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क्यों एकनाथ शिंदे और शिवसेना के उनके विद्रोही साथी तलाश रहे हैं मनसे के साथ विलय का विकल्प

शिवसेना का बागी खेमा और मनसे 'हिंदुत्व' और 'मराठी गौरव' पर अपने फोकस के साथ एक 'तर्क संगत' जोड़ी की तरह लग रहे हैं. लेकिन शिवसेना के कुछ विधायक इस बात को लेकर चिंतित हैं कि इसके बाद राज ठाकरे ही 'सर्वोच्च नेता' होंगे.

Raj Thackeray
मनसे के चीफ राज ठाकरे | फोटो | Twitter/@RajThackeray

मुंबई: एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले शिवसेना विधायकों के गुट ने सोमवार को उस वक्त राहत की सांस ली जब सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें महाराष्ट्र विधानसभा के उपाध्यक्ष द्वारा जारी अयोग्यता नोटिस का जवाब देने के लिए 12 जुलाई तक का समय दे दिया.

लेकिन इस राहत ने गुट की सबसे बड़ी दुविधा को हल नहीं किया है कि उन्हें किसी अन्य पार्टी के साथ विलय करना है या किसी तरह यह साबित करना है कि वे ही ‘असली’ शिवसेना हैं.

दलबदल विरोधी कानून के कारण शिंदे गुट के लिए महाराष्ट्र की शिवसेना, राकांपा और कांग्रेस के गठबंधन वाली महा विकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार को गिराने का लक्ष्य हासिल करना आसान नहीं है. यह कानून कहता है कि वे विधानसभा के भीतर एक अलग समूह होने का दावा नहीं कर सकते हैं और उन्हें किसी-न-किसी अन्य पार्टी के साथ विलय करना होगा.

अगर यह विलय होता है तो भाजपा इसके लिए सबसे स्पष्ट विकल्प प्रतीत होती है, लेकिन, महाराष्ट्र के राजनीतिक सूत्रों के अनुसार, बागी गुट महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) को तरफ भी देख रहा है, जिसका नेतृत्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के अलग हुए चचेरे भाई राज ठाकरे कर रहे हैं. .

कहा जाता है कि एकनाथ शिंदे ने पिछले कुछ दिनों के दौरान राज ठाकरे से बात की थी. मनसे के एक नेता ने उनका नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया कि वैसे तो यह बातचीत मुख्य रूप से राज के स्वास्थ्य के बारे में पूछताछ करने के लिए थी, लेकिन इस दौरान ‘राजनीति पर चर्चा किए जाने से इंकार नहीं किया जा सकता.’

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उन्होंने कहा कि अभी तक शिंदे खेमे की ओर से कोई औपचारिक प्रस्ताव नहीं आया है, लेकिन अगर ऐसा कोई प्रस्ताव आता है तो वे इसके बारे में सोचने को तैयार है.

अभी तक, शिंदे गुट सार्वजनिक रूप से अपने इसी रुख पर अड़ा रहा है कि वे ही ‘असली’ शिवसेना हैं और उन्हें किसी के साथ विलय करने की आवश्यकता नहीं है.

हालांकि, गुट के एक विधायक ने माना कि अन्य संभावनाओं को भी खारिज नहीं किया जा सकता है.

इस विधायक ने कहा, ‘हमारी पहली प्राथमिकता उद्धव खेमे से और अधिक पार्टी सदस्यों का समर्थन प्राप्त करना है ताकि यह साबित हो सके कि हम ही असली शिवसेना हैं. लेकिन अगर यह तरीका काम नहीं करता है, तो आखिरी विकल्प भाजपा या मनसे में विलय करना ही होगा. यह सब इस बात पर निर्भर करता है कि आगे चलकर चीजें कैसे सामने आती हैं … इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि हमारे पास राज्यपाल से संपर्क करने और सरकार बनाने के लिए पर्याप्त संख्या है.’


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विलय के विकल्प

संविधान की दसवीं अनुसूची, जिसे आमतौर पर दलबदल विरोधी कानून कहा जाता है, में 2003 में किया गया संशोधन विधानसभा में एक अलग समूह बनाने के लिए पार्टी से अलग हुए गुट की क्षमता को प्रतिबंधित करता है. अयोग्यता से बचने के लिए, ऐसे समूह को किसी अन्य पार्टी के साथ विलय करना होगा.

अगर बात यहां तक आती हो तो कहा जाता है कि एकनाथ शिंदे गुट के पास विलय के लिए फिलहाल तीन विकल्प हैं.

पहला विकल्प है भाजपा, जो स्वाभाविक पसंद लगती है, लेकिन ऐसा करना इस बारे में बातें करने जितना आसान नहीं है. एमवीए सरकार में एक उच्च पदस्थ सूत्र ने दिप्रिंट को बताया कि भाजपा में विलय को लेकर विद्रोही समूह के भीतर ही विभाजन है. गुट के कुछ विधायक इस राष्ट्रीय पार्टी के ‘प्रभुत्व’ को अपनी राजनीतिक प्रासंगिकता के लिए एक खतरे के रूप में देखते हैं.

विधायक दीपक केसरकर, जो इस अलग हुए समूह का हिस्सा हैं, ने सार्वजनिक रूप से कहा है कि उनका गुट विलय के लिए इच्छुक नहीं है.

उन्होंने कहा, ‘हम किसी पार्टी में विलय नहीं करने जा रहे हैं. हम काफी हद तक अभी भी शिवसेना का हिस्सा हैं. और चूंकि शिवसेना के अधिकांश विधायक हमारे साथ हैं, इस समूह को ही असली सेना माना जाएगा,’

इस बीच, बीजेपी वेट एंड वॉच (प्रतीक्षा करो और देखो) वाले मोड में है. महाराष्ट्र भाजपा के एक नेता ने दिप्रिंट को बताया, ‘यह सब इस बात पर निर्भर करता है कि अगले कुछ दिनों में चीजें कैसे सामने आती हैं. अगले 12 या 13 दिनों के लिए चीजें लटकी हुई लगती हैं, इसलिए शिवसेना के विधायक हताश हो सकते हैं. चीजें [शिवसेना के] दोनों पक्षों के खिलाफ जा सकती हैं, जिसके बाद विलय और सरकार बनाने का दावा करना ही एकमात्र विकल्प होगा. अब, यह विद्रोही समूह पर निर्भर है कि वे कैसे आगे बढ़ना चाहते हैं.’

बागी गुट के लिए दूसरा विकल्प प्रहार जनशक्ति पार्टी (पीजेपी) के साथ जाना है. महाराष्ट्र विधानसभा में इस पार्टी के फिलहाल दो विधायक हैं. इसके नेता, विधायक ओमप्रकाश बाबाराव ‘बच्चू’ कडू, पहले ही शिंदे को अपना समर्थन दे चुके हैं और उनके साथ गुवाहाटी में डेरा जमाए हुए हैं. मगर, पीजेपी एक बहुत छोटी सी पार्टी है और मुख्य रूप से किसानों के अधिकारों पर अपना ध्यान केंद्रित करती है, जो इसे शिंदे खेमे के लिए बहुत आकर्षक विकल्प नहीं बनाती है.

तीसरा विकल्प मनसे है, जिसकी शिवसेना के साथ साझा जड़ें हैं, बावजूद इसके कि इन पार्टियों के बीच के समीकरण हमेशा से बिगड़े हुए रहे हैं.


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थोड़े से नुकसान के साथ सभी के लिए एक फ़ायदे का सौदा

पहले उद्धृत मनसे नेता के अनुसार, शिंदे खेमे से हाथ मिलाना दोनों पक्षों के लिए फायदेमंद हो सकता है.

उन्होंने कहा, ‘यह हम दोनों के लिए फायदे की स्थिति होगी. हमारे साथ जुड़ने वाले लगभग 40 विधायक हमें राजनैतिक रूप से बढ़ावा देंगे. उनके मामले में उन्हें एक अखिल महाराष्ट्र चेहरा (राज ठाकरे के रूप में ) मिलेगा.

मनसे का आक्रामक हिंदुत्व और दिवंगत सेना प्रमुख बाल ठाकरे के साथ इसका जुड़ाव भी शिंदे खेमे के रुख के अनुरूप होगा.

हालांकि, सभी बागी विधायक इस तरह के विचार के प्रति उत्साहित नहीं हैं और उनमें से कुछ का मानना है कि मनसे प्रमुख राज ठाकरे शिंदे पर हावी हो सकते हैं.

बागी गुट के एक विधायक ने उनका नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘अगर एकनाथ शिंदे गुट का मनसे में विलय हो जाता है, तो शिंदे दूसरे नंबर पर होंगे और राज सर्वोच्च नेता होंगे. इसके अलावा, राज चुनाव परिणाम के मामले में इतने प्रभावशाली नहीं रहे हैं.’ हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि मनसे की ‘शिवसेना वाली विरासत’ और उसकी ‘आक्रामकता’ में कुछ आकर्षण तो है.

उन्होंने स्वीकार किया, ‘यह इस बात का पता लगाने के लिए एक प्रयोग होगा कि क्या कोई अन्य विकल्प नहीं बचा है?’

इस बीच, मनसे, जिसके पास वर्तमान में सिर्फ एक विधायक राजू पाटिल है, के मामले में विलय के लाभ अधिक स्पष्ट हैं. यदि शिंदे गुट के करीब 40 विधायक इसमें शामिल हो जाते हैं, तो पार्टी को इससे राजनैतिक रूप से बढ़ावा मिलेगा और महाराष्ट्र में उसे अपनी पैठ का विस्तार करने का मौका मिलेगा.

मनसे नेता ने कहा, ‘ये विधायक अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्रों में ख़ासा वजन रखते हैं. बृहन्मुंबई नगर निगम, ठाणे, कल्याण-डोंबिवली और विधानसभा चुनावों सहित आगामी स्थानीय निकाय चुनावों में हमें बढ़त मिलेगी.’

हाल-फिलहाल में, राज ठाकरे ने एमवीए सरकार की तीखी आलोचना की है, लेकिन पहले भाजपा के मुखर आलोचक होने के बावजूद उन्होंने इस पार्टी के साथ अधिक तालमेल का प्रदर्शन किया है.

उदाहरण के तौर पर, अप्रैल महीने में हुई एक रैली में, राज ठाकरे ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की काफ़ी सराहना की. फिर मई में, उन्होंने प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की ‘नया कश्मीर’ नीति की भी प्रशंसा की.

ऊपर उद्धृत मनसे नेता ने कहा कि उनका मानना है कि शिंदे खेमे के मनसे में विलय से भाजपा को भी फायदा हो सकता है. उन्होंने कहा, ‘भाजपा को आगामी चुनाव लड़ने के लिए एक सहयोगी की आवश्यकता होगी, चाहे वह स्थानीय निकायों के लिए हो या लोकसभा के लिए. इस विलय के साथ, यह तर्कसंगत साबित होगा.’

उनके समान वैचारिक आधारों, विशेष रूप से मराठी गौरव और हिंदुत्व, के साथ शिवसेना का बागी खेमा और मनसे भी एक ‘तर्कसंगत’ जोड़ी की तरह लगते हैं.

एक चीज़ जो अब प्रतीकात्मक रूप से महत्वपूर्ण प्रतीत होती है, वह यह है कि एकनाथ शिंदे ‘धर्मवीर’ नामक एक फिल्म के निर्माण में शामिल थे, जो ठाणे शिवसेना के मजबूत व्यक्तित्व आनंद दिघे के जीवन पर बनी एक फिल्म (बायोपिक) है. यह फिल्म पिछले महीने रिलीज़ हुई थी और इसमें दीघे को राज ठाकरे को यह कहते हुए दिखता गया है कि ‘हिंदुत्व को आगे बढ़ाना ही अब तुम्हारी विरासत है.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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