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क्या रांची में महुआ माजी राजनीति के मंझे हुए भाजपा प्रत्याशी सीपी सिंह को टक्कर दे पाएंगी 

दिप्रिंट से बातचीत में महुआ माजी कहती हैं, 'पिछले चुनाव में मुझे राजनीति का कम अनुभव था. मुझे चुनावी प्रचार के लिए केवल 14 दिन का समय मिला था.

महुआ माजी और भाजपा प्रत्याशी सीपी सिंह के बीच है टक्कर/फोटो-दिप्रिंट

रांची: झारखंड की राजधानी रांची स्मार्ट सिटी का सपना देखते वोटर. एक तरफ भारतीय जनता पार्टी के सीपी सिंह का तीन दशक का राजनीतिक करियर और दूसरी तरफ झारखंड मुक्ति मोर्चा की कम मंझी महुआ माजी. हम बात कर रहे हैं रांची विधानसभा सीट की जो 1990 के दशक से भाजपा का गढ़ रही है और इस बार कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल और झारखंड मुक्ति मोर्चा गठबंधन अपनी उम्मीदवार महुआ माजी के जरिए अपना खाता खोलने की तैयारी में है. इस विधानसभा सीट में कुल 3,46, 765 वोटर्स हैं जिनमें 1,81, 603 पुरुष और 1,65,129 महिला वोटर्स हैं.

कभी कांग्रेस का था वर्चस्व

बेरोजगारी, ट्रैफिक और नालों की समस्या, गंदगी और स्मार्ट सिटी बनने के सपने पाले बैठी इस विधानसभा सीट पर 2009 तक इस सीट पर भाजपा और कांग्रेस का कड़ा मुकाबला हुआ करता था लेकिन 2014 के विधानसभा चुनाव में झामुमो ने दूसरा स्थान हासिल कर लिया. उस चुनाव में झामुमों की तरफ से महुआ माजी और सीपी सिंह ने चुनाव लड़ा था लेकिन महुआ माजी हार गई थीं.

महुआ महिला आयोग की चेयरपर्सन भी रह चुकी हैं और साहित्य की दुनिया में जाना-माना नाम हैं. उनका घर फिल्मी हस्तियों के साथ की तस्वीरों से भरा हुआ है. दिप्रिंट से बातचीत में महुआ माजी अपनी जीत को लेकर आश्वस्त होने की बात बताती हैं, वह कहती हैं, ‘पिछले चुनाव में मुझे राजनीति का कम अनुभव था. मुझे चुनावी प्रचार के लिए केवल 14 दिन का समय मिला था. इस बार जनता बदलाव चाहती है. मैं पिछले पांच साल से जनता के बीच रही हूं.’


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लेकिन उनकी इस बात से करबला चौक पर पान और गुटके की दुकान लगाए बैठे मोहम्मद असगर अली इत्तेफाक नहीं रखते हैं, ‘यहां तो सीपी सिंह का खूंटा गड़ा हुआ है. सीपी सिंह जैसा भी है, अच्छा है. मुख्यमंत्री भी ठीक हैं. जो जीत नहीं पाएगा उसको वोट देकर अपना वोट खराब नहीं करेंगे.’

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सीपी सिंह को लेकर आम लोग ठीक-ठाक राय ही रखते हैं. स्थानीय पत्रकार बताते हैं, ‘अगर किसी को अपनी दुकान का उद्घाटन भी कराना होता है तो वो चले जाते है. दूसरा उनके आवास पर कोई आने-जाने की मनाही नहीं है. लोगों की उन तक पहुंच आसान है. उनके लगातार जीतने का एक अहम पहलू ये भी है कि शहर का व्यापारी वर्ग उन्हें हमेशा से सपोर्ट करता रहा है इसलिए रातू रोड और चुटिया जैसे इलाकों में उन्हें एकमुश्त वोट पड़ते रहे हैं.’

कटेंगे वोट

इस बार चेंबर के पूर्व अध्यक्ष पवन शर्मा के मैदान में उतरने से सीपी सिंह के मारवाड़ी वोट कट जाने की संभावना है. शहर में एक तरह की चर्चा है कि मारवाड़ी और बिजनेस वाले लोग इस बार सीपी सिंह के साथ नहीं हैं. सीपी सिंह 1996 से लेकर 2014 तक विधायक और विधानसभा अध्यक्ष के रूप में चुने जाते रहे. 2014 में उन्हें नगर विकास मंत्री बनाया. उनके नगर विकास मंत्री होने पर विपक्षी दल की महुआ हमला बोलते हुए कहती हैं, ‘क्या नगर विकास? रांची शहर ऐसा है जहां नालों में लोगों के बच्चे बह जाते हैं. पिछले दिनों एक घर का बच्चा नाले में गिर गया. जब उसकी मां ने घर से उसका बहता हुआ हाथ देखा तो उसे निकाल कर अस्पताल ले जाया गया. बाद में उसकी मौत हो गई. ऐसे कई मामले हो गए हैं.’


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रांची शहर में अल्पसंख्यकों और युवाओं की संख्या ठीकठाक है तो झामुमों इन वोटर्स को लुभाने में लगी है. एक तरफ भाजपा नेता लगातार राम मंदिर को लेकर बयानबाजी करते रहते हैं तो मुस्लिम आबादी वाले करबला चौक पर रहीं गुलशन आरा कहती हैं, ‘इस बार हम सरकार बदलना चाहते हैं. भाजपा सरकार ने बाबरी मस्जिद का फैसला सही नहीं किया. वो ना हिंदू को दिया जाता और ना ही मुसलमान को. वहां स्कूल या अस्पतला बनवा देते. ये सही नहीं किया.’

इन दो उम्मीदवारों के अलावा आजसू ने वर्षा गाड़ी को टिकट दिया है. इससे पहले वर्षा मेयर प्रत्याशी के तौर रांची से चुनाव लड़ चुकी हैं. शहर के आदिवासी वोटरों को काटने के लिए आजसू भी मेहनत कर रहा है.

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