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महाराष्ट्र कांग्रेस अध्यक्ष नाना पटोले से शिवसेना, NCP और उनकी पार्टी में हर कोई क्यों नाराज़ है?

भंडारा से चार बार के विधायक और लोकसभा के पूर्व सांसद पटोले ने शनिवार को कथित तौर पर आरोप लगाया कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और उपमुख्यमंत्री अजीत पवार ने उन पर नजरें गड़ा रखी हैं.

नाना पटोले की फाइल फोटो | शशांक परेड

मुंबई: महाराष्ट्र में कांग्रेस के भविष्य में विधानसभा चुनाव अकेले लड़ने की लगातार घोषणा किए जाने से लेकर यह आरोप लगाने तक कि राज्य सरकार उन्हें कुछ करने नहीं दे रही है. महाराष्ट्र कांग्रेस अध्यक्ष नाना पटोले महाराष्ट्र सरकार में तीन दलों वाले गठबंधन महा विकास अघाड़ी के साथ-साथ राज्य कांग्रेस के लिए भी एक तरह से कांटा बन गए हैं.

कांग्रेस नेताओं का कहना है कि पूर्व सांसद की टिप्पणियों और हाल की गतिविधियों, जो उनकी अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं से उपजी नजर आती है, ने न केवल शिवसेना, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) और कांग्रेस की मौजूदगी वाले गठबंधन एमवीए के भीतर हलचल मचा दी है बल्कि इसकी वजह से उनकी खुद की पार्टी के भीतर भी गुटबाजी और असंतोष को बढ़ावा मिला है.

हालांकि, कुछ पार्टी नेताओं को लगता है कि पटोले के आक्रामक रुख से कांग्रेस के जमीनी कार्यकर्ता खुश हैं, उनका दावा है कि यह गठबंधन में शिवसेना और एनसीपी के अलावा पार्टी की बात भी स्पष्ट और मुखर ढंग से सुने जाने में मदद करता है- अन्यथा उसे एमवीए के भीतर तीसरा पहिया ही माना जाता रहा है.

भंडारा से चार बार के विधायक और लोकसभा के पूर्व सांसद पटोले ने शनिवार को कथित तौर पर आरोप लगाया कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और उपमुख्यमंत्री अजीत पवार ने उन पर नजरें गड़ा रखी हैं क्योंकि वे नहीं चाहते कि राज्य में कांग्रेस खुद को फिर से खड़ा कर पाए. एक वीडियो में राज्य कांग्रेस अध्यक्ष को लोनावाला में पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित किए जाने के दौरान यह टिप्पणी करते सुना गया था.

पटोले के इस आरोप ने मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री को नाराज कर दिया है. एनसीपी के नवाब मलिक ने कहा कि सभी प्रमुख राजनेताओं के कार्यक्रमों पर नजर रखना एक नियमित प्रक्रिया है और यह बात तो पटोले को अपनी पार्टी के पूर्व मुख्यमंत्रियों से पूछनी चाहिए. एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार ने पटोले की बात पर कहा कि ‘किसी छोटे नेता की टिप्पणियों पर प्रतिक्रिया की जरूरत नहीं है’, जबकि कांग्रेस के वरिष्ठ मंत्रियों बालासाहेब थोराट और अशोक चव्हाण ने खुद को उनकी टिप्पणियों से अलग कर लिया है.

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हालांकि, पटोले ने सोमवार को कहा कि मीडिया ने उनके बयान को गलत तरीके से पेश किया और उनके आरोप केंद्र सरकार के खिलाफ हैं.


यह भी पढ़ें : उद्धव के दौरे, NCP की यात्रा, पटोले का कांग्रेस प्रमुख बनना : भाजपा के गढ़ विदर्भ पर टिकीं सबकी नजर


इस मामले पर टिप्पणी के लिए दिप्रिंट ने कॉल और टेक्स्ट मैसेज के जरिये पटोले से संपर्क साधा लेकिन यह रिपोर्ट प्रकाशित किए जाने के समय तक महाराष्ट्र कांग्रेस अध्यक्ष की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली थी.

तीन दलीय गठबंधन में सबसे ज्यादा चुभने वाला कांटा

पटोले को पहली बार 2019 में एमवीए में विधानसभा अध्यक्ष नियुक्त किया गया था.

अध्यक्ष के रूप में उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि वह अपनी उपस्थिति का एहसास कराएं, यहां तक कि कभी-कभी अपने सहयोगी दलों को कुछ मुश्किल में डालकर भी. पिछले साल राज्य के बजट सत्र में पटोले ने तत्कालीन मुख्य सचिव अजय मेहता, जो मुख्यमंत्री ठाकरे के करीबी माने जाते थे, को विधानसभा के बार में आने और विधायकों की तरफ से उठाए गए कुछ सवालों और मुद्दों पर जवाब देने में प्रशासन की तरफ से हुई कथित देरी पर माफी मांगने का आदेश दिया. मामला तभी शांत हुआ जब डिप्टी सीएम पवार ने मेहता की ओर से माफी मांगी.

उन्होंने इस साल फरवरी में अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया, जब कांग्रेस नेतृत्व ने उन्हें राज्य पार्टी अध्यक्ष के रूप में चुना. तबसे अध्यक्ष का पद खाली ही है क्योंकि एमवीए सरकार इस पद पर चुनाव कराने के लिए उपयुक्त समय की प्रतीक्षा कर रही है.

कांग्रेस के एक पदाधिकारी ने कहा, ‘मुख्यमंत्री और शरद पवार दोनों एमवीए सहयोगियों के साथ कोई बातचीत किए बिना अपनी तरफ से ही इस्तीफा दे देने के कारण बहुत अपसेट थे. उनका मानना था कि ऐसे समय में जब सब कुछ ठीकठाक चल रहा, इस्तीफा दिए जाने के कारण तीनों दलों के गठबंधन में अनावश्यक समस्याएं पैदा होंगी. यह भी एक कारण हो सकता है कि सीएम अब तक स्पीकर का चुनाव कराने में हिचक रहे हैं.’

राजनीतिक विश्लेषक हेमंत देसाई का कहना है, ‘पहली बात तो कांग्रेस ने उन्हें विधानसभा अध्यक्ष नियुक्त कर गलती की. महत्वाकांक्षी पटोले ने यह भी महसूस किया कि यह बहुत हाई-प्रोफाइल पोस्ट नहीं है और कोविड-19 महामारी ने इसे और भी कम अहमियत वाला बना दिया है. पिछले एक साल में सभी विधानसभा सत्रों को घटाकर दो दिन कर दिया गया है.’

इस बीच, ऐसे अहम पद के लिए आक्रामक और अप्रत्याशित रुख वाले पटोले को चुनने के राज्य कांग्रेस के फैसले ने इस बात पर पार्टी के नेताओं को दो-फाड़ कर दिया कि यह एमवीए की स्थिरता के लिए कितना फायदेमंद हो पाएगा जो पहले से ही अस्थिर है.

राज्य कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर उन्होंने कई मौकों पर अपनी तीखी टिप्पणियों से सहयोगी दलों को नाराज किया है—जैसे मार्च में शिवसेना के राज्यसभा सांसद संजय राउत को ‘शरद पवार का प्रवक्ता’ बताना, बार-बार यह कहना कि कांग्रेस भविष्य के चुनावों में अकेले मैदान में उतरेगी और पिछले महीने कोल वाशिंग संबंधी एक करार में वित्तीय अनियमितताओं का आरोप लगाना, जो शिवसेना के मंत्री सुभाष देसाई के मंत्रालय के अधीन आता है.

कुछ कांग्रेसी नेता नाराज, कार्यकर्ता खुश

पटोले की हालिया टिप्पणियों ने उनकी ही पार्टी के नेताओं की मुश्किलें बढ़ा दी हैं. पार्टी सूत्रों ने कहा, थोराट और चह्वाण जैसे वरिष्ठ कांग्रेसी मंत्री पटोले की कुछ टिप्पणियों से नाराज हैं, जो विपक्ष को एमवीए के भीतर कलह जारी होने की बात फैलाने में मदद करती हैं.

इसके अलावा, पटोले द्वारा पिछले महीने मुख्यमंत्री ठाकरे और उद्योग मंत्री सुभाष देसाई को लिखे पत्र, जिसमें कोल वाशिंग संबंधी करार की जांच की मांग की गई है, को पटोले की तरह ही विदर्भ के कांग्रेस नेता और ऊर्जा मंत्री नितिन राउत को निशाना बनाने की कोशिश के तौर पर भी देखा जा रहा है, क्योंकि कोल वाशरीज सीधे तौर पर बिजली उत्पादन से जुड़ी होती हैं. हालांकि, पटोले ने राउत को निशाना बनाने की बात से इनकार किया, लेकिन पत्र ने कांग्रेस के भीतर गुटबाजी की अटकलों को बढ़ा दिया है.

कांग्रेस के एक दूसरे नेता ने कहा, ‘पटोले राज्य के कैबिनेट मंत्री बनना चाहते थे और राउत के पोर्टफोलियो पर नजरें गड़ाए थे. अब वह निराश हैं और पार्टी में हर कोई उनसे खफा है. कांग्रेस आलाकमान ने उन्हें पिछले महीने दिल्ली बुलाया था और उनसे कहा था कि वे ऐसी टिप्पणियां करने से बचें जिससे एमवीए के लिए मुश्किल पैदा होती हो.’

पटोले ने अपने करियर की शुरुआत कांग्रेस के साथ की थी, लेकिन दो बार बगावत की और पार्टी छोड़ी. एक बार नब्बे के दशक में और एक बार 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले, जब वे भाजपा में शामिल हुए. वह 2017 में दोबारा कांग्रेस में लौट आए. उनका पहले ही राज्य कांग्रेस के नेताओं के साथ टकराव चलता रहता था.

2019 के राज्य चुनावों से पहले कांग्रेस अभियान समिति के प्रमुख के तौर पर उन्होंने कथित तौर पर तत्कालीन राज्य कांग्रेस अध्यक्ष थोराट, और पूर्व सीएम अशोक चव्हाण और पृथ्वीराज चव्हाण जैसे नेताओं से परामर्श किए बिना तमाम रैलियों के आयोजन के बारे में फैसला किया.

हालांकि, विदर्भ के एक वरिष्ठ कांग्रेस पदाधिकारी ने कहा, ‘मुट्ठी भर वरिष्ठ नेता नाखुश हो सकते हैं, लेकिन कांग्रेस के कार्यकर्ता और तमाम पदाधिकारी पटोले के कामकाज से बहुत खुश है. वह आखिरकार इस तीन दलीय सरकार में कांग्रेस की आवाज मुखर करते नजर आ रहे हैं. अन्यथा, एमवीए के अंदर केवल मुख्यमंत्री ठाकरे और एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार की आवाजें सुनाई देती थीं. अशोक चव्हाण और थोराट का रुख उनकी तुलना में बहुत नरम रहा है.’

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