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‘अगली बार BJP गांधी पर रखेगी केसरी झंडा’- राजस्थान में उठा आदिवासी बनाम BJP का नया विवाद

योद्धा राणा पूंजा भील की प्रतिमा पर भगवा झंडा फहराए जाने के बाद, उदयपुर आदिवासी भील समुदाय ने बीजेपी पर उसकी ऐतिहासिक हस्तियों को, हथियाने की कोशिश करने का आरोप लगाया है.

उदयपुर में राणा पंजा भील की प्रतिमा पर राइट विंग के सदस्यों ने कथित तौर पर भगवा रंग का झंडा फहराया/ स्पेशल अरेंजमेंट

उदयपुर: योद्धा, लीडर, हमारी विरासत के प्रतीक- राजस्थान का आदिवासी भील समुदाय, 16वीं सदी के योद्धा राणा पूंजा भील को इसी रूप में देखता है.

भील, जिन्हें भीलू राणा भी कहा जाता है, उस समय के मेवाड़ शासक महाराणा प्रताप की सेना में एक सेनापति थे, और मुग़ल सम्राट अकबर की सेनाओं के खिलाफ, हल्दीघाटी की लड़ाई में मौजूद थे.

सदियों के बाद, उनकी विरासत को लेकर आदिवासी भील समुदाय, और बहुत से दक्षिण-पंथी हिंदू संगठनों के बीच एक तकरार छिड़ गई है.

इस कड़वाहट की जड़ें उन आयोजनों तक जाती हैं जो 9 अगस्त को हुए, जिसे विश्व आदिवासी दिवस के तौर पर मनाया जाता है.

इस दिवस को मनाने के लिए, दक्षिण-पंथी हिंदू संगठनों के सदस्यों ने, उदयपुर के लोकप्रिय रेती स्टैण्ड चौराहे पर स्थित, राणा पूंजा भील की प्रतिमा पर एक भगवा झंडा फहरा दिया.

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आदिवासी संगठनों ने उनके इस क़दम का विरोध किया, जिनके सदस्यों का कहना था कि इसके पीछे बीजेपी और आरएसएस का हाथ था, जो ‘राणा पूंजा भील को हथियाना चाहते हैं’.

उन्होंने पुलिस में शिकायत भी की, जिसके नतीजे में पूर्व पार्षद भेरू लाल मीणा समेत, कई बीजेपी नेताओं के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ली गई.

उसके बाद से सांस्कृतिक विनियोग, हिंदूवाद को थोपने, और इतिहास को मिटाने को लेकर, एक ज़ुबानी जंग छिड़ गई है.

लेकिन, बीजेपी पार्षद मीणा ने दिप्रिंट को बताया, कि ये स्थानीय लोग थे जिन्होंने बस एक केसरिया झंडा फहरा दिया था, जो उनके अनुसार, मेवाड़ और ख़ासकर महाराणा प्रताप के साम्राज्य का प्रतीक था

लेकिन, विरासत और पहचान के सवालों को लेकर, आदिवासी संगठनों और हिंदू दक्षिण-पंथी संगठनों के बीच, ये दूसरा बड़ा टकराव है. दिप्रिंट ने पहले ख़बर दी थी, कि कुछ हफ्ते पहले ही जयपुर के अमरगढ़ क़िले को लेकर भी, इसी तरह का विवाद खड़ा हो गया था.

वो विवाद भी एक भगवा झंडे से ही शुरू हुआ था, जिसे क़िले के प्राचीरों पर फहरा दिया गया था, जिसके बाद आदिवासी मीणा समुदाय में रोष फैल गया, और उन्होंने उस झंडे को उतार दिया था.

‘कल वो गांधी के ऊपर भी भगवा झंडा रख देंगे’

अखिल भारतीय आदिवासी महासभा का आरोप है, कि उनके विरोध के बावजूद बीजेपी नेताओं और कार्यकर्त्ताओं ने, 9 अगस्त को योद्धा की प्रतिमा पर भगवा झंडा फहरा दिया था.

संगठन के उदयपुर सचिव सुरेश मीणा ने दिप्रिंट को बताया, ‘हमने उन्हें रोकने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने फिर भी ये किया. हमने बहस करने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने नहीं सुनी’.

मीणा ने कहा कि प्रतिमा पर भगवा झंडा फहराकर, बीजेपी उनके लीडर को हथियाने का प्रयास कर रही है.

उन्होंने कहा, ‘बीजेपी यही सब करती रहती है; वो हर जगह भगवा झंडा फहराते रहते हैं. कल वो जाकर महात्मा गांधी की प्रतिमा पर भी भगवा झंडा फहरा देंगे, और उन्हें अपना बताने लगेंगे. ये स्वीकार्य नहीं है’. उन्होंने आगे कहा कि प्रतिमा कोई धार्मिक स्थल नहीं है, इसलिए वहां भगवा झंडे के लिए कोई जगह नहीं है.

राजस्थान के दूसरे हिस्सों में भील और मीणा दो अलग अलग आदिवासी समुदाय हैं, लेकिन उदयपुर और दूसरे मेवाड़ इलाक़ों में, उन्हें एक ही श्रेणी में रखा जाता है.

आदिवासी महासभा की राष्ट्रीय नेता साधना मीणा ने कहा, कि एक ज़्यादा बड़ा मुद्दा ये है कि ‘आरएसएस की विचारधारा और आदिवासी संस्कृति एक दूसरे के खिलाफ हैं’.

साधना ने दिप्रिंट से कहा, ‘आरएसएस हम पर अपनी विचारधारा थोपना चाहती है. लेकिन पहली बात ये कि हम अपने आपको हिंदू ही नहीं मानते. हम आदिवासी हैं और बस यही पहचान रखते हैं’.

उन्होंने आगे कहा, ‘कुछ आदिवासी हैं जो बीजेपी और आरएसएस का हिस्सा हैं. लेकिन उन्हें भी एक दिन समुदाय के सवालों का सामना करना पड़ेगा. उनके शवों को बीजेपी कंधा देने नहीं आएगी, सिर्फ आदिवासी देंगे’.

साधना मीणा, आदिवासी महासभा की राष्ट्रीय नेता/फोटो: निर्मल पोद्दार/दिप्रिंट

‘भगवा नहीं, बल्कि केसरिया मेवाड़ ध्वज’

बीजेपी नेता और पूर्व पार्षद भेरू लाल मीणा, जिन्हें एफआईआर में नामज़द किया गया है, ने ज़ोर देकर कहा कि उनकी पार्टी का इससे कोई लेना-देना नहीं है.

एफआईआर में, जिसकी कॉपी दिप्रिंट के हाथ लगी है, आईपीसी की धाराओं 341 (ग़लत तरीक़े से रोकने पर सज़ा), 323 (स्वेच्छा से किसी को चोट पहुंचाने पर सज़ा), और 143 (ग़ैर-क़ानूनी जन-समूह) के तहत मुक़दमा दर्ज किया गया है.

लाल मीणा ने दिप्रिंट को बताया कि झंडा उनके समाज ने फहराया था.

मीणा ने दिप्रिंट से कहा, ‘इसका बीजेपी या आरएसएस से कोई ताल्लुक़ नहीं है. वहां पर मौजूद समाज के लोग उस झंडे को पहराना चाहते थे’.

इसके अलावा, उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि वो झंडा भगवा नहीं बल्कि केसरिया रंग का था, जो मेवाड़ के इतिहास का हिस्सा है.

उन्होंने कहा, ‘झंडे पर एक ओर जय मेवाड़ लिखा था, और दूसरी ओर राणा पूंजा भील का नाम लिखा था. इसलिए वो भगवा झंडा कैसे हो सकता है; ये एक ग़लत आरोप है’.

उदयपुर पुलिस का कहना है कि मामले की जांच अभी चल रही है.

मामले के पुलिस जांच अधिकारी नाना लाल ने दिप्रिंट को बताया, ‘मामले की जांच चल रही है; अभी तक कोई गिरफ्तारियां नहीं हुई हैं’.


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आदिवासी हिंदू हैं, हमेशा हिंदू ही रहेंगे: बीजेपी

‘हिंदू धर्म को थोपे जाने’ के बड़े सवाल पर भेरू लाल मीणा ने कहा, कि ऐसा संभव नहीं है क्योंकि ‘वो ख़ुद भी एक आदिवासी हैं’.

उन्होंने पूछा, ‘मैं एक आदिवासी हूं, यहां के विधायक आदिवासी हैं, सांसद आदिवासी हैं. वो हम पर ऐसे आरोप कैसे लगा सकते हैं?’ उन्होंने कहा, ‘इसके अलावा, हम हिंदू कैसे नहीं हो सकते? हमारे पूर्वज अनंत काल से शिव पूजा करते आ रहे हैं’.

उदयपुर ग्रामीण से बीजेपी विधायक फूल सिंह मीणा ने दिप्रिंट से कहा, कि आदिवासियों पर हिंदू पहचान थोपने का सवाल ही पैदा नहीं होता, चूंकि ‘दोनों एक ही हैं’.

उन्होंने कहा, ‘हम हिंदू थे, हैं, और रहेंगे’.

उन्होंने आगे कहा, ‘यहां के सभी लोग हिंदू संस्कृति का हिस्सा हैं, और उसी में विश्वास रखते हैं, इसलिए हमारे हिंदू न होने का सवाल ही नहीं है’.

कांग्रेस सरकार ने इस मुद्दे पर अभी तक कुछ नहीं बोला है, और वो इससे दूरी बनाए हुए है.

उदयपुर ग्रामीण से बीजेपी विधायक फूल सिंह मीना | फोटो: निर्मल पोद्दार/दिप्रिंट

मेवाड़ ध्वज में भील प्रताप के बाद, दिखता है योगदान: एक्सपर्ट्स

एक्सपर्ट्स का कहना है कि राणा पूंजा भील की विरासत पर लड़ाई कोई नई नहीं है, लेकिन उनकी अहमियत ‘निर्विवाद’ है, ख़ासकर ये देखते हुए कि मेवाड़ के प्रतीक में, महाराणा प्रताप और भील दोनों हैं.

लोकेश पालीवाल, जो युनेस्को के साथ संस्कृति और इतिहास पर काम करते हैं, और जिन्होंने 2019 में राणा पूंजा पर एक डॉक्युमेंट्री का निर्देशन भी किया, ने कहा कि योद्धा की पृष्ठभूमि को लेकर कुछ विवाद है.

पालीवाल ने कहा, ‘कुछ लोग कहते हैं कि पूंजा स्वयं एक राजपूत थे, लेकिन उन्होंने बस एक सेना की कमान संभाली, जिसमें अधिकतर संख्या में भील थे. लेकिन दूसरे बहुत से इतिहासकारों का मानना है, कि वो ख़ुद भी एक भील थे जो इस बात से ज़ाहिर होता है, कि उन दिनों उस समुदाय के सदस्यों बीच उन्हें बहुत सम्मान की नज़र से देखा जाता था, और उनके बहुत सारे समर्थक थे.

पालीवाल ने आगे कहा कि राणा पूंजा भील ने, बहुत सी लड़ाइयों में महाराणा प्रताप की सेनाओं की अगुवाई की, और उन्हें बहुत श्रेय जाता है.

उन्होंने कहा, ‘महाराणा प्रताप के पास, पूंजा की मदद की पेशकश मंज़ूर करने के अलावा, कोई दूसरा विकल्प नहीं बचा था. राणा पूंजा भील ने आम लोगों को लड़ने के लिए प्रशिक्षित किया, और प्रताप की सेनाओं के तौर पर उस फौज का नेतृत्व किया’.

पालीवाल के अनुसार महाराणा ने भी पूंजा के योगदान को स्वीकार किया, इसलिए लड़ाई के बाद उन्हें ‘राणा’ की उपाधि दी गई. बाद में मेवाड़ के प्रतीक में भी महाराणा प्रताप और राणा पूंजा भील को, एक दूसरे के पास दिखाया गया था.

उनके महत्व को उजागर करने के लिए आदिवासी संगठन, इसी को साक्ष्य के तौर पर इस्तेमाल करते हैं.

साधना मीणा ने कहा, ‘इस सब से इतिहास में पूंजा के महत्व और योगदान का पता चलता है. वो ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने न केवल अपनी सेनाओं को तैयार किया, बल्कि ये भी सुनिश्चित किया कि लड़ाई के लिए सब चीज़ें बिल्कुल तैयार हों: भोजन, घोड़े, सबकुछ’.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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