 10+2 की जा सकती है. 25 फीसदी ‘अग्निवीरों’ को स्थायी नौकरी देने के लिए योग्यता आधारित दूसरी चयन प्रक्रिया लागू करने से स्थायी सैनिकों का स्तर बेहतर हो सकता है. इस तरह, ‘अग्निपथ’ योजना अफसर रैंक से नीचे के सैनिकों की योग्यता और स्तर में भारी सुधार ला सकती है. सेना का स्वरूप और युवा हो सकता है.

शुरुआती वेतन पैकेज 30,000 रुपये का है जिसके साथ निश्चित वार्षिक वृद्धि भी दी जाएगी और मृत्यु अथवा अपंगता की स्थिति में पर्याप्त पैकेज भी दिया जाएगा. यह ठीक लगता है लेकिन महंगाई भत्ता न देना अनुचित लगता है. सेवा से अलग होने पर सेवा निधि योजना के तहत आयकर के बिना 11.71 लाख का पैकेज शायद ही पर्याप्त माना जाएगा, जबकि इसमें सरकार का योगदान 50 प्रतिशत का होगा. यह न्यूनतम अपेक्षा को ही पूरा करता है. हमें 20 लाख का पैकेज देने में उज्र नहीं होनी चाहिए क्योंकि यह एक बार का ही खर्च होगा.

सेवा अवधि को चार साल रखना और ग्रेच्युटी (जो मौजूदा नीति के अनुसार 5 साल की सेवा पर दी जाती है) से वंचित करना, और हेल्थ स्कीम के साथ दूसरे लाभों/अधिकारों से वंचित करने के लिए एक्स-सर्विसमैन का दर्जा न देना भी असंतोष का कारण बना रहेगा. ‘अग्निवीरों’ को सेवानिवृत्त होने के बाद क्या प्रोत्साहन मिलेंगे यह सब अस्पष्ट ही है, जिसे स्पष्ट करने की जरूरत है.

सीएपीएफ, जिसमें सेवानिवृत्ति की उम्र 58 साल है, की सेवा शर्तों से तुलना करें तो ‘अग्निपथ’ योजना अनाकर्षक लगती है. इसलिए सीएपीएफ सर्वोत्तम प्रतिभाओं को समेट सकता है. फिलहाल इस योजना में ऐसी व्यवस्था नहीं की गई है कि इसके कर्मियों को बाद में सीएपीएफ में शामिल किया जा सकता है. वैसे, गृह मंत्री ने फौरन यह घोषणा कर दी है कि उन्हें भर्ती में अग्निवीरों को 10 प्रतिशत का आरक्षण दिया जायेगा.

इस योजना को आकर्षक बनाने के लिए सुधारने के बारे में सरकार और सेना को खुला दिमाग रखना चाहिए. मेरे विचार से न्यूनतम टूअर ऑफ ड्यूटी पांच साल का हो जिसमें प्रशिक्षण की अवधि शामिल हो, ताकि ग्रेच्युटी का हक़ मिले, और अधिक बेहतर विकल्प यह होगा कि समान शर्तों पर स्वेच्छा से पांच साल और सेवा करने का मौका दिया जाए. इस योजना में कर्मियों को सेवा समाप्ति पैकेज के अलावा या उसके विकल्प के रूप में योगदान के आधार पर पेंशन की स्कीम शामिल किया जाना चाहिए.

‘अग्निवीरों’ को सभी सरकारी नौकरियों में वरिष्ठता की रक्षा करते हुए प्राथमिकता दी दी जानी चाहिए , कॉलेज/विश्वविद्यालय में दाखिले में और बैंक लोन के मामले में भी प्राथमिकता दी जानी चाहिए. निजी नियोक्ताओं और कंपनियों के द्वारा सकारात्मक पहल के लिए कानून बनाया जाए.

ऐसा लग रहा है कि भविष्य में सेना में भर्ती ‘अग्निपथ’ योजना के जरिए ही होगी. यानी 10-15 साल में पूरी सेना अग्निवीरों या अग्निवीर रेगुलर सैनिकों की ही होगी. इसलिए चयन प्रक्रिया में किसी भी हालत में कोई ढील न दी जाए. चूंकि यह एक बुनियादी सुधार की कोशिश है इसलिए शुरू में 30-50 फीसदी की ही सेना में भर्ती की जाए, बाकी 50-70 फीसदी की अभी जो चल रहा उसी तरीके भर्ती किया जाए. आगे चलकर इस योजना में और संशोधन किए जा सकते हैं.


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एकता पर प्रभाव

लड़ाई में सैनिकों का कामयाबी के लिए में यूनिट/सब-यूनिट की एकजुटता की बड़ी भूमिका होती है. 225 वर्षों से भारतीय सेना यूनिट की एकजुटता बनाने के लिए रेजीमेंट सिस्टम का पालन करती रही है. अपने नियमों की रक्षा के लिए ब्रिटिश सेना ने ‘युद्धकुशल नस्लों’ के विचार को आगे बढ़ाया और रेजीमेंट सिस्टम को जाति/धर्म/क्षेत्र के आधार पर बनाया गया. इसका नतीजा यह भी हुआ कि एकता इन आधारों से जुड़ गई. यह सिस्टम हमारे संविधान के अनुरूप नहीं है और आरक्षण की व्यवस्था के कारण योग्यता विरोधी भी है.

‘अग्निपथ’ को पूरे देश, सभी वर्गों के लिए योग्यता आधारित भर्ती योजना का रूप देकर मोदी सरकार और सेना ने रेजीमेंट सिस्टम के प्रति नजरिए में बुनियादी बदलाव ला दिया है. नयी व्यवस्था रेजीमेंट सिस्टम को जारी रखेगी जिसमें आप अपने पूरे सेवा काल में जाति/धर्म/क्षेत्र से जुड़ाव से प्रेरणा नहीं लेंगे.

संस्थागत एकता लंबे समय तक साथ रहने, प्रशिक्षण लेने और फील्ड/ऑपरेशन/ हाई एल्टीट्यूड पर तैनाती/ बगावत विरोधी अभियानों में साथ-साथ काम करने से पैदा होती है. जाति/धर्म/क्षेत्र से जुड़ाव के अभाव में यूनिट के अंदर एकता जल्द पैदा करना एक चुनौती होगी. रेजीमेंट व्यवस्था के प्रति नजरिए में इस मूलभूत बदलाव की सबसे ज्यादा आलोचना हो रही है. 225 वर्षों तक जिसे ‘जीवन पद्धति’ माना जाता रहा उसमें बदलाव किया जा रहा है. मेरे विचार से यह बदलाव बेहतरी के लिए है.

एक चेतावनी

मैं अपने को यह कहने से नहीं रोक पा रहा कि किसी आगे की तारीख से योगदान से चलने वाली पेंशन स्कीम के तहत सभी नये सैनिकों को सेना में शामिल करने का पेंशन बिल पर वही असर होगा जो ‘अग्निपथ’ योजना के कारण होगा. मेरे विचार से ‘अग्निपथ’ योजना को राजनीतिक दृष्टि से रोजगार पैदा करने वाली स्कीम के रूप में देखा जा रहा है. यही वजह है कि योगदान से चलने वाली पेंशन स्कीम वाले विकल्प को छोड़ दिया गया. यही वज़ह है कि रेगुलर भर्ती और ‘अग्निपथ’ योजना के मेल से परहेज किया गया और सेवाकाल के पेंशन से वंचित चार-पांच साल के स्वैच्छिक विस्तार के विकल्प को भी छोड़ दिया गया.

युवाओं को अपनी राष्ट्रवादी आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए थोड़े समय सेना में सेवा देने और उससे मुक्त किए जाने के बाद अनुशासन तथा प्रेरणा के तहत समाज की सेवा करने का मौका देने का विचार मानवीय आकांक्षाओं की वास्तविकता से दूर एक रोमानी ख्याल ही लगता है. सैन्य प्रशिक्षण पाया बेरोजगार देश के लिए एक अपशकुन जैसा ही साबित हो सकता है. इसलिए सरकार और सेना को सेवा मुक्त किए जाने वाले ‘अग्निवीरों’ के पुनर्वास को सबसे ज्यादा अहमियत देनी चाहिए.

सभी पैमाने पर देखें तो ‘अग्निपथ’ योजना एक मूलभूत सुधार की योजना है. इसके परीक्षण और प्रयोग के लिए समय दिया जाता तो अधिकांश समस्याएं दूर की जा सकती थीं. यह नहीं किया गया, इसलिए मोदी सरकार और सेना अब इस योजना को और बेहतर बनाने के मामले में दिमाग खुला रखे तो बेहतर.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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