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स्थानीय निकाय चुनावों में हार के बाद MP BJP के नेताओं में मनमुटाव की क्या है वजह

स्थानीय नेताओं ने फग्गन कुलस्ते और प्रहलाद पटेल सहित कई राज्य और केंद्रीय मंत्रियों पर गुटबंदी को पार्टी हितों से ऊपर रखने का आरोप लगाया है. एमपी बीजेपी महासचिव शिकायतों से अवगत हैं.

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने स्थानीय निकाय चुनावों के 'शानदार' परिणाम का जश्न मनाया | ट्विटर | @ChouhanShivraj

नई दिल्ली: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की मध्य प्रदेश इकाई ने पिछले सप्ताह संपन्न हुए स्थानीय निकाय चुनावों में अपनी ‘ऐतिहासिक जीत‘ का भरपूर जश्न मनाया लेकिन इस कवायद ने पार्टी के विभिन्न गुटों के बीच मनमुटाव को भी सामने लाकर रख दिया है. साजिश और जानबूझकर नुकसान पहुंचाने जैसे आरोपों से इन बातों को और हवा मिली है.

ग्रामीण निकाय चुनावों- त्रिस्तरीय चुनावों के अंतिम चरण में भाजपा के कुछ ‘आधिकारिक’ उम्मीदवारों ने आरोप लगाया है कि कुछ केंद्रीय मंत्रियों और शिवराज सिंह चौहान कैबिनेट के सदस्यों ने उनकी हार के लिए काम किया, जिसकी वजह से कांग्रेस को फायदा पहुंचा.

स्थानीय निकाय चुनाव के इस चरण में 51 जिला पंचायतों के अध्यक्षों के साथ-साथ अन्य पदों के लिए भी अप्रत्यक्ष मतदान हुआ. भाजपा समर्थित उम्मीदवारों ने 41 जिला पंचायत अध्यक्ष पदों पर जीत हासिल की, जबकि आठ पद कांग्रेस समर्थित और दो निर्दलीय उम्मीदवारों के पास गए.

हारने वाले भाजपा उम्मीदवारों में डिंडोरी से दो बार के जिला पंचायत अध्यक्ष और भाजपा के पूर्व राज्य मंत्री ओम प्रकाश धुर्वे की पत्नी ज्योति प्रकाश धुर्वे शामिल हैं. उन्होंने कांग्रेस समर्थित उम्मीदवार से अपनी हार के लिए केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते को जिम्मेदार ठहराया है. दूसरी ओर, कुलस्ते के सहयोगियों ने धुर्वे पर पार्टी के अनुसार काम नहीं करने का आरोप लगाया है.

दमोह में पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष शिव चरण पटेल- केंद्रीय मंत्री और दमोह के सांसद प्रह्लाद सिंह पटेल के करीबी सहयोगी ने राज्य के पीडब्ल्यूडी मंत्री गोपाल भार्गव और अन्य पर कांग्रेस समर्थित उम्मीदवार की जीत में मदद करने की साजिश रचने का आरोप लगाया है.

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हरदा में भी ऐसी ही कहानी है, जहां राज्य के मंत्री कमल पटेल कांग्रेस की रीवा पटेल की जीत के बाद से कार्यकर्ताओं से कुछ ऐसे ही आरोपों का सामना कर रहे हैं. रीवा कमल पटेल की चचेरी बहन है.

दिप्रिंट से बात करते हुए बीजेपी के राज्य महासचिव भगवानदास सबनानी ने कहा कि उन्हें आरोपों के बारे में जानकारी है. वह बताते हैं, ‘पार्टी उन नेताओं की शिकायतों को सुन रही है जो दूसरों पर अपने मौके को खराब करने का आरोप लगा रहे हैं लेकिन 15 अगस्त के बाद ही संबंधित जिलों में विस्तृत विश्लेषण किया जाएगा.’

वैसे भाजपा ने स्थानीय निकाय चुनावों में अन्य सभी दलों को पछाड़ते हुए साबित कर दिया कि पार्टी 2023 के एमपी विधानसभा चुनावों के लिए तैयार है. लेकिन इन चुनावों ने मेयर पदों को हासिल करने के क्लीन स्वीप को नहीं दोहराया, जो उसने 2014 में अंतिम दौर में किया था. पार्टी ने 16 में से नौ मेयर पदों पर जीत हासिल की है. जबकि कांग्रेस के खाते में पांच सीट गई हैं. पिछली बार कांग्रेस के पास एक भी पद नहीं था. वहीं आम आदमी पार्टी ने भी एक पद के साथ अपना खाता खोला. ऑफ रिकॉर्ड पार्टी के नेताओं ने नुकसान के लिए ‘अंदरूनी लड़ाई, खराब उम्मीदवार चयन और अति आत्मविश्वास’ को जिम्मेदार ठहराया है.

नगर निकाय की परिषद के अध्यक्ष के चुनाव के लिए 5 अगस्त को होने वाले मतदान से पहले भाजपा ने मंगलवार को ग्वालियर नगर निगम में अपने सभी 34 पार्षदों को दिल्ली स्थानांतरित कर दिया. जाहिर तौर पर यह वरिष्ठ नेताओं के ‘गुटों’ के बीच मतभेदों का मुकाबला करने के लिए उठाया गया कदम था.


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एक-दूसरे पर उंगली उठाना, धमकी का वायरल वीडियो और विवादित मिठाई

डिंडोरी में बीजेपी समर्थित उम्मीदवार ज्योति धुर्वे ने सीएम चौहान और प्रदेश पार्टी अध्यक्ष वीडी शर्मा से शिकायत करते हुए कहा कि केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते ने सुनिश्चित किया कि उन्हें जीतने के लिए जरूरी वोट न मिल पाएं.

नाम न छापने की शर्त पर धुर्वे के एक करीबी ने आरोप लगाया, ‘जिला पंचायत अध्यक्ष पद के चुनाव के लिए भाजपा और कांग्रेस को पांच-पांच वोट मिले. दो सदस्यों ने उनका समर्थन करने के लिए वादा किया था. लेकिन कुलस्ते उनमें से एक को दिल्ली ले गए. यह सदस्य वोट नहीं दे पाया, इसलिए ज्योति हार गई.

उधर भाजपा के डिंडोरी जिले के अध्यक्ष और कुलस्ते के करीबी नरेश राजपूत ने उनकी हार के लिए धुर्वे को जिम्मेदार ठहराया.

दिप्रिंट से बात करते हुए राजपूत ने आरोप लगाया: ‘उन्होंने चुनाव के लिए संगठन को विश्वास में नहीं लिया और अकेले प्रचार किया. उन्होंने पार्टी कार्यकर्ताओं को गालियां भी दीं. संगठन को साथ लिए बिना कोई कैसे जीत सकता है? यहां तक कि उनके समर्थक भी उन्हें वोट देने को तैयार नहीं थे.’

मतदान से कुछ समय पहले धुर्वे का स्थानीय रूप से राजपूत को धमकी देने वाला एक वीडियो व्यापक रूप से वायरल हो गया था: ‘मैं रोड पर आकर लात मारुंगी तो कोई बचाने नहीं आएगा… जाकर वी.डी. शर्मा को बता दो.’

दमोह में भी यही कहानी चल रही है, जहां अलग-अलग गुटों ने कथित तौर पर जिला पंचायत अध्यक्ष पद के लिए अलग-अलग उम्मीदवारों का समर्थन किया था.

पिछले रविवार को पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष शिवचरण पटेल ने कथित तौर पर दमोह के सांसद और केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद पटेल के घर पर आरोप लगाया कि एमपी पीडब्ल्यूडी मंत्री गोपाल भार्गव, राज्य के पूर्व वित्त मंत्री जयंत मलैया (दमोह के पूर्व सांसद), राज्य के राजस्व मंत्री और दमोह प्रभारी गोविंद सिंह राजपूत और भाजपा जिलाध्यक्ष प्रीतम सिंह लोधी ने भाजपा समर्थित आधिकारिक उम्मीदवार की संभावना को खत्म करने की साजिश रची, नतीजतन कांग्रेस के दावेदार की जीत हुई.

एमपी में एक भाजपा नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘प्रह्लाद पटेल गुट ने पद के लिए उर्मिला बलराम पटेल का समर्थन किया लेकिन भार्गव और राजपूत दल ने पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष चंद्रभान सिंह की पत्नी जानकी देवी का पक्ष लिया. हालांकि, इन शीर्ष नेताओं के समर्थन के बावजूद जानकी (आधिकारिक उम्मीदवार) ने नामांकन दाखिल नहीं किया था. प्रह्लाद पटेल गुट ने अब प्रदेश पार्टी अध्यक्ष वी.डी. शर्मा को उन नेताओं के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए कहा जो उन्हें (पटेल) जिले में कमजोर करने की साजिश कर रहे थे.’

स्थानीय स्तर पर काफी परेशान होने के कारण प्रह्लाद पटेल ने कथित तौर पर राजपूत के चचेरे भाई, टिंकू राजा की हार का जश्न मनाया. वह एक अन्य जिला पंचायत पद के लिए दौड़ में थे. पटेल की भाजपा समर्थित सर्वजीत सिंह को मिठाई खिलाते हुए फोटो को सोशल मीडिया पर व्यापक रूप से प्रसारित किया गया था. इसे पार्टी में गुटीय विभाजन के संकेत के रूप देखा जा रहा है.

गोविंद सिंह राजपूत ज्योतिरादित्य सिंधिया के करीबी विश्वासपात्र हैं, जिन्होंने 2020 में कांग्रेस को छोड़ भाजपा का हाथ थामा था. तब से सिंधिया गुट और राज्य में भाजपा के पुराने लोगों के बीच अहमियत के लिए संघर्ष चल रहा है.

उधर हरदा में भाजपा जिलाध्यक्ष अमर सिंह मीणा उस समय फूट-फूट कर रो पड़े, जब कांग्रेस समर्थित रीवा पटेल ने जिला पंचायत अध्यक्ष का पद जीता. रीवा राज्य मंत्री कमल पटेल की चचेरी बहन हैं.


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असंतोष की आवाजें

मेयर चुनाव के नतीजे आने के तुरंत बाद भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने शहरी स्थानीय निकाय चुनावों में मतदाता सूची में स्पष्ट विसंगतियों को लेकर सवाल उठाए. कांग्रेस ने भी इस मसले पर चिंता जाहिर की थी.

एक टीवी साक्षात्कार में उन्होंने कहा कि यह ‘चिंताजनक’ है कि मतदाता सूचियों को संशोधित किया गया था ताकि कई लोग अपना वोट डालने में असमर्थ हों. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को इस मामले को देखना चाहिए.

भाजपा के सात मेयर पदों में से कई वरिष्ठ पार्टी नेताओं के गढ़ के अंतर्गत आते हैं. मसलन ग्वालियर, मुरैना और दमोह को क्रमशः केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया, नरेंद्र सिंह तोमर और प्रहलाद पटेल के गढ़ के रूप में देखा जाता है. दूसरी ओर कटनी प्रदेश अध्यक्ष वी.डी. शर्मा और जबलपुर पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और सांसद राकेश सिंह का गृह क्षेत्र है. बीजेपी का सबसे अच्छा प्रदर्शन सीएम के गढ़ मालवा क्षेत्र में रहा.

भाजपा के एक नेता ने बताया, ‘ज्यादातर जगहों पर वरिष्ठ नेताओं के उम्मीदवार चुनाव हार गए. फिलहाल शिवराज के तमाम विरोधियों ने आलाकमान पर सीएम बदलने का दबाव बनाने का मौका गंवा दिया है. जो लोग शिवराज पर अपने खेमे के नेता को विधानसभा टिकट देने का दबाव बना रहे हैं, उनके लिए सौदेबाजी की संभावनाएं कम हैं.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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