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वफादारी, सीमाएं, विद्रोह – ‘राजनीति के पवार ब्रांड’ को कौन से फैक्टर आकार देते हैं और यह किस दिशा में जा रहा है

केंद्रीय एजेंसियों के दबाव में विधायकों का इस्तीफा पवार के लिए सहानुभूति ला सकता है, उनके राजनीतिक उत्तराधिकारी - भतीजे अजीत या बेटी सुप्रिया - का सवाल एनसीपी को परेशान करता है.

इफ्तार पार्टी के दौरान शरद पवार को माला पहनाते हुए | ANI

मुंबई: 1980 और 1990 के दशक से पार्टी सुप्रीमो शरद पवार के करीबी रहे राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के नेता स्वीकार करते हैं कि ‘राजनीति का पवार ब्रांड’ गठबंधन तोड़ने और बनाने से कहीं ज्यादा है और पहले ही वे राजनीतिक अवसरों को सूंघ लेते हैं. लेकिन वे यह भी याद करते हैं कि कैसे इसमें हमेशा अत्यधिक वफादारी का स्वाद रहा है.

पवार की तरफ और पवार की ओर से. सहयोगियों और प्रतिद्वंद्वियों: दोनों के लिए.

दिप्रिंट से बात करते हुए, ऐसे ही एक वरिष्ठ विधायक ने याद किया कि कैसे 1991 में जब पवार को कुछ कांग्रेस नेताओं के कड़े प्रतिरोध का सामना करना पड़ रहा था, तो पवार खेमे के एक वरिष्ठ पार्टी नेता ने एक सामाजिक कार्यक्रम में, एक विरोधी खेमे के नेता की बांह पकड़ ली थी. अगले ही मिनट, उस नेता की आंखों में आंसू आ गए, जिनका हाथ पवार के वफादार ने थामा हुआ था.

“उसने शांत, विनम्र सामाजिक माहौल में उन्होंने चुपचाप हाथ को पकड़ा और जोर से मरोड़ दिया, यह चोट पहुंचाने के लिए काफी था. संदेश जोरदार और साफ था. पवार के समर्थन में आए नेता उनके खिलाफ बगावत बर्दाश्त नहीं करेंगे.”

32 साल बाद, एनसीपी नेता अजीत पवार, शरद पवार के भतीजे, संभवतः भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ हाथ मिलाने के लिए राकांपा को विभाजित या विलय करने की अटकलें और कई विधायकों की आपत्ति पर पार्टी के पुराने लोगों ने अफसोस जताया है. ये पुराने लोग एक ऐसे काडर की कमी पर मलाल करते हैं, जो वरिष्ठ पवार की खातिर हाथ मरोड़ सकें.

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उन्हें इस बात का भी मलाल है कि आज की राजनीति में सत्तारूढ़ और विपक्षी दलों के बीच कोई लक्ष्मण रेखा नहीं है. ऊपर जिस विधायक का जिक्र किया गया है उन्होंने एक और किस्सा सुनाया जिससे पता चलता है कि पवार को उनकी राजनीति कितनी पसंद है.

एक विशिष्ट समय सीमा दिए बिना, उन्होंने कहा, एनसीपी सत्ता में थी और तत्कालीन ठाणे जिला कलेक्टर एक विपक्षी नेता के बेटे के बंगले के संबंध में कुछ अनियमितताओं की जांच कर रहे थे. विपक्ष के इस नेता ने पवार को फोन किया और उनसे यह सुनिश्चित करने का अनुरोध किया कि बंगला अछूता रहे. विधायक ने कहा, “पवारसाहेब ने फाइल मांगी और वह फाइल का अंत था.”

महाराष्ट्र में आज की राजनीतिक स्थिति अतीत के कुछ सियासी नाटकों से कुछ मेल खाती है – पवार के पीछे अस्वाभाविक गठजोड़, एक सत्ता-विरोधी स्वाद, और कई बार यह पहेली की मराठा नेता वास्तव में किस रास्ते पर जा रहे हैं. राजनीतिक पर्यवेक्षकों और एनसीपी नेताओं का कहना है कि बॉलगेम को बदलने वाला एकमात्र कारक यह है कि आज की राजनीति में वफादारी और सीमाओं की अवधारणाएं पहले जैसी नहीं हैं.

कई नेताओं ने दिप्रिंट से बात करते हुए कहा कि एक विपक्षी नेता के बेटे को बचाने वाली पवार की घटना के ठीक विपरीत, आज, एनसीपी विधायक केंद्रीय एजेंसियों के “जबरदस्त दबाव” में हैं, जो उनके व्यवसाय और संपत्ति की जांच करने की धमकी दे रहे हैं और उनके करीबी परिवारों को पूछताछ के दायरे में घसीट रहे हैं. यह वह है जो एनसीपी नेताओं की चर्चाओं को हवा दे रहा है जो संभवतः किसी न किसी रूप में भाजपा को समर्थन दे रहे हैं.

एक दूसरे वरिष्ठ विधायक और पवार के वफादार ने कहा, “बातचीत चल रही है. पवार साहब की विधायकों को केवल यही सलाह है कि जब तक वे कर सकते हैं तब तक दबाव झेलें.”

कहा जाता है कि पवार ने अपने विधायकों को सीधे तौर पर जो बताया, वह उन्होंने पिछले हफ्ते मुंबई में पार्टी के एक कार्यक्रम में अप्रत्यक्ष रूप से कहा था, जिसे अजीत ने पूर्व प्रतिबद्धताओं का हवाला देते हुए छोड़ दिया था. पवार ने यह आरोप लगाया कि अनिल देशमुख, नवाब मलिक और शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) राज्यसभा सांसद संजय राउत जैसे राकांपा नेताओं को “गलत तरीके से निशाना बनाया गया है.” पवार ने कहा, “इन दिनों जब आप मैदान पर जाते हैं और दो लोगों को लड़ते हुए देखते हैं, तो पहला दूसरे से कहता है, ‘तुम चुप रहो, नहीं तो मैं तुम पर ईडी (प्रवर्तन निदेशालय) लगा दूंगा.”

पवार ने कहा, “यह सब दिखाता है कि कैसे सत्ता का दुरुपयोग किया जा रहा है और आलोचकों को चुप कराया जा रहा है. मैं सबसे अपील कर रहा हूं, हमें जागते रहना है. इसके खिलाफ हमें लड़ना होगा. कीमत कुछ भी हो हमें इसके बहकावे में नहीं आना चाहिए और हमें किसी भी अन्याय का सामना करने वाले अपने पार्टी सहयोगियों के साथ मजबूती से खड़ा होना चाहिए.”

एनसीपी वर्तमान में महा विकास अघाड़ी का हिस्सा है, जो शिवसेना (यूबीटी) और कांग्रेस के साथ तीन-पक्षीय गठबंधन है, जिसे पवार ने खुद 2019 में गठित किया था.


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गठबंधन के राजा, तब और अब

पवार चाचा और भतीजे के बीच मनमुटाव कोई नई बात नहीं है क्योंकि शरद पवार – बेटी सुप्रिया सुले या भतीजे अजीत – के बाद पार्टी में नंबर दो के रूप में किसे पेश किया जाएगा, यह सवाल बना हुआ है. यह उबल रहा है और 2019 में विद्रोह की वजह बना, तब अजीत ने एनसीपी के कुछ विधायकों के समर्थन से, भाजपा के साथ मुख्यमंत्री के रूप में देवेंद्र फडणवीस और डिप्टी सीएम के रूप में बारामती विधायक के साथ सरकार बनाई. सरकार सिर्फ 72 घंटे चली क्योंकि एक के बाद एक एनसीपी के सभी विधायक पवार के पाले में लौट आए, ऐसी ही अजीत ने किया था. फडणवीस ने इस साल फरवरी में मराठी टीवी चैनल टीवी9 मराठी से बात करते हुए सुझाव दिया था कि पवार को फडणवीस-अजीत की आधी रात के शपथ ग्रहण के बारे में पता था.

शरद पवार के करीबी एनसीपी के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि पार्टी के भीतर विद्रोह उनके लिए कोई नई बात नहीं है. उन्होंने उनका नेतृत्व करने के साथ-साथ उनका सामना भी किया है. वह जितने साल सत्ता में रहे उससे ज्यादा साल सत्ता से बाहर रहे. लेकिन, इससे कोई फर्क नहीं पड़ा क्योंकि वह खुद अपनी शक्ति का केंद्र बन गए थे.’

बारामती क्षत्रप को महाराष्ट्र में गठबंधन के राजा के रूप में पहचाना जाता है, जो समय की आवश्यकता के अनुसार मित्र और शत्रु बदलते हैं. उन्होंने इसे बदलने के लिए पार्टियों के अपने पैचवर्क गठबंधन को सिलाई करके राज्य में पहले गठबंधन प्रयोग को खारिज कर दिया था.

1978 में, कांग्रेस (आई), जिसमें पूर्व प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी के समर्थक और डी. देवराज उर्स के नेतृत्व में कांग्रेस (उर्स) से अलग हुए गुट शामिल थे, ने बतौर मुख्यमंत्री वसंतदादा पाटिल के साथ राज्य में चुनाव के बाद गठबंधन सरकार बनाई थी. सत्तारूढ़ कांग्रेस के दो गुटों के बीच संबंध खराब थे और दोनों पक्षों में कई लोग गठबंधन के विरोध में थे. महीनों के भीतर, पवार के नेतृत्व में एक विद्रोही समूह ने नाजुक सरकार को गिरा दिया था.

उन्होंने प्रगतिशील डेमोक्रेटिक फ्रंट (पीडीएफ) में जनता पार्टी, किसान और श्रमिक पार्टी और रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया के साथ गठबंधन किया, पहले गठबंधन प्रयोग को दूसरे के साथ बदल दिया, और पहली बार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने. 1985 में एक समय पीडीएफ में बीजेपी भी शामिल थी.

एनसीपी में कुछ लोग 1985 के विधानसभा चुनावों की आज की स्थिति के बीच समानताएं रखते हैं, जब विपक्ष के अधिकांश दलों ने कांग्रेस (आई) के खिलाफ पवार का समर्थन किया था.

यह पीडीएफ कांग्रेस के खिलाफ 1985 का चुनाव नहीं जीत पाया, यह अप्रासंगिक है. खास बात यह है कि इसने उस समय कांग्रेस को कड़ी टक्कर दी थी. पवार ने अंततः 1986 में कांग्रेस के अपने गुट का कांग्रेस (आई) में विलय कर दिया.

पुणे विश्वविद्यालय के राजनीति और लोक प्रशासन विभाग के 2010 के एक पेपर में कहा गया है, “एक मायने में, 1978 में पीडीएफ के गठन ने राज्य में कांग्रेस प्रणाली की गिरावट को चिह्नित किया … पवार ने विपक्ष की एक प्रगतिशील और लोकतांत्रिक छवि पेश करने की कोशिश की.”

सुहास पलशिकर, नितिन बिरमल और विवेक घोटले द्वारा ‘महाराष्ट्र में गठबंधन- राजनीतिक विखंडन या सामाजिक पुनर्गठन? में लिखा है, “हालांकि, 1981 के बाद से ही पवार के कांग्रेस (आई) में विलय के बारे में खबरें थीं क्योंकि राज्य स्तर के कई मराठा नेता एक-एक करके इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस में शामिल हो रहे थे.”

1998 में, पवार ने पार्टी के भीतर सोनिया गांधी के विदेशी मूल के मुद्दे को उठाने के कारण कांग्रेस से नाता तोड़ लिया.

राजनीतिक टिप्पणीकार अभय देशपांडे ने कहा कि 1985 की स्थिति और अब की स्थिति के बीच निश्चित समानताएं हैं. देशपांडे ने दिप्रिंट को बताया, “उस समय यह कांग्रेस विरोधी था. अब केंद्रीय स्तंभ भाजपा है और कांग्रेस सहित सभी पार्टियां एक साथ इसके खिलाफ हैं. 1985 में स्पष्ट वैचारिक मतभेदों के बावजूद भाजपा गठबंधन का हिस्सा थी. अब, वैचारिक मतभेदों के बावजूद, यह शिवसेना (यूबीटी) है.”

उन्होंने कहा, “हालांकि, एक अंतर है. 1985 में हर जगह कांग्रेस की मौजूदगी थी. बीजेपी अभी भी उस सुरक्षित जगह पर नहीं है. जिन राज्यों में यह पहले से ही मजबूत है, वहां यह संतृप्ति बिंदु (सेचुरेशन पॉइंट) पर पहुंच गया है, और महाराष्ट्र में यह गठबंधन (विपक्षी दलों का) इतना शक्तिशाली है कि यह वास्तव में एक अंतर ला सकता है. इसलिए 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी इस गठबंधन को तोड़ने की कोशिश जरूर करेगी.

पावर प्रेशर 

पिछले हफ्ते, जैसे ही अजीत के संभावित विद्रोह की चर्चा तेज हुई, उन्होंने विधान भवन के बाहर 40 मिनट तक खंडन किया और मीडिया को विवाद के लिए दोषी ठहराया. पार्टी के कई सूत्रों ने कहा, शरद पवार ने अपनी टिप्पणियों के साथ अपने भतीजे को मजबूर किया होगा – जैसा कि शिवसेना (यूबीटी) के राज्यसभा सांसद संजय राउत के कॉलम ‘रोखठोक (नियंत्रण)’ में पार्टी के मुखपत्र ‘सामना’ में पेश किया गया है – केंद्रीय एजेंसियों से अत्यधिक दबाव होने के बारे में और जबकि एनसीपी एक पार्टी के रूप में भाजपा में शामिल नहीं होगी, “दबाव में कुछ लोग छोड़ सकते हैं, लेकिन यह उनका व्यक्तिगत निर्णय होगा.”

पार्टी के चिंतित सदस्य, हालांकि, इस बात की ओर इशारा करते हैं कि एनसीपी के पूर्व मंत्री अनिल देशमुख को एक साल से अधिक समय तक कथित जबरन वसूली और मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप में कैसे गिरफ्तार किया गया था और कैसे उनके परिवार को भी गर्मी का सामना करना पड़ा था. देशमुख के एक करीबी सहयोगी ने दिप्रिंट को बताया, ‘छह महीने तक उन्हें नहीं पता था कि उनके बेटे कहां हैं. नवंबर 2021 में गिरफ्तार किए गए काटोल विधायक पिछले साल दिसंबर में जेल से छूटकर आए थे.

पूर्व डिप्टी सीएम अजीत खुद महाराष्ट्र राज्य सहकारी बैंक से संबंधित एक कथित धोखाधड़ी के मामले में ईडी की जांच का सामना कर रहे हैं. ईडी ने 2021 में, जरांदेश्वर सहकारी साखर कारखाना की 65.75 करोड़ रुपये की संपत्ति कुर्क की, जिसमें आरोप लगाया गया कि सहकारी चीनी मिल को खरीदने के लिए इस्तेमाल की गई धनराशि को एक दूसरी मिल के माध्यम से भेजा गया था, जिसने बदले में एक कंपनी से धन प्राप्त किया था. इसमें अजीत और उनकी पत्नी बहुसंख्यक शेयरधारक हैं. इस महीने की शुरुआत में ईडी ने मामले में अपना पहला आरोप पत्र दाखिल किया, लेकिन अजीत और उनकी पत्नी को आरोपी के रूप में उल्लेख नहीं किया.

हालांकि, बारामती विधायक ने खुद स्पष्ट किया कि उन्हें “क्लीन चिट” नहीं मिली है और जांच चल रही है.

पवार के करीबी माने जाने वाले पहले उल्लेखित दूसरे विधायक ने कहा, “मुझे नहीं पता कि विधायक कब तक इस दबाव को झेल पाएंगे. जब कोई आपको शब्दों में एक विकल्प देता है जैसे ‘क्या आप अपनी स्वतंत्रता और परिवार या अपनी राजनीतिक प्रतिबद्धता को पसंद करते हैं’, तो यह वास्तव में एक विकल्प नहीं है.

पार्टी के विधायक, एनसीपी सूत्रों ने कहा, यह देखने के लिए दो प्रमुख घटनाओं की प्रतीक्षा कर रहे हैं कि क्या महाराष्ट्र में ज्वार एमवीए के पक्ष में हो सकता है – पहला, शिवसेना (यूबीटी) की शिंदे के 16 विधायकों के खिलाफ अयोग्यता याचिका पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला शिविर, और दूसरा अगले महीने होने वाले कर्नाटक विधानसभा चुनाव के परिणाम.


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राजनीति और पवार परिवार

एनसीपी के एक पदाधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, “इन सबने यह सुनिश्चित किया है कि जो भी विधायक पार्टी छोड़ेगा, वह दबता हुआ नजर आएगा और अगर आज 70 फीसदी विधायक भी पवार का साथ छोड़ दें, तो यह उन्हें थाली में सजाकर जिताने जैसा होगा.”

उन्होंने कहा कि अस्सी वर्षीय पवार के खिलाफ विद्रोह ऐसे समय में जब वह सक्रिय रूप से राज्य का दौरा कर रहे हैं और अपनी उम्र और बीमारियों के बावजूद जमीनी स्तर के लोगों से मिल रहे हैं, केवल उनके लिए सहानुभूति की लहर को भड़काएंगे.

पवार का यह पहलू – लगातार लोगों के संपर्क में रहना, एक साथ कई चीजों पर नजर रखना और संबंध बनाए रखना – भी बहुप्रचारित ‘पवार ब्रांड ऑफ पॉलिटिक्स’ का एक अभिन्न हिस्सा है और उम्र ने इसे नहीं बदला है. पार्टी के सदस्य इस बारे में बात करते हैं कि एनसीपी के किसी भी निर्वाचन क्षेत्र में किसी भी घटना या बयान के बाद “पवार साहब” द्वारा तत्काल फोन किया जाता है, जबकि मुंबई क्रिकेट एसोसिएशन (एमसीए) के एक पदाधिकारी ने बताया कि सात साल पहले एमसीए प्रशासन छोड़ने वाले नेता के बावजूद पवार की जानकारी के बिना क्रिकेट निकाय में एक फाइल कैसे नहीं चलती.

अडाणी समूह के खिलाफ अमेरिका स्थित हिंडनबर्ग रिसर्च के आरोपों की संयुक्त संसदीय समिति की जांच के लिए कांग्रेस के नेतृत्व वाले विपक्ष की मांग के बीच गौतम अडाणी के पक्ष में पवार की टिप्पणी और पिछले हफ्ते उद्योगपति के साथ उनकी मुलाकात की अटकलों के बीच विवाद एनसीपी के भाजपा के साथ संबंध सभी उनकी ब्रांड की राजनीति के बाइप्रोडक्ट हैं.

अजीत के मामले में, यह सिर्फ उनकी अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के बारे में नहीं है, बल्कि उनके बेटे पार्थ पवार की भी है. पार्थ ने 2019 के लोकसभा चुनाव में राजनीति में प्रवेश किया और आज तक चुनाव हारने वाले एकमात्र पवार हैं. उन्होंने भाजपा के राजनीतिक एजेंडे को आगे बढ़ाने वाले बयान भी दिए हैं, जिसके परिणामस्वरूप एक समय पर पवार ने उन्हें “अपरिपक्व” कहा था.

देशपांडे ने कहा, “अजीत पवार इस समय बाहर निकलने के लिए कितने उत्सुक हैं, यह स्पष्ट नहीं है. उनके आसपास के लोग उनके बारे में जो कह रहे हैं, उससे बातचीत को और हवा मिली, जिससे यह सवाल उठता है कि क्या पार्टी के भीतर कुछ लोग उन्हें किनारे करने की कोशिश कर रहे हैं. अगर उनका खुद का राजनीतिक भविष्य सुरक्षित नहीं है, तो अपने बेटे के बारे में भूल जाइए.”

अजीत के भाजपा में जाने की संभावना की अफवाहों को जोरदार तरीके से खारिज करने के कुछ घंटों बाद, उन्होंने मुंबई में एक इफ्तार में अपने चाचा और चचेरी बहन सुप्रिया सुले के साथ मंच साझा किया.

बारामती सांसद सुले ने मूड को हल्का करने की कोशिश की, अजीत के बगल में बैठे एक एनसीपी पदाधिकारी से पूछा कि क्या उन्होंने “दादा (अजीत)” को एक मजाक के बारे में बताया जो उन्होंने पहले साझा किया था और जब कम्पेयर ने उन्हें “पवार साहब की बेटी जो उनकी विरासत को आगे ले जाएगी” के रूप में जनता के सामने पेश किया, तो वह स्पष्ट रूप से जीत गईं.

क्षण असमान रूप से बीत गया. लेकिन, एनसीपी परिवार में हर कोई जानता है कि यह इस विरासत पर सवाल है जो अक्सर एक कांटे के रूप में उगता है, और खुद को अजित के अगले कदम के बारे में अटकलें देता है. और शायद शरद पवार का भी.

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