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‘चुनावी लाभ लेने के लिए पार्टियों को एक नैरेटिव पर काम करना होगा’: बेंगलुरु विपक्षी बैठक पर बोले प्रशांत किशोर

पूर्व चुनाव रणनीतिकार, जो इस समय बिहार में अपनी पार्टी के लिए पदयात्रा कर रहे हैं, कहते हैं कि पार्टियों और नेताओं के एक साथ बैठने से 'विचारों में एकता' और जनता के बीच ले जा सकने वाली कहानी के बिना कोई फर्क नहीं पड़ेगा.

प्रशांत किशोर की फाइल फोटो । ट्विटर

नई दिल्ली: बेंगलुरु में एक बैठक के लिए विपक्षी दलों के एक साथ आने की सराहना करते हुए, पूर्व चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने कहा है कि नेताओं और पार्टियों के एक साथ बैठने मात्र से जनता की राय पर कोई असर नहीं पड़ेगा, जब तक कि जनता के लिए स्वीकार्य न हो.

2024 के लोकसभा चुनावों में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से मुकाबला करने के लिए चुनावी रणनीति पर चर्चा करने के लिए सोमवार को 26 विपक्षी दलों ने बेंगलुरु में बैठक की.

सुबह ही बिहार के समस्तीपुर में मीडिया से बातचीत करते हुए, किशोर ने कहा: “प्रभाव तब होगा जब विपक्षी नेताओं के साथ-साथ विचार भी एकजुट होंगे. जब नैरेटिव्स भी एक हों. मैं (एकजुट विपक्ष के) चेहरे के बारे में बात नहीं कर रहा हूं. लेकिन लोगों के मुद्दे वहां होने चाहिए चाहिए, उसका नैरेटिव भी होना चाहिए, जमीन पर काम करने वाले कार्यकर्ता होने चाहिए और लोगों का समर्थन वोट में बदलना चाहिए.

किशोर, जिन्होंने अतीत में कई राजनीतिक दलों के साथ काम किया है, वर्तमान में अपने गृह राज्य बिहार में एक साल की पदयात्रा पर हैं. जन सुराज (लोगों का सुशासन) यात्रा पिछले साल 2 अक्टूबर को शुरू हुई थी.

विपक्षी एकता के मौजूदा प्रयासों और 1977 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को सत्ता से बेदखल करने वाले विपक्ष के बीच समानता बताते हुए किशोर ने कहा, “बहुत से लोग सोचते हैं कि 1977 में, सभी विपक्ष एक साथ आए और इंदिरा गांधी को हरा दिया, लेकिन वह इसलिए नहीं हारी थीं .”

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उन्होंने कहा, “आपातकाल एक बड़ा मुद्दा था और जेपी (जयप्रकाश नारायण) का आंदोलन था. अगर आपातकाल नहीं होता और जेपी आंदोलन नहीं होता, भले ही सभी दल एक साथ आते, इंदिरा गांधी को हराया नहीं जा सकता था. ”

पूर्व चुनाव रणनीतिकार ने अपनी बात को स्पष्ट करने के लिए 1980 के दशक के अंत और 1990 के दशक की शुरुआत की राजनीति का भी संदर्भ दिया. उन्होंने कहा कि 1989 में राजीव गांधी को उनके ही रक्षा मंत्री वी.पी. के देशव्यापी अभियान के बाद प्रधानमंत्री पद से हटा दिया गया था.

“वी.पी. सिंह के तहत” हमने देखा कि सभी दल एक साथ आए और राजीव गांधी की सरकार को हराया. लेकिन पार्टियां बाद में एकजुट हुईं, पहले बोफोर्स मुद्दा बना. बोफोर्स के नाम पर देशव्यापी आंदोलन हुआ. जनता की भावना ने अभियान का समर्थन किया.”


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‘विपक्षी एकता जनता के समर्थन से ही काम कर सकती है’

किशोर ने 2014 के चुनावों के दौरान रणनीतिकार के रूप में भाजपा के साथ काम किया है; 2021 पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के लिए ममता बनर्जी के साथ; 2017 के पंजाब चुनाव में कैप्टन अमरिन्दर सिंह तब कांग्रेस के साथ थे; 2019 आंध्र प्रदेश चुनाव में वाई.एस. जगन मोहन रेड्डी; और 2020 के दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए अरविंद केजरीवाल सहित कई दल शामिल है.

सोमवार को मीडिया से बात करते हुए उन्होंने कहा कि यह अच्छा है कि विपक्षी एकता की बैठक हो रही है. “विपक्षी एकता लोकतंत्र में एक प्रक्रिया है. यह अच्छा है कि ऐसा हो रहा है. लोकतंत्र को मजबूत किया जाना चाहिए.”

हालांकि, उन्होंने लोगों को 2019 के आम चुनाव से पहले विपक्ष द्वारा किए गए इसी तरह के प्रयास की भी याद दिलाई. “मुझे लगता है कि चुनावी सफलता तभी संभव है जब इन पार्टियों के पास एक कार्यक्रम हो जिसे वे जनता के बीच ले जाएं. अगर उन्हें जनता का समर्थन मिला तो इसका असर चुनावी नतीजों पर दिखेगा. वरना 2019 में भी सभी विपक्षी दल एक साथ आये थे. क्या फर्क पड़ता है?”

हालांकि किशोर ने अभी तक अपनी राजनीतिक पार्टी की घोषणा नहीं की है, लेकिन उन्होंने अपनी पदयात्रा के दौरान बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उनके डिप्टी तेजस्वी यादव पर बार-बार हमला किया है.

किशोर ने बिहार के सीएम पर कटाक्ष करते हुए कहा कि 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले आंध्र प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री ने विपक्ष को एकजुट करने के लिए नीतीश कुमार की तरह प्रयास किए थे. उन्होंने कहा, “राष्ट्रीय चुनावों को छोड़ दें, अपने ही राज्य (आंध्र प्रदेश) में चंद्रबाबू नायडू बुरी तरह हार गए.” “जब तक लोगों के मुद्दों पर एकमत नहीं होगा और जनता में उन मुद्दों पर ज़ोर नहीं होगा, तब तक इन चीज़ों का ज़्यादा असर नहीं होगा.”

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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