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सियासत में सबके अपने-अपने राम

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आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत. फाइल फोटो/पीटीआई

धर्म भले ही निजी आस्था का विषय हो, लेकिन भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में लगातार धर्म पर सियासत होती रही है.

चुनावों के पहले राम मंदिर निर्माण को लेकर स्वर मुखर हो रहे हैं. ये इक्का दुक्का आवाज़ें नहीं हैं, बल्कि सोची समझी रणनीति के तहत हो रहा है.

धर्म भले ही निजी आस्था का विषय हो, जिस पर भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में राजनीति नहीं होनी चाहिए, लेकिन धर्म के नाम पर लगातार सियासत होती रही है.

कभी टोपी तो कभी जनेऊ. कभी शिव तो कभी राम. कभी दुर्गा पूजा तो कभी मुहर्रम, मौके-बेमौके भारतीय राजनीति में धर्म का तड़का लगता रहता है.

2019 में चुनाव है और हाल के दिनों में अयोध्या में श्रीराम मंदिर निर्माण को लेकर मांग मुखर होती जा रही है. और ये मांग भारतीय जनता पार्टी नहीं, बल्कि संघ परिवार और सहयोगी संगठनों के द्वारा की जा रही है.

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मोहन भागवत के बयान

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत लगातार राम मंदिर का मुद्दा विभिन्न आयोजनों में उठाते आ रहे हैं. हाल में पतंजलि योग पीठ में एक कार्यक्रम में भागवत ने कहा था कि विपक्ष भी राममंदिर निर्माण का मुखर विरोध नहीं कर सकता. राम बहुसंख्यक जनसंख्या के ईष्ट देव हैं और राम मंदिर निर्माण पर संघ और भाजपा दोनों अपने को प्रतिबद्ध दिखाते हैं.

मोहन भागवत ने हाल ही में कहा कि ‘कुछ कार्य करने में देरी हो जाती है और कुछ कार्य तेज़ी से होते हैं. वहीं कुछ कार्य हो ही नहीं पाते, क्योंकि सरकार में होने पर अनुशासन में रहकर ही कार्य करना पड़ता है. सरकार की अपनी सीमाएं होती हैं पर साधु और संतों की ऐसी सीमाएं नहीं हैं और उन्हें धर्म, देश और समाज के उत्थान के लिए कार्य करना चाहिए.

इससे पहले महेश शर्मा लिखित अयोध्या पर दो पुस्तकों के विमोचन के अवसर पर भी भागवत खुलकर मंदिर निर्माण पर बोले थे. उन्होंने कहा था “जन्मभूमि एक ही होती है वहां मंदिर बनाने की मांग है. ये कहा गया होता कि इस ज़माने में ये सम्भव नहीं है तो मान भी लेते लेकिन कहा गया कि वहां राम का जन्म हुआ ही नहीं. ये सुन कर हम पढ़े लिखे धैर्य कर भी लें तो गली में चलने वाला आस्तिक लड़का धैर्य कैसे रखेगा. हम रामजन्म भूमि पर भव्य राम मंदिर शीघ्रतातिशीघ्र बनवाना चाहते हैं.”

इससे पहले आरएसएस की दिल्ली के विज्ञान भवन में तीन दिनों तक ‘भविष्य का भारत- संघ का दृष्टिकोण’ विषय पर आयोजित कार्यक्रम में भी भागवत ने मंदिर निर्माण का मुद्दा उठाया था. उनका कहाना था कि राम जन्मभूमि पर एक भव्य मंदिर बनाना चाहिए. अगर यह आम सहमति से बनता है तो इससे हिंदू-मुस्लिम में जो विवाद है उसमें कमी आएगी.

चार साल बहुमत की सरकार चलाने के बावजूद राम मंदिर निर्माण पर कुछ न करने और राम नाम को केवल अपनी राजनीति चमकाने का जरिया बनाने का आरोप विपक्ष भाजपा पर लगाता रहा है. अब तो राम मंदिर निर्माण के लिए अस्तित्व में आए विश्व हिंदू परिषद के अस्तित्व पर ही सवाल उठ रहे हैं.

इसलिए संगठन अब सरकार पर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के लिए रुकने के बजाए अध्यादेश लाने का दबाव तो बना ही रहा है, साथ ही संत समाज की अगुवाई में मंदिर निर्माण के लिए कारसेवा शुरू करने का मन भी बना रहा है. विहिप के लिए ये मुद्दा उसके आस्तित्व और औचित्य से जुड़ा है. जनवरी में अर्धकुंभ में भी जब संत समाज इकट्ठा होगा मंदिर निर्माण पर ज़ोर दिया जाएगा.

कांग्रेस का सॉफ्ट हिंदुत्व

यानि मंदिर का मुद्दा उठाया जा रहा है और एक ऐसे माहौल में जब कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी कैलाश मानसरोवर यात्रा के बाद से शिव भक्त और राम भक्त के तौर पर सामने आ रहे हैं. कांग्रेस ने सॉफ्ट हिंदुत्व की राह पकड़ी है और मध्य प्रदेश में राम रथयात्रा समेत कई तरह के हिंदू प्रतीकों/संकेतों का सहारा ले रही है.

ऐसे में रामसेतु पर सवाल उठाने जैसी बातें अब दूर की कौड़ी लगती हैं. हिंदू मतदाता को अपने पक्ष में करने की ज़रूरत कांग्रेस को भी महसूस हो रही है. शायद इसी का इशारा भागवत दे रहे थे कि विपक्ष भी इसका विरोध नहीं करेगा.

सबके अपने-अपने राम हैं और सबकी नैया रामजी पार कराएंगे, ऐसी आशा की जा रही है.

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