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पंजाब में सिद्धू, कैप्टन और चन्नी जैसे दिग्गजों की साख दांव पर, अगर हारे तो मुश्किल में आ सकता है राजनीतिक करियर

आईए जानते हैं कि पंजाब में वो कौन से उम्मीदवार हैं जिनके चुनाव हारने पर उनका राजनीतिक कैरियर मुश्किलों में फंस सकता है.

ग्राफिक्स: मनीषा यादव | दिप्रिंट

नई दिल्ली: पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों की जारी है. पंजाब में आम आदमी पार्टी सरकार बनाने के लिए रेस में आगे निकलते हुए नजर आ रही है. लेकिन इस चुनाव में कई नेताओं की साख दांव पर लगी हुई है. आईए जानते हैं कि पंजाब में वो कौन से उम्मीदवार हैं जिनके चुनाव हारने पर उनका राजनीतिक कैरियर मुश्किलों में फंस सकता है.

नवजोत सिंह सिद्धू:

नवजोत ने साल 2004 में अपना राजनीतिक सफर शुरू किया था. बीजेपी के वरिष्ठ नेता अरुण जेटली उन्हें बीजेपी में लेकर आए थे. साल 2004 में सिद्धू ने पहली बार बीजेपी की सीट पर अमृतसर लोकसभा का चुनाव लड़ा था और कांग्रेस के कद्दावर नेता रघुनंदन लाल भाटिया को एक लाख से ज्यादा वोटों से हराया था.

साल 2006 में हत्या के आरोपों के कारण सिद्धू को लोकसभा से इस्तीफा देना पड़ा था. साल 2017 में सिद्धू ने कांग्रेस का दामन धाम लिया. इसी साल पंजाब विधानसभा चुनावों में पूर्वी अमृतसर से चुनाव लड़ा था और जीत हासिल की था. कैप्टन अमरिंदर सिंह और नवजोत सिंह सिद्धू में काफी विवाद रहा जिसके चलते अमरिंदर ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया और अपनी अलग पार्टी बना ली.

नवजोत सिंह सिद्धू फिलहाल पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष हैं. अभी सिद्धू और अकाली दल से बिक्रम सिंह मजीठिया के बीच अमृतसर ईस्ट सीट से आमने- सामने हैं. इस सीट से 2017 में सिद्धू विधायक बने थे. मजीठिया ने अपनी पारंपरिक सीट मजीठा छोड़ कर सिद्धू को चुनौती देने के लिए इस सीट से चुनाव लड़ा है. यह सिद्धू के लिए पिछले 18 साल में सबसे बड़ी चुनौती है. खास बात यह है कि दोनों ही नेता कोई चुनाव नहीं हारे हैं ऐसे में सिद्धू का जीतना बेहद जरूरी हो जाता है. वहीं, वो कांग्रेस के भीतर भी कई कार्यकर्ताओं और नेताओं का विरोध का सामना करना पड़ता है. ऐसे में पार्ची के अंदर भी उन्हें अपनी साख बचानी पड़ेगी.

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बिक्रम सिंह मजीठिया:

मजीठिया को राजनीति विरासत में मिली है. बीजेपी-शिअद गठबंधन की सरकार में वो पंजाब में कैबिनेट मंत्री भी रह चुके हैं. उनका अकसर नाता विवादों से रहा है.

2013 में ड्रग्स केस के कारण विवादों में घिर गए. उनका नाम 6 हजार करोड़ रुपये के ड्रग्स रैकेट से जुड़ा था. इनके ऊपर गिरफ्तारी की तलवार लटक रही है और कोर्ट ने उनकी गिरफ्तारी पर पंजाब चुनाव रिजल्ट के कारण रोक लगाई हुई है.


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कैप्टन अमरिंदर सिंह:

कांग्रेस से इस्तीफा देने के बाद कैप्टन अमरिंदर सिंह ने पंजाब लोक कांग्रेस पार्टी बनाई है. अमरिंदर सिंह साल 2017 में मुख्यमंत्री बनने के बाद घोषणा की थी कि वह दोबारा चुनाव नहीं लड़ेंगे. बाद में उन्होंने अपना इरादा बदल दिया जिसके बाद से सिद्धू और कैप्टन के बीच विवाद बढ़ता गया. जिसके कारण पार्टी ने उन्हें सीएम पद से हटा दिया और मजबूरन अमरिंदर ने कांग्रेस को अलविदा कह दिया. कैप्टन पटियाला सीट से चुनाव लड़ रहे हैं.

कैप्टन अपनी नई पार्टी से बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं. अगर अमरिंदर यह चुनाव हार जाते हैं उनके राजनीतिक भविष्य पर सवाल खड़े हो जाएंगे. अगर वो अच्छा प्रदर्शन करते हैं तो फिर कैप्टन का राजनीतिक करियर नई ऊंचाइयों पर पहुंचेगा.

भगवंत मान:

कॉमेडियन भगवंत मान का राजनीतिक करियर 2011 में शुरू हुआ था. शिरोमणि अकाली दल में रहते हुए भगवंत मान ने अनुभवी नेता सुखदेव सिंह ढींडसा को हराया था जिसके बाद राज्य की राजनीति में उनका कद काफी बढ़ गया था.
वो इस बार पंजाब में आप के सीएम फेस है. वो धुरी सीट से चुनाव लड़ रहे हैं. भगवंत मान को कांग्रेस के दलबीर सिंह चुनौती दे रहे हैं. अगर भगवंत यह चुनाव जीत जाते हैं तो पार्टी में उनका वर्चस्व हो जाएगा और दिल्ली का दखल पंजाब आप में कम हो सकता है.  मालवा के कुछ हिस्से पर भगवंत मान की काफी पकड़ है.

चरणजीत सिंह चन्नी:

पंजाब के सीएम चरणजीत सिंह चन्नी की सियासी कैरियर दांव पर लगी हुई है. चन्नी पंजाब में इस बार दो विधानसभा सीटों- चमकौर साहिब और भदौर से चुनाव लड़ रहे हैं. चमकौर सीट से वह तीन बार विधायक रह चुके हैं. कांग्रेस ने बरनाला मेंखुद को मजबूत करने के लिए उन्हें भदौर से भी मैदान में उतारा है.

यहां उनका मुकाबला आप के लाभ सिंह उगोके से है. वहीं शिरोमणि अकाली दल की तरफ से सतनाम सिंह राही इस सीट चुनाव लड़ रहे हैं. भदौर शिरोमणि अकाली दल का गढ़ है.


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