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बिहार में भाजपा को ज्यादा मंत्री पद मिलने की संभावना लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही होंगे

भाजपा के पास बिहार की 243 सीटों वाली विधानसभा में अब जदयू से अधिक सीटें हैं, इसका नतीजा संभवत: नई सरकार में राष्ट्रीय दल के अधिक प्रतिनिधित्व के रूप में सामने आएगा.

चुनाव के दौरान नीतीश कुमार और सुशील मोदी/रंजीत कुमार

नई दिल्ली: बिहार में एनडीए की जीत के एक दिन बाद सारी गतिविधियां धीरे-धीरे सरकार गठन पर केंद्रित हो गई हैं. विधानसभा चुनाव नतीजों ने साफ कर दिया है कि जनता दल (यूनाइटेड) अब अपना ‘बड़े भाई’ वाला रवैया आगे जारी नहीं रख सकती, वहीं भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को भरोसा है कि उसका संख्याबल सरकार के कामकाज में उसकी भूमिका और ज्यादा बढ़ाना सुनिश्चित करेगा.

बिहार की 243 सीटों में 74 भाजपा के खाते में आई हैं, जबकि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जदयू 2015 में 71 के मुकाबले घटकर 43 सीटों पर आ गई है.

भाजपा के एक वरिष्ठ नेता के अनुसार, नए मंत्रिमंडल में भाजपा नेताओं का प्रतिनिधित्व अधिक होगा, जो निश्चित तौर पर इसकी मुखरता को भी बढ़ाएगा.

सरकार गठन की रूपरेखा तय करने करने के लिए बुधवार को पटना में पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं की एक बैठक हुई. कैबिनेट गठन पर चर्चा के लिए जल्द ही नई दिल्ली स्थित भाजपा मुख्यालय में एक बैठक होने वाली है.

भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने दिप्रिंट को बताया, ‘सरकार का नेतृत्व करने जा रहे नीतीश कुमार के साथ विचार-विमर्श के बाद एक या दो दिन में कैबिनेट की अंतिम रूपरेखा तय कर ली जाएगी. इस बात से उनकी मुख्यमंत्री की कुर्सी पर कोई असर नहीं पड़ने वाला है कि जदयू के पास सीटों की संख्या कम है. इस बारे में तो शीर्ष नेतृत्व ने पहले ही तय कर लिया था.’

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दिप्रिंट ने जदयू के कई नेताओं से बात की, उन्होंने भी यही बात दोहराई. जदयू के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘एक स्वाभाविक सी बात है कि जिस पार्टी का संख्याबल ज्यादा होगा, उसे अधिक मंत्री पद मिलेंगे. इसलिए यहां भी यही उम्मीद की जा सकती है. लेकिन अब हम कुछ लोगों को यह भी कहते सुन रहे हैं कि नीतीशजी सीएम नहीं होंगे. आप ही बताइए, हम ऐसे बयानों का जवाब कैसे दें? प्रधानमंत्री मोदी और केंद्रीय नेतृत्व ने पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि नीतीश कुमार ही सीएम होंगे, इसलिए हमें उसी पर ध्यान देना चाहिए.’

भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल ने दिप्रिंट को बताया कि परामर्श शुरू हो गया है. उन्होंने कहा, ‘चूंकि हम गठबंधन के पुराने साथी हैं और नीतीशजी के साथ काफी समय से सरकार चला रहे थे इसलिए नए मंत्रिमंडल को अंतिम रूप देने में कोई अड़चन नहीं आएगी.’

बिहार में भाजपा के प्रभारी भूपेंद्र यादव ने मंगलवार रात मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के आवास पर हुई चर्चा के संबंध में बुधवार को पार्टी अध्यक्ष जे.पी. नड्डा और गृह मंत्री अमित शाह को जानकारी दी.

अधिक संख्याबल के साथ नवगठित विधानसभा में भाजपा के और अधिक मुखर होने की संभावना है और पार्टी के भीतर अभी से भाजपा का मुख्यमंत्री बनाने की मांग उठने लगी है.

बिहार में भाजपा के दलित मोर्चे के प्रमुख अजीत कुमार चौधरी ने मंगलवार को कहा था कि भाजपा के लिए राज्य में अपना मुख्यमंत्री नियुक्त करने का समय आ गया है. हालांकि, जायसवाल ने इसे खारिज कर दिया था, उनका कहना था कि नीतीश कुमार ही मुख्यमंत्री होंगे.

भाजपा महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने दिप्रिंट को बताया, ‘भाजपा के जदयू से अधिक सीटें जीतने के बावजूद नीतीश ही मुख्यमंत्री होंगे क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसका वादा किया था और भाजपा अपने वादे निभाने में यकीन करती है.’


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मंत्रिमंडल में भाजपा के ज्यादा मंत्री संभव

पिछली कैबिनेट में जदयू के 17 मंत्री थे और उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी समेत भाजपा के 12 मंत्री थे. हालांकि, मलाईदार माने जाने वाले कई विभाग भाजपा के पास ही थे—सुशील मोदी ने वित्त और सूचना प्रौद्योगिकी विभाग संभाल रखा था, प्रेम कुमार कृषि मंत्री थे, नंद किशोर यादव ने लंबे समय तक सड़क निर्माण विभाग का नेतृत्व किया, जबकि राजस्व और स्वास्थ्य मंत्रालय मंगल पांडे के पास था.

भाजपा के एक सूत्र के मुताबिक, पार्टी ‘निश्चित तौर पर’ इन विभागों को अपने पास बनाए रखने के अलावा नए चेहरों को जगह देने के लिए कुछ अतिरिक्त मंत्री पद पाने की कोशिश करेगी. सूत्र ने कहा, ‘अगले कुछ वर्षों में नए नेतृत्व के तौर पर उन्हें उभरने का मौका देकर पार्टी अपने विस्तार पर भी ध्यान केंद्रित करना चाहती है.’

पिछली नीतीश सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे जदयू के एक नेता ने कहा कि वे वेट एंड वॉच नीति अपना रहे हैं. उन्होंने कहा, ‘भाजपा को स्पष्ट करना चाहिए कि वे क्या चाहते हैं. यह एक तरह से सरकार की निरंतरता है. अगर भाजपा सरकार में बदलाव चाहती है, तो वे मुख्यमंत्री से बात करेंगे. आपसी विचार-विमर्श के बाद कोई निर्णय लिया जाएगा. इस बात से कोई इंकार नहीं है कि भाजपा ने अधिक सीटें जीती हैं, इसलिए उनका अधिक प्रतिनिधित्व होगा.’

यद्यपि भाजपा अधिक मुखर होना चाहती है, लेकिन यह तथ्य भी किसी से छिपा नहीं है कि उसे नीतीश के साथ बहुत ‘सावधानी’ से व्यवहार करना होगा क्योंकि उनके पास गठबंधन से बाहर आने का विकल्प हमेशा मौजूद होगा. भाजपा के दूसरे वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘उन्होंने अतीत में ऐसा किया है  इसलिए इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि अब वे ऐसा नहीं करेंगे.’

उन्होंने कहा, ‘सत्ता समीकरण निश्चित रूप से बदल गए हैं, लेकिन नीतीश कुमार खुद को कमजोर किया जाना बर्दाश्त नहीं करेंगे और साथ ही उनके पास खोने के लिए भी कुछ नहीं है. यह उनका आखिरी कार्यकाल है और वह इस बारे में अच्छी तरह जानते भी हैं.’

भाजपा और नीतीश कुमार की जदयू ने पिछले दो दशकों में ज्यादातर समय सहयोगी के रूप में चुनाव लड़ा है, केवल 2015 के विधानसभा चुनावों को छोड़कर जब नीतीश ने लालू प्रसाद यादव की राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस के साथ गठबंधन किया था. 2005 में जदयू और भाजपा ने क्रमश 139 और 102 सीटों पर प्रत्याशी उतारे और 88 और 55 सीटों पर जीत हासिल की. फिर 2010 में जदयू ने 141 सीटों पर चुनाव लड़ा और 115 पर जीती, जबकि भाजपा ने 102 सीटों पर चुनाव लड़ा और 91 पर जीत हासिल की.

‘सहयोगी दलों को गलत संदेश नहीं देना चाहेंगे’

भाजपा के एक तीसरे नेता ने कहा कि पश्चिम बंगाल, असम और तमिलनाडु सहित पांच अन्य राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों के मद्देनजर पार्टी एक राजनीतिक संदेश नहीं भेजना चाहती कि ‘भाजपा ने अपने सहयोगी दल को धोखा दिया और अब यह गठबंधन सहयोगियों को साथ नहीं रखना चाहती है.’

पिछले वर्ष ही भाजपा के सबसे पुराने सहयोगियों शिवसेना और शिरोमणि अकाली दल के राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) छोड़ देने के कारण इस समय नीतीश पार्टी के लिए और भी ज्यादा महत्वपूर्ण हो गए हैं.

हालांकि, इसका मतलब यह नहीं है कि नीतीश को प्रशासन और नीतिगत फैसले में खुला अधिकार मिल जाएगा, तीसरे भाजपा नेता ने कहा कि नीतियां तय करने में पार्टी की भागीदारी बढ़ेगी.

भले ही भाजपा कभी अपने दम पर सत्ता में न रही हो, और कई लोग तर्क देते हों कि पार्टी नीतीश कुमार के बिना बिहार में सत्ता बरकरार नहीं रख सकती थी, लेकिन परिणाम निश्चित रूप से भाजपा को कुछ फायदा पहुंचाएंगे. भाजपा के चौथे वरिष्ठ नेता के अनुसार, नीतीश कुमार के चौथे कार्यकाल में शक्ति संतुलन न केवल पहले से इतर होगा बल्कि भाजपा के पक्ष में झुका हुआ भी होगा.

इसने अगले पांच वर्षों में 19 लाख रोजगार के अवसर पैदा करने का वादा किया था, जिसमें तीन लाख शिक्षकों की नियुक्तियां और स्वास्थ्य क्षेत्र में एक लाख रोजगार शामिल हैं और साथ ही बिहार को आईटी हब के रूप में विकसित करने का भी वादा किया गया था.

निवर्तमान सड़क मंत्री नंद किशोर यादव ने कहा, ‘हालांकि राजद के तेजस्वी यादव ने 10 लाख सरकारी नौकरी देने का वादा किया था, लेकिन लोगों ने हम पर भरोसा किया है. उस वादे को पूरा करना हमारा कर्तव्य है.’

यादव ने कहा, ‘बेरोजगारी दूर करना और उद्योग के अनुकूल वातावरण तैयार करना नई सरकार की पहली प्राथमिकता होगी और यह केवल सरकारी नौकरियों के जरिये पूरी नहीं हो सकती, इसके लिए खाद्य प्रसंस्करण इकाइयां बनाने, आईटी का बुनियादी ढांचा तैयार करने जैसे अन्य कदम उठाने होंगे.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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