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टिकट बंटवारे में कमजोर पड़ी नारी शक्ति? आगामी राज्य चुनावों में BJP ने उतारीं केवल 13% महिला कैंडीडेट

तेलंगाना, मिजोरम, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और एमपी में अगले महीने चुनाव होने हैं. महिला आरक्षण कानून लाने वाली बीजेपी ने अब तक घोषित 613 उम्मीदवारों में 81 महिलाओं को उम्मीदवार बनाया है.

महिला आरक्षण विधेयक के पारित होने का जश्न मनाने के लिए पीएम नरेंद्र मोदी की तस्वीर पर मिठाई चढ़ाते हुए भाजपा महिला मोर्चा के सदस्यों की फाइल फोटो | फोटोः एएनआई

नई दिल्ली: लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण के लिए संसद द्वारा संविधान (एक सौ अट्ठाईसवां संशोधन) विधेयक, 2023 – जिसे महिला आरक्षण विधेयक भी कहा जाता है – पारित हुए छह सप्ताह से अधिक समय बीत चुका है. विधेयक को राष्ट्रपति की मंजूरी मिल गई है, जिससे यह कानून बन गया है.

कोटा अगली जनगणना और उस परिसीमन के आधार पर निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन के बाद लागू किया जाना है.

मध्य दिल्ली में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और संसद की महिला सदस्यों (सांसदों) की विशेषता वाले होर्डिंग्स सामने आए हैं, जिनमें दावा किया गया है, “देश ने किया नारी शक्ति को वंदन”.

हालांकि, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) द्वारा चुनावी टिकटों के वितरण में यह भावना परिलक्षित नहीं होती है.

पांच राज्यों में आगामी विधानसभा चुनावों के लिए भाजपा द्वारा मैदान में उतारे गए 613 उम्मीदवारों में से शुक्रवार तक केवल 81 (या 13.2 प्रतिशत) महिलाएं हैं. पार्टी को मिजोरम, तेलंगाना और राजस्थान में 66 सीटों के लिए अपने उम्मीदवारों की घोषणा करना बाकी है.

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उदाहरण के लिए, मध्य प्रदेश में भाजपा के 230 उम्मीदवारों में से 28 (या 12 प्रतिशत) महिलाएं हैं. राजस्थान के लिए यह संख्या कुल 184 उम्मीदवारों में 21 महिलाओं सहित 11.4 प्रतिशत है.

इसी तरह, छत्तीसगढ़ में, जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 1 अक्टूबर को एक सार्वजनिक बैठक में कहा था कि वह “महिलाओं का आशीर्वाद” पाने की उम्मीद कर रहे हैं क्योंकि उनकी सरकार महिला आरक्षण के पीछे अपना पूरा जोर लगा रही है, बीजेपी द्वारा घोषित 90 उम्मीदवारों में से सिर्फ 15 महिलाएं (16.6 फीसदी) हैं.

तेलंगाना में, जहां मोदी ने घोषणा की कि उनकी सरकार ने “शक्ति (महिलाओं) की पूजा करने की भावना स्थापित की है”, भाजपा के 88 उम्मीदवारों में से 13 (14.7 प्रतिशत) महिलाएं हैं. मिजोरम में यह संख्या बहुत अलग नहीं है, जहां भाजपा के 21 उम्मीदवारों में से केवल चार (या 19 प्रतिशत) महिलाएं हैं.

इन्फोग्राफिक: रमनदीप कौर | दिप्रिंट

जबकि राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि महिला उम्मीदवारों का प्रतिशत सभी पार्टियों में कम है, चुनाव वाले राज्यों के भाजपा नेताओं का मानना है कि टिकट बंटवारे में पूरी तरह से जीत को ध्यान में रखा गया है इसलिए महिलाओं को ज्यादा प्रतिनिधित्व दिए जाने का लक्ष्य कहीं पीछे छूट गया है.

छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में गुरु घासीदास विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान विभाग की प्रमुख अनुपमा सक्सेना ने कहा, “चुनावी राजनीति में जीतना सबसे महत्वपूर्ण बात है. सभी राजनीतिक दल चुनाव जीतने के लिए साम, दाम, दंड, भेद अपनाते हैं.”

लोकनीति-सीएसडीएस के राज्य समन्वयक सक्सेना ने कहा कि दोष समाज का है, जो महिलाओं को नेता के रूप में स्वीकार नहीं करता है.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, “हमें यह स्वीकार करना होगा कि हमारा समाज पितृसत्तात्मक है. राजनेता के रूप में महिलाएं बहुत स्वीकार्य नहीं हैं. वास्तव में, प्रशासन, व्यवसाय, फिल्म – सभी क्षेत्रों में महिलाओं को एक नेता के रूप में कम स्वीकार्यता प्राप्त है. राजनीति में भी यही स्थिति है.”

एक अन्य वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक, जिन्होंने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट से बात की, ने कहा कि उनका मानना है कि “फिलहाल महिलाओं को प्रतिनिधित्व या टिकट देने में कोई वास्तविक दिलचस्पी नहीं है”.

नाम न बताने की शर्त पर राजनीति विज्ञान के एक रिटायर्ड प्रोफेसर ने कहा, “चूंकि सबसे आसान होता कि सभी राजनीतिक दल महिलाओं को टिकट दे देते. लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है. मुझे लगता है कि सिर्फ बीजेपी ही नहीं, बल्कि किसी भी राजनीतिक दल को (महिलाओं के प्रतिनिधित्व में) दिलचस्पी नहीं है, क्योंकि उनके बीच कड़ी प्रतिस्पर्धा है और मुझे लगता है कि यही मुख्य कारण है.”

कांग्रेस द्वारा घोषित उम्मीदवारों की सूची में महिलाओं की सीमित उपस्थिति भी दिखाई दे रही है, जो संसद और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए आरक्षण के मुद्दे को आगे बढ़ाने का श्रेय लेने का दावा कर रही है. पार्टी द्वारा अब तक घोषित 616 उम्मीदवारों में से केवल 81 (13.15 प्रतिशत) महिलाएं हैं. हालांकि, दो राज्यों में – पांच चुनाव वाले राज्यों में से – जहां कांग्रेस सत्ता में है, यह संख्या अपेक्षाकृत अधिक है.

दिप्रिंट ने आगामी विधानसभा चुनावों में उम्मीदवारों के बीच महिलाओं के कम प्रतिनिधित्व पर टिप्पणी के लिए भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता अनिल बलूनी से फोन पर संपर्क किया, लेकिन खबर पब्लिश होने तक उनकी तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली थी. प्रतिक्रिया मिलने पर इस रिपोर्ट को अपडेट किया जाएगा.

सभी पांच चुनावी राज्यों में महिला मतदाताओं के अनुपात में सुधार के बावजूद महिला उम्मीदवारों का कम प्रतिशत है.

हालांकि, सक्सेना के अनुसार, वर्तमान में महिला मतदाता, महिलाओं के मुद्दों या उम्मीदवार के लिंग के आधार पर किसे वोट देना है, इसका चुनाव नहीं करती हैं. बल्कि, “जाति, धर्म और विचारधारा जैसे फैक्टर्स ही आगे रहते हैं.”

दूसरे विश्लेषक ने कहा, “बात सिर्फ महिलाओं के प्रतिनिधित्व या टिकट की नहीं है. मुझे नहीं लगता कि जहां तक पार्टियों का सवाल है, वहां भी महिलाएं ज्यादा नहीं दिखती हैं. हां, चुनाव से पहले वे (राजनीतिक दल) कई वादे करते हैं, ताकि महिला वोट्स को अपनी तरफ खींच सकें.”

दिप्रिंट उन पांच राज्यों में महिला उम्मीदवारों के प्रतिनिधित्व पर नज़र डाल रहा है जहां इस साल विधानसभा चुनाव होने हैं.


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मध्य प्रदेश

महिलाओं के वोट की लड़ाई मध्य प्रदेश में साफ तौर पर दिखती है, जहां मौजूदा भाजपा ने महिलाओं के लिए अपनी खास ‘लाडली बहना योजना’ शुरू करने के साथ ही सरकारी नौकरियों में महिलाओं के लिए 35 प्रतिशत रिज़र्वेशन की भी पेशकश की है.

पार्टी ने इस बार जिन 28 सीटों पर महिला उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है, उनमें से 2018 के पिछले विधानसभा चुनाव में उसने 15 सीटें जीती थीं.

इस साल मार्च में अपने जन्मदिन के अवसर पर, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ‘लाडली बहना योजना’ की घोषणा की थी जिसके तहत 23-60 वर्ष की आयु की महिलाओं को प्रति माह 1,000 रुपये की वित्तीय सहायता दी जाएगी. बाद में अगस्त में यह राशि बढ़ाकर 1,250 रुपये कर दी गई. लाभार्थियों में वे महिलाएं शामिल हैं जो करदाता नहीं हैं, जिनके पास स्थायी रोजगार नहीं है या जिनकी पारिवारिक आय 2.5 लाख रुपये प्रति वर्ष से अधिक नहीं है.

जुलाई में, चौहान ने महिलाओं से संबंधित सरकारी योजनाओं के बारे में जागरूकता फैलाकर “राज्य में महिलाओं को सशक्त बनाने के सपने को हासिल करने” में मदद करने के लिए ‘लाडली बहना सेना’ भी लॉन्च की.

मध्य प्रदेश सहित सभी पांच चुनावी राज्यों में मतदाताओं के बीच लिंग अनुपात में सुधार हुआ है.

चुनाव आयोग के अनुसार, 2018 में एमपी में प्रति 1,000 पुरुषों पर 917 महिलाएं थीं, जो अब प्रति 1,000 पुरुषों पर 945 हैं – जो कि महिला मतदाताओं की संख्या में वृद्धि का संकेत है.

लेकिन जहां एक तरफ भाजपा ने विशेष रूप से महिला मतदाताओं के लिए योजनाओं की घोषणा की है, वहीं पार्टी महिलाओं को पर्याप्त टिकट देने में विफल रही है क्योंकि अब तक घोषित उम्मीदवारों में सिर्फ 12.3 प्रतिशत महिलाएं ही महिलाएं हैं.

मध्य प्रदेश भाजपा प्रवक्ता हितेश बाजपेयी कहते हैं,“हमने इसके लिए संगठन के भीतर महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण का मार्ग प्रशस्त किया. महिला उम्मीदवारों की संख्या, जो एक समय 1-2 प्रतिशत थी, अब 13-15 प्रतिशत है और 33 प्रतिशत तक पहुंचनी चाहिए.”

बाजपेयी का कहना है कि पार्टी वर्तमान में जीतने की क्षमता के आधार पर टिकट दे रही है, लेकिन इसके पीछे उद्देश्य महिलाओं को संगठन में “सम्मानित” भूमिकाएं देना है.

महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत संगठनात्मक पद आरक्षित करने के पार्टी के 2008 के संकल्प पर उन्होंने कहा: “यह महिला सशक्तीकरण के प्रति हमारी प्रतिबद्धता को दर्शाता है. टिकट वितरण में भी हमने कांग्रेस से ज्यादा महिलाओं को टिकट दिए हैं. इसके अलावा, हम महिलाओं को सिर्फ इसलिए टिकट नहीं देते क्योंकि वे किसी के परिवार की सदस्य हैं.

बाजपेयी इस बात पर सहमत हुए कि मध्य प्रदेश में महिलाओं का वोट एक “प्रमुख फैक्टर” होगा जहां 17 नवंबर को मतदान होना है.

कांग्रेस शासित छत्तीसगढ़ और राजस्थान

2018 के विधानसभा चुनावों के विपरीत, छत्तीसगढ़ में अब महिला मतदाताओं की संख्या पुरुष मतदाताओं से अधिक है. चुनाव आयोग के अनुसार, राज्य में 1.01 करोड़ पुरुष और 1.02 करोड़ महिला मतदाता हैं, जबकि 2018 में पुरुष मतदाता 93.19 लाख और महिला मतदाता 92.68 लाख थीं.

राजस्थान में, हालांकि पुरुष-महिला मतदाता अनुपात में सुधार हुआ है, 2.52 करोड़ महिला मतदाताओं की तुलना में पुरुष मतदाताओं की संख्या 2.73 करोड़ है. वहीं 2018 में पुरुष मतदाता 2.49 करोड़ और महिला मतदाता 2.28 करोड़ थे.

जबकि भाजपा राजस्थान और छत्तीसगढ़ में अपने प्रमुख चुनावी मुद्दों में से एक के रूप में महिलाओं के खिलाफ कथित अपराध को उजागर कर रही है, लेकिन उम्मीदवारों के चयन को देखें तो ऐसा नहीं लगता कि पार्टी विधायिका में महिलाओं के प्रतिनिधित्व पर ज़ोर दे रही है.

हालांकि, पार्टी ने कम से कम राजस्थान में अपनी महिला नेताओं को सबसे आगे रखा है. इनमें पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे, राजसमंद सांसद दीया कुमारी और पूर्व कांग्रेस सांसद ज्योति मिर्धा शामिल हैं, जो पार्टी के चुनाव अभियान में प्रमुखता से शामिल हुई हैं.

दिप्रिंट ने आगामी राज्य चुनावों के लिए पार्टी के उम्मीदवारों में महिलाओं के कम प्रतिनिधित्व पर टिप्पणी के लिए राजस्थान भाजपा के प्रवक्ता रामलाल शर्मा से फोन पर संपर्क किया, लेकिन इस रिपोर्ट के प्रकाशन के समय तक उनकी तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली थी. प्रतिक्रिया मिलने पर इस रिपोर्ट को अपडेट किया जाएगा.

इस बीच, छत्तीसगढ़ में, भाजपा नेताओं ने कहा कि शराबबंदी के अपने 2018 के वादे को पूरा करने में कांग्रेस की असमर्थता, महिलाओं के वोटों को भाजपा के पक्ष में झुका सकती है.

राज्य भाजपा के प्रवक्ता अनुराग सिंह देव ने दिप्रिंट को बताया कि राज्य की महिलाओं में “गुस्सा” था, जिन्होंने 2018 में कांग्रेस को इस उम्मीद में वोट दिया था कि पार्टी शराब की बिक्री और खपत पर प्रतिबंध लगाएगी.

उन्होंने दावा किया, “प्रतिबंध लगाना भूल जाइए, शराब की खपत छत्तीसगढ़ में सबसे ज्यादा है. इससे घरेलू हिंसा और अपराधों में वृद्धि हुई है.”

हालांकि, राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण -5 (एनएफएचएस-5), 2019-21 में पाया गया कि अरुणाचल प्रदेश में शराब पीने वाले पुरुषों और महिलाओं का अनुपात सबसे अधिक था.

राज्य में भाजपा के केवल 16.6 प्रतिशत उम्मीदवारों के महिला होने के बारे में पूछे जाने पर, देव ने कहा, “जीतने की क्षमता महत्वपूर्ण है. अन्य दलों के उम्मीदवारों का मुकाबला करने के लिए, हमें उस तरह के नेतृत्व की आवश्यकता है. कुछ हद तक, सभी पार्टियों में महिलाएं को उतना सशक्त नहीं किया गया है जितना होना चाहिए था.”

तेलंगाना और मिज़ोरम

तेलंगाना और मिजोरम में, जहां भाजपा अब तक कमज़ोर स्थिति में रही है, पार्टी अब अपनी चुनावी किस्मत मजबूत करने की उम्मीद कर रही है.

चुनाव आयोग के अनुसार, तेलंगाना में पुरुष और महिला मतदाताओं की संख्या 1.53 करोड़ है, जबकि मिजोरम में महिला मतदाताओं की संख्या पुरुष समकक्षों से अधिक – प्रत्येक 1,000 पुरुष मतदाताओं पर 1,063 महिला मतदाता – है.

तेलंगाना बीजेपी के प्रवक्ता संगप्पा जेनवाडे ने दिप्रिंट को बताया कि हालांकि महिला आरक्षण कानून महिला मतदाताओं को पसंद आया, लेकिन उन्हें लगता है कि वहां जीतने योग्य पर्याप्त महिला उम्मीदवार नहीं हैं.

“जब टीआरएस (अब बीआरएस) और कांग्रेस जैसी अन्य पार्टियों के साथ तुलना की बात आती है, तो हमारी पार्टी महिलाओं को अधिक सीटें दे रही है. हमने केटीआर (राज्य मंत्री और सीएम केसीआर के बेटे) के खिलाफ एक महिला को मैदान में उतारा.

तेलंगाना में कांग्रेस पार्टी के अब तक घोषित 100 उम्मीदवारों में से ग्यारह महिलाएं हैं.

यह कहते हुए कि उनका मानना ​​है कि राज्य के लिए भाजपा के उम्मीदवारों की दूसरी सूची में “कई महिलाओं” को जगह मिलगी, जेनावाडे ने स्वीकार करते हुए कहा कि, हालांकि, “बेशक, यह 33 प्रतिशत नहीं हो पाएगा” जैसा कि आरक्षण कानून में उल्लिखित है.

राज्य में भाजपा उम्मीदवारों के बीच महिलाओं के प्रतिनिधित्व पर टिप्पणी के लिए दिप्रिंट ने मिजोरम भाजपा प्रवक्ता एफ. लालरेमसांगी से भी फोन पर संपर्क किया, लेकिन इस रिपोर्ट के पब्लिश होने तक उनकी तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली थी. प्रतिक्रिया मिलने पर इस रिपोर्ट को अपडेट किया जाएगा.

हालांकि, राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अब वह दिन दूर नहीं है. सक्सेना ने कहा, महिलाएं अब “वोट बैंक” के रूप में “मजबूत” हो रही हैं, जो पहले नहीं था.

उन्होंने कहा, “इसका सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि महिला आरक्षण कानून लाया गया और किसी भी राजनीतिक दल ने इसका विरोध नहीं किया. 2019 के लोकसभा चुनावों में, पहली बार महिला मतदाताओं ने पुरुषों की तुलना में वोट देने में बढ़त हासिल की.”

(संपादनः शिव पाण्डेय)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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