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संसदीय समिति ने की एक साथ चुनाव कराए जाने की वकालत, कहा- सरकारी खजाने पर कम पड़ेगा बोझ

समिति का यह भी मानना है कि एक साथ चुनाव होने से बार-बार चुनावों को लेकर मतदाता में पैदा हुई उदासीनता को कम किया जा सकेगा एवं आम जनता को, खासतौर पर मतदाताओं को चुनावी प्रक्रिया में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकेगा.

चित्रण: सोहम के द्वारा । दिप्रिंट टीम

नयी दिल्ली: देश में एक साथ चुनाव कराने की वकालत करते हुए संसद की एक समिति ने मंगलवार को कहा कि ऐसा होने से सरकारी खजाने पर बोझ कम पड़ेगा, राजनीतिक दलों का खर्च कम होगा और मानव संसाधन का अधिकतम उपयोग किया जा सकेगा.

विधि एवं न्याय और कार्मिक मंत्रालयों पर विभाग संबंधी स्थायी समिति ने विधि मंत्रालय के लिए अनुदान की मांगों पर अपनी रिपोर्ट में कहा, ‘समिति का यह भी मानना है कि एक साथ चुनाव होने से बार-बार चुनावों को लेकर मतदाता में पैदा हुई उदासीनता को कम किया जा सकेगा एवं आम जनता को, खासतौर पर मतदाताओं को चुनावी प्रक्रिया में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकेगा.’

यह रिपोर्ट मंगलवार को दोनों सदनों में पेश की गयी. समिति ने कहा कि उसकी राय है कि ‘एक देश, एक चुनाव’ या एक साथ सभी चुनाव कराने का विचार देश के लिए नया नहीं है क्योंकि 1952, 1957 और 1962 में पहले के तीन लोकसभा चुनाव के समय चुनाव एक साथ ही हुए थे.

रिपोर्ट में कहा गया, ‘इसके मद्देनजर एक साथ चुनाव कराने के लिहाज से स्थानीय निकायों, विधानसभाओं और लोकसभा के लिए निश्चित कार्यकाल के लिए संविधान के कुछ प्रावधानों को संशोधित किया जा सकता है.’


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