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तमिलनाडु में दलित नेतृत्व वाली VCK पार्टी कैसे मनुस्मृति का इस्तेमाल कर RSS पर निशाना साध रही

वीसीके ने दक्षिणपंथी संगठन के विरोध के लिए रविवार को मनुस्मृति की प्रतियां बांटीं. इस बीच, आरएसएस की तरफ से कल्लाकुरिची, पेरम्बलूर और कुड्डालोर में मार्च निकाले गए और जनसभाएं भी हुईं.

वीसीके के संस्थापक थोल. तिरुमावलवन रविवार को लोगों को मनुस्मृति की कॉपियां बांटते हुए | Twitter | @thirumaofficial

नई दिल्ली: तमिलनाडु में आजकल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और द्रविड़ संगठनों के बीच विचारधारा की तीखी लड़ाई छिड़ी हुई है. इसी क्रम में विदुथलाई चिरुथिगल काची (वीसीके) ने वर्ण व्यवस्था को रेखांकित करने के लिए बड़ी संख्या में मनुस्मृति की प्रतियां बांटी हैं और साथ ही आरोप लगाया है कि यह संघ की विचारधारा का ही एक हिस्सा है.

वीसीके ने रविवार को मनुस्मृति की करीब एक लाख प्रतियां बांटी, जिसमें दलितों और महिलाओं के बारे में शास्त्रों में जाहिर किए गए विचारों को रेखांकित किया गया. द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) नीत सरकार के सहयोगी इस दलित संगठन ने मनुस्मृति के कुछ पृष्ठ और अध्यायों को प्रिंट कराया है. इन्हें ही आरएसएस के खिलाफ उनके विशेष अभियान के तौर पर लोगों के बीच बांटा जा रहा है.

थोल. थिरुमावलवन की पार्टी ने दावा किया कि उसने संघ के विचारों—जो मनुस्मृति तथा अन्य हिंदू धर्मग्रंथों से प्रेरित बताए जाते हैं—को ‘उजागर’ कर दिया है, और कहा कि प्राचीन हिंदू ग्रंथों में महिलाओं के कर्तव्यों और अधिकारों को बेहद ही दकियानूसी तरीके से वर्णित किया गया है और दलितों को समाज से ‘बहिष्कृत’ वाली स्थिति में रखा गया है.

आरएसएस ने तमिलनाडु में अपनी गतिविधियां काफी तेज कर दी है, इसी क्रम में उसने 6 नवंबर को विभिन्न जिलों में 50 रूट मार्च निकालने की योजना बनाई थी. द्रमुक सरकार ने इसकी अनुमति देने से इनकार कर दिया तो मामला मद्रास हाईकोर्ट तक पहुंच गया.

हालांकि, संघ को 44 स्थानों पर मार्च निकालने की अनुमति तो मिल गई. लेकिन हाईकोर्ट ने कोयंबटूर सहित छह जगहों को सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील मानते हुए वहां मार्च की अनुमति देने से इनकार कर दिया. कोयंबटूर में ही पिछले महीने एक विस्फोट में एक संदिग्ध आतंकवादी की मौत हो गई थी. आरएसएस ने रविवार को, कल्लाकुरिची, पेरम्बलूर और कुड्डालोर में मार्च और जनसभाएं कीं.

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आरएसएस के वरिष्ठ पदाधिकारियों का दावा है कि रूट मार्च का आयोजन उनके शताब्दी कार्यक्रमों और महात्मा गांधी की जयंती मनाने के लिए किया गया था.

आरएसएस की केंद्रीय समिति के एक सदस्य ने कहा, ‘वे (सत्तारूढ़ दल) हमें लोगों का दुश्मन बता रहे हैं. यह वास्तव में बहुत ही गलत बात है. आरएसएस के रूट मार्च अन्य राजनीतिक दलों की तरह अनियंत्रित नहीं हैं. ये अनुशासित कैडर हैं और ये अनुशासित तरीके से मार्च निकालते हैं. लेकिन तमिलनाडु के राजनीतिक दल (डीएमके) ने हमेशा हमें रोकने की कोशिश की है, और उन्होंने इसके लिए अलग-अलग मोर्चों को आगे रखा है. इस बार, उसने (डीएमके) आग उगलने के लिए एक और मोर्चे (वीसीके) का इस्तेमाल किया है.’


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वीसीके के महासचिव और सांसद डी. रविकुमार ने दिप्रिंट को बताया कि पार्टी ने जवाब में कुछ कार्यक्रम शुरू किए क्योंकि ‘हम नहीं चाहते कि आरएसएस अपनी हिंदुत्ववादी विचारधारा लोगों पर थोपे.’

रविकुमार ने कहा, ‘उनका कहना है कि वे गांधी जयंती के मौके पर रूट मार्च का आयोजन कर रहे हैं. क्या गांधी के हत्यारों का इस तरह उनकी जयंती मनाना हास्यास्पद नहीं है?’

उन्होंने आरोप लगाया, ‘कई जगहों पर संघ पदाधिकारियों ने गांधी और अम्बेडकर को गालियां दी हैं. वे भारत की सबसे बुरी विभाजनकारी ताकत हैं. वे सिर्फ धर्म और जाति के नाम पर ध्रुवीकरण चाहते हैं. और भाजपा को स्थापित करने के लिए तो वे हमेशा ही दलितों और आदिवासियों का शोषण करते हैं.’

हालांकि, आरएसएस के प्रचार प्रभारी सुनील आंबेकर ने कहा कि संघ कानून का पालन करने वाला संगठन है. उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘हम लोगों से जुड़ रहे हैं. और राष्ट्र सेवा के लिए अपने सामाजिक कार्यों को जारी रखेंगे.’

आरएसएस ने नए सिरे से ताकत झोंकी

हालांकि, आरएसएस तमिलनाडु में 1990 के दशक से सक्रिय है, लेकिन राज्य में उसकी मौजूदगी पिछले 60 सालों से है. इसकी वैचारिकता आगे बढ़ाने वाली भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) राज्य की राजनीति में लगातार हाशिये पर बनी हुई है. पार्टी ने 2021 में केवल चार विधानसभा सीटें जीतीं थीं.

तमिलनाडु में भाजपा के उपाध्यक्ष पी. कनागसबापति ने दावा किया है, ‘आरएसएस पिछले पांच-छह दशकों से यहां पर है. लेकिन मुख्य रूप से सामाजिक कार्यों से ही जुड़ा रहा है. हालांकि, अब स्थितियां बदल गई है. द्रमुक और पेरियारवादी राजनीतिक दल आमतौर पर तमिल विरोधी और हिंदू विरोधी हैं. वे देश के बारे में झूठ फैला रहे हैं, और राष्ट्रीय हितों को भी नुकसान पहुंचा रहे हैं. आतंकवादी गतिविधियां जारी हैं और ऐसे समूहों को पनाह भी मिल रही है. यही वजह है कि आरएसएस को आगे आने और अपने कैडर को संगठित करने की जरूरत है. लोग भी इस बात को समझ रहे हैं और हमें अच्छी प्रतिक्रियाएं मिल रही हैं.’

उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘वीसीके एक बेहद नकारात्मक भूमिका निभा रहा है. वे हिंदुत्व और तमिलनाडु की प्राचीन संस्कृति को बदनाम कर रहे हैं.’

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि संघ तमिलनाडु में विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन करके और रूट मार्च के जरिये कैडरों को लामबंद कर भाजपा-आरएसएस की संयुक्त ताकत बढ़ाने की कोशिश में लगा है.

मद्रास यूनिवर्सिटी में पॉलिटिक्स और पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन डिपार्टमेंट के प्रमुख रामू मणिवन्नन का कहना है कि अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (एआईएडीएमके) की राजनीतिक उपस्थिति के अभाव में भगवा ब्रिगेड विपक्ष की जगह हासिल करना चाहती है.

उन्होंने कहा कि इसी सबको देखते हुए द्रमुक के एक सहयोगी ने लोगों को संघ की विचारधारा से अवगत कराने और ‘कट्टरपंथ फैलने से रोकने’ के लिए मनुस्मृति आंदोलन शुरू किया है.

जातिगत भेदभाव के खिलाफ लड़ने वाले और महिला अधिकारों की बात करने वाले समाज सुधारक पेरियार से प्रेरित रही द्रविड़ राजनीति आमतौर पर गैर-ब्राह्मणवाद के इर्द-गिर्द सिमटी है.

मणिवन्नन ने कहा, ‘यही वजह है कि पिछले छह दशकों से तमिलनाडु में अपनी उपस्थिति के बावजूद संघ मोदाकुरिची, कोयंबटूर, नागरकोइल और तिरुनेलवेली जैसे क्षेत्रों तक ही सीमित रहा है. पिछले पांच से छह वर्षों में आरएसएस और उसके सहयोगियों ने विनायक चतुर्थी और इस तरह के अन्य आयोजनों के जरिये राज्य में हिंदुत्ववादी राजनीति के प्रवेश की कोशिश की हैं. लेकिन उन्हें अभी लोगों की सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं मिली है.’

ताजा घटनाक्रम ऐसे समय सामने आया है जब संघ की तरफ से डीएमके को ‘पीएफआई (पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया) और अन्य इस्लामी आतंकी समूहों का सहयोगी’ करार देते हुए उस पर लगातार निशाना साधा जा रहा है. कोयंबटूर धमाके के बाद आरएसएस ने अपनी गतिविधियां आक्रामक ढंग से तेज कर दी है और रूट मार्च का आयोजन इसी का हिस्सा है.

विपक्ष की जगह लेने की कोशिश

तमिलनाडु में आरएसएस-डीएमके में जारी खींचतान के बीच राजनीतिक पर्यवेक्षक रामू मणिवन्नन का मानना है कि भाजपा ने ‘अन्नाद्रमुक को एकदम सुनियोजित तरीके से लगभग खत्म कर दिया है’ और अब यह पार्टी संघ के जरिये ‘अपनी राजनीतिक छवि मजबूत’ करने में जुटी है.

मणिवन्नन ने कहा, ‘भाजपा-आरएसएस मिलकर राज्य में अन्नाद्रमुक के विकल्प और द्रमुक के मुख्य प्रतिद्वंद्वी के तौर पर उभरने की कोशिश कर रहे हैं. उन्होंने एक नेता को दूसरे के खिलाफ खड़ा करके सुनियोजित तरीके से गुटबाजी के जरिये अन्नाद्रमुक को खत्म कर दिया है. मौजूदा समय में राज्यपाल राज्य में विपक्ष की भूमिका निभा रहे हैं.’

उन्होंने कहा, ‘रणनीतिक सूचनाओं के मामले में केंद्रीय सत्ता में बैठी पार्टी की गहरी पैठ है. वे उसका भरपूर इस्तेमाल कर रहे हैं और आरएसएस यहां की राजनीति को महाराष्ट्र और उत्तर भारत जैसी बनाने में जुटा है. राज्य मुख्यत: हिंदू बहुल है लेकिन इसका इतिहास कभी भी सांप्रदायिक राजनीति वाला नहीं रहा. इसका ताना-बाना पूरी तरह धर्मनिरपेक्षता वाला रहा है. आरएसएस की गतिविधियां सामाजिक-सांस्कृतिक-राजनीतिक आंदोलन वाली हैं.’

शिक्षाविद् की राय है कि वीसीके के जवाबी कदम को इसके प्रतिरोध के तौर पर देखा जा सकता है. उन्होंने कहा, ‘राज्य पहले से ही तर्कवादी रहा है, और लोग सोच-समझकर ही अपने राजनीतिक विकल्पों के पक्ष में मतदान करते रहे हैं. लेकिन, उन्होंने यहां कभी किसी सांप्रदायिक विचारधारा को बढ़ावा नहीं दिया.’

भारत केंद्रित अध्ययन में विशेषज्ञ कनागसबापति ने द्रमुक को मिली चुनावी सफलता और भगवा राजनीति के लिए थोड़ी गुंजाइश बनने के बाबत कहा कि एम.के. स्टालिन के नेतृत्व वाली सत्तारूढ़ पार्टी को मजबूती इसलिए मिली क्योंकि विपक्षी दलों का अभूतपूर्व ढंग से सफाया हो गया था. साथ ही जोड़ा, ‘लेकिन, डीएमके एक ऐसी पार्टी है जो केवल गठबंधन के सहारे चलती है. पिछले 30 सालों में इसे कभी अपने बलबूते बहुमत नहीं मिला.

1992 के बाद से, डीएमके ने 1996, 2006 और 2021 में तमिलनाडु में जीत हासिल की है. इनमें उसने तमिल मनीला कांग्रेस, भाकपा से लेकर कांग्रेस, वीसीके आदि पार्टियों तक के साथ गठबंधन किया.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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