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UP में BSP खेमे में मची भगदड़, सपा ने कहा- ‘महागठबंधन’ की कोशिशों का असली फायदा अब मिल रहा

सपा का कहना है कि बसपा के 50 फीसदी से ज्यादा विधायक और करीब 25 फीसदी जोनल कोऑर्डिनेटर पाला बदल चुके हैं. बहुत संभव है कि बसपा के पास 18 विधायकों में से सिर्फ तीन विधायक ही बचें.

बीएसपी के बागी विधायक अखिलेश यादव के साथ लखनऊ में समाजवादी पार्टी के हेड क्वार्टर में | फोटो: प्रशांत श्रीवास्तव/दिप्रिंट.

लखनऊ : बहुजन समाज पार्टी प्रमुख मायावती ने पूर्वी उत्तर प्रदेश के एक प्रभावशाली नेता हरिशंकर तिवारी के बेटे और पार्टी विधायक विनय शंकर तिवारी को गत 7 दिसंबर को अनुशासनहीनता के आधार पर पार्टी से निष्कासित कर दिया था. बसपा का यह कदम ऐसी अटकलें शुरू होने के बाद उठाया था कि हरिशंकर तिवारी का परिवार पाला बदलकर समाजवादी पार्टी में जाने की तैयारी कर रहा है.

तिवारी के निष्कासन के साथ बसपा के 18 में से 15 विधायक या तो पार्टी से अलग हो चुके या फिर अलग रास्ता अपनाने की प्रक्रिया में हैं. ऐसे में संभव है कि विधानसभा में बसपा के पास केवल तीन विधायक ही बचें.

यूपी में 2017 के विधानसभा चुनाव में बसपा 19 सीटों पर जीती थी. बाद में अंबेडकर नगर जिले की जलालपुर सीट से इसके विधायक रितेश पांडे ने 2019 का लोकसभा चुनाव जीता. जलालपुर सीट पर उपचुनाव में सपा को बसपा के हाथों हार का सामना करना पड़ा और विधानसभा में इसके सदस्यों की संख्या घटकर 18 ही रह गई.

सपा बोली—’महागठबंधन का असली सार’ यही निकला

समाजवादी पार्टी के नेताओं को लगता है कि भले ही 2019 में बसपा के साथ उनका गठबंधन विफल हो गया हो, लेकिन इसका असली लाभ उन्हें अब मिल रहा हैं, क्योंकि बसपा के कई प्रमुख नेताओं और उनके समर्थकों का पाला बदलकर सपा में आना लगातार जारी है.

समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता डॉ. आशुतोष वर्मा ने दिप्रिंट से कहा, ‘अगर आपको बसपा अध्यक्ष मायावती के साथ हमारे पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव का संयुक्त संवाददाता सम्मेलन याद हो तो…अखिलेश जी ने कहा था, ‘हम साथ मिलकर सामाजिक न्याय के लिए लड़ेंगे’, लेकिन चुनाव के तुरंत बाद बसपा ने गठबंधन तोड़ दिया. समाजवादी पार्टी अभी भी उसी रास्ते पर चल रही है, लेकिन बसपा इससे भटक गई. इसलिए बसपा नेताओं को स्वाभाविक तौर पर सपा एक बेहतर विकल्प नजर आ रही है. मैं तो यही कहूंगा कि ‘महागठबंधन’ का असली फायदा हमें अब मिल रहा है.’

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उन्होंने आगे बताया, ‘दलितों तक पहुंच बनाने के लिए हमारी पार्टी ने बाबा साहब वाहिनी का गठन किया था. बसपा विधायकों के अलावा पार्टी के कई क्षेत्रीय समन्वयक और पूर्व सांसद-विधायक पिछले एक साल में सपा में शामिल हुए हैं, क्योंकि उन्हें सपा ही एकमात्र ऐसी पार्टी नजर आ रही है जो यूपी में भाजपा का विकल्प बन सकती है.’


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बसपा के पूर्व सांसद, विधायक सपा में शामिल

सिर्फ मौजूदा विधायक ही नहीं, बसपा के कई पूर्व सांसद और विधायक भी पिछले कुछ सालों में सपा में शामिल हुए हैं.

इनमें पूर्व सांसद त्रिभुवन दत्त और कादिर राणा, पूर्व मंत्री राम प्रसाद चौधरी और रघुनाथ प्रसाद संखवार और पूर्व विधायक बब्बू खान शामिल हैं.

पार्टी के वरिष्ठ नेता सी.एल. वर्मा, जिन्हें कभी मायावती का करीबी माना जाता था, भी जनवरी 2020 में सपा में शामिल हो गए थे.

सपा के एक पदाधिकारी का दावा है कि पिछले डेढ़ साल के दौरान बसपा के 50 प्रतिशत से अधिक विधायकों और 25 प्रतिशत क्षेत्रीय समन्वयकों और जिलाध्यक्षों ने अपनी निष्ठा बदली है.

उनका यह भी दावा है कि आने वाले विधानसभा चुनाव में अगर बसपा के आधे समर्थक सपा को वोट दे दें तो आश्चर्य की कोई बात नहीं होगी.

पाला बदलने के कारण

हाल के वर्षों में पाला बदलने वाले अधिकांश बसपा विधायक 2022 के यूपी विधानसभा चुनावों को एक ‘द्विध्रुवीय’ मुकाबला मान रहे हैं और इसे सपा और भाजपा के बीच सीधी लड़ाई करार दे रहे हैं, और उन्हें लगता है कि बसपा के अच्छा प्रदर्शन करने की संभावना बहुत कम है.

वे बसपा पदाधिकारियों पर पार्टी फंड के नाम पर चंदे की बहुत ज्यादा राशि मांगने का आरोप भी लगा रहे हैं.

प्रयागराज के बसपा विधायक हकीम लाल बिंद, जो अक्टूबर में सपा में शामिल हो गए थे, ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा कि सपा में शामिल होने का मूल कारण तो यह है कि बसपा ‘बहुजन आंदोलन’ के अपने आदर्शों को भूल गई है.

बिंद ने बताया, ‘बसपा में शीर्ष पदों पर बैठे पार्टी के क्षेत्रीय समन्वयक हम विधायकों से चंदे के नाम पर अच्छी-खासी रकम मांग रहे थे. हमारे पास देने के लिए इतने पैसे नहीं हैं. वे अकारण ही बार-बार चंदा क्यों मांगते हैं?’

उन्होंने कहा, ‘समाजवादी पार्टी में शामिल होने का एक और कारण यह भी है कि मेरी विचारधारा भाजपा के बजाय सपा से ज्यादा मेल खाती है. मैं गरीबों और निम्न मध्यम वर्ग के लिए संघर्ष करता रहा हूं. मेरे समर्थकों के लिए भाजपा बिजनेस क्लास और कॉरपोरेट लोगों की पार्टी है… इसलिए मैं सपा को एक बेहतर विकल्प के तौर पर देखता हूं. सपा ने मुझे न केवल काम करने के लिए जगह दी है और बल्कि वो सम्मान भी दिया जिसका मैं हकदार हूं.’

सीतापुर के सिधौली से बसपा के एक अन्य विधायक हरगोविंद भार्गव, जो अक्टूबर में बिंद के साथ ही सपा में शामिल हुए थे, ने कहा कि वह कभी बहुजन आंदोलन का हिस्सा रहे थे.

भार्गव ने कहा, ‘मैं 1998 में बसपा में शामिल हुआ था. अब यह अपने रास्ते से भटक गई है. हमारा मकसद भाजपा को हराना था लेकिन बसपा तो भाजपा की ही बी टीम बन गई है. मैं ऐसे माहौल में काम नहीं कर सकता. हमारी राजनीति भाजपा विरोधी है और समाजवादी पार्टी एकमात्र विकल्प नजर आती है जो भाजपा को हरा सकती है. मुझे अपने भविष्य के लिए यह पार्टी अधिक उपयुक्त लगती है, इसलिए मैं इसमें शामिल हो गया.’

जल्द ही सपा का दामन थामने की तैयारी में जुटे बसपा के एक पूर्व विधायक ने कहा, ‘यह चुनाव एक सीधी टक्कर वाला होगा और स्पष्ट तौर मुकाबला सपा बनाम भाजपा है. कुछ सीटों को छोड़ दें तो 2022 की लड़ाई में बसपा कहीं नहीं है. यही नहीं यह ‘वोट तो काट’ सकती है, लेकिन कहीं भी प्रमुख खिलाड़ी नहीं बन सकती.’

उन्होंने आगे कहा, ‘पार्टी के मौजूदा विधायक इस बात को समझ रहे हैं और इसीलिए उन्होंने अन्य विकल्प तलाशने शुरू कर दिए हैं. यही नहीं, अखिलेश यादव उन्हें पूरा सम्मान भी दे रहे हैं. मैंने सुना है कि उनमें से कई नेताओं को विधानसभा चुनावों में टिकट का वादा किया गया है.’

बसपा का क्या कहना है

हालांकि, बसपा के वरिष्ठ नेताओं ने कहा कि जिन लोगों ने पार्टी छोड़ी है, उनमें से ज्यादातर को हाल के वर्षों में पार्टी से निष्कासित किया जा चुका है.

बसपा के राष्ट्रीय महासचिव सतीश मिश्रा ने पूर्व में दिप्रिंट से कहा था, ‘हमारे लिए पार्टी ही सर्वोपरि है. यहां कोई व्यक्ति बड़ा नहीं, पार्टी बड़ी है. जो लोग जा रहे हैं उन्हें वास्तव में पार्टी विरोधी गतिविधियों के कारण निष्कासित किया जा चुका है.’

बसपा के एक अन्य पदाधिकारी ने कहा, ‘पार्टी छोड़ने वाले विधायकों ने पार्टी के चुनाव चिन्ह के कारण ही पिछला चुनाव जीता था. तकनीकी रूप से वे अभी बसपा विधायक हैं. उन्हें अभी तक विधानसभा सदस्यता से अयोग्य घोषित नहीं किया है. उन्हें पार्टी से निकाला जा चुका है.’

उन्होंने कहा, ‘आगामी चुनाव में अगर वे दूसरे चुनाव चिह्न पर मैदान में उतरे तो न तो हमारे कार्यकर्ता और न ही सपा कार्यकर्ता उनका समर्थन करेंगे, क्योंकि अगर उन्हें टिकट मिलता है, तो यह किसी सपा नेता की कीमत पर ही मिलेगा. अगर ऐसा होता है तो सपा समर्थक बाहरी लोगों का समर्थन नहीं करेंगे.’


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‘भाजपा में भी जा रहे बसपा नेता’

समाजवादी पार्टी के इस तर्क पर भाजपा भी सहमति जताती है कि बसपा ने उत्तर प्रदेश में अपनी प्रासंगिकता खो दी है.

उत्तर प्रदेश भाजपा प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी का कहना है, ‘जातिवादी राजनीति पर ही ध्यान केंद्रित करने के कारण बसपा ने अपनी प्रासंगिकता खो दी है.’

हालांकि, उन्होंने इस बात से इनकार किया कि बसपा के बागियों को केवल सपा का साथ रास आ रहा है. और इस बात को रेखांकित किया कि स्वामी प्रसाद मौर्य, ब्रजेश पाठक और अन्य वरिष्ठ बसपा नेता 2017 के चुनावों से पहले बसपा से भाजपा में चले आए थे. उन्होंने दावा किया कि कई और नेता चुनाव बाद पार्टी में शामिल हुए.

यूपी के राजनीतिक विश्लेषक प्रो. बद्री नारायण का कहना है, ‘बसपा नेता केंद्रित पार्टी नहीं है बल्कि यह अपने ‘कोर वोट बैंक’ पर निर्भर पार्टी है. कांशीराम की तरह ही मायावती भी कहती रही हैं, ‘नेता आते-जाते रहते हैं हमें कोई फर्क नहीं पड़ता…जनता हमारे साथ है.’ लेकिन मुझे लगता है कि अगर इसका आधार वोट इसके साथ बना रहता है, खासकर जाटव, तो अभी भी इन्हें कुछ सीटें मिल सकती हैं.’

बद्री नारायण कहते हैं, ‘रही बात बसपा के ज्यादातर बागियों के सपा में शामिल होने की तो मुझे लगता है कि इसकी एक बड़ी वजह तो यह है कि सपा उन्हें कुछ हद तक ‘समान विचारधारा’ वाली लगती है. दूसरे, भाजपा की तुलना में दूसरी पार्टी से आए लोगों को उचित जगह मिलने की गुंजाइश ज्यादा है.

बसपा छोड़ने का सिलसिला जारी

बसपा के 18 विधायकों में से आठ पिछले एक साल के दौरान समाजवादी पार्टी में शामिल हो चुके हैं. असलम चौधरी, हरगोविंद भार्गव, मोहम्मद मुजतबा सिद्दीकी, हकीम लाल बिंद, लालजी वर्मा, राम अचल राजभर, मोहम्मद असलम और सुषमा पटेल उन नेताओं में शामिल हैं, जो अधिकृत तौर पर समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए हैं. रविवार को एक और विधायक विनय शंकर तिवारी भी सपा में शामिल हो चुके हैं और बसपा सूत्रों की मानें तो एक और विधायक शाह आलम के भी इसी राह पर चलने के आसार हैं.

वर्मा और राजभर को जून 2021 में ‘पार्टी विरोधी गतिविधियों’ के कारण पार्टी से निकाल दिया गया था.

दूसरी तरफ, आजमगढ़ जिले की सागरी सीट से बसपा विधायक बंदना सिंह पिछले महीने भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गई थीं. सूत्रों ने बताया कि हाथरस जिले की सादाबाद सीट से बसपा विधायक रामवीर उपाध्याय और उन्नाव जिले की पुरवा सीट से पार्टी के विधायक अनिल सिंह भी जल्द ही भाजपा में शामिल हो सकते हैं.

दीदारगंज (आजमगढ़) से बसपा के विधायक सुखदेव राजभर का पिछले महीने निधन हो गया था, और मायावती ने सितंबर में तय किया था कि वह मऊ से अपने विधायक और जेल में बंद गैंगस्टर से नेता बने मुख्तार अंसारी को विधानसभा चुनाव में टिकट नहीं देंगी.

बसपा ने हाल ही में रसाला (बलिया) सीट से अपने विधायक उमा शंकर सिंह को विधानसभा में अपनी पार्टी का नेता बनाया है.

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