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‘नीतीश ने कहा BJP जेडीयू को खत्म करना चाहती है, इसलिए लालू ने 2022 में दिया था समर्थन’ : मनोज झा

झा ने कहा कि राजद ने 2022 में नीतीश के साथ हाथ मिलाकर गलती नहीं की क्योंकि महागठबंधन सरकार ने लालू के बेटे तेजस्वी को डिप्टी सीएम के रूप में अपने विचारों को क्रियान्वित करने का मौका दिया.

बुधवार को पटना में राजद सांसद मनोज कुमार झा | फोटोः एएनआई
बुधवार को पटना में राजद सांसद मनोज कुमार झा | फोटोः एएनआई

पटना: जनता दल यूनाइटेड (जदयू) नेता और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर “कोई दूरदर्शिता न होने” का आरोप लगाते हुए राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के सांसद मनोज कुमार झा ने कहा है कि उनकी पार्टी के सुप्रीमो लालू यादव ने 2022 में सीएम को समर्थन देने का फैसला किया था, जब उन्होंने उन्हें बताया था कि भाजपा उनकी पार्टी को खत्म करना चाह रही है.

पिछले वीकेंड नीतीश ने भाजपा के साथ हाथ मिलाने के लिए जेडी (यू) के महागठबंधन गठबंधन को छोड़ दिया. उन्होंने रविवार को नौवीं बार बिहार के सीएम पद की शपथ ली.

2022 में नीतीश कुमार ने महागठबंधन में शामिल होने के लिए भाजपा से नाता तोड़ लिया था, जिसमें राजद, कांग्रेस और वामपंथी दल शामिल हैं. इससे पहले, 2013 में उन्होंने बीजेपी से नाता तोड़ लिया था, फिर 2015 में पांचवीं बार बिहार के सीएम पद की शपथ लेने के लिए लालू के साथ गठबंधन किया था. 2017 में उन्होंने भाजपा में फिर से शामिल होकर एक और यू-टर्न लिया.

नीतीश के राजनीतिक यू-टर्न के लंबे इतिहास ने उन्हें दोस्त से प्रतिद्वंद्वी बने लालू से “पलटू राम” निकनेम दिया है.

झा ने मंगलवार को दिप्रिंट से बातचीत में कहा, “जब नीतीश उनके (राजद) पास आए, तो उन्होंने कहा कि भाजपा उनकी पार्टी को खत्म करना चाहती है. पता है लालूजी कितने बड़े दिल वाले इंसान हैं. हमने सोचा कि हमें उनकी (नीतीश की) रक्षा करनी चाहिए क्योंकि वह परिवार का हिस्सा थे. महागठबंधन ने लालू के बेटे और बिहार के पूर्व डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव को अपने विचारों को क्रियान्वित करने का मौका दिया.”

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2020 के बिहार चुनाव में 243-सदस्यीय विधानसभा में जद (यू) 43 सीटों पर सिमट गई, जबकि भाजपा को 74 सीटें मिलीं. सांसद और लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के अध्यक्ष चिराग पासवान, जिन्होंने खुद को “पीएम नरेंद्र मोदी का हनुमान” कहा था. तब उन पर जद (यू) के खिलाफ उम्मीदवार उतारने और कम से कम 25 सीटों पर बाद की संभावनाओं को नुकसान पहुंचाने का आरोप लगाया गया था.

महागठबंधन के बारे में बोलते हुए, झा ने कहा, “नीतीश कुमार से हाथ मिलाना कोई गलती नहीं थी. ऐसी कुछ चीज़ें हैं जिनके प्रति आप लोगों के व्यापक हित में प्रतिबद्ध हैं. तेजस्वी जी ने लोगों को रोज़गार देने का संकल्प लिया था. 17 महीने की अल्पावधि में 4 लाख से अधिक नौकरियां दी गईं. कुमार 17 साल तक मुख्यमंत्री रहे. क्या ऐसा पहले भी हुआ था? नहीं, क्योंकि कुमार के पास दूरदृष्टि नहीं थी.”

उन्होंने कहा, “यह तेजस्वी का श्रेय था कि बिहार सामाजिक न्याय, समावेशी न्याय, नौकरियों के सृजन, बुनियादी ढांचे के निर्माण और बेहतर अस्पतालों के लिए जाना गया.”

झा ने कहा, “मुझे लगता है कि बिहार में हर कोई इसका श्रेय तेजस्वी को दे रहा है और शायद इसी बात ने बीजेपी को परेशान कर दिया है. हालांकि, मैं अब भी मानता हूं कि यह फैसला (गठबंधन छोड़ने का) कुमार ने अपनी मर्ज़ी से नहीं लिया था.” झा ने दावा किया कि उन्हें बताया गया था कि “बिहार सरकार के अधिकारी प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की जांच के दायरे में थे और नीतीश को एनडीए में शामिल करने के लिए एक उपकरण के रूप में इस्तेमाल किया गया.”

राजद नेता और पूर्व शिक्षा मंत्री चन्द्रशेखर ने भी इसी तरह के दावे किए हैं — कि नीतीश लालू और उनकी पत्नी राबड़ी देवी के पास यह कहने आए थे कि “भाजपा उन्हें खत्म करना चाहती है”.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, “असली कारण (रविवार को कुमार के भाजपा से हाथ मिलाने के पीछे) यह है कि ईडी जदयू नेताओं के कई करीबी लोगों से पूछताछ कर रही थी. (गठबंधन का) टूटना घोटालों पर पर्दा डालने के लिए हुआ, हमारी वजह से नहीं.”


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‘तेजस्वी ने बिहार शिक्षा विभाग को दिया जीवनदान’

रविवार को नीतीश के एनडीए में फिर से शामिल होने के बाद जद (यू) ने एक बयान जारी कर दोनों दलों के बीच असहज संबंधों के लिए तीन राजद नेताओं को दोषी ठहराया — सुधाकर सिंह, जिन्होंने सार्वजनिक रूप से कुमार पर कटाक्ष किया था और अक्टूबर 2022 में राज्य के कृषि मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था, एमएलसी सुनील सिंह, जिन्होंने सोशल मीडिया पर नीतीश के खिलाफ टिप्पणी की थी और चंद्रशेखर ने पिछले साल हिंदू महाकाव्य रामचरितमानस के खिलाफ अपनी टिप्पणियों के लिए कहा था कि यह “समाज में नफरत फैलाता है”.

चन्द्रशेखर ने दिप्रिंट को बताया कि उन्होंने कुछ भी गलत नहीं किया है. उन्होंने कहा, “यह (विषय पर उनका स्पष्टीकरण) विधानसभा की कार्यवाही में है. मैंने रामचरितमानस पर अपना बयान (समर्थक) दस्तावेज़ के साथ दिया था. मैंने एक शब्द भी नहीं बोला था. अगर कोई असहमत है तो उन्हें मेरे बयान को विधानसभा के अंदर चुनौती देनी चाहिए. स्वर्गीय राम मनोहर लोहिया मुझसे अधिक शिक्षित थे. उन्होंने भी यही बात कही थी.”

चन्द्रशेखर के अनुसार, जो लोग उनकी टिप्पणियों के लिए उनकी आलोचना कर रहे थे, वे गठबंधन से बाहर होने का बहाना ढूंढ रहे थे.

उन्होंने दिप्रिंट से कहा, “मेरे नेता ने मुझसे कभी नहीं कहा कि मैं ये बातें न कहूं. सच तो यह है कि हमारे नेता तेजस्वी यादव सरकारी नौकरी देने और बिहार में शिक्षा के स्तर को नये स्तर पर ले जाने समेत कई वादे पूरा करने में सफल रहे. पिछले 17 साल में राज्य में शिक्षा निचले स्तर पर पहुंच गई है. तेजस्वी के नेतृत्व में शिक्षा विभाग को जीवनदान दिया गया.”

(संपादन : फाल्गुनी शर्मा)

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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