होम राजनीति तेजस्वी की राजनीतिक शैली आरजेडी के करीबियों को दूर कर रही है

तेजस्वी की राजनीतिक शैली आरजेडी के करीबियों को दूर कर रही है

29 वर्षीय तेजस्वी यादव उन तमाम मौकों को भुना नहीं पाए, जब वो नीतीश सरकार को घेर सकते थे. चाहे वो पिछले महीने पटना में आई बाढ़ हो या इसी साल चमकी बुखार हो.

राजद नेता तेजस्वी प्रसाद यादव | पीटीआई

पटना: लालू प्रसाद यादव के जेल जाने के बाद उनके वारिस और बिहार के पूर्व उप-मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ही राष्ट्रीय जनता दल (राजद) का नेतृत्व कर रहे हैं. लेकिन अब पार्टी के भीतर ही वो अलग-थलग पड़ते दिख रहे हैं.

29 वर्षीय नेता उन तमाम मौकों को भुना नहीं पाए जब वो नीतीश सरकार को घेर सकते थे. चाहे वो पिछले महीने पटना में आई बाढ़ हो या इसी साल चमकी बुखार हो.

उनके काम करने के तौर-तरीकों ने राजद के पुराने नेताओं को नाखुश किया है. खासकर उन नेताओं को भी जो लालू प्रसाद के बुरे दिनों में भी उनके साथ खड़े रहे थे.

उदाहरण के तौर पर मंगलवार को शिवानंद तिवारी ने राजनीति से छुट्टी लेने का एलान किया था. तिवारी का कहना है कि वो काफी थक चुके हैं. इसलिए राजनीति से संन्यास ले रहे हैं.

शिवानंद तिवारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘मैं पिछले 53 सालों से बिहार की राजनीति में हूं. राजनीतिक गतिविधियों के लिए पुलिस ने मुझे 1965 में गिरफ्तार किया था. अब में थका हुआ महसूस कर रहा हूं – शारीरिक रूप से कम और मानसिक रूप से ज्यादा. पार्टी के भीतर भी स्थिति पहले जैसी नहीं है.’

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तिवारी ने कहा कि वो अब राजनीति के अलावा कुछ लिखने की कोशिश करेंगे.

वरिष्ठ नेता खुद को अलग-थलग महसूस कर रहे हैं

तिवारी का राजनीति से संन्यास लेना राजद के लिए बुरी खबर है. तिवारी नीतीश कुमार और जदयू-भाजपा गठबंधन के आलोचक रहे हैं. तिवारी राजद के किसी भी अन्य नेता के मुकाबले मीडिया में काफी एक्टिव रहते थे.

राजद के एक विधायक ने कहा, ‘शिवानंद जी का राजनीति छोड़ना उन बातों की तरफ इशारा करता है कि पार्टी को निराशा ने जकड़ लिया है और राजनीति की तरफ पार्टी के नेता तेजस्वी यादव का नजरिया भी ठीक नहीं लग रहा.’


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विधायक ने कहा, ‘शिवानंद जी ने तेजस्वी को सलाह दी थी कि कुछ रैलियों से इतर सड़क पर उतरकर राजनीति की जाए. लेकिन, उन्होंने इस सलाह को नजरअंदाज कर दिया. विधायक 21 अक्टूबर को 4 विधानसभा और 1 लोकसभा सीट के लिए प्रचार के बारे में बात कर रहे हैं.

सूत्रों का कहना है कि तिवारी के अलावा पार्टी के वरिष्ठ नेता अब्दुल बारी सिद्दकी और रघुवंश प्रसाद सिंह भी पार्टी में अब जरूरी नहीं रह गए हैं.

सूत्रों का दावा है कि पिछले महीने पटना में आई बाढ़ जैसी स्थिति में सिद्दकी ने तेजस्वी को जलजमाव वाले क्षेत्रों में जाने को कहा था. लेकिन, उन्होंने कुछ प्रतिक्रिया नहीं दी.

राजद के पूर्व मंत्री ने कहा, ‘जब तेजस्वी को पटना में होना चाहिए था तब वो गोवा में थे.’ उन्होंने कहा, ‘2020 के विधानसभा चुनावों में हो सकता है कि पटना की जनता भाजपा को वोट दें. लेकिन उन्हें पटना के लोगों का दिल जीतना पड़ेगा. ट्विटर पर हमला करने से कुछ नहीं होगा.’

इसी महीने हुए उपचनावों ने दिखा दिया कि बिहार में महागठबंधन में टूट होने लगी है. फिलहाल महागठबंधन में कांग्रेस, राजद, हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम), विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) और राष्ट्रीय समता पार्टी शामिल है.

उपचुनावों की दो सीटों पर हम और वीआईपी ने राजद के खिलाफ अपने उम्मीदवार को उतारा था.

वरिष्ठ राजद नेता रघुवंश प्रसाद सिंह ने दोनों पार्टियों की राजद में मिल जाने का प्रस्ताव दिया था. लेकिन इस पर तेजस्वी यादव ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी.

राजद विधायक ने कहा, ‘तेजस्वी ने दोनों पार्टियों से फोन करके यह भी नहीं कहा कि वो अपने उम्मीदवारों को हटा लें.’

यह दूसरी बार है जब रघुवंश प्रसाद की बात को अस्वीकार किया गया है. इससे पहले सिंह ने महागठबंधन में नीतीश कुमार को फिर से शामिल करने के बात कही थी, लेकिन तेजस्वी ने इसपर कोई ध्यान नहीं दिया.

रघुवंश प्रसाद राजद के सबसे बुलंद स्वरों में माने जाते हैं लेकिन इसके बाद से वो शांत हैं.

कांग्रेस भी नाखुश

समस्तीपुर लोकसभा सीट पर हो रहे उपचुनाव में तेजस्वी यादव के प्रचार न करने के बाद से कांग्रेस भी उनसे नाखुश है. इस सीट पर पार्टी के उम्मीदवार अशोक राम के खिलाफ केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के भतीजे प्रिंस राज मैदान में थे.

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘पार्टी ने 18 अक्टूबर को हुई रैली के लिए स्टेज और भीड़ तैयार कर लिया था. लेकिन अशोक राम ने तेजस्वी यादव के रैली में न आने के बाद काफी गुस्सा हो गए. उनकी अनुपस्थिति ने राजद के कई नेताओं के मन में उनकी राजनीति के प्रति गंभीरता को लेकर सवाल खड़े कर दिए हैं.’


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तेजस्वी यादव चुनाव प्रचार के आखिरी दिन 19 अक्टूबर को समस्तीपुर गए थे.

राजद के साथ मुस्लिम-यादव वोट हैं, जो बिहार के कुल वोटों का 30 प्रतिशत है. लेकिन, पार्टी में नेतृत्व की कमी काफी चिंताजनक है.

तेजस्वी यादव ने अपने को पहुंच से बाहर के नेता के तौर पर पेश किया है. पार्टी की लोकसभा चुनावों में बुरी तरह हार के बाद तेजस्वी यादव बिहार की राजनीति से 50 दिनों तक गायब थे. चमकी बुखार के फैलने के बाद उनके पास अच्छा मौका था जिसका फायदा उठाकर वो नीतीश सरकार को घेर सकते थे लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया.

पार्टी के नेता इस बात से नाखुश हैं कि वो दूसरे समुदायों को जोड़ने की कोशिश नहीं कर रहे हैं और वो पहुंच से बाहर हैं.

लोगों का कहना है कि वो लालू प्रसाद से काफी अलग हैं. लालू के इर्द-गिर्द सभी जाति और समुदायों के लोग रहते थे और वो हमेशा लोगों की पहुंच में थे.

यही नतीजा है कि काफी सारे लोग राजद छोड़ कर जा रहे हैं.

राजद के एक विधायक ने कहा, ‘अमित शाह ने तेजस्वी यादव से आश्वासन ले लिया है कि 2020 के विधानसभा चुनावों में नीतीश कुमार ही एनडीए के नेता होंगे. इसके लिए वो विधायकों को राजद से भाजपा और जदयू में शामिल नहीं करेंगे.’

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