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रणनीति बनाने में माहिर, विशाल नेटवर्क- जयराम रमेश को क्यों कांग्रेस का कम्युनिकेशन इंचार्ज बनाया गया

उम्मीद की जा रही है कि जयराम रमेश के अनुभव को देखते हुए उन्हें मीडिया के बीच काफी अहमियत मिल सकती है, जिसके बारे में कांग्रेस का मानना है कि उसने पार्टी के प्रति अप्रत्याशित तौर पर शत्रुवत रुख अपना रखा है.

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जयराम रमेश की फाइल फोटो | कॉमन्स

नई दिल्ली: कांग्रेस पार्टी ने गुरुवार को अपने सबसे अनुभवी नेताओं में से एक पूर्व केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश को एक ऐसे विभाग में सुधार की जिम्मेदारी सौंपी, जिसे लंबे समय से पार्टी की कमजोर कड़ी माना जा रहा है.

उन्हें डिजिटल और सोशल मीडिया समेत संचार, प्रचार और मीडिया का प्रभारी महासचिव नियुक्त किया गया है, इसमें से डिजिटल और सोशल मीडिया उनके अतिरिक्त प्रभार में शामिल है, जो इससे पहले उनके पूर्ववर्ती रणदीप सुरजेवाला संभालते रहे हैं.

इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने वाले, अर्थशास्त्र में रुचि रखने वाले और पेशे से ‘पॉलिसी वोंक’ (उनके सहयोगी चतुर रणनीतिकार होने के संदर्भ में यह शब्द इस्तेमाल करते हैं) जयराम रमेश को एक टेक्नो-सैवी व्यक्ति के तौर पर जाना जाता है, जो ‘समय के साथ’ चलते हैं और कुशाग्र बुद्धि के धनी हैं.

हालांकि, पार्टी की तरफ से कम्युनिकेशन व्यवस्था संबंधी अपने ढांचे में ताजा बदलाव के बाद सोशल मीडिया विभाग को भले ही रमेश के अधीन लाया आया गया हो लेकिन उनके अपने ट्वीट्स को देखते हुए कोई भी ऐसे बयानों की संभावना से इनकार नहीं कर सकता जो काफी चुटीले हों.

इस साल जनवरी में कांग्रेस के असंतुष्ट नेताओं के समूह जी-23 के सदस्य कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद को मोदी सरकार की तरफ से पद्म पुरस्कार से सम्मानित किए जाने के मौके पर जयराम रमेश का ट्वीट इसी का एक उदाहरण है. इसमें उन्होंने उनके ही नाम का इस्तेमाल कर हल्का कटाक्ष करते हुए लिखा था, ‘यही सही है. वह गुलाम नहीं आजाद बनना चाहते हैं.’

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तबसे, आजाद जहां पार्टी के साथ सुलह की राह पर नजर आ रहे हैं, वहीं रमेश को 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए पार्टी की टास्क फोर्स के सदस्य जैसी महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां सौंपी गई हैं.

उम्मीद की जा रही है स्तंभकार और कई किताबें लिख चुके रमेश के अनुभव को देखते हुए उन्हें मीडिया के बीच काफी अहमियत मिल सकती है, जिसके बारे में कांग्रेस का मानना है कि उसने पार्टी के प्रति अप्रत्याशित तौर पर शत्रुवत रुख अपना रखा है.


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क्षेत्रीय, अंग्रेजी मीडिया के बीच अच्छा-खासा नेटवर्क

पार्टी के भीतर रमेश के सहयोगियों का कहना है कि देशभर में राजनेताओं, सिविल सोसाइटी और इस पद के लिहाज से सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण क्षेत्रीय और अंग्रेजी मीडिया दोनों के बीच उनका विशाल नेटवर्क, उन्हें संचार विभाग संभालने के लिए एक अच्छा विकल्प बनाता है.

इसके अलावा, अपनी टीम को सख्त अनुशासन में रखने और साथ ही पार्टी के भीतर मुखर आलोचकों को चर्चा की मेज पर लाने की उनकी काबिलियत को भी काफी अहम माना जा रहा है.

जयराम रमेश के अधीन काम करने वाले कांग्रेस के एक पदाधिकारी ने कहा, ‘उनके पास उन लोगों को एक मंच पर लाने की अद्भुत क्षमता है जिन्हें आप कभी एक साथ देखने की उम्मीद नहीं कर सकते. और एक बार जब वह ऐसा कर लेते हैं, तो वह उन्हें कुछ खास स्थितियों में एक साथ काम करने के लिए राजी भी कर लेते हैं.’

जयराम रमेश को ‘उनके एआईसीसी में आने’ के समय से जानने का दावा करने वाले एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि उनके रणनीतिक इनपुट को पार्टी नेतृत्व ने हमेशा महत्व दिया है. किसी रणनीति की रूपरेखा तैयार करने के उनके कौशल ने उन्हें सभी नीतिगत दस्तावेजों के संदर्भ में एक जाना-पहचाना चेहरा बना दिया और इसी वजह से वह कांग्रेस आलाकमान के करीब हो गए.

पार्टी सूत्रों ने बताया, यहां तक कि हाल ही में आयोजित चिंतन शिविर में अपनाया गया उदयपुर नव संकल्प घोषणापत्र भी जयराम रमेश ने ही तैयार किया था.

वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘पार्टी के सभी बड़े फैसलों पर हमेशा उनसे संगठनात्मक और रणनीतिक इनपुट लिया जाता है. 2004 के चुनावों में यूपीए ने जब पहली बार सत्ता संभाली थी तो कांग्रेस का वॉर रूम रमेश ही चलाते थे.’

कांग्रेस के एक दूसरे पदाधिकारी ने कहा कि उस चुनाव के बाद से उनके लिए ‘कांग्रेस वॉर रूम के नियमों’ में हमेशा ढील दी गई.

पदाधिकारी ने कहा, ‘उन्हें आधिकारिक तौर पर वॉर-रूम की जिम्मेदारी दी गई या नहीं, लेकिन उनके और उनके इनपुट के लिए दरवाजे हमेशा खुले रहे हैं.’

एक दूसरे वरिष्ठ नेता और सांसद ने कहा कि रमेश एक उत्साही पाठक हैं और उन कुछ लोगों में शुमार हैं जिन्होंने ‘सभी किताबें अपनी लाइब्रेरी में पढ़ी हैं.’ कर्नाटक शास्त्रीय संगीत में विशेष रुचि के साथ वह एक संगीत प्रेमी भी हैं.

सांसद ने कहा, ‘वह ऐसे व्यक्ति हैं जिनकी विविध विषयों में रुचि है और तमाम टॉपिक पर पढ़ना पसंद करते हैं. उनका यही गुण है और उनकी शिक्षा उन्हें चतुर रणनीतिकार बनाती है.’


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फिजिक्स में गहरी रुचि रखने वाले इंजीनियर और अर्थशास्त्री

रमेश ने 1975 में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), बॉम्बे से मैकेनिकल इंजीनियर के तौर पर स्नातक डिग्री हासिल की और उसके बाद अमेरिका स्थित कार्नेगी मेलन यूनिवर्सिटी चले गए, जहां उन्होंने पब्लिक पॉलिसी और पब्लिक मैनेजमेंट में मास्टर डिग्री ली. उन्होंने मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) में एक पीएचडी प्रोग्राम के लिए नामांकन भी कराया, लेकिन अपने परिवार की तात्कालिक जरूरतों की वजह से इसे पूरा नहीं कर सके.

1979 में भारत लौटने से पहले उन्होंने कुछ समय के लिए विश्व बैंक में भी काम किया. इसके बाद उन्होंने सरकारी एजेंसियों के साथ पॉलिसी स्पेस में काम करना शुरू कर दिया, जिसकी शुरुआत औद्योगिक लागत और मूल्य ब्यूरो में अर्थशास्त्री लवराज कुमार के सहायक के तौर पर हुई थी.

2011 में एक इंटरव्यू में रमेश ने कहा था कि वह आईआईटी इसलिए नहीं गए क्योंकि उन्हें इंजीनियरिंग में कोई विशेष रुचि थी, बल्कि इसलिए गए क्योंकि उनके पिता ने ऐसा करने को कहा था. अगले कुछ सालों में उन्हें इकोनॉमिक्स के प्रति गहरी रुचि जगी. फिजिक्स भी उनका पसंदीदा विषय बन गया.

इंटरव्यू में रमेश ने कहा था, ‘जब मैं 17 साल का था तब मैंने पॉल सैमुएलसन (नोबेल विजेता अर्थशास्त्री) को पढ़ा. मुझे वे बहुत दिलचस्प लगे, खासकर प्रस्तुतिकरण, विषय पर गहरी पकड़, और जनसंख्या, विकास जैसे मुद्दों की वजह से. इसी ने मुझे इंजीनियरिंग, ड्राइंग और गणित के फॉर्मूलों में उलझे रहने के बजाये इकोनॉमिक्स, और जीवन से जुड़े बड़े मुद्दों पर सोचने के लिए प्रेरित किया.’

उन्होंने आगे कहा, ‘मेरी फिजिक्स के प्रति भी गहरी रुचि रही है. फिजिक्स अभी भी मेरा पसंदीदा विषय है. मैं अब टेक्निकल फिजिक्स तो नहीं पढ़ सकता, क्योंकि इसे लगातार ट्रैक करना संभव नहीं रहा है. मेरी विज्ञान में रुचि है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि मैं वैज्ञानिक हूं. हां, यह जरूर है कि इसकी वजह से कई वैज्ञानिकों के साथ बातचीत करना आसान हो जाता है क्योंकि वहां आप बेवकूफ नहीं साबित होते.’

लवराज कुमार के साथ काम करने के बाद रमेश ने ऊर्जा सलाहकार बोर्ड, योजना आयोग, उद्योग मंत्रालय और केंद्र सरकार के कई अन्य विभागों में काम किया, जहां उन्होंने एक अर्थशास्त्री और नीति-निर्माता के तौर पर योगदान दिया.

1990 के दशक में वह प्रधानमंत्री वी.पी. सिंह की सरकार और फिर नरसिम्हा राव के पीएमओ में ओएसडी के तौर पर कार्यरत रहे. फिर उसके बाद तत्कालीन वित्त मंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व में वित्त मंत्रालय का हिस्सा रहे.

वह 1991 में मनमोहन सिंह के नेतृत्व में देश में आर्थिक सुधार लागू करने वाली टीम का हिस्सा भी रहे हैं. उन्होंने 1992 में योजना आयोग के उपाध्यक्ष के सलाहकार के तौर पर काम किया और 1993 में जम्मू-कश्मीर भेजे गए एक विशेष प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा रहे. 1996 से 1998 के बीच तत्कालीन वित्त मंत्री पी. चिदंबरम के सलाहकार के तौर पर काम किया. 1999 में विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) में केंद्र सरकार के प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा रहे.

2000-2002 के बीच उन्होंने विभिन्न राज्य सरकारों के साथ काम किया, कर्नाटक सरकार के योजना बोर्ड का हिस्सा रहे. वहीं, आंध्र प्रदेश और छत्तीसगढ़ सरकारों की आर्थिक सलाहकार परिषद और राजस्थान सरकार की विकास परिषद में शामिल रहे.

वह 2004 में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) के सचिव थे, जब उन्हें लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस के चुनावी रणनीति तय करने वाली समिति का अध्यक्ष बनाया गया. उस समय वह ऊर्जा और वाणिज्य एवं उद्योग राज्य मंत्री भी थे, जिससे उन्होंने अपनी पार्टी के लिए चुनावी रणनीतिकार का पद संभालने से पहले इस्तीफा दे दिया.

वह 2004 में पहली बार राज्य सभा के लिए चुने गए थे और तबसे कई बार उच्च सदन के लिए चुने जा चुके हैं. अभी, वह कर्नाटक से राज्य सभा सदस्य हैं. हालांकि, रमेश ने कभी भी लोकसभा, राज्य विधानसभा या किसी अन्य निर्वाचित निकाय के लिए चुनाव नहीं लड़ा है.

2009 में यूपीए की जीत के बाद उन्हें केंद्र सरकार में वन एवं पर्यावरण मंत्री बनाया गया था. मंत्री के तौर पर उनके सबसे महत्वपूर्ण फैसलों में से एक था सांडों की लड़ाई पर रोक लगाना, जिसने 2016 में तमिलनाडु में जल्लीकट्टू उत्सव पर प्रतिबंध का रास्ता खोला.

मंत्री के तौर पर उनके कार्यकाल के दौरान कई विवाद भी हुए.

2010 में तत्कालीन पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने बीटी बैंगन पर अनिश्चितकालीन रोक लगाने का आदेश दिया, जो कि जेनेटिकली इंजीनियर्ड सब्जी का एक रूप है, जिसे एक तरह के कीट शूट बोरर से बचाने के लिए बनाया गया है. उस समय उन्होंने कहा था कि भारत को ट्रांसजेनिक फसलों के संदर्भ में एक स्वतंत्र जैव प्रौद्योगिकी नियामक और पारदर्शी टेस्टिंग सिस्टम की आवश्यकता है.

बाद में उन्होंने इस तरह की नियामक संस्था बनाने में सक्षम नहीं होने के लिए अपनी ही सरकार को फटकार भी लगाई.

2013 में उस समय ग्रामीण मामलों के मंत्री रहे जयराम रमेश को नियमगिरि पहाड़ियों में बॉक्साइट खनन को लेकर ओडिशा सरकार और वेदांता एल्युमिनियम (वीएएल) के खिलाफ खड़ा होना पड़ा. रमेश ने दोनों से नियमगिरि पहाड़ियों को ‘बख्शने’ और कहीं दूसरी जगह बॉक्साइट का खनन करने को कहा.

ओडिशा सरकार और वीएएल को अपनी लांजीगढ़ रिफाइनरी के लिए कच्चे माल के रूप में बॉक्साइट की जरूरत थी. उस समय, उन्होंने कहा था कि नया भूमि अधिग्रहण विधेयक आदिवासियों और किसानों को किसी भी परियोजना को स्वीकारने या खारिज करने का अधिकार देता है. उन्होंने परियोजना के लिए सरकारी मंजूरी से पहले ही इनकार कर दिया था.

पर्यावरण मामलों में जयराम रमेश की हमेशा रुचि रही है और मौजूदा समय में वह एक अंतरराष्ट्रीय सलाहकार बोर्ड (आईएबी) का हिस्सा हैं, जो विकासशील देशों के लिए पर्यावरण की दृष्टि से उन्नत प्रौद्योगिकियों पर संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) को रणनीतिक सलाह देता है.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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