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सीएम उद्धव ठाकरे के साथ बहुत सी समस्याएं, लेकिन महाराष्ट्र के सहयोगियों ने कहा- मज़बूत है सरकार

महाराष्ट्र विकास अघाड़ी की सात महीने की सरकार में, सेना, एनसीपी और कांग्रेस के बीच एक दूसरे को लेकर काफी समस्याएं रही हैं. ज़्यादा मोहभंग उद्धव के एकतरफा काम करने के तरीक़े से हुआ है.

एनसीपी प्रमुख शरद पवार और शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे/ फोटो: पीटीआई

मुम्बई: पिछले कुछ महीने में कई चीज़ें हुई हैं, जिनसे पता चलता है कि महाराष्ट्र में महा विकास अघाड़ी (एमवीए) की सरकार के अंदर तालमेल का अभाव है, और मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के लीडरशिप स्टाइल को लेकर, कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के बीच बेचैनी है.

लेकिन, फिलहाल तीनों दलों ने तय किया है, कि वो गठबंधन के बीच मतभेदों पर बढ़ती अटकलबाज़ियों के बारे में, एक स्वर में बात करेंगे. उनका कहना है कि मसले मामूली हैं, और सरकार अपना कार्यकाल पूरा करेगी.

एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार का सामना में तीन हिस्सों में इंटरव्यू, जो पार्टी के मुखपत्र में छपने वाला किसी ग़ैर-शिवसेना लीडर का पहला इंटरव्यू था, उसी दिशा में एक क़दम था.

पवार का इंटरव्यू पिछले हफ्ते शिवसेना और एनसीपी मंत्रियों के बीच, कई दौर की बैठकों के बाद आया, जिनका मक़सद उनके बीच आपसी रिश्तों में आए मनमुटाव को दूर करना था.

इंटरव्यू के पहले हिस्से में पवार ने ज़ोर देकर कहा, कि एमवीए के तीन साझीदारों- कांग्रेस, एनसीपी और शिवसेना- के बीच तालमेल की कोई कमी नहीं है, और ऐसी तमाम ख़बरें, अख़बार वाले अपने पन्ने भरने के लिए छाप रहे हैं.

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लेकिन तीसरे हिस्से में पवार ने माना, कि कुछ मंत्री नाराज़ हैं क्योंकि देखा जा रहा है, कि मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे का काम करने का अंदाज़ एकतरफा है, जिसमें विचार-विमर्श के लिए जगह नहीं है.

एमवीए सहयोगियों के रिश्तों की अस्ली सच्चाई, पवार के इन दो बयानों के कहीं कहीं बीच में हैं.

एमलीए के अभी तक के अपने सात महीने के कार्यकाल में, मतभेदों के बावजूद तीन पार्टियां- जिनके अस्वाभाविक गठबंधन के पीछे आपसी दुश्मनी का लंबा इतिहास है- भरोसा जता रही हैं, कि उनकी सरकार अपना कार्यकाल पूरा करेगी, क्योंकि जिस बुनियादी कारण से वो एक साथ आए थे, वो आज भी बरक़रार है.

एक वरिष्ठ कांग्रेसी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा,’हमारे इस सरकार के बनाने के पीछे कारण था, भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को सत्ता से बाहर रखना’. उन्होंने आगे कहा, ‘वो कारण आज भी है और अकेले इस कारण की वजह से, सभी दल छोटे-मोटे मुद्दों को नज़रअंदाज़ करने के लिए तैयार हैं’.


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सहयोगियों के बीच टकराव

2 जुलाई से 7 जुलाई तक, सीनियर एनसीपी नेताओं और मुख्यमंत्री ठाकरे तथा दूसरे सीनियर शिवसेना मंत्रियों के बीच, कम से कम चार बैठकें हुई हैं.

पहली दो बैठकों में, डिप्टी सीएम अजित पवार और पवार सीनियर ने, महाराष्ट्र में लॉकडाउन पर चर्चा करने के लिए, ठाकरे से निजी तौर पर मुलाक़ात की. एनसीपी सूत्रों ने बताया कि पार्टी नेता, महाराष्ट्र में लॉकडाउन को 31 जुलाई तक बढ़ाने, और इकॉनमी में फिर से जान डालने के लिए रिआयतों में ढील के, ठाकरे के एकतरफा फैसले से नाख़ुश थे.

लेकिन सामना को दिए गए अपने इंटरव्यू में पवार ने कहा, कि उन्होंने लॉकडाउन के दौरान मज़दूर यूनियनों से लेकर उधोगों तक, बहुत से समूहों से बात करने के बाद, ठाकरे के साथ अपनी राय साझा की थी. उन्होंने कहा कि,’इसे विचारों में मतभेद नहीं कहा जाता’.

सूत्रों ने कहा कि उसके बाद की दो बैठकों का उद्देश्य, कुछ मसलों को सुलझाना था, जिनमें शिवसेना को लगा था कि एनसीपी ने उसे नीचा दिखाया था, जिसकी एक मिसाल मुम्बई पुलिस का दस पुलिस उपायुक्तों का तबादला करने का अंदरूनी फैसला था. बताया जा रहा है कि प्रदेश के गृह मंत्री अनिल देशमुख को तो इस बारे में ख़बर थी, लेकिन इस फैसले ने ठाकरे को कथित रूप से हैरत में डाल दिया था.

72 घंटे के भीतर, ठाकरे ने तबादलों पर रोक लगा दी, और बाद में अपनी ताक़त दिखाते हुए, तीन बदलावों के साथ उन्हें मंज़ूरी दी.

तकरार का एक और बिंदु था, एनसीपी का इस महीने के शुरू में अहमदनगर ज़िले में, पारनेर के पांच शिवसेना पार्षदों को अपनी पार्टी में शामिल करना. ठाकरे और अजित पवार की मीटिंग के बाद, पार्षदों को पिछले हफ्ते शिवसेना में वापस ले लिया गया.

दिप्रिंट से बात करते हुए, शिवसेना के राज्यसभा सांसद संजय राउत ने, एक ‘मामूली स्थानीय मुद्दा’ बताकर इसे ख़ारिज कर दिया.

उन्होंने कहा,’उस क्षेत्र का एनसीपी विधायक चुनावों से पहले, मूल रूप से हमारा तालुका प्रमुख था. ये पांच पार्षद उसके सममर्थक थे. लेकिन पार्षद अब शिवसेना में वापस आ गए हैं’.

लेकिन शिवसेना के एक सीनियर नेता ने कहा, कि ठाकरे ने इस मामले को गंभीरता से लिया, और वो एक मज़बूत संदेश देना चाहते थे, कि दोबारा ऐसा न हो.

शिवसेना लीडर ने भले ही इस बात को माना, कि तीनों पार्टियों के बीच समस्याएं थी, लेकिन उन्होंने कहा,“ये इतनी गंभीर नहीं हैं, जितना विपक्ष इन्हें बता रहा है”.

उन्होंने कहा, ‘जहां तक पुलिस उपायुक्तों के तबादलों की बात है, ये बात स्वीकार्य नहीं है कि उद्धव साहब की मंज़ूरी नहीं ली गई. ये सब बैठकें इसलिए थीं कि समस्याओं के होते हुए भी, हम काम करना चाहते हैं. सबसे बड़ी बात ये है कि हम अभी भी बीजेपी को बाहर रखना चाहते हैं’.


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फैसले लेने का ठाकरे का अंदाज़ एक मुख्य बाधा

कांग्रेस मंत्रियों ने शिकायत की है कि सरकार में, उन्हें उनका जायज़ नहीं मिला है, और उन्हें इस बात पर भी एतराज़ है, कि ठाकरे सिविल सर्वेंट्स पर ज़्यादा भरोसा करते हैं.

इसके अलावा, सीएम का पद संभालने के बाद से, ठाकरे अधिकतर उप-नगरीय मुम्बई के अपने आवास, मातोश्री, से ही काम करते रहे हैं, और ऐसे आरोप हैं कि वो सिर्फ अपनी एक टीम से सलाह मश्विरा करते हैं, जिसमें उनका परिवार और कुछ स्टाफ मेम्बर्स शामिल हैं जो उनके विश्वासपात्र हैं- बेटा आदित्य, पत्नी रश्मि ठाकरे, कभी कभी निजी सहायक और पार्टी सचिव मिलिंद नारवेकर, और सेना के उनके क़रीबी अनिल परब.

महत्वपूर्ण मुद्दों पर सहयोगियों से विचार-विमर्श करने की ठाकरे की कथित अनिच्छा भी, बहुत लोगों को पसंद नहीं आ रही है, और एक्सपर्ट्स का कहना है कि अगर एमवीए गिरती है, तो काम करने का ये अंदाज़ ही उसका ज़िम्मेदार होगा.

एक सीनियर कांग्रेसी ने कहा, ‘सरकार चलाने में, लीडरशिप के अंदर अनुभव की कमी है. इसीलिए हमारे सामने इतनी बाधाएं आ रही हैं’.

राजनीतिक टीकाकार प्रकाश बाल ने ये भी कहा, ‘उधव ठाकरे सरकार को ऐसे ही चला रहे हैं, जैसे वो शिवसेना को चलाते हैं. आदित्य ठाकरे और रश्मि ठाकरे के अलावा, वो किसी से मश्विरा नहीं करते’.

‘अगर ये सरकार गिरती है, तो वो बतौर सीएम ठाकरे के काम करने के अंदाज़ की वजह से होगा, और अगर ये बच जाती है, तो ये इसलिए होगा क्योंकि स्थिति को बदलने के लिए, शरद पवार मारे मारे फिर रहे हैं. सामना को इंटरव्यू देने जैसे उनके काम, लाज बचाने की क़वायद हैं’.

सामना को दिए अपने इंटरव्यू में, पवार ने माना कि एमवीए के बीच में संवाद एक समस्या है, और वो धीरे से ठाकरे को संकेत देते भी दिखे, कि एकतरफा काम करने के अपने अंदाज़ में बदलाव करें. उन्होंने कहा कि इससे एमवीए सरकार को कोई नुकसान नहीं पहुंचेगा, लेकिन इसे बदलने की ज़रूरत है.

‘अगर दो पार्टियों के कुछ विचार है, तो ज़रूरी है कि उन पर ध्यान दिया जाए, इसलिए हम इस बात पर ज़ोर देते रहते हैं, कि संवाद होना चाहिए. अगर ऐसा संवाद रहेगा, तो ऐसी कोई बात ही नहीं होगी (कांग्रेस नेताओं द्वारा)…हमें ठाकरे के काम करने के स्टाइल से कोई परेशानी नहीं है, लेकिन कोई संवाद नहीं है’.

नेताओं ने ‘ग़लतफहमी’ के लिए कोविड संकट पर दोष मढ़ा

सात महीनों में जब से एमवीए सरकार सत्ता में रही हैं, चार महीने कोविड संकट से जूझने में निकल गए हैं, और उसमें भी ढाई महीने मुकम्मल लॉकडाउन रहा है.

तीनों पार्टियों के नेता आमने-सामने की बैठकों में मुश्किल पैदा करने के लिए, महामारी को दोष देते हैं और कहते हैं, कि उनके बीच कम्यूनिकेशन की समस्या काफी कुछ इसी दौर की देन है.

एनसीपी के दिलीप वालसे पाटिल, जो ठाकरे कैबिनेट में आबकारी और श्रम विभाग देखते हैं, ने कहा, “मैंने कभी भी निजी रूप से, सरकार में दूसरों के साथ, तालमेल की कमी महसूस नहीं की है. अगर प्रशासन पर कोई दबाव है, तो वो केवल वर्तमान स्थिति की वजह से है”.

उन्होंने आगे कहा, ‘मंत्रालय में स्टाफ कम संख्या में है, राज्य सरकार की नियमित गतिविधियों के लिए, फील्ड में भी स्टाफ कम है. अहम बैठकें भी आमने सामने नहीं होतीं. इसीलिए कुछ ग़लतफहमियां हो गईं होंगी, लेकिन वैसे सब ठीक चल रहा है’.

फिलहाल सरकारी दफ्तर सिर्फ 15 प्रतिशत स्टाफ के साथ काम कर रहे हैं. कुछ मंत्रियों ने, जो मुम्बई में रहते हैं मंत्रालय स्थित अपने दफ्तरों में जाने लगे हैं, और कैबिनेट की बैठकों में भी शामिल हो रहे हैं. बाक़ी अधिकांश वीडियो कॉनफ्रेंसिंग से शामिल हो जाते हैं.

शिवसेना के राउत ने कहा, ‘पिछले क़रीब 6 महीने से, राजनीतिक प्रशासन पूरी तरह कोविड से निपटने में लगा रहा है. सरकार के अलग अलग साझीदारों के बीच तालमेल, अच्छी तरह से सामान्य स्थिति में ही देखा जा सकता है’.

उन्होंने आगे कहा,’ये स्थिति सामान्य नहीं है’.

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