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सहयोगियों को संदेश? बिहार BJP का पिछड़े वर्गों तक पहुंचने का प्रयास, पद के माध्यम से लुभाने की कोशिश

बीजेपी ने बिहार विधान परिषद में निषाद समुदाय के हरि सहनी को विपक्ष का नेता नियुक्त किया है. उनसे पूर्व सम्राट चौधरी, जो कुशवाहा समुदाय से आते हैं, को इस साल की शुरुआत में राज्य बीजेपी का प्रमुख बनाया गया था.

बिहार बीजेपी के नेता हरि सहनी को रविवार को पटना में राज्य विधान परिषद के नेता के रूप में नामित किए जाने के बाद पार्टी के राज्य प्रमुख सम्राट चौधरी मिठाई खिलाते हुए | फोटो: ANI

पटना: बीजेपी ने बिहार में प्रभावशाली निषाद समुदाय को लुभाने के लिए अपेक्षाकृत कम प्रोफ़ाइल वाले नेता, हरि सहनी को रविवार को बिहार विधान परिषद में विपक्ष के नेता के रूप में नियुक्त किया है.

सहनी से पहले इस पद पर सम्राट चौधरी थे, जो एक अन्य लो-प्रोफाइल नेता हैं और कुशवाहा जाति से ताल्लुक रखते हैं. कुशवाहा यादवों के बाद राज्य का दूसरा सबसे बड़ा ओबीसी समूह है.

चौधरी को इस साल की शुरुआत में बीजेपी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था. चौधरी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की आलोचना को लेकर मुखर रहे हैं और उन्हें 2025 के विधानसभा चुनाव जीतने की स्थिति में बीजेपी के संभावित मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में देखे जाते हैं.

नई नियुक्तियों से इस बात की अटकलें लगाई जा रही हैं कि बीजेपी छोटे दलों- सहयोगियों और संभावित सहयोगियों- को यह संदेश देना चाहती है कि वह बिहार में पिछड़ी जातियों के बीच अपना आधार बना सकती है.

खास तौर पर राजनीतिक हलकों में इन फैसलों को विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के मुकेश सहनी और राष्ट्रीय लोक जनता दल (आरएलजेडी) के उपेंद्र कुशवाहा के लिए एक संदेश के तौर पर देखा जा रहा है.

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बीजेपी सूत्रों से पता चला है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में वीआईपी के साथ गठबंधन की बातचीत सीट की मांग को लेकर विफल हो गई है.

मुकेश सहनी ने 2020 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के साथ गठबंधन किया था और नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार में मंत्री बने थे. हालांकि, बाद में उन्होंने बीजेपी से नाता तोड़ लिया और 2022 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में 50 से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ा, जहां उन्होंने कथित तौर पर प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी की.

इस बीच, आरएलजेडी ने बीजेपी के साथ गठबंधन की घोषणा की है.

हालांकि, बीजेपी ने इन नियुक्तियों को लेकर कुशवाहा और सहनी को एक संदेश देने की अटकलों का खंडन किया है. बिहार बीजेपी के प्रवक्ता प्रेम रंजन पटेल ने दिप्रिंट से कहा, “हमारी पार्टी उन वर्गों को प्रतिनिधित्व दे रही है जिन्हें या तो अनदेखा किया गया है या अपर्याप्त प्रतिनिधित्व दिया गया है. हमारे पास किसी भी वर्ग में जमीनी स्तर पर पार्टी कार्यकर्ताओं की कमी नहीं है.”

हालांकि कुशवाहा ने कहा कि एनडीए और उसमें शामिल दलों के बीच अंतर है.

कुशवाहा ने कहा, “पार्टियां ऐसे काम करती हैं जिनसे उन्हें लगता है कि उनकी अपनी पार्टी मजबूत होगी. मैं ऐसे कदम भी उठाता हूं जो मुझे लगता है कि मेरी पार्टी राष्ट्रीय लोक जनता दल (आरएलजेडी) को मजबूत करेंगे. अगर बीजेपी ने सम्राट चौधरी और हरि सहनी को आगे बढ़ाया है, तो इसका मतलब एनडीए में विरोधाभास नहीं है.”

उन्होंने जोर देकर कहा कि वह एनडीए का हिस्सा हैं और उन्होंने 18 जुलाई को दिल्ली में गठबंधन की बैठक में भाग लिया था, जिसमें 39 गठबंधन दलों ने भाग लिया था.

इस बीच, वीआईपी के मुकेश सहनी- जो निषाद समुदाय के नेता होने का दावा करते हैं – ने कहा कि बीजेपी को उनकी ‘निषाद आरक्षण यात्रा’ से खतरा महसूस हो रहा है. ‘निषाद आरक्षण यात्रा’ निषाद समुदाय के लिए आरक्षण का अभियान है.

हरि सहनी, एक पूर्व सरकारी कर्मचारी, जिन्हें 2022 में बीजेपी द्वारा बिहार के उच्च सदन के लिए नामांकित किया गया था, दरभंगा जिले से हैं और मुकेश सहनी की तरह, मल्लाह जाति से ताल्लुक रखते हैं. यह निषाद का ही एक उप-समूह है.

वैशाली, मुजफ्फरपुर, खगड़िया, मधुबनी और दरभंगा समेत उत्तर बिहार की कई लोकसभा सीटों पर मल्लाह समुदाय की अच्छी-खासी मौजूदगी है.

मुकेश सहनी ने सीट बंटवारे पर बीजेपी के साथ किसी भी बातचीत से इनकार करते हुए सोमवार को दिप्रिंट को बताया, “मैं हरि सहनी को उनकी पदोन्नति के लिए बधाई देता हूं. लेकिन उन्हें यह याद रखना चाहिए कि उन्हें यह पद निषाद समाज में मेरे द्वारा पैदा की गई जागरूकता के कारण मिला है.”


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फ्लिप-फ्लॉप

विभिन्न जातियों के अपने नेताओं को बढ़ावा देने के बीजेपी के कदम को वीआईपी और जीतन राम मांझी के नेतृत्व वाले हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (एचएएम) जैसे छोटे सहयोगियों पर निर्भरता कम करने के प्रयास के रूप में देखा जाता है, जिन्हें अविश्वसनीय माना जाता है.

मुकेश सहनी और उपेन्द्र कुशवाहा दोनों के पास एनडीए छोड़ने का ट्रैक रिकॉर्ड है. कुशवाहा 2014 से बीजेपी के सहयोगी थे, लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले उन्होंने इसे छोड़कर ग्रैंड अलायंस में शामिल हो गए. 2020 के विधानसभा चुनावों के बाद, वह जनता दल-यूनाइटेड (जेडीयू) में शामिल हो गए, लेकिन इस साल की शुरुआत में उन्होंने फिर से अपनी पार्टी आरएलजेडी बना ली.

हम के नेता जीतन राम मांझी, पूर्व मुख्यमंत्री और दलित नेता, ने भी अतीत में कई बार अपनी वफादारी बदली है. वह 2015 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के सहयोगी थे, फिर 2019 के लोकसभा चुनाव में आरजेडी से हाथ मिला लिया. 2020 के विधानसभा चुनावों से पहले, वह जद (यू) में वापस आ गए और वर्तमान में फिर से बीजेपी के साथ हैं.

बीजेपी के एक सांसद ने नाम न छापने का अनुरोध करते हुए दिप्रिंट को बताया, “समाज के कुछ वर्गों से समर्थन लाने के लिए छोटी पार्टियां आवश्यक हैं, लेकिन सहयोगी के रूप में अत्यधिक अविश्वसनीय और मांग वाली हैं.”

उन्होंने कहा कि बीजेपी के लिए यह स्वाभाविक है कि उसके अपने नेता और आधार इन वर्गों का प्रतिनिधित्व करें.

हालांकि, बीजेपी में सावधानी है क्योंकि इसी तर्ज पर पहले किए गए प्रयोग से कुछ खास परिणाम नहीं मिला था.

2020 के विधानसभा चुनावों के बाद, बीजेपी ने ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) के तारकिशोर प्रसाद और ईबीसी (अत्यंत पिछड़ा वर्ग) की सदस्य रेणु देवी को नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली सरकार में डिप्टी सीएम बनाया. बीजेपी सूत्रों ने कहा कि वे गैर-यादव पिछड़े वर्गों को बीजेपी की ओर आकर्षित करने में विफल रहे.

(संपादन: ऋषभ राज)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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