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जातीय समीकरण और स्टार पावर के बीच फंसा बेगूसराय का चुनाव, जानें- किसकी होगी जीत

सवाल है कि तनवीर हसन और गिरिराज सिंह से लड़ाई में कन्हैया पहले नंबर पर होंगे या तीसरे. वोटिंग सोमवार को.

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राजद उम्मीदवार तनवीर हसन, सीपीआई के कन्हैया कुमार और बीजेपी कैंडीडेट गिरिराज सिंह | दिप्रिंट

बेगूसराय/नई दिल्ली: 17वीं लोकसभा चुनाव से जुड़े चौथे चरण का प्रचार थम गया है. इस चरण में जिस एक सीट पर सबकी निगाहें हैं वो बिहार के बेगूसराय की सीट है. इस सीट पर मुक़ाबला त्रिकोणीय है. पहली बार चुनाव लड़ रहे कन्हैया का मुक़ाबला पिछले चुनाव में मोदी लहर के बावजूद कम वोटों से हारने वाले महागठबंधन के तनवीर हसन और  भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नेता गिरिराज सिंह से है.

बेगूसराय पर सबकी निगाहें होने की वजह सीपीआई के उम्मीदवार कन्हैया कुमार हैं. वैसे तो भारतीय राजनीति में लेफ्ट पार्टियां हाशिए पर भी नहीं रह गईं हैं. लेकिन 2016 में जेएनयू में हुए कथित ‘देशद्रोह’ विवाद के बाद से कन्हैया चौतरफा चर्चा में आ गए. तब से चर्चा में बने रहे 32 साल के कन्हैया ने बेगूसराय की सीट से चुनाव लड़ने की घोषणा करके इसको भी चर्चा में ला दिया.

तनवीर हसन बिहार में और इस सीट पर पहले से स्थापित नेता रहे हैं. गिरिराज सिंह 2014 के आम चुनाव में राज्य के नवादा से सांसद बनकर मोदी सरकार में मंत्री रहे हैं यानि दोनों का ही राजनीतिक अनुभव अच्छा-ख़ासा है. वहीं, कन्हैया के पास राष्ट्रीय और लोकल मीडिया से लेकर सोशल मीडिया का ज़ोरदार प्रचार तो है, लेकिन ज़मीनी राजनीति में वो अभी बिल्कुल नए खिलाड़ी हैं.


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ऐसे में सवाल उठता है कि इस सीट से किसकी जीत होगी? 

इसका जवाब पाने के लिए दिप्रिंट ने दो पार्टियों (आरजेडी और भाजपा) के कैडर और कन्हैया की पार्टी से अप्रत्यक्ष तौर पर जुड़े व सर्वे में लगे एक व्यक्ति से बात करने के अलावा ज़मीन पर भेजे गए अपने रिपोर्टर के अनुभव से जवाब तलाशने की कोशिश की है. वहीं, ज़मीन पर गए कुछ और पत्रकारों के अनुभव से भी पता लगाने की कोशिश की गई है कि इस सीट पर कौन जीत रहा है.

क्या है भाजपा के कैडर का मानना

भाजपा के एक ऐसे कैडर से दिप्रिंट के बात हुई जो गिरिराज सिंह के लिए लगभग दो हफ्ते के लिए बेगूसराय की ज़मीन पर थे. अविनाश नाम के इस व्यक्ति ने आंतरिक सर्वे और लोगों से मिलने वाले फीडबैक के आधार पर कहा कि गिरिराज कम से कम दो लाख़ वोटों से ये चुनाव जीत रहे हैं. हालांकि, दिप्रिंट का मानना है कि इस सीट से किसी उम्मीदवार के इतने अंतर से जीतने की कोई संभावना नहीं है.

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वहीं, अविनाश ये भी कहते हैं कि दूसरे नंबर पर तनवीर हसन रहेंगे और कन्हैया तीसरे नंबर पर होंगे. ये एक प्रबल संभावना लगती है. क्योंकि दिप्रिंट को ज़मीन पर जैसे हालात दिखे उससे ये साफ था कि या तो कन्हैया पहले नंबर पर होंगे या तीसरे. अविनाश से जब पूछा गया कि सिंह को किन लोगों का वोट मिल रहा है तो वो कहते हैं, ‘समुदाय में भूमिहार लोग तो उन्हें स्वीकार करते ही हैं. इसके अलावा वैश्य बीजेपी का अपना वोट बैंक है.’

अविनाश आगे दावा करते हैं कि उज्ज्वला, बिजली और वृद्धा पेंशन जैसी मोदी की योजनाओं से प्रभावित लोग काफी संख्या में सिंह को वोट करेंगे. सिंह को जब अचानक से नवादा की सीट छोड़कर इस सीट पर आने को कहा गया था तो वो आना-कानी कर रहे थे. काफी मान-मनौवल के बाद वो यहां आए. अविनाश का कहना है कि इसका गिरिराज को नुकसान नहीं होगा क्योंकि लोग मोदी जी के लिए वोट कर रहे हैं. दिप्रिंट जब बिहार के सात ज़िलों में घूमा तो उसे भी हर जगह इस बात का एहसास हुआ कि एक तबका है जो बीजेपी उम्मीदवारों को नहीं, बल्कि सीधे मोदी को वोट दे रहा है.

अविनाश का ये दावा भी है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के इस सीट पर नॉन ओबीसी में कोइरी और कुशवाहा जैसी जातियों के एक लाख़ से ज़्यादा वोट हैं जो सीधे गिरिराज को ट्रांसफर हो जाएंगे. लेकिन आम चुनाव के इस दौरे में दिप्रिंट का ज़मीनी अनुभव ये रहा कि बिहार की राजनीति से नीतीश कुमार इस बार ग़ायब हैं. उनका जैसे प्रबल प्रभाव हुआ करता था वैसा नहीं है.

जिन दो बातों को अविनाश आख़िरी क्षणों में नकारते दिखे वो चुनाव पर सोशल मीडिया का प्रभाव और गिरिराज सिंह की सांप्रदायिक छवि है. उन्हें लगता है कि गिरिराज को इसका नुकसान नहीं होगा. जबकि ज़मीन पर हालत बिल्कुल अलग हैं. बिहार दौरे के दौरान दिप्रिंट को दर्जनों ऐसे लड़के मिले जो अपना यूट्यूब चैनल चला रहे हैं और उनके ऊपर सोशल मीडिया का ख़ासा प्रभाव है. ये कन्हैया के पक्ष में जा सकता है.

एक बात दावे के साथ कही जा सकती है कि सोशल मीडिया के स्पेस पर कब्ज़ा जमा लेने की वजह से कन्हैया युवाओं के बीच पहली पसंद हैं. वहीं, गिरिराज सिंह की सांप्रदायिक छवि ने मुस्लिम युवाओं के बीच कन्हैया को इकलौता विल्कप बना दिया है. इसकी एक वजह ये भी है कि तनवीर हसन ने बड़ी देर से गिरिराज सिंह पर सीधे हमले करने शुरू किए. वहीं, वो पीएम नरेंद्र मोदी के बारे में कुछ नहीं बोलते. जबकि कन्हैया अपनी लड़ाई को खुद के बनाम मोदी बनाने में काफी हद तक सफल रहे हैं.


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गिरिराज के खेमे और तनवीर हसन के खेमे के साथ एक परेशानी ये भी दिखती है कि मीडिया से बातचीत में वो कन्हैया को दरकिनार कर देते हैं और अपनी लड़ाई एक-दूसरे के साथ बताते हैं. दिल्ली के 2013 और 2015 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस और बीजेपी दोनों ने अरविंद केजरीवाल के साथ यही किया था और इस आधे राज्य से दोनों ही पार्टियों की राजनीतिक ज़मीन साफ हो गई.

इनका दावा है कि गिरिराज सिंह को चार लाख़ से ज़्यादा, तनवीर हसन को दो लाख़ से ज़्यादा और कन्हैया को दो लाख़ से कम वोट मिलेंगे.

महागठबंधन के कैडर का क्या है मानना

तनवीर हसन का पक्ष भी अपनी मज़बूता का दावा करता है. उनका कहना है कि महागठबंधन के बैनर तले इस सीट पर पांच पार्टियों के एक साथ आ जाने से वो पिछले चुनाव से बेहतर स्थिति में हैं. भाजपा के दो लाख़ से ज़्यादा वोटों से जीत वाले दावे पर हसन के लिए कैनवासिंग कर रहे हैं जयंत कहते हैं कि भाजपा नीतीश के जिन डेढ़ लाख़ वोटों की बात कर रही है वो 40-45 हज़ार तक हैं.

वहीं, जेएनयू में मीडिया स्टडी के छात्र रहे जयंत ये भी कहते हैं कि मुसलमानों के पारंपरिक वोट के अलावा जीतन राम मांझी, मुकेश साहनी से लेकर उपेंद्र कुशवाहा तक के वोट हसन को मिलेंगे. वो इन सारे वोटों को ट्रांसफरेबल बताते हैं. हालांकि, जयंत इस बात को पूरी तरह से इंकार नहीं करते के युवा कन्हैया के साथ हैं. उनका मानना है कि एक आकलन ये भी है जो कि सही-ग़लत दोनों हो सकता है. लेकिन वो ये भी कहते हैं कि महागठबंधन इन वोटों को लेकर ख़ासा चिंतित नहीं है.

वहीं, इस बात से भी इंकार नहीं किया गया कि दलितों और अल्पसंख्यकों के बीच भी एक नैरेटिव गढ़ने में कन्हैया संभवत: सफल रहे हैं. इसकी वजह मोदी पर उनके सीधे हमले हैं और इन तबकों में मोदी को लेकर ख़ासी नाराज़गी है. हालांकि, ऐसा होने के पीछे जयंत मीडिया और बुद्धिजीवियों का बड़ा हाथ बताते हैं जो कन्हैया को चमकाने में लगा हुए हैं. लेकिन वह ये भी कहते हैं, ’13 अप्रैल को कन्हैया ने आरक्षण के ख़िलाफ़ स्टैंड लिया था.’ वो दावा करते हैं कि उनका पक्ष इस बात को अपने वोटरों तक पहुंचाने में सफल रहा है.

वो यह सवाल भी करते हैं कि क्या किसी ने कल्पना की थी कि 2014 के मोदी लहर में हसन को 3,69,892 वोट मिलेंगे. ये एक ऐसा अहम तथ्य है जो तनवीर हसन के पक्ष में जाता है. हसन उस चुनाव में किसी बड़े अंतर से नहीं हारे थे और इस वजह से माना जा रहा है कि उनका मसर्थन बरकरार रहेगा. चूंकि, वो कैंपेन के अंत में आकर गिरिराज पर हमलावर हुए और मोदी पर कभी सीधा हमला नहीं बोला. ऐसे में कन्हैया के उनके समुदाय के युवाओं का वोट पूरी तरह बटोरने की संभावना है.

वहीं, ये सवाल भी है कि कन्हैया ने इन चुनावों में स्टालिन मुर्दाबदा तो बोला लेकिन ब्रह्मेश्वर मुखिया मुर्दाबाद नहीं. भूमिहार जाति से आने वाले ब्रह्मेश्वर मुखिया बिहार की रणवीर सेना के प्रमुख थे. रणवीर सेना पर दलितों और पिछड़ों के ख़िलाफ़ बर्बरता के कई गंभीर आरोप हैं. इन आरोपों का मतलब ये है कि कन्हैया भूमिहार वोटों के लिए मुखिया पर नरमी बरत रहे हैं. कुछ मामलों को तो नरसंहार तक की संज्ञा दी गई है. हालांकि, जयंत ये भी कहते हैं कि गिरिराज सिंह बेगुसराय की जनता को पोलराइज करने में विफल रहे. लेकिन कन्हैया को भूमिहारों का वोट मिलने की संभावना न के बराबर है.

लंबे समय से हसन के लिए कैनवासिंग कर रहे है जयंत कहते हैं कि कुशहावा छात्रावास में लड़कों का उतपीड़न करके जो वीडियो बनाया गया कन्हैया उस पर भी ख़ामोश रहे हैं. आपको बता दें कि कुशहावा छात्रावास में लड़कों का उतपीड़न करने का आरोप भूमिहार जाति के लोगों पर लगा है. कन्हैया इसी जाति से आते हैं और उन पर मामले में चुप्पी साधने का आरोप है. हालांकि, जयंत कोई संख्या नहीं बताते कि हसन को कितने वोट मिलेंगे. लेकिन दावा करते हैं कि हसन जीत रहे हैं.

ज़मीन पर कन्हैया के लिए कैनवासिंग कर रहे अमित की क्या है राय

कांग्रेस के शशि थरूर के लिए काम कर चुके अमित अभी कन्हैया के लिए ज़मीनी सर्वे कर रहे हैं. उनका दावा है कि वो भले ही कन्हैया से जुड़े हैं लेकिन वो न तो उनके लिए काम करते हैं और न ही उनके कर्मचारी या कैडर हैं. अमित कहते हैं कि इस सीट का हाल ऐसा है कि किसी समुदाय का वोट एक नहीं रह गया है. एक गांव में अगर उस समुदाय का कोई किसी एक उम्मीदवार को वोट दे रहा है तो उसी समुदाय से जुड़े दूसरे गांव के लोग किसी और उम्मीदवार को.

अमित से जब दिप्रिंट की मुकालात बेगुसराय में हुई थी तो उन्होंने इस सीट पर तीन-तरफा लड़ाई की बात कही थी. वो इस बात पर वोटिंग के एक दिन पहले तक कायम हैं. वो कहते हैं, ‘मुसलमान अभी तक हसन और कन्हैया को लेकर भ्रम की स्थिति में हैं.’ मुस्लिम समुदाय में अपने सर्वे के आधार पर अमित बताते हैं कि 18 से 28 साल तक के लड़के निर्विवाद रूप से कन्हैया के साथ हैं.

दिप्रिंट भी इस बात पर मुहर लगाता है कि सिर्फ मुस्लिम युवा ही नहीं बल्कि शहर के युवाओं का ठोस हिस्सा निर्विवाद रूप से कन्हैया के साथ है. देखना होगा कि ये वोट में तब्दील होता है या नहीं. पिछले पांच सालों में देश में जिस प्रकार का सांप्रयादिक माहौल रहा है उसकी वजह से इसके पुरज़ोर वोट में बदलने की संभवना है और ये वोट कन्हैया के लिए गेमचेंजर साबित हो सकता है.

बेगूसराय में दिप्रिंट का जो अनुभव रहा उसके मुताबिक ये युवा अपने परिवार वालों को भी मनाने में लगे हैं. लेकिन जाति और धर्म के आधार पर वोट करने वाले देश में परिवार के सदस्यों की मानने की संभावना न के बराबर है. अमित कहते हैं कि ऐसे परिवार वाले मोदी के नाम पर गिरिराज को वोट दे सकते हैं. वहीं, मुस्लिम समुदाय के उम्रदराज़ लोग हसन की तरफ जा सकते हैं. हालांकि, अमित दावा करते हैं कि इस सीट पर युवाओं का वोट तीन लाख़ के करीब है.

वो कहते हैं कि पिछली बार इस सीट पर 17 लाख़ वोट थे और इस बार 21 लाख़ वोट हैं और जो पहली बार वोट बढ़ा है वो युवाओं का है. अगर ऐसा है तो ये सीधे कन्हैया को फायदा पहुंचा सकता है. अमित ये भी कहते हैं कि मुसलमानों में अगड़े तबके पर आरजेडी की पकड़ है और ये उनके ऐसे समर्थक हैं जो कहीं नहीं जा रहे. लेकिन पिछड़े मुसलमानों का वोट कन्हैया को मिलने जा रहा है. दिप्रिंट कन्हैया के जिस रोड शो से गुज़रा था, संयोग से वो मुस्लिम इलाकों से होता हुआ निकला था. उस दौरान लोगों में कन्हैया को देखने और सुनने की ललक काफी ज़्यादा थी. देखना होगा कि ये वोट में तब्दील होता है या नहीं.

अमित ये भी दावा करते हैं, ‘मुस्लिम वोट जितना तनवीर को मिलेगा उससे ज़्यादा कन्हैया को मिलेगा.’ इसके पीछे की वजह वो ये बताते हैं कि कन्हैया ने सीधे मोदी से लोहा लिया जबकि हसन तो लंबे समय तक गिरिराज पर भी सीधा हमला नहीं कर रहे थे. वहीं वह कहते हैं कि संभव है कि भूमिहारों में युवाओं का वोट कन्हैया को मिले.

अमित ये भी कहते हैं कि हाल के समय में ज़मीन पर उन्होंने किसी नेता को कन्हैया जैसा समर्थन मिलते नहीं देखा. लेकिन वो डर जताते हैं कि अब इस सीट पर शराब और पैसा बंटना शुरू हो गया है. लेकिन इससे भी पूरे वोट नहीं ख़रीदे जा सकते हैं. वो ये भी दावा करते हैं कि इस सीट पर बेहद अप्रत्याशित नतीजे होंगे.

सोशल मीडिया पर कन्हैया की उपस्थिति, उन्हें मिली मीडिया कवरेज, जेएनयू से लापता हुए छात्र नजीब की मां और जेएनयू की पूर्व छात्र नेता शेहला राशिद से लेकर जावेद अख़्तर, प्रकाश राज जैसे अदाकारों, दलित नेता जिग्नेश मेवानी और ऐसे कई लोगों द्वारा ज़मीन पर किए प्रचार जैसे कई कारक हैं जिससे इस सीट का मामला कन्हैया के मामले में पूरी तरह अप्रत्याशित हो गया है.


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वहीं, कन्हैया की वजह से बेगूसराय का हाल कुछ-कुछ बनरास जैसा हो गया है. यानी की इस सीट को ग़जब की लाइमलाइट मिल रही है. देखने वाली बात होगी कि ये वोट में तब्दील होता है या नहीं. अमित ये भी दावा करते हैं कि नीतीश के वोटरों का कहना है कि ये उनका चुनाव नहीं है, उनका चुनाव (विधानसभा) 2020 में है. दावे के अनुसार ये वोटर इस बार कन्हैया को वोट देंगे.

हालांकि, अमित कन्हैया की जीत का दावा नहीं करते. लेकिन इसी के साथ वो बेहद अहम बात कहते हैं कि कन्हैया या तो पहले नंबर पर होंगे या तीसरे नंबर पर. ज़मीन पर पहुंचने के बाद जिस तरीके का समर्थन कन्हैया के लिए देखने को मिला और जिस तरीके का जातिगत और धार्मिक संरचान इस सीट की है उसके बाद दिप्रिंट का भी यही मानना है कि कन्हैया दूसरे नंबर पर तो नहीं होंगे.

एक सबसे प्रबल संभावना ये है कि ‘दो बिल्लियों की लड़ाई में रोटी बंदर ले जाएगा.’ यानी मुसलमान वोटों के बंटने की वजह से ये चुनाव गिरिराज सिंह निकाल सकते हैं. सेंसस 2011 के मुताबिक इस सीट पर मुसलमानों की संख्या 13.71% है. वहीं, एक संभावना ये भी है कि मोदी लहर में 2014 में शानदार प्ररदर्शन करके हारने वाले तनवीर हसन पांच पार्टियों के समर्थन के साथ कहीं छुपा रुस्तम न साबित हो जाएं.

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