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क्या येदियुरप्पा की जादुई कार उनके बेटे को जीत दिला पाएगी? एक लकी एंबेसेडर की कहानी

बीजेपी नेता और 4 बार के कर्नाटक के मुख्यमंत्री येदियुरप्पा अपनी लकी कार में बेटे बी.वाई विजयेंद्र के पीछे-पीछे चले. इस उम्मीद में कि 1983 में उनकी पहली जीत के बाद से भाग्यशाली कार उनके बेटे को जीत दिलाएगी.

बेंगलुरु: जब बी.एस. येदियुरप्पा के बेटे बीवाई विजयेंद्र आगामी कर्नाटक विधानसभा चुनाव के लिए शिकारीपुरा में बुधवार को अपना नामांकन पत्र दाखिल करने के लिए निकले, उनके पिता ने दशकों पुरानी सफेद एम्बेसडर कार में उनके पीछे-पीछे थे.

राज्य के चार बार के मुख्यमंत्री रहे येदियुरप्पा को उम्मीद है कि 1983 में उनकी पहली चुनावी जीत के बाद से कार जो सौभाग्य उनके लिए लेकर आई है वह उनके बेटे पर भी पड़ेगा.

एक करीबी सहयोगी ने कहा, हालांकि भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के कद्दावर नेता येदियुरप्पा के पास कारों से भरा गैरेज है, लेकिन वह हिंदुस्तान मोटर्स बनाई गई एंबेसडर कार को एक “लकी चार्म” मानते हैं. इस कार का रजिस्ट्रेशन नंबर “सीकेआर 45” है और यह अभी भी बिल्कुल नई कार जैसी स्थिति में है.

नाम न छापने की शर्त पर सहयोगी ने कहा, “यह येदियुरप्पा की 1987 में खरीदी गई पहली कार थी और तब से परिवार ने इसे अपने पास रखा है.”

एंबेसेडर को देश की सबसे प्रतिष्ठित कारों में से एक माना जाता है, जिसका उत्पादन करीब 56 वर्षों तक होता रहा. लंबे समय तक इसे देश के अमीर और मशहूर लोगों के बीच स्टेटस सिंबल के तौर पर देखा जाता था.

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सहयोगी ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के हर मजबूत व्यक्ति के पास प्रत्येक कार में विभिन्न कॉम्बिनेशन में “45” नंबर होता है. अगस्त 2021 में, बसवराज बोम्मई द्वारा कर्नाटक के मुख्यमंत्री के रूप में उनकी जगह लेने के ठीक एक महीने बाद, येदियुरप्पा ने एक टोयोटा वेलफायर खरीदी, जो एक लग्जरी कार है, जिसकी कीमत 1 करोड़ रुपये से अधिक है. इस कार का रजिस्ट्रेशन नंबर KA05 MD 4545 है.


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लकी नंबर 45

हालांकि, एंबेसेडर हमेशा अच्छी स्थिति में नहीं रही है. शिवमोग्गा के सांसद और येदियुरप्पा के बड़े बेटे राघवेंद्र ने कहा, “हमने इसे उस पार्टी से खरीदा था जिसने अपने आधिकारिक काम के लिए कार खरीदी थी. मेरे पिता सभी आधिकारिक कार्यों के लिए उसमें यात्रा करते थे और बाद में हमने स्मृति के रूप में कार खरीदने का फैसला किया. लंबे समय तक इसका इस्तेमाल नहीं किया गया. करीब 10 साल से यह बिना इस्तेमाल के ही पड़ी हुई थी. लेकिन उनके पोते, सुभाष और भगत, इसे फिर से ठीक करवा के उनके जन्मदिन (27 फरवरी) पर उन्हें गिफ्ट करना चाहते थे. उन्होंने सारे दस्तावेज इकट्ठा किए, कार का इंजन ठीक करवाया ताकि उन्हें गिफ्ट किया जा सके. लेकिन चूंकि यह उनके जन्मदिन पर उन्हें गिफ्ट नहीं किया जा सका, इसलिए उन्होंने इसे नॉमिनेशन के पहले इसे गिफ्ट कर दिया.”

कार अब राघवेंद्र के नाम पर रजिस्टर्ड है.

येदियुरप्पा सक्रिय राजनीति से “सेवानिवृत्त” हो चुके हैं और उनके दूसरे बेटे बी.वाई. विजयेंद्र शिवमोग्गा के शिकारीपुरा से भाजपा के उम्मीदवार हैं. येदियुरप्पा ने पहली बार 1983 में कर्नाटक विधानसभा में प्रवेश किया और चार साल बाद, वे भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बने.

“वाहन ’45 कार’ के रूप में जानी जाती थी और यह उतनी ही प्रसिद्ध थी जितनी कि खुद येदियुरप्पा. राघवेंद्र ने कहा, ‘परिवार द्वारा खरीदी गई प्रत्येक कार में नंबर होता है.

ऊपर जिस सहयोगी का जिक्र किया गया है उन्होंने कहा कि ‘4’ और ‘5’ के योग ‘9’ को येदियुरप्पा लकी नंबर मानते हैं. संयोग से वह अब तक राज्य में नौ विधानसभा चुनाव लड़ चुके हैं.

कार आमतौर पर शिकारीपुरा में परिवार के फार्महाउस पर खड़ी की जाती है और इसे बहुत कम इस्तेमाल किया जाता है. इस मामले से वाकिफ एक अन्य शख्स ने बताया कि इसका इस्तेमाल ज्यादातर रस्म के तौर पर किया जाता है.

कई अन्य राज्यों की तरह कर्नाटक में भी धर्म में दृढ़ विश्वास रखने वाले और कुछ मामलों में अंधविश्वास वाले राजनीतिक नेता हैं. येदियुरप्पा ने 2019 में कर्नाटक के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने से पहले अपने नाम की स्पेलिंग को Yeddyurappa से बदलकर Yediyurappa कर लिया था.

1980 के दशक में जब उन्होंने जिले का दौरा किया था तब उन्होंने इस कार में यात्रा की थी.

80 वर्षीय येदियुरप्पा पिछले दो दशकों में सबसे बड़े राजनीतिक नेताओं में से एक के रूप में उभरे हैं, वह रिकॉर्ड चार बार कर्नाटक के मुख्यमंत्री रह चुके हैं.

येदियुरप्पा ने आठ विधानसभा चुनाव सफलतापूर्वक लड़े हैं और केवल एक हारे हैं. 2014 में, उन्होंने शिवमोग्गा से लोकसभा चुनाव सफलतापूर्वक लड़ा.

उन्होंने न केवल मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने के लिए, बल्कि जब उन्हें पद छोड़ना था तब भी उन्होंने “शुभ मुहूर्त” देखा.

2011 में, उन्होंने यह कहते हुए जुलाई के अंत तक इस्तीफा नहीं दिया कि “अभी समय ठीक नहीं है”.

उन्होंने 27 जुलाई 2011 को भाजपा के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी को लिखे एक पत्र में लिखा था, “आषाढ़ का महीना 30 जुलाई 2011 को अमावस्या को समाप्त होगा. मैं 31 जुलाई 2011 की पूर्वाह्न को मुख्यमंत्री के रूप में अपना इस्तीफा सौंप दूंगा.”

(संपादनः शिव पाण्डेय)
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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