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‘RRR’ के नायक, ‘भगत आंदोलन’ के अगुआ—मोदी ने स्वतंत्रता दिवस संबोधन में आदिवासी नेताओं का किया जिक्र

आदिवासी मतदाताओं को लुभाने की भाजपा की कोशिशों के बीच प्रधानमंत्री मोदी ने स्वतंत्रता दिवस के मौके पर अपने भाषण के दौरान आजादी के आंदोलनों में हिस्सा लेने वाले कई आदिवासी नेताओं की भूमिका की सराहना की.

76वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर पीएम नरेंद्र मोदी ने देश को संबोधित किया | ANI

नई दिल्ली: एस.एस. राजामौली की ब्लॉकबस्टर तेलुगु फिल्म आरआरआर आंध्र प्रदेश के जिस आदिवासी नायक अल्लूरी सीताराम राजू पर केंद्रित हैं, उनका जिक्र इस वर्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस के मौके पर अपने संबोधन में किया.

मोदी ने जुलाई में आंध्र प्रदेश के भीमावरम में राजू की 30 फीट की प्रतिमा का अनावरण किया था जिन्हें अक्सर ‘मन्यम वीरुडु’ या ‘जंगलों का नायक’ कहा जाता है.

मोदी ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस, भगत सिंह और सरदार वल्लभभाई पटेल जैसे ख्यात स्वतंत्रता सेनानियों के साथ राजू और अन्य आदिवासी नेताओं के नामों का भी उल्लेख किया.

15 अगस्त पर लाल किले की प्राचीर से अपने संबोधन में मोदी ने कहा, ‘जब हम स्वतंत्रता संग्राम की बात करते हैं तो आदिवासी समुदाय को नहीं भूल सकते. भगवान बिरसा मुंडा, सिद्धू-कान्हू, अल्लूरी सीताराम राजू, गोविंद गुरु—ऐसे असंख्य नाम हैं जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की आवाज बने और आदिवासी समुदाय को मातृभूमि के लिए जीने-मरने के लिए प्रेरित किया.’

प्रधानमंत्री ने यह बात ऐसे समय कही है जब भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पूरी आक्रामक रणनीति के साथ आदिवासी समुदाय के बीच पैठ बनाने में जुटी है. पार्टी ने आदिवासी समुदाय की द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार बनाया था और 25 जुलाई को उन्होंने 15वें राष्ट्रपति के तौर पर शपथ ली—देश के सर्वोच्च पद पर आसीन होने वाली वह पहली आदिवासी और दूसरी महिला हैं.

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उनके नामांकन को गुजरात, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान में आदिवासी मतदाताओं को लुभाने के भाजपा की रणनीति के तौर पर देखा गया जो खासी आदिवासी आबादी वाले राज्य हैं.

इन चारों राज्यों में अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए कुल 128 सीटें आरक्षित हैं—इनमें गुजरात में 27, राजस्थान में 25, छत्तीसगढ़ में 29 और मध्य प्रदेश में 47 सीटें आरक्षित हैं. पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा इनमें से सिर्फ 35 सीटों पर ही जीत हासिल कर पाई थी.

पिछले महीने हैदराबाद में राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के दौरान प्रधानमंत्री ने मुर्मू के लिए समर्थन जुटाने के उद्देश्य से पार्टी पदाधिकारियों को देशभर के आदिवासी गांवों में बैठकें करने और आदिवासी समुदायों तक पहुंच बढ़ाने को कहा था.

इस बीच, झारखंड में जब झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) नेता और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रहे हैं, भाजपा इस राज्य में अपना खोया जनाधार हासिल करने की कोशिश में भी लगी है.

मोदी के संबोधन के दौरान आए जिक्र के मद्देनजर दिप्रिंट ने उन विभिन्न आदिवासी नेताओं की विरासत और आज की राजनीति में उनकी प्रासंगिकता पर एक नजर डाली.


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आजादी के नायकों को नमन

अल्लूरी सीताराम राजू 19वीं शताब्दी के एक स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ छापामार आंदोलन की अगुआई की. जून में गृह मंत्री अमित शाह ने रामजी गौर और कुमारम भीम के साथ राजू का जिक्र उन प्रमुख नेताओं के तौर पर किया, जो आंध्र प्रदेश में निजामों के खिलाफ खड़े थे.

राजू ने 1922 में अंग्रेजों के खिलाफ एक आदिवासी विद्रोह ‘रम्पा’ या ‘मन्यम’ विद्रोह का नेतृत्व किया था, जो मई 1924 तक जारी रहा जब राजू को पकड़ लिया गया और उन्हें फांसी दे दी गई.

राजू वास्तविक जीवन के उन नायकों में से एक है जिन्हें राजामौली ने अपनी एक्शन-ड्रामा फिल्म आरआरआर (2022) का केंद्र बनाया था.

वहीं, सिद्धू-कान्हू भाई उसी मुर्मू जनजाति से आते हैं जिससे राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू आती हैं. संथाल विद्रोह के नायक रहे मुर्मू भाइयों ने 1857 के सिपाही विद्रोह से पहले, 1855-56 में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह के लिए तीर-धनुष से लैस 10 हजार से अधिक संथालों को लामबंद किया था.

भले ही अतीत में कई सरकारों ने संथाल नायकों को मान्यता दी लेकिन 2002 में उनके नाम पर एक डाक टिकट जारी किया गया और उनकी स्मृति में रांची में एक पार्क और विश्वविद्यालय बनाया गया. यह पहला मौका है जब प्रधानमंत्री के संबोधन में उनका उल्लेख आया.

पिछले कुछ वर्षों के दौरान पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी सहित कई अन्य राजनेताओं ने क्रांतिकारियों की सराहना की है.

भारतीय जनता युवा मोर्चा के अध्यक्ष और सांसद तेजस्वी सूर्या के ट्विटर थ्रेड में झारखंड के गुमनाम नायकों के योगदान को याद करते हुए भी मुर्मू बंधुओं का जिक्र आया.

मोदी ने अपने भाषण में झारखंड के एक ख्यात नायक भगवान बिरसा मुंडा का उल्लेख किया. 2021 में, उनके सम्मान में पीएम ने रांची में एक संग्रहालय का उद्घाटन किया था. भाजपा सरकार ने अपने आदिवासी आउटरीच प्रोग्राम के तहत आदिवासी स्वतंत्रता सेनानियों के योगदान की स्मृति में पिछले साल 15 नवंबर को बिरसा मुंडा की जयंती को ‘जनजातीय गौरव दिवस’ घोषित किया था.

मोदी ने अपने 2016 के स्वतंत्रता दिवस भाषण में भी बिरसा मुंडा का जिक्र किया था. उन्होंने कहा था, ‘…हमारे स्वतंत्रता संग्राम में जंगलों में रहने वाले हमारे आदिवासियों का अतुलनीय योगदान रहा है. वे जंगलों में रहते थे. हमने बिरसा मुंडा के बारे में सुना होगा, लेकिन शायद ही कोई आदिवासी जिला होगा जिसने 1857 से आजादी मिलने तक बलिदान नहीं दिया हो.’

मुंडा ने एक मिशनरी विरोधी और साम्राज्यवाद विरोधी के तौर पर आदिवासियों को अंग्रेजों के खिलाफ लामबंद किया और ईसाई मिशनरियों की धर्मांतरण गतिविधियों को लक्षित करते हुए अपना धर्म ‘बिरसैत’ शुरू किया. 1900 में, उन्हें ब्रिटिश सेना ने गिरफ्तार कर लिया और जेल में ही उनकी मृत्यु हो गई.

गोविंद गुरु गुजरात और राजस्थान के आदिवासी समुदायों के बीच खासी अहमियत रखने वाले भील नेता थे. वह भगत आंदोलन के अग्रणी थे जो एक सामाजिक धार्मिक आंदोलन था जिसने भील समुदाय को अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह के लिए प्रेरित किया.

आदिवासियों के सामाजिक-सांस्कृतिक जीवन पर इस भील नेता का काफी प्रभाव था. दयानंद सरस्वती जैसे आध्यात्मिक नेताओं से प्रभावित उनके भगत आंदोलन के दौरान भीलों को शाकाहार का पालन करने और पशु बलि, शराब समेत अन्य नशीले पदार्थों से दूरी बनाने के लिए प्रेरित किया गया. आंदोलन ने बाद में राजनीतिक रंग ले लिया और अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह का बिगुल फूंक दिया गया.

इस आंदोलन का केंद्र भीलों की सघन आबादी वाले डूंगरपुर और बांसवाड़ा थे. उनकी मुख्य नाराजगी उस समय ब्रिटिश राज के दौरान रियासतों की तरफ से लागू बंधुआ मजदूरी व्यवस्था के खिलाफ थी.

इतिहासकारों के मुताबिक, 1913 में गोविंद गुरु अपने 1,500 अनुयायियों के साथ मानगढ़ पहुंचे थे और एक नरसंहार में अंग्रेजों के हाथों मारे गए.

2012 में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री मोदी ने उनके सम्मान में एक ‘स्मृति वन’ समर्पित किया था.

बिरसा मुंडा के अलावा रानी गैदिनल्यू एक एक और नेता हैं जिनका जिक्र मोदी के स्वतंत्रता दिवस भाषणों में दो बार आया है. अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह करने वाली मणिपुर में जन्मी रोंगमेई जनजाति की नगा नेता को आजीवन कारावास की सजा दी गई थी और 1947 में 14 साल बाद रिहा किया गया.

वह 13 साल की उम्र में स्वतंत्रता सेनानी और धार्मिक नेता हाइपौ जादोनांग के साथ जुड़ी थीं, जिन्होंने एक स्वतंत्र नगा साम्राज्य की कल्पना की और इसे हासिल करने के लिए हेराका धार्मिक आंदोलन शुरू किया. जादोनांग को फांसी होने के बाद गैदिनल्यू ने आंदोलन की कमान संभाली.

2021 में अमित शाह ने मणिपुर के तामेंगलोंग जिले में ‘रानी गैदिनल्यू ट्राइबल फ्रीडम फाइटर्स म्यूज़ियम’ की आधारशिला रखी और उन्हें ‘वीरता और साहस का प्रतीक’ बताया.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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