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वाजपेयी की बैलगाड़ी से राहुल की ट्रैक्टर सवारी तक, सांसदों ने अपनाए हैं ‘अनोखे’ तरीके 

नवंबर 1973 में, जब इंदिरा गांधी प्रधामंत्री थीं तब तत्कालीन जनसंघ अध्यक्ष अटल बिहारी वाजपेयी पेट्रोल और मिट्टी के तेल की बढ़ती कीमतों का विरोध करने के लिए संसद में एक बैलगाड़ी लेकर गए थे.

कृषि सुधार कानूनों के विरोध में 26 जुलाई 2021 को किसानों के समर्थन में राहुल गांधी संसद के बाहर ट्रैक्टर से पहुंचे, फाइल फोटो.

नई दिल्ली: कांग्रेस नेता राहुल गांधी पिछले साल नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा पारित तीन विवादास्पद कृषि कानूनों के विरोध में सोमवार को एक ट्रैक्टर से संसद पहुंचे थे. गांधी के साथ अन्य कांग्रेस सांसद प्रताप सिंह बाजवा, रवनीत सिंह बिट्टू और दीपेंद्र सिंह हुड्डा वगैरह भी हाथ में बैनर लिए नारे लगते हुए दिखाए दिए.

भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने इसे ‘नाटकीय‘ करार दिया.

ऐसा पहली बार नहीं है जब किसी सांसद ने किसी मुद्दे के विरोध में या कोई संदेश देने के लिए संसद में आने का एक अनूठा तरीका अपनाया है.


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बैलगाड़ी, ट्रैक्टर, साइकिल और यहां तक कि एक हार्ले डेविडसन भी

नवंबर 1973 में, जब इंदिरा गांधी प्रधामंत्री थीं तब तत्कालीन जनसंघ अध्यक्ष अटल बिहारी वाजपेयी पेट्रोल और मिट्टी के तेल की बढ़ती कीमतों का विरोध करने के लिए संसद में एक बैलगाड़ी लेकर गए थे.

लगभग तीन दशक बाद कांग्रेस नेता रेणुका चौधरी आंध्र प्रदेश में किसानों की दुर्दशा को उजागर करने के लिए ट्रैक्टर पर संसद परिसर पहुंचीं. हालांकि, पुलिस ने उन्हें रोक दिया क्योंकि ट्रैक्टर का संसद में प्रवेश करना मना था.

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बाद में जब इस मुद्दे पर सदन में चर्चा हुई, तो तत्कालीन प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने कहा: ‘सदन ऐसे मुद्दे पर गंभीरता से कैसे चर्चा कर सकता है? कल कोई टैंक में बैठकर संसद आना चाहेगा. क्या इसकी अनुमति होगी?’. इसके बाद चौधरी ने वाजपेयी का उदाहरण दिया.

लेकिन ये प्रतीकात्मक विरोध या कोई संदेश देने का प्रयास बैलगाड़ियों और ट्रैक्टरों तक ही सीमित नहीं है. सांसदों ने साइकिल और यहां तक कि एक हार्ले डेविडसन पर भी सवारी की है.

मार्च 2016 में, बिहार कांग्रेस की सांसद रंजीत रंजन अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर एक बयान देने के लिए हार्ले डेविडसन बाइक पर संसद पहुंचीं. हेलमेट और चश्मा पहनकर, वह सदन में प्रवेश करने से पहले संसद परिसर के चारों ओर घूमीं.

यहां तक कि बीजेपी नेताओं को भी साइकिल से संसद तक कोई खास संदेश देने के लिए सवारी करते देखा गया है.

संसदीय मामलों और संस्कृति राज्यमंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने 2016 में अपने शपथग्रहण समरोह के लिए राष्ट्रपति भवन पहुंचने के लिए साइकिल का इस्तेमाल किया. उन्हें अक्सर संसद जाते समय साइकिल पर देखा जाता है.

नए स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया और बीजेपी दिल्ली के पूर्व अध्यक्ष मनोज तिवारी को भी साइकिल से संसद जाते हुए अक्सर देखा गया है, भले ही इसकी वजह साइकिलिंग को बढ़ावा देना हो.

इस साल का मानसून सत्र का पहला दिन (19 जुलाई) विरोध के साथ शुरू हुआ, जब तृणमूल कांग्रेस के छह सांसद ईंधन की ऊंची कीमतों के विरोध में साइकिल पर सवार होकर संसद परिसर पहुंचे. डेरेक ओ ब्रायन, अर्पिता घोष, कल्याण बनर्जी, शांतनु सेन, नदीमुल हक और अबीर रंजन विश्वास ने सदन के प्रवेश द्वार पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ नारेबाजी की.

फैंसी ड्रेस, ब्लैक गाउन का भी हुआ इस्तेमाल

आंध्र प्रदेश के लिए विशेष दर्जे की मांग के लिए, दिवंगत तेलुगु देशम पार्टी के सांसद नारामल्ली शिवप्रसाद पिछले दशक में संसद सत्र में भाग लेने के लिए अक्सर विचित्र पोशाक पहनते थे. उनके कुछ अवतारों में भगवान राम, भगवान कृष्ण, सत्य साईं बाबा और एडॉल्फ हिटलर शामिल थे. उन्होंने एक बार एक स्कूली लड़के और दूसरी बार डकैत के रूप में भी कपड़े पहने.

2014 में भी एक बार टीएमसी और समाजवादी पार्टी के सांसदों ने शीतकालीन सत्र के पहले कार्य दिवस पर काली छतरियों का उपयोग करके काले धन का विरोध किया.

इस साल फरवरी में कांग्रेस सांसद जसबीर सिंह गिल और गुरजीत सिंह औजला तीन कृषि कानूनों के विरोध में काले रंग का गाउन पहनकर संसद पहुंचे थे.

विशेषज्ञ फोटो-ऑप्स कहते हैं

राजनीतिक विश्लेषक और लेखक रशीद किदवई ने इन कृत्यों को ‘राजनीतिक ऑप्टिक्स’ कहा.

‘राहुल गांधी ट्रैक्टर चला रहे हैं जो किसान समुदाय को संकेत दे रहे हैं कि कांग्रेस और गांधी परिवार उनके साथ है. भारत में राजनीतिक दलों में विपक्ष या सरकार में रहते हुए अलग-अलग भूमिकाएं निभाने की प्रवृत्ति होती है. कांग्रेस और भाजपा दोनों ने एकदम विपरीत स्थिति लेने और आसानी से ट्रैक बदलने की इस कला में माहिर हैं’, उन्होंने कहा.

सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (सीएसडीएस) के प्रोफेसर और सीएसडीएस के शोध कार्यक्रम लोकनीति के सह-निदेशक संजय कुमार ने कहा कि ये आयोजन आमतौर पर एक फोटो-ऑप होते हैं. उन्होंने कहा, ‘इसके अलावा, मुझे नहीं लगता कि एक भी मुद्दा किसी भी तरह से मतदाताओं को जुटाने में मददगार है, जब तक कि किसी मुद्दे पर किसी नेता द्वारा एकाग्र प्रयास नहीं किया जाता है,’ उन्होंने कहा.

‘नेता अमूमन ऐसे प्रतीकात्मक विरोधों में भाग लेते हैं क्योंकि ये किसी एक विशेष मुद्दे पर आम आदमी का ध्यान आकर्षित करने की कोशिश होती है, चाहे वह राहुल गांधी ट्रैक्टर से संसद जा रहे हों या अटल बिहारी वाजपेयी बैलगाड़ी पर’, कुमार ने कहा.

‘लेकिन केवल इस तरह की गतिविधियों में शामिल होने का मतलब यह नहीं है कि मतदाता आपसे प्रभावित होंगे. भाजपा इस समय राहुल गांधी की आलोचना कर रही है लेकिन हर राजनीतिक नेता को इस तरह का प्रतीकात्मक विरोध करने का अधिकार है.’

कांग्रेस प्रवक्ता सुष्मिता देव ने कहा कि यह एकजुटता दिखाने और मुद्दे को उजागर करने का एक तरीका है.

‘भले ही किसानों ने कहा कि इसका राजनीतिकरण न करें, तीन कृषि कानूनों का मुद्दा इतना बड़ा हो गया है कि यह देश को प्रभावित कर रहा है. तो कोई भी बड़ा नेता इसे उजागर करने और किसानों को समर्थन दिखाने की कोशिश करेगा. राहुल गांधी ने बस यही किया है,’ उन्होंने कहा कि इस तरह की कदम इस मुद्दे को उजागर करने और इसे जीवित रखने के लिए हैं.’

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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