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खुली नालियां, खराब लाइट फिर भी मतदाता क्यों हैं खुश : मथुरा में किस हाल में है हेमा मालिनी के गोद लिए गांव

अभिनेत्री-राजनेता और बीजेपी की सांसद ने सांसद आदर्श ग्राम विकास योजना के तहत रावल और पेठा को गोद लिया था. निवासियों का दावा है कि कुछ काम हुआ है, लेकिन अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है.

फीचर फोटो : सोहम सेन/दिप्रिंट
फीचर फोटो : सोहम सेन/दिप्रिंट

यह केंद्र की सांसद आदर्श ग्राम विकास योजना के तहत सांसदों द्वारा अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्रों में ‘गोद लिए’ गांवों पर ग्राउंड रिपोर्ट की सीरीज़ की पहली स्टोरी है.

मथुरा: मथुरा के मुख्य शहर से लगभग 10 किलोमीटर दूर रावल गांव के प्रवेश द्वार पर सड़क के किनारे एक पीले रंग का लोहे का बोर्ड पड़ा है. इस पर हिंदी में लिखे गए फीके काले और लाल रंग के शब्द पढ़ने में मुश्किल ही नज़र आ रहे हैं, लेकिन थोड़ा सा ध्यान से देखने पर आप ‘आदर्श ग्राम रावल’ और स्थानीय सांसद का नाम पढ़ सकते हैं: अभिनेत्री-राजनेता हेमा मालिनी.

रावल उन नौ गांवों में से एक है, जिन्हें भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की 75-वर्षीय सांसद ने पिछले 10 साल में सांसद आदर्श ग्राम विकास योजना (SAGY) के तहत गोद लिया है. मोदी सरकार द्वारा 11 अक्टूबर 2014 को समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण की 112वीं जयंती पर शुरू की गई इस योजना का उद्देश्य ग्राम पंचायतों की पहचान करना और उन्हें आदर्श गांवों की तर्ज पर “समग्र रूप से” विकसित करना है, जिन्हें ‘आदर्श ग्राम’ कहा जाता है.

इस गांव में 26 अप्रैल को लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण में मतदान हुआ, यह एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल भी है, जिसे हिंदू देवी राधा की जन्मस्थाली माना जाता है

रावल के अलावा, मथुरा से दो बार सांसद रहीं हेमा मालिनी, जिन्हें बीजेपी ने फिर से इस सीट से टिकट दिया है, ने मोदी सरकार की प्रमुख योजना के तहत आठ अन्य गांवों — किशनपुर, गांठोली, पेठा, बिसावली, मानागढ़ी, चिकसोली, अकबरपुर और रांकोली को गोद लिया है.

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लेकिन दो गांवों — रावल और पेठा — में घूमने से पता चलता है कि ज़मीनी स्तर पर स्थिति आदर्श से बहुत दूर है.

रावल गांव के प्रवेश द्वार पर सड़क पर ‘सांसद आदर्श ग्राम योजना’ लिखा लोहे का बोर्ड | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट

रावल के एक कोने में एक मंच पर बैठे तोताराम ने दिप्रिंट को बताया कि जब हेमा मालिनी ने पहली बार 2015-16 में पहले चरण में गांव को गोद लिया था, तो अभिनेत्री ने यहां कुछ काम किए थे — जिनमें पक्की सड़कें बनाने का काम प्रमुख था.

42-वर्षीय निवासी ने बताया, “पहले यहां केवल धूल और गड्ढे हुआ करते थे, लेकिन अब हर गली पक्की हो गई है.”

लेकिन तब से काम सीमित हो गया है. दिप्रिंट ने जिन अधिकांश निवासियों से बात की, उनके अनुसार, गंदगी और साफ-सफाई की समस्याएं गांव में जस की तस हैं, खुली नालियां और सड़क पर कूड़े के ढेर गंभीर स्वास्थ्य संबंधी चिंताएं पैदा कर रहे हैं. SAGY के तहत शुरू की गई कुछ अन्य परियोजनाएं तब से रुकी हुई हैं — जिसमें एक आरओ वॉटर प्लांट भी शामिल है जो 2016 में इसकी स्थापना के एक साल के भीतर बंद हो गया था.

जैसा कि तोताराम बताते हैं : “इस गांव को आदर्श बनाने की कोशिशें अभी भी सफल नहीं हुई हैं.”

इस बीच, वृन्दावन से लगभग 30 किलोमीटर दूर, ब्राह्मण-बहुल पेठा में निवासियों की एक अलग तरह की शिकायत है — उनका कहना है कि मथुरा के कई अन्य गांवों के उलट यह पहले से ही समृद्ध था और 2016-17 में SAGY योजना के दूसरे चरण में भाजपा सांसद द्वारा इसे अपनाने के बाद से इसमें बहुत कुछ नया नहीं हुआ है.

गांव के 56-वर्षीय निवासी शिव सिंह पटेल ने कहा, “किसी ऐसे गांव को गोद लेना चाहिए जहां सुविधाओं का अभाव हो. हेमा मालिनी यहां कभी नहीं आतीं. उन्हें कभी किसी ने नहीं देखा.”

अपनी ओर से मथुरा की दो बार की सांसद रहीं मालिनी का दावा है कि वे अब बड़े प्रोजेक्ट्स पर काम कर रही हैं — जैसे कि उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा प्रस्तावित ‘84 कोसी परिक्रमा’ का पुनरुद्धार, एक तीर्थयात्रा जिसमें ब्रज का 252 किलोमीटर का क्षेत्र शामिल है, जो हिंदू भगवान कृष्ण से जुड़ा क्षेत्र है.

हेमा मालिनी ने दिप्रिंट से कहा, “विकास कार्य को जारी रखना विधायकों या स्थानीय प्रतिनिधियों का काम है. मैं यहां छोटे-मोटे काम के लिए नहीं रहूंगी. मैं यहां बड़ा काम करने के लिए आई हूं. क्या मुझे बड़ी परियोजनाओं पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, या मुझे नाला-खडंजा (नाली की सफाई) पर ध्यान देना चाहिए?”


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क्या है सांसद आदर्श ग्राम योजना?

SAGY के तहत, लोकसभा और राज्यसभा के सांसदों को 2024 तक आठ चरणों में गांवों को गोद लेना था.

योजना की वेबसाइट के मुताबिक, “सांसद आदर्श ग्राम योजना का लक्ष्य वर्तमान संदर्भ को ध्यान में रखते हुए महात्मा गांधी की इस व्यापक और जैविक दृष्टि को वास्तविकता में बदलना है.”

SAGY वेबसाइट के आंकड़ों के अनुसार, 2015-16 में पहले चरण में 703 ग्राम पंचायतों को अपनाया गया था. आठवें चरण के आते-आते यह संख्या घटकर 284 रह गई.

आंकड़ों से यह भी पता चला है कि 2014 और 2019 के बीच SAGY-1 में 1,506 ग्राम पंचायतों को अपनाया गया था और SAGY-2 (2019-24) के दौरान 1,900 को अपनाया गया था.

इससे यह भी पता चला है कि हालांकि, मोदी सरकार की पसंदीदा परियोजना की शुरुआत अच्छी रही थी, लेकिन बाद के चरणों में इसमें सुस्ती आने लगी. 2014 की तुलना में 2023-24 में इसे अपनाने में 60 प्रतिशत की गिरावट आई. इसके अलावा, 2023-34 तक, केवल 3,406 ग्राम पंचायतों को अपनाया गया है — 6,000 के लक्ष्य का केवल आधा.

दिप्रिंट ने पहले रिपोर्ट की थी कि सांसदों के बीच रुचि की कमी, अधिकार क्षेत्र की बाधाएं और, सबसे महत्वपूर्ण बात, धन की अनुपस्थिति योजना में सुस्ती के मुख्यों कारणों में से है.

SAGY वेबसाइट के अनुसार, यह “योजना के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए मौजूदा केंद्रीय क्षेत्र, केंद्र प्रायोजित और राज्य योजनाओं की एक सीरीज़ से उपलब्ध संसाधनों को एकत्रित करता है और इस प्रकार, कोई एक्स्ट्रा धन ज़रूरी नहीं समझा जाता है”.

परियोजना के लिए इस्तेमाल की जाने वाली इन “केंद्र प्रायोजित योजनाओं” में संसद सदस्य स्थानीय क्षेत्र विकास योजना (एमपीएलएडीएस) शामिल हैं — जो सांसदों को अपने निर्वाचन क्षेत्रों में विकास कार्यक्रमों की सिफारिश करने के लिए दिया गया एक समर्पित कोष है.

अक्टूबर 2014 में योजना शुरू करते समय — केंद्र में उनकी सरकार के सत्ता में आने के पांच महीने बाद — मोदी ने स्पष्ट किया कि यह “पैसे की योजना नहीं है” और इसका मुख्य उद्देश्य “केंद्र सरकार की योजनाओं और लोगों की भागीदारी के माध्यम से ग्रामीण गांवों का व्यापक विकास” है.

उन्होंने कहा था, “हमारे विकास का मॉडल आपूर्ति-संचालित रहा है. योजनाएं दिल्ली और लखनऊ में बनती हैं और आगे बढ़ाई जाती हैं. हम इसे आपूर्ति-संचालित से मांग-संचालित में बदलना चाहते हैं.”

लेकिन, बढ़ती दिलचस्पी का एक प्रमुख संकेतक यह है कि इस योजना का संसद में कितना कम उल्लेख किया जाता है. सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 2015 और 2022 के बीच, लोकसभा में इसके बारे में 10 सवाल थे — इनमें से ज़्यादातर सवाल योजना की सफलता और अलग से फंड के बारे में पूछे गए. लगभग आधे सवाल बीजेपी सांसदों ने पूछे थे.

2016 में SAGY के पहले चरण के अंत में तत्कालीन भाजपा मंत्री बीरेंद्र सिंह सहित कई सांसदों ने केंद्र सरकार से योजना के वित्तपोषण तंत्र पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया था.

पूर्व ग्रामीण विकास मंत्री उपेन्द्र कुशवाह ने दिप्रिंट को बताया था कि एसएजीवाई उस तरीके से काम नहीं कर रही है जैसा सरकार ने सोचा था.

राष्ट्रीय लोक मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष, जो 2014 में योजना की शुरुआत के दौरान मोदी कैबिनेट में थे, ने दिप्रिंट को बताया, “सबसे बड़ी चुनौती राज्य सरकारों से समर्थन की कमी है. जिला प्रशासन रुचि नहीं दिखाता. अगर राज्य सरकार मदद करती, तो गांवों का अच्छा विकास हो सकता था.”


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अधूरे वादे

रावल में गांव के स्वास्थ्य केंद्र के नीले रंग के लोहे के दरवाजे जिन पर ताले लगे हैं, बने-बनाए लेकिन कभी इस्तेमाल न किए गए स्थानीय डाकघर की शाखा के जंग लगे नीले गेट और बंद पड़े आरओ प्लांट सभी एक ही कहानी बयां करते हैं — एक ऐसा गांव जिसे नज़रअंदाज़ किए जाने के लिए छोड़ दिया गया है.

रावल में हेमा मालिनी द्वारा लगवाया गया अब परित्यक्त आरओ प्लांट | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट

यमुना के किनारे बसे रावल गांव की आबादी 3,000 है, जिसमें गुज्जर, ब्राह्मण, निषाद और मुस्लिम समुदाय के लोग रहते हैं और यहां के ज्यादातर लोग खेती और मवेशी पालन में लगे हुए हैं.

निवासियों का कहना है कि भाजपा सांसद हेमा मालिनी गांव को गोद लेने के शुरुआती 2-3 साल तक सक्रिय रहीं, लेकिन जल्द ही उनकी दिलचस्पी खत्म हो गई.

तोताराम बताते हैं, “दर्जनों सोलर लाइट और एक आरओ प्लांट लगाया गया और एक स्वास्थ्य केंद्र बनाया गया, लेकिन अब ये सब धूल फांक रहे हैं क्योंकि गांव वाले इनका इस्तेमाल नहीं करते.”

स्थानीय स्वास्थ्य सेवा केंद्रों में डॉक्टर लगभग अनुपस्थित हैं क्योंकि यह अक्सर बंद रहता है, जिससे निवासियों को 10 किलोमीटर दूर मथुरा जाना पड़ता है, जबकि गांव का सबसे महत्वपूर्ण मंदिर — श्री राधा रानी जन्म स्थल मंदिर — जिसका उत्तर प्रदेश पर्यटन विभाग एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल की तरह प्रचार करता है, जहां अक्सर पर्यटक घूमने आते हैं और उनके लिए पीने के पानी की कोई सुविधा नहीं है.

रावल गांव का स्वास्थ्य केंद्र जो अक्सर बंद रहता है, जिससे निवासियों को इलाज के लिए मथुरा जाना पड़ता है | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट
रावल में बंद डाकघर | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट

रावल गांव के ग्राम प्रधान या मुखिया राजकुमार बघेल ने दिप्रिंट को बताया, यमुना तट पर बसे होने का मतलब है मानसून के दौरान बाढ़ और विस्थापन. खराब जल निकासी के कारण गांव की सड़कों पर सीवेज का गंद फैल जाता है. प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना जैसी केंद्रीय योजनाएं गांव तक नहीं पहुंच पाई हैं.

रावल में खुली नालियां | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट

तोताराम की तरह, बघेल भी मानते हैं कि हालांकि, इसे अपनाने के बाद से कुछ काम हुआ है, लेकिन SAGY योजना का उद्देश्य पूरा नहीं हुआ है.

सांसद के दौरे भी कम हो गए हैं — ग्रामीणों का कहना है कि जबकि वे पहले कुछ साल में अक्सर गांव में आती थीं, उनके अंतिम दौरे को एक साल से अधिक हो गया है.

बघेल ने दुख जताते हुए कहा, “अब, गांव को केवल नाम के लिए गोद लिया गया है.”

इन समस्याओं के बावजूद, कई लोग हेमा मालिनी का बचाव करने के लिए आगे आते हैं. उनमें से ही 35-वर्षीया हंस कौर हैं.

कौर, जो अपने घर के आंगन में गोबर के उपले थाप रही थीं, वे बताया कि कैसे सांसद द्वारा गांव में लगाई गई 40 सौर स्ट्रीट लाइटों में से अधिकांश कुछ ही महीनों में खराब हो गईं.

कौर, जिनका चेहरा एक मोटे घूंघट के पीछे छिपा हुआ है, दिप्रिंट को बताती हैं, “शाम को, पूरा गांव अंधेरे में डूब जाता है. कुछ ही महीनों में लाइटें खराब हो गईं और कोई भी उन्हें ठीक करने नहीं आया.”

वे मानती हैं कि सांसद को गांव में आखिरी बार आए हुए वक्त बीत गया है, लेकिन वे धीमी आवाज़ में यह भी कहती हैं: “हेमा जी बड़ी हस्ती हैं. उनके पास समय कहां है?”

रावल गांव का स्वास्थ्य केंद्र अक्सर बंद रहता है, जिससे निवासियों को इलाज के लिए मथुरा जाना पड़ता है | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट

बघेल भी मानते हैं कि शुरुआती सालों में हेमा मालिनी ने गांव के लिए बहुत कुछ किया था. “भारत की आज़ादी से लेकर कुछ साल पहले तक गांव में सिर्फ कच्ची सड़कें थीं, लेकिन एक चीज़ जो हुई है, वो है अच्छी सड़कें बनवाना.”

गांव के दूसरे हिस्से में 48-वर्षीय बृजभान अपने घर के बाहर खाट पर बैठे बीड़ी पी रहे हैं. बघेल की तरह वे भी गांव की सड़कों को भाजपा सांसद के “अच्छे कामों” में गिनते हैं.

उन्होंने कहा, “हम इस उपकार को कभी नहीं भूल सकते. कई सांसद आए और कई गए, लेकिन किसी ने हमारे लिए कुछ नहीं किया. अब हम इस चुनाव में उन्हें वोट देकर उनका कर्ज चुकाएंगे.”

‘आदर्श ग्राम सिर्फ एक छलावा’

इस बीच, पेठा की स्थिति रावल से कुछ अलग है. 5,000 की आबादी वाले इस गांव में ब्राह्मणों की संख्या ज़्यादा है. हालांकि, दलित (जाटव और धोबी), पिछड़े वर्ग (पटेल) और मुसलमान भी एक महत्वपूर्ण समूह हैं.

56-वर्षीय शिव सिंह पटेल के अनुसार, गांव में हमेशा से ही अच्छी बुनियादी संरचना रही है — अच्छी सड़कों से लेकर पर्याप्त बिजली और पानी के कनेक्शन तक.

उन्होंने कहा, “आदर्श ग्राम सिर्फ एक छलावा है. जब से उन्होंने (हेमा मालिनी) ने इसे गोद लिया है, तब से गांव में कुछ नहीं हुआ है.” उन्होंने आगे कहा कि सांसद ने कभी गांव का दौरा नहीं किया है.

दिसंबर में पर्यटन विभाग ने गांव में एक हेलीपैड बनाया, जो उत्तर प्रदेश के प्रमुख हिंदू तीर्थस्थलों में से एक गोवर्धन से 5 किलोमीटर दूर स्थित है, लेकिन हेलीपैड अभी तक चालू नहीं हुआ है.

पेठा गांव में यूपी पर्यटन विभाग द्वारा बनाया गया हेलीपैड | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट

इसकी अपेक्षाकृत समृद्धि के बावजूद, स्वच्छता और सफाई यहां चिंता का एक बड़ा कारण बनी हुई है. गांव के हर कोने में कूड़ा-कचरा फैला हुआ है और दिप्रिंट से बात करने वाले ग्रामीणों के अनुसार, बारिश होने पर नालियां ओवरफ्लो हो जाती हैं.

हालांकि, भले ही ग्रामीणों की शिकायत है कि यहां कोई काम नहीं हुआ है, फिर भी उन्हें उम्मीद है कि अगले कुछ सालों में स्थिति में सुधार होगा.

64-वर्षीय राधेश्याम ने कहा, “उन्हें (हेमा मालिनी)) इस (स्वच्छता) पर ध्यान देना चाहिए और इसी उम्मीद के साथ हम उन्हें मथुरा से तीसरी बार जिताएंगे.”

(संपादन : फाल्गुनी शर्मा)

(इस ग्राउंड रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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