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निलंबन, जबरन छुट्टी, वेतन कटौती — चुनाव से पहले अधिकारियों पर क्यों बरस रहे हैं खट्टर के चाबुक?

हालांकि, इस तरह की कार्रवाइयां पहले भी दर्ज की गई हैं, लेकिन भाजपा शासित राज्य में पिछले चार-पांच हफ्तों में ऐसे प्रकरण बढ़ गए हैं. अक्सर, जन संवाद और समाधान बैठकों में तुरंत फैसले लिए जाते हैं.

हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की फाइल फोटो | एएनआई
हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की फाइल फोटो | एएनआई

गुरुग्राम: ऐसा कोई संयोग नहीं कि हाल ही में हरियाणा के तीन अधिकारियों को भूमि संबंधी शिकायतों के लिए कई दिनों तक हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की नाराज़गी का सामना करना पड़ा. सोमवार को, भिवानी शहरी स्थानीय निकाय (यूएलबी) के कार्यकारी अधिकारी को एक प्लॉट मालिक को आवंटन पत्र जारी करने में देरी करने के लिए निलंबित कर दिया गया, जिसने 1985 में प्रारंभिक राशि का भुगतान किया था.

पिछले शुक्रवार को खट्टर ने एक आवासीय भूखंड के गलत सीमांकन के लिए हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण, रेवाड़ी के संपदा अधिकारी को निलंबित करने का आदेश दिया. उसी दिन, उन्होंने पर्वतीया कॉलोनी में एक पार्क के विकास में देरी के लिए फरीदाबाद यूएलबी के एक कार्यकारी अभियंता के खिलाफ विभागीय कार्रवाई को मंजूरी दे दी.

अधिकारियों को निलंबित करना, उन्हें जबरन छुट्टी पर भेजना और उनके वेतन में कटौती करना — हरियाणा के मुख्यमंत्री दोषी अधिकारियों के पीछे पड़ गए हैं, जो अक्टूबर में होने वाले राज्य चुनाव से पहले अपनी छवि बदलने की कोशिश जैसा दिखाई दे रहा है.

हालांकि, इस तरह की कार्रवाइयां फरवरी 2023 में भी दर्ज की गई थीं, जब सोनीपत नागरिक निकाय के एक जूनियर इंजीनियर और जुलाना नगरपालिका समिति के एक सचिव को काम में ढिलाई के कारण निलंबित कर दिया गया था, लेकिन पिछले चार से पांच हफ्तों में भाजपा शासित राज्यों में यह कुछ बढ़ गया है. अक्सर जन संवाद और समाधान बैठकों में तुरंत फैसले लिए जाते हैं.

विपक्ष आदेशों की झड़ी को “गैर-प्रदर्शन पर निराशा” का प्रतिबिंब मानता है, जबकि कई नौकरशाह निजी तौर पर स्वीकार करते हैं कि खट्टर गैलरी में खेलने और अपने अधिकार का दावा करने की कोशिश में आगे बढ़ रहे हैं.

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1985 में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने वाले हरियाणा कैडर के पूर्व आईएएस अधिकारी जी. देवसहायम ने कहा कि भाजपा शासन में विशेषकर हरियाणा में अधिकारियों को निलंबित करना मंत्रियों का शगल बन गया है.

उन्होंने टिप्पणी की हरियाणा के मंत्री अनिल विज तुरंत अधिकारियों को निलंबित करने के लिए जाने जाते हैं, लेकिन अब खट्टर ने ऐसी प्रवृत्ति दिखाई है.

देवसहायम ने दिप्रिंट से कहा, “किसी अधिकारी को निलंबित करने के लिए दो सामान्य नियम हैं. पहला, कार्रवाई या फिर गलती इतनी गंभीर हो कि अगर साबित हो जाए तो बड़ी सज़ा दी जा सके यानी — सेवा से बर्खास्तगी, ज़रूरी रिटायरमेंट, निचले समय वेतनमान ग्रेड या पद में कटौती. दूसरा, नौकरी में बने रहने से व्यक्ति सबूतों से छेड़छाड़ कर सकता है या जांच के नतीजे को प्रभावित कर सकता है. सिर्फ अपना अधिकार दिखाने या लोगों को खुश करने के लिए किसी अधिकारी को निलंबित करना पूरी तरह से अवैध है.”

जिन अन्य अधिकारियों को इन तेवरों का सामना करना पड़ा, उनमें सार्वजनिक स्वास्थ्य इंजीनियरिंग के मुख्य इंजीनियर आशिम खन्ना और मुख्य इंजीनियर राजीव बातिश और गुरुग्राम नगर निगम के आयुक्त पी.सी. मीना शामिल हैं.

पीएचई द्वारा सड़क मरम्मत के काम से संतुष्ट नहीं होने के बाद खन्ना और बातिश को 29 दिसंबर को पांच दिन की जबरन छुट्टी लेने के लिए कहा गया था.

सीएम द्वारा गुरुग्राम के औचक दौरे के दौरान कई स्थानों पर कूड़े के ढेर पाए जाने के बाद मीना को 15 दिन के वेतन कटौती का सामना करना पड़ा, जबकि संयुक्त आयुक्त को पूरे महीने का वेतन छोड़ना पड़ा.

2004 बैच के आईएएस अधिकारी, मीना को बाद में नए साल पर दक्षिण हरियाणा बिजली वितरण निगम के एमडी के रूप में स्थानांतरित कर दिया गया.

एक दिन पहले, खट्टर ने अपने ‘‘सीएम की विशेष चर्चा’’ के दौरान दुर्व्यवहार की शिकायत के बाद भिवानी में सिंचाई विभाग के एक कार्यकारी इंजीनियर को 15 दिन की जबरन छुट्टी देने का आदेश दिया था.

उपर्युक्त उदाहरणों पर टिप्पणी करते हुए देवसहायम ने कहा कि किसी आईएएस अधिकारी या किसी अन्य अधिकारी के 15 दिनों के वेतन की कटौती का आदेश देना मनमाना और अवैध है.

देवसहायम ने कहा, “वेतन में कटौती एक सज़ा है जिसे मनमाने ढंग से नहीं दिया जा सकता है. सेवा नियमों एवं प्राकृतिक न्याय के नियमों का पालन करना होगा. जिस अधिकारी को इस तरह से दंडित किया जाना है, उसे उसके वरिष्ठ द्वारा कारण बताओ नोटिस दिया जाना चाहिए और उसे सुनवाई का मौका दिया जाना चाहिए. तभी उपयुक्त प्राधिकारी ऐसी कार्रवाई कर सकता है.”


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विरोधाभासी मत

खट्टर के मुख्य मीडिया समन्वयक सुदेश कटारिया का दावा है कि सीएम एक सख्त टास्कमास्टर हैं और वह लोक सेवकों के किसी भी प्रकार के लापरवाह रवैये को बर्दाश्त नहीं करते हैं.

कटारिया ने दावा किया कि हरियाणा के दो बार के मुख्यमंत्री चौधरी देवीलाल के बाद खट्टर एकमात्र मुख्यमंत्री हैं जो गांवों में लोगों से मिलते हैं और फीडबैक लेते हैं.

कटारिया ने दिप्रिंट से कहा, “देवीलाल की तरह जो सरकार आपके द्वार किया करते थे, खट्टर जन संवाद कार्यक्रम आयोजित करते हैं जिसमें वह गांवों में लोगों से मिलते हैं और सरकार के कामकाज पर प्रतिक्रिया लेते हैं. देवीलाल सहित पिछले मुख्यमंत्रियों के विपरीत, जो भाषणों के माध्यम से संवाद करते थे, मनोहर लाल जी एकमात्र ऐसे मुख्यमंत्री हैं जो लोगों के साथ बातचीत करने में विश्वास करते हैं ताकि वे अन्य तरीकों के बजाय जो वे कहते हैं उसे सुन सकें. इस बातचीत के दौरान ही उन्हें अधिकारियों के प्रदर्शन के बारे में फीडबैक मिलता है.”

उन्होंने कहा कि सीएम ने पिछले विधानसभा सत्र में शपथ ली थी कि चाहे कुछ भी हो जाए, भ्रष्ट अधिकारियों को नहीं बख्शा नहीं जाएगा.

उन्होंने आगे कहा, “जब भी भ्रष्टाचार का कोई कृत्य या अधिकारियों के ढुलमुल रवैये की कोई घटना सीएम के सामने आती है, तो वह इसे बर्दाश्त नहीं करते हैं. इससे पता चलता है कि वह काम नहीं करने वाले अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई क्यों कर रहे हैं.”

हालांकि, पूर्व मुख्यमंत्री और विपक्ष के नेता भूपिंदर सिंह हुड्डा ने कहा कि कार्रवाई केवल खट्टर की “हताशा” को दिखाती है.

कांग्रेस नेता ने दिप्रिंट से कहा, “खट्टर सत्ता में आने के बाद से एक नॉन-परफॉर्मिंग मुख्यमंत्री रहे हैं. लोग उनकी सरकार से तंग आ चुके हैं और उन्हें हटाने का मौका तलाश रहे हैं. वे भी निराश हैं और जब भी मुख्यमंत्री उनसे कहीं मिलते हैं तो गुस्सा निकालते हैं. अधिकारियों के खिलाफ उनकी हालिया कार्रवाई सिर्फ लोगों को यह विश्वास दिलाने के लिए है कि सरकार उनके लिए कुछ कर रही है.”

उन्होंने कहा कि इस तरह की कार्रवाई से लोगों को मूर्ख नहीं बनाया जा सकता.

इनेलो महासचिव अभय सिंह चौटाला ने कहा कि खट्टर की समस्या यह है कि सरकारी अधिकारी उनकी बात नहीं सुनते.

ऐलनाबाद विधायक ने दिप्रिंट को बताया, “सरकारी अधिकारियों को इस सरकार पर भरोसा नहीं है. उन्हें लगता है कि सरकार कुछ गैरकानूनी आदेश देकर उनसे कुछ भी गलत करवा सकती है और फिर अपना पल्ला झाड़ सकती है.”

लेकिन, चंडीगढ़ स्थित अकादमिक और नीति पेशेवर अर्जुन सिंह कादियान का मानना है कि “भ्रष्ट और काम न करने वाले” अधिकारियों के खिलाफ खट्टर की हालिया कार्रवाइयां केवल यह दर्शाती हैं कि उन्होंने शासन में सुधार के लिए एक सक्रिय दृष्टिकोण अपनाया है.

कादियान ने दिप्रिंट से कहा, “इसमें कोई शक नहीं है कि सभी सरकारी अधिकारी कर्तव्यों का पालन नहीं करते हैं…यही कारण है कि मंत्रियों की शिकायत निवारण बैठकों और सीएम विंडो (एक शिकायत पोर्टल) पर बड़ी संख्या में शिकायतें आती हैं. खट्टर की सक्रिय कार्रवाइयों से पता चलता है कि वह सरकारी मशीनरी को ठीक करने की कोशिश कर रहे हैं ताकि वह लोगों की ठीक से सेवा कर सके.”

पिछले साल अगस्त में दिल्ली में बाढ़ के दौरान आईटीओ बैराज के गेट नहीं खोलने के लिए सिंचाई विभाग के एक मुख्य इंजीनियर को निलंबित कर दिया गया था, जबकि तीन अन्य इंजीनियरों के खिलाफ आरोप पत्र दायर करने के आदेश दिए गए थे.

नवंबर में एक जन संवाद में भाग लेने के बाद, खट्टर ने कर्तव्य में लापरवाही के लिए करनाल में एक स्टेशन हाउस अधिकारी और एक कार्यकारी इंजीनियर को निलंबित करने का आदेश दिया.

अगले महीने फरीदाबाद में जिला शिकायत निवारण समिति की बैठक में गबन के एक मामले में पुलिस शिकायत दर्ज नहीं करने के लिए सहकारी समितियों के रजिस्ट्रार और एक क्लर्क को निलंबित किया गया था.

जिला सूचना एवं जनसंपर्क अधिकारी संजय कुमार को स्वच्छता ही सेवा अभियान पर अपनी “आपत्तिजनक टिप्पणी” के लिए इसी तरह का सामना करना पड़ा.

भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता संजय शर्मा ने कहा कि 2014 में सत्ता में आने के बाद से ही खट्टर और उनकी सरकार ने भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस का प्रदर्शन किया है.

उन्होंने विस्तार से बताया, “पिछले नौ साल में लगभग 50 सरकारी भ्रष्ट और नॉन-परफॉर्मिंग अधिकारियों को सीएम ने बाहर का रास्ता दिखाया है. मुख्यमंत्री सरकारी अधिकारियों के सेवा रिकॉर्ड की समीक्षा करने की परंपरा का पालन करते हैं, जहां भ्रष्ट और काम न करने वाले अधिकारियों को दंडित किया जाता है, वहीं जन कल्याण के लिए अच्छा प्रदर्शन करने वालों को सम्मानित भी किया जाता है. सरकार भ्रष्टाचार पर ज़ीरो टॉलरेंस और न्यूनतम सरकार, अधिकतम शासन के सिद्धांत का पालन कर रही है.”

हरियाणा किसान कल्याण प्राधिकरण के अध्यक्ष सुभाष बराला ने कहा कि प्रत्येक सरकारी अधिकारी लोगों के प्रति जवाबदेह है और अगर उनमें से किसी को भी इसका एहसास नहीं है, तो सरकार को उन्हें जवाबदेह बनाना चाहिए.

बीजेपी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष ने दिप्रिंट से कहा, “मुख्यमंत्री और यहां तक कि हमारे प्रधानमंत्री भी उन्हें लोगों के प्रति जवाबदेह मानते हैं और वे जनता की निस्वार्थ सेवा के लिए प्रतिबद्ध हैं. सरकारी अधिकारियों को भी यह एहसास होना चाहिए कि वे लोगों के सेवक हैं और उनके प्रति जवाबदेह हैं.”

(संपादन : फाल्गुनी शर्मा)

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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