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झारखंडः देखिये कैसे कोरोना छोड़, राजनीतिक लड़ाई में उलझी है हेमंत सोरेन सरकार

कोरोनावायरस के बढ़ते प्रकोप, प्रवासी मजदूरों की वापसी जैसी बड़ी परेशानियों को छोड़कर झारखंड की हेमंत सोरेन की गठबंधन सरकार आपस में ही उलझती दिख रही है.

जगरनाथ महतो/ हेमंत सोरेन और बन्ना गुप्ता/ फोटो: आनद दत्ता

रांची: झारखंड में कोरोना हर दिन पांव पसार रहा है. राजधानी रांची के हिन्दपीढ़ी मोहल्ले में ही 57 मरीज हो चुके हैं. वहीं पूरे राज्य में इसकी संख्या 111 पहुंच चुकी है. हालात ये है कि सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कराने के लिए सरकार को हिन्दपीढ़ी में सीआरपीएफ की तैनाती करानी पड़ी है. इधर केंद्र की अनुमति के बाद विपक्ष सरकार पर बाहर फंसे मजदूरों, छात्रों को वापस लाने का दवाब बना रही है. सरकार कह रही है बस से लाखों लोगों को लाना संभव नहीं है. ट्रेन परिचालन की अनुमति मिले. इन सब को सुलझाने के बजाय गठबंधन की सरकार आपस में ही उलझती दिख रही है.

गुरूवार 30 अप्रैल को स्वास्थ्य मंत्री और कांग्रेस पार्टी नेता बन्ना गुप्ता ने मीडिया से कहा, ‘अगर सरकार कोई फैसला लेती है तो उसे गठबंधन के साथियों को भी बताना चाहिए. विचार विमर्श करना चाहिए. जब गठबंधन की सरकार है तो सभी को मिलाकर निर्णय लेना चाहिए. चाहे वह आईपीएस के ट्रांसफर का मसला हो या फिर योजनाओं को लागू करने के लिए नए नियमों का बनाया जाना.’

बन्ना गुप्ता एक कदम आगे बढ़ते हुए अपने मुख्यमंत्री के पिछले दिनों दिप्रिंट से ही कही गई बात को दरकिनार करते नजर आए. उन्होंने कहा,  ‘कोरोना फैलने में तबलीगी जमात का महत्वपूर्ण हाथ रहा है. झारखंड में कुल जितने मरीज हैं, उसका 90 प्रतिशत जमाती हैं या उसके संपर्क में आए हैं. उन्होंने कहा कि हमारे लिए मां भारती सबसे पहले है, बाद में बाकि दुनिया. जो गलत है उसे गलत ही कहूंगा.’

जबकि हाल ही में दि प्रिंट से खास बातचीत में हेमंत सोरेन ने साफ कहा था कि कोरोना तबलीगी जमात के कारण नहीं फैला है. बीमारी धर्म देखकर नहीं फैलती है.


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बात कुछ ये है कि पिछले मंगलवार को राज्य में बड़े पैमाने पर आईपीएस का ट्रांसफर किया गया है. कोरोना संकट के बीच कुल 35 आईपीएस के तबादले ने सभी को चौंका दिया. सीएम हेमंत सोरेन ने यह भी फैसला लिया है कि सभी विभागों के सचिव अपने स्तर पर पांच करोड़ रुपया बिना टेंडर के विभिन्न योजनाओं के मद में खर्च कर सकते हैं.

बन्ना गुप्ता ने इसपर भी आपत्ति जताई. उन्होंने कहा, ‘यह पूरे तरीके से कार्यपालिका के नियम का उल्लंघन है. हम जनता के चुने हुए प्रतिनिधि हैं. हम बेहतर बता पाएंगे कि कौन सी योजना कैसे लागू होनी चाहिए. हम धरातल पर काम करते हैं. अधिकारी बेहतर प्रबंधन के लिए बैठे हैं, कार्ययोजना बनाने के लिए नहीं हैं.’

इस पूरे मसले पर गुरूवार की शाम को जब पत्रकारों ने सीएम हेमंत सोरेन से सवाल किया कि आईपीएस के ट्रांसफर को लेकर कांग्रेस के मंत्री नाराज हैं तो उन्होंने इससे इनकार किया और कहा, ‘ये आपको किसने कहा कि वह नाराज हैं.’ जब पत्रकारों ने मंत्री बन्ना गुप्ता के बयान का जिक्र किया तो हंसते हुए हेमंत ने कहा, ‘अपने सहयोगियों से बात कर ही वह इस पर कुछ कहेंगे.’

कोविड-19 लड़ाई के बीच राज्य के सबसे बड़े अस्पताल रिम्स ( रांची इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस) के निदेशक ने इस्तीफा दे दिया है. कांग्रेस कोटे के स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता ने इस्तीफा स्वीकार भी कर लिया, जबकि हेमंत सोरेन ने कहा है कि सरकार ने अभी इसे स्वीकार नहीं किया है. इस पूरे प्रकरण पर बन्ना गुप्ता ने कहा, ‘रिम्स निदेशक को हटाया नहीं गया है, उन्होंने इस्तीफा दिया है, जिसे हमने स्वीकार किया है.’

कांग्रेस के दवाब के बाद भी लालू यादव के पैरोल पर नहीं हुआ फैसला

कांग्रेस की लालू यादव की पैरोल पर रिहाई की मांग पर भी हेमंत सोरेन ने ध्यान नहीं दिया. कांग्रेस कोटे से मंत्री बादल पत्रलेख ने लालू यादव की रिहाई का मामला जोर-शोर से उठाया था. कैबिनेट में इसपर चर्चा भी हुई. कहा गया कि महाधिवक्ता से राय लेने के बाद इसपर फैसला लिया जाएगा. अभी तक इसपर भी कोई निर्णय नहीं लिया गया. ध्यान रहे आरजेडी कोटे से शामिल मंत्री सत्यानंद भोक्ता इस पूरे दृश्य में कहीं नहीं रहे.

इससे पहले बीते 23 अप्रैल को राज्य में चार जगहों पर कांग्रेसी नेताओं ने पत्रकार अर्णब गोस्वामी पर एफआईआर दर्ज करायी. इसमें कांग्रेस विधायक दीपिका पांडेय ने गोड्डा जिले के महगामा थाना में केस दर्ज करने में देरी की वजह से धरने पर बैठ गईं.

दवाब इतना बढ़ा कि थाना प्रभारी बलराम राउत को तत्काल सस्पेंड कर दिया गया. इसके तुरंत बाद इलाके के पांच थानेदारों ने लिखित शिकायत में कहा कि उन्हें महगामा इलाके से ट्रांसफर कर दिया जाए. विधायक के रवैये से वह सहज होकर काम नहीं कर पा रहे हैं.

मामला यही नहीं रुका. इसके तत्काल बाद पुलिस एसोसिएशन ने पत्र लिखकर विधायक के रवैये का विरोध किया. एफआईआर दर्ज करनेवालों में विधायक इरफान अंसारी, यूथ कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव कुमार राजा सहित कई अन्य कांग्रेसी नेता शामिल रहे.


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इरफान अंसारी लॉकडाउन में भी कई जिलों में घूमते पाए गए हैं. इधर वरिष्ठ नेता सरयू राय को सरकार रांची से जमशेदपुर जाने की अनुमति नहीं दे रही है. इस कड़ी में बीजेपी विधायक अनंत ओझा भी सरकार की अनुमति का इंतजार कर रहे हैं. पूछने पर इरफान ने कहा कि, ‘वह डॉक्टर हैं, इलाज करने के लिए कहीं भी जा सकते हैं.’

जेएमएम के मंत्री ने ही उठाए भ्रष्टाचार के मामले

लॉकडाउन के शुरूआत में ही कांग्रेस कोटे के ही मंत्री आलमगीर ने नियम के विरुद्ध जाकर छह बसों से रांची के अपने इलाके पाकुड़ मजदूरों को भेज दिया था. मामला के तूल पकड़ने पर रांची के जिलाधिकारी को सीएम ने शो-कॉज नोटिस जारी कर सवाल पूछा था. इसपर डीसी ने जवाब दिया कि पहले उन्होंने इसकी सहमति दी थी. लेकिन केंद्र सरकार के आदेश आने के बाद उन्होंने रद्द कर दिया था. इस पूरे मसले पर हाईकोर्ट ने संज्ञान लिया, जिससे राज्य सरकार की भारी किरकिरी हुई.

ये तो रहा कांग्रेसी मंत्रियों और विधायकों की नराजागी का मामला. जेएमएम कोटे के मंत्री भी सरकार के फैसले पर सवाल खड़ा कर चुके हैं. शिक्षा मंत्री जगरनाथ महतो ने सवाल किया है कि अप्रैल माह बीतने को है लेकिन आंगनवाड़ी केंद्रों में अभी तक जनवरी माह का पोषाहार नहीं दिया गया है. बता दें कि खाद्य आपूर्ति विभाग जिसे यह पोषाहार उपलब्ध कराना है, वह कांग्रेस कोटे से मंत्री रामेश्वर उरांव के पास है.

जगरनाथ महतो यही नहीं रुके. उन्होंने कहा कि सरकार में रहकर जनहित के मामले को उठाना कब से गलत हो गया. इस मामले में भ्रष्टाचार हुआ है. जो जांच समिति बनेगी, उसके सामने वह इससे संबंधित साक्ष्य प्रस्तुत करेंगे. उन्होंने कहा कि गर्भवती महिलाएं इसलिए निबंधन कराती है ताकि समय से पोषाहार मिले. बच्चे कुपोषण का शिकार न हों.

कांग्रेस और जेएमएम के नेताओं के बीच चल रही नूरा कुश्ती पर जेएमएम के महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य कहते हैं, ‘आईपीएस के ट्रांसफर का मसला बन्ना गुप्ता से जुड़ा हुआ नहीं था, इसलिए नहीं बताया गया. वो हेल्थ मिनिस्टर हैं, हेल्थ से जुड़े फैसले में उनको साथ रखा ही जाएगा. इन सब खींचतान का सरकार पर कोई असर नहीं पड़ने जा रहा है.


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लंबे समय से झारखंड की राजनीति को कवर कर रहे पत्रकार नीरज सिन्हा कहते हैं, ‘कोविड से लड़ाई में हेमंत सोरेन की जवाबदेही ज्यादा है तो वह अपने तरीके से काम भी कर रहे हैं. ऐसे में कांग्रेस नेताओं की भूमिका बहुत ज्यादा नहीं रही है. यही वजह है कि वो खुद को इग्नोर होता महसूस कर रहे हैं. लेकिन जो भी बयानबाजी हो रही है, वो अपरिपक्व राजनीतिक का हिस्सा भर है. इससे हेमंत सोरेन या जेएमएम पर किसी तरह का असर नहीं पड़ने जा रहा है.’

आनेवाले समय में और बड़े फैसले होने हैं. देखना होगा कि कांग्रेस की इस आपत्ति पर सीएम हेमंत सोरेन कितना ध्यान देते हैं. साथ ही कांग्रेस खुद को बनाए रखने के लिए किस तरह की राजनीति करती है.

(लेखक झारखंड से स्वतंत्र पत्रकार हैं)

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