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अमित शाह के नेतृत्व वाली भाजपा में आरएसएस प्रतिनिधि की भूमिका को नया रूप दे रहे हैं बीएल संतोष

बीएल संतोष के नाम से लोकप्रिय बोम्माराबेट्टु लक्ष्मीजनार्दन संतोष को पिछले साल जुलाई में भाजपा का राष्ट्रीय महासचिव (संगठन) बनाया गया था.

बीएल संतोष | @blsanthosh | Twitter

बेंगलुरु: भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव बीएल संतोष, उनके सहकर्मियों के अनुसार, इतने बड़े देशभक्त हैं कि उन्होंने शाहरुख ख़ान की फिल्म ‘चक दे इंडिया’ ‘कम से कम 10 बार’ देखी है.

जब एक सहकर्मी ने संतोष से पूछा कि उन्हें महिलाओं की हॉकी टीम और उनके कोच पर आधारित उपेक्षितों की जीत वाली एक फिल्म में क्या खास नज़र आया, तो बताते हैं उन्होंने कहा कि फिल्म का हर दृश्य उन्हें प्रेरित करता है. उन्होंने कथित तौर पर दावा किया कि फिल्म का हर दृश्य ‘मेरे अंदर के देशभक्त को बाहर लाता है’.

आरएसएस के सदस्य संतोष वर्तमान में भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव (संगठन) हैं. यह पद आरएसएस के वरिष्ठ प्रचारकों को दिया जाता है. इस पर पदासीन व्यक्ति को बेहद प्रभावशाली माना जाता है क्योंकि वह भाजपा और उसकी पितृ संस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के बीच सेतु का काम करता है.

उनके पूर्ववर्तियों को आमतौर पर पृष्ठभूमि में रहकर काम करने और प्रचार से दूर रहने वाले पदाधिकारियों के रूप में जाना जाता था, लेकिन संतोष नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) और जेएनयू में पिछले सप्ताह की हिंसा जैसे मुद्दों को लेकर सोशल मीडिया पर मुखर रहने के कारण इस पद को नया रूप देते दिखते हैं.

भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के संरक्षण में वह पार्टी के शीर्ष रणनीतिकारों में भी शुमार किए जाते हैं.

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बीएल संतोष के नाम से प्रसिद्ध बोम्माराबेट्टु लक्ष्मीजनार्दन संतोष को पिछले साल जुलाई में भाजपा का राष्ट्रीय महासचिव (संगठन) बनाया गया था. उन्होंने रामलाल की जगह ली जोकि 13 वर्षों से पदासीन थे.

भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘रामलाल जी बिल्कुल अलग तरह के थे. वह चुपचाप और प्रभावी तरीके से काम करते थे, पर संतोषजी ने इस पद के लिए एक नया मानदंड स्थापित किया है.’


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भाजपा नेता ने आगे कहा, ‘उनको पहले ही भाजपा के कार्यकारी अध्यक्ष जेपी नड्डा के बराबर की हैसियत का माना जाने लगा है, जोकि शाह के बाद भाजपा में दूसरे नंबर पर हैं.’

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उन्हें करीब से जानने वाले भाजपा पदाधिकारियों का कहना है कि संतोष अपनी राय को लेकर हमेशा मुखर रहे हैं, पर अब वह विभिन्न मुद्दों पर पार्टी के रुख को सामने रखने के लिए सोशल मीडिया का भी इस्तेमाल कर रहे हैं.

‘प्रतिभा के पारखी’

भाजपा ने जब 2008 में कर्नाटक में सत्ता हासिल कर दक्षिण भारत में अपनी पहली सरकार बनाई थी तो इसका श्रेय सिर्फ मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा को ही नहीं, बल्कि कर्नाटक से ही संबंध रखने वाले संतोष को भी मिला था.

संतोष के साथ काम कर चुके लोगों उनके प्रमुख गुणों में कैडर तैयार करने की उनकी क्षमता, ज़मीन से जुड़े रहने तथा आरएसएस की विचारधारा के प्रति समर्पित रहने के साथ-साथ भाजपा के भविष्य का खाका खींचने का जिक्र करते हैं.

हाल के दिनों में संतोष भाजपा के लिए प्रतिभाओं को ढूंढने वाले एक कुशल पदाधिकारी बन गए हैं. वह युवा और आक्रामक नेताओं को बड़ी भूमिकाओं के लिए चुनते और तैयार करते हैं. मौजूदा लोकसभा के सबसे युवा भाजपा सांसद तेजस्वी सूर्या भी उन्हीं की खोज हैं.

पार्टी में उनका प्रभाव इतना अधिक है कि 2019 के लोकसभा चुनावों के लिए उम्मीदवारों के चयन के दौरान उन्होंने बेंगलुरु दक्षिण सीट के लिए वहां से छह बार सांसद रहे अनंत कुमार की विधवा तेजस्वनी – येदियुरप्पा की पसंद – की जगह युवा वकील सूर्या को टिकट देने पर पार्टी को सहमत कर लिया.

सूर्या ने ना सिर्फ सीट जीती बल्कि उहोंने अपने प्रतिद्वंद्वी वरिष्ठ कांग्रेस नेता बीके हरिप्रसाद को 3.3 लाख मतों के अंतर से पराजित किया.

‘अनेक नेताओं के मार्गदर्शक’

संतोष के साथ करीब एक दशक से काम कर रहे एक आरएसएस कार्यकर्ता ने कहा कि वह युवा कार्यकर्ताओं को पार्टी की विचारधारा समझाने और उन्हें देश में एक मज़बूत आधार तैयार करने के लिए प्रेरित करने में सफल रहे हैं.

मैसूर के सांसद प्रताप सिम्हा भी संतोष के मार्गदर्शन में आगे बढ़ने वाले युवा भाजपा नेताओं में से हैं. पूर्व पत्रकार सिम्हा दूसरी बार सांसद बने हैं. उन्होंने कहा, ‘किसी ने कल्पना भी की होगी कि 28 वर्षीय तेजस्वी सूर्या या फिर मेरे जैसा पत्रकार इतनी कम उम्र में सांसद बनेगा?’


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संतोष के मार्गदर्शन में प्रशिक्षण के बारे में उन्होंने कहा, ‘कभी भी वह अपनी सोच जाहिर नहीं करते हैं, पर वह चुपचाप आपके कार्यों पर नज़र रखते हैं और पहले से बड़ी जिम्मेदारी सौंप कर आपका हौसला बढ़ाते हैं. आपमें भरोसा जताने का उनका यही तरीका है.’

कर्नाटक भाजपा युवा मोर्चा के उपाध्यक्ष विनोद कृष्णमूर्ति के अनुसार संतोष में ‘मेहनती कार्यकर्ताओं की प्रतिभा को पहचानने की क्षमता है और वह उन्हें विश्वस्तरीय नेता बनाने के लिए अपने संरक्षण में ले लेते हैं.’

भाजपा के एक अन्य युवा नेता और वर्तमान में कर्नाटक के संस्कृति और पर्यटन मंत्री सीटी रवि ने कहा, ‘उनका मेरे ऊपर भी बड़ा प्रभाव है. उन्होंने ना सिर्फ मुझे बड़ी राष्ट्रीय जिम्मेदारियां उठाने के लिए प्रोत्साहित किया बल्कि मुझे अपना कौशल बढ़ाने के वास्ते हिंदी और अंग्रेज़ी जैसी भाषाएं सीखने के लिए भी प्रेरित किया, ताकि मैं पार्टी नेतृत्व और आमलोगों से ज़्यादा प्रभावी ढंग से संवाद कर सकूं.’

रवि ने भी प्रतिभा ढूंढने और संगठनात्मक कौशल को संतोष की सबसे बड़ी ताकत बताया.

बेंगलुरु स्थित आरएसएस के एक पदाधिकारी ने अपना नाम प्रकाशित नहीं किए जाने की शर्त पर कहा, ‘वह विश्वस्तरीय नेता की पहचान और निर्माण करने वाले चाणक्य हैं. कुछ ही मिनटों में ही वह आपकी खूबियों और खामियों की पहचान कर सकते हैं. वह मौके पर ही आपको बता सकते हैं कि अपनी खूबियों के अनुरूप आप संगठन में कैसे योगदान दे सकते हैं, और फिर वह आपका मार्गदर्शन करेंगे, आपकी देखभाल करेंगे, आपको डांटेंगे और आपके बेहतरीन गुणों को उभारेंगे.’

आरएसएस के मंगलुरु प्रचार प्रमुख सुनील कुलकर्णी 1994 से ही संतोष के सहयोगी रहे हैं. वह संतोष को एक ‘दूरदर्शी’ बताते हैं. उन्होंने कहा, ‘हमने देखा है कि कैसे वह जान जाते हैं कि व्यक्ति विशेष किसी जिम्मेदारी को कैसे निभा सकता है और उस पर खरा भी उतर सकता है. यह एक दुर्लभ प्रतिभा है.’

सिम्हा के अनुसार, आरएसएस और भाजपा दोनों ही उथल-पुथल के दौर में कुनबे को एकजुट रखने की संतोष की क्षमता को स्वीकार करते हैं. ऐसा एक दौर 2012 में आया था जब येदियुरप्पा ने पार्टी छोड़कर कुछ समय के लिए अपना खुद का दल कर्नाटक जनता पक्ष बना लिया था (जो 2014 में भाजपा में मिल गया).

कहा जाता है कि उस समय संतोष ने भाजपा के वरिष्ठ नेताओं को येदियुरप्पा के पाले में नहीं जाने के लिए राज़ी करने, और इसके बजाय मतभेदों को दूर करने और असंतुष्ट सदस्यों को वापस पार्टी में लाने हेतु अधिक मेहनत करने के लिए प्रेरित करने में अहम भूमिका निभाई थी.

माना जाता है कि एक समय ऐसा भी आया था जब वह कर्नाटक का मुख्यमंत्री बनने का सपना पाल रहे थे, पर आरएसएस ने मौजूदा पद पर नियुक्त करते हुए उनकी महत्वाकांक्षा पर लगाम लगा दी.

आरएसएस के अंदरूनी सूत्रों के अनुसार संतोष को पूर्ण भरोसा है कि उनका हर काम देश के भले के लिए होता है, और उन्हें अपने विचारों और कार्यों को प्रभावित करने की कोशिशें नापसंद हैं.


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बेंगलुरु में आरएसएस की शाखा के एक सूत्र ने कहा, ‘प्रभावित करने की कोशिश और प्रतिभा के अभाव को वह बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करते हैं. उन्हें ऐसे लोग भी नापसंद हैं जोकि आरएसएस की विचारधारा के खिलाफ जाते हों, खास कर राजनीतिक फायदे के लिए.’

कन्नड़, तमिल, तेलुगु, हिंदी, तेलुगु, मलयालम और अंग्रेज़ी जैसी विभिन्न भाषाओं में दक्षता के कारण वह देश भर के कार्यकर्ताओं के बीच लोकप्रिय हैं.

कुलकर्णी ने कहा, ‘उनके बारे में मुझे सर्वाधिक अच्छी बात ये लगती है कि बाहर से भले ही वो सख्त दिखें, पर हैं एक नरमदिल इंसान.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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