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राजस्थान चुनाव: भाजपा के सामने वसुंधरा राजे को न सुनने का विकल्प नहीं है

राजस्थान भाजपा के अध्यक्ष पद के चयन के बाद टिकट बंटवारे के समय भी वसुंधरा राजे ने यह दिखा दिया है कि राज्य में भाजपा का मतलब वसुंधरा है.

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राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे पार्टी अध्यक्ष अमित शाह के साथ. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: राजस्थान विधानसभा चुनाव के पहले भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेतृत्व और मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के बीच चल रही खींचतान ने नया मोड़ लिया है. ऐसा लग रहा है कि पार्टी ने राज्य में वसुंधरा राजे की ताकत को देखते हुए उन्हें पूरा मौका देने का मन बना लिया है.

रविवार को भाजपा ने 200 सीटों वाली राजस्थान विधानसभा चुनाव के लिए 131 प्रत्याशियों की लिस्ट जारी की. इस लिस्ट में पार्टी ने 85 मौजूदा विधायकों को टिकट दिया, जबकि 25 मौजूदा विधायकों का टिकट काट दिया है.

इसके पहले भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने सत्ता विरोधी लहर से निपटने के लिए बड़ी संख्या में मौजूदा विधायकों का टिकट काटने का फैसला किया था, लेकिन वसुंधरा राजे के विरोध के चलते ऐसा नहीं किया गया. इसके पहले अमित शाह ने जो लिस्ट पेश की थी, वसुंधरा राजे उन नामों पर सहमत नहीं हुईं इसलिए वह लिस्ट जारी नहीं हो सकी.

नई लिस्ट में वसुंधरा राजे ने ज्यादातर अपने वफादार नेताओं को तवज्जो दी है. भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व की यह रणनीति रही है कि वह सत्ता विरोधी लहर से निपटने के लिए ऐसे नेताओं को टिकट नहीं देती है, जिन्हें लेकर जनता में नाराजगी हो. लेकिन राजस्थान में वसुंधरा राजे के चलते ऐसा नहीं हो सका.

भारतीय जनता पार्टी का मौजूदा नेतृत्व और राष्ट्र्रीय स्वयंसेवक संघ राज्यों के चुनाव में प्रत्याशियों के चयन में खासा दखल रखता है, लेकिन राजस्थान में कहा जा रहा है कि वसुंधरा राजे ने इन दोनों की जगह अपनी प्राथमिकताओं को तवज्जो दिलवाने में सफलता प्राप्त कर ली है. हालांकि, पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व भी वसुंधरा को पूरी छूट देने की रणनीति पर काम कर रहा है.

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जनता की नाराजगी के बावजूद भाजपा की चुनावी कमान पूरी तरह से वसुंधरा राजे के ही हाथ में है. कहा जा रहा है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व को टिकट बंटवारे में बहुत कम महत्व दिया गया है.

भाजपा की राज्य ईकाइयों में राजस्थान अकेला ऐसा राज्य है जहां का क्षेत्रीय नेतृत्व भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व से टकराव की स्थिति में है. चुनाव से कुछ समय पहले भी वसुंधरा राजे ने राजस्थान भाजपा के अध्यक्ष पद के चयन के लिए गजेंद्र सिंह शेखावत का खुलकर विरोध किया था.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया. (फोटो साभार: vasundhararaje.in)

उपचुनाव में हार के बाद तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष अशोक परनामी ने इस्तीफा दे दिया था. पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व परनामी की जगह गजेंद्र सिंह को अध्यक्ष बनाना चाहता था लेकिन वसुंधरा राजे ने गजेंद्र का खुलकर विरोध किया और अंत में मदन लाल सैनी को अध्यक्ष बनाया गया.

मीडिया में और सर्वे में भले ही वसुंधरा के खिलाफ़ नाराज़गी की बात कही जा रही हो, लेकिन फिलहाल नेतृत्व परिवर्तन के सवाल पर वसुंधरा राजे बगावत करके पार्टी को तोड़ देने की हालत में हैं. वसुंधरा राजे राजस्थान भाजपा में सबसे मज़बूत शख्सियत हैं. राजस्थान भाजपा में उनके कद का दूसरा नेता नहीं है. पार्टी में ज़्यादातर विधायक वसुंधरा के कट्टर समर्थक हैं. इसलिए पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व वहां पर ज़्यादा फेरबदल करने की हालत में नहीं है.

मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे राजस्थान भाजपा का मुख्य चुनावी चेहरा और जीत होने पर मुख्यमंत्री पद की दावेदार हैं. 2013 में हुए विधानसभा चुनाव में भी वसुंधरा राजे के नेतृत्व में पार्टी ने चुनाव लड़ा था और दो तिहाई ज़्यादा बहुमत मिले थे. पार्टी ने 200 में से 163 सीटें जीत ली थीं जबकि कांग्रेस को मात्र 21 सीटें मिली थीं. 2003 और 2008 में भी वसुंधरा ही पार्टी का चेहरा थीं. फिलहाल राज्य में भाजपा के पास 160, कांग्रेस के पास 25 और अन्य के पास 15 सीटें हैं.

दूसरी तरफ भाजपा के सामने कांग्रेस राजस्थान में कड़ी चुनौती पेश कर रही है. चुनाव के पहले आए कुछ मीडिया सर्वे में कहा गया है कि कांग्रेस को इस बार बढ़त हासिल हो सकती है क्योंकि जनता भाजपा की वसुंधरा राजे सरकार से खफा है.

क्या वसुंधरा राजे और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के बीच वर्चस्व की लड़ाई में वसुंधरा को विजय हासिल हुई है? ऐसा कह सकते हैं, लेकिन फिलहाल पार्टी के पास दूसरा कोई विकल्प नहीं है, सिवाय इसके कि चुनावी कमान पूरी तरह से वसुंधरा को सौंप दिया जाए.

वरिष्ठ पत्रकार संदीपन शर्मा कहते हैं, ‘वसुंधरा और अमित शाह के बीच वर्चस्व की लड़ाई की बात भी कही जाती है, लेकिन अमित शाह से फिलहाल वर्चस्व की लड़ाई कोई नहीं लड़ सकता. भाजपा की रिपोर्ट थी कि मौजूदा विधायकों के खिलाफ नाराज़गी है. इसलिए भाजपा अपने प्रत्याशी बदलना चाहती थी, लेकिन ऐसा हो नहीं पाया. भाजपा को ये लगा कि सिटिंग विधायकों को हटा भी देंगे तो वे बगावत करके नुकसान करेंगे. भाजपा की रणनीति यह है कि वसुंधरा अगर हार जाएंगी तो वसुंधरा को किनारे करके गजेंद्र सिंह को आगे करने की योजना है. अगर वसुंधरा जीत जाती हैं तो कमान उन्हीं के हाथों में रहेगी.’

भाजपा ऐसा इसलिए चाहती है ताकि अगर सत्ता विरोधी लहर के चलते विधानसभा चुनाव में हार भी हो तो लोकसभा चुनाव में नये नेतृत्व को आगे किया जाए ताकि पार्टी लोकसभा में भी नुकसान से बच जाए. गौरतलब है कि इसके पहले जब राजस्थान में विधानसभा चुनाव हुआ था, तब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे. अमित शाह भी तब पार्टी के शीर्ष नेतृत्व में नहीं थी. तब वसुंधरा राजे ने लालकृष्ण आडवाणी और राजनाथ सिंह के समक्ष खुली चुनौती पेश की थी कि अगर उन्हें मुख्यमंत्री पद के लिए उम्मीदवार नहीं बनाया गया तो वे पार्टी तोड़ देंगी. बाद में उनके नेतृत्व में बड़ा बहुमत मिलने की वजह से पार्टी की मजबूरी थी कि उन्हें मुख्यमंत्री बनाया जाए.

राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे (फोटो साभार: फेसबुक/@VasundharaRajeOfficial)

संदीपन का कहना है कि ‘पार्टी वसुंधरा राजे को हटाना चाहती है. क्योंकि राजस्थान भाजपा में जो भी बागी नेता हैं, वे एंटी भाजपा नहीं, बल्कि एंटी वसुंधरा हैं. घनश्याम तिवाड़ी और हनुमान बेनीवाल जैसे नेता जो भाजपा से बगावत कर बैठे, वे भी एंटी वसुंधरा ही रहे. इसलिए पार्टी के सामने उन्हें हटाने की चुनौती है, लेकिन वसुंधरा को हटाने से भाजपा को उल्टा पड़ सकता है. अब भाजपा यह देख रही है कि विधानसभा चुनाव के बाद क्या होगा. फिलहाल राजस्थान भाजपा में वसुंधरा की ही चलेगी. आगे भी यह स्थिति बनी रहती है या नहीं, यह विधानसभा चुनाव की हार-जीत से तय होगा.’

राजस्थान के वरिष्ठ पत्रकार भवानी सिंह कहते हैं, ‘नई लिस्ट में पूरी तरह वसुंधरा राजे की चली है. ऐसा इसलिए है क्योंकि वसुंधरा इस बात पर अड़ गई थीं कि अगर आप मौजूदा विधायकों और मंत्रियों का टिकट काटते हैं तो इससे ये संदेश जाता है कि सरकार ने काम नहीं किया और सत्ता विरोधी लहर सच में है. वसुंधरा के अड़ जाने से संघ और केंद्रीय भाजपा के लोगों को तवज्जो नहीं दी गई.’

उनका कहना है कि ‘वसुंधरा राजे ने अपने स्तर पर सर्वे कराया था और उनकी रिपोर्ट के मुताबिक, वे जीतेंगी. दूसरे, भाजपा ने पहले ही घोषित कर दिया कि वह वसुंधरा राजे के नेतृत्व में चुनाव लड़ेगी. इसलिए अब भाजपा के पास कोई विकल्प नहीं था कि उनकी न सुनी जाए. अगर वसुंधरा की बात न सुनी जाए तो इससे यह भी संदेश जाएगा कि आप उन्हें पूरी तरह से स्वीकार नहीं कर रहे हैं. इसलिए वसुंधरा पर भरोसा करने के सिवाय भाजपा के पास कोई विकल्प नहीं है. जो टिकट काटे गए हैं, वे भी वसुंधरा की ही मर्ज़ी से काटे गए हैं.’

नरेंद्र मोदी और अमित शाह की भाजपा के सामने भी वही मजबूरी है जो लालकृष्ण आडवाणी और राजनाथ सिंह की भाजपा के सामने थी. जनता और क्षेत्रीय विधायकों-सांसदों के समर्थन के कारण वसुंधरा राजे राजस्थान में इतनी मज़बूत हैं कि वे पार्टी को तोड़कर क्षत-विक्षत कर सकती हैं. इसलिए जब तक वसुंधरा राजे को यह समर्थन हासिल है, राजस्थान में भाजपा का मतलब वसुंधरा राजे ही होगा.

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