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हरियाणा में पदयात्राएं, अभियान और चौधरी देवीलाल की विरासत के लिए लड़ाई

इनेलो के एकमात्र विधायक अभय सिंह चौटाला ने अपनी पार्टी की किस्मत पलटने की कोशिश करते हुए राज्य में पदयात्रा करने की घोषणा की है. लेकिन राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि समय को पीछे मोड़ना मुश्किल हो सकता है.

मीडिया से बात करते अभय सिंह चौटाला की फाइल फोटो | एएनआई

चंडीगढ़: 2 दिसंबर को, इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) से विधान सभा के एकमात्र सदस्य अभय सिंह चौटाला ने घोषणा की कि वह पूरे हरियाणा में 7 महीने की ‘परिवर्तन पदयात्रा’ शुरू कर रहे हैं.

यात्रा, जो 20 फरवरी को शुरू होने वाली है, यह हरियाणा में होने वाले विधानसभा चुनाव से लगभग 20 महीने पहले शुरू की जा रही है.

90 सदस्यीय हरियाणा विधानसभा में इनेलो के अब एक सीट पर सिमट जाने के साथ पदयात्रा का महत्व बढ़ गया है. इसे एक पार्टी की विरासत को फिर से हासिल करने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है, जिसे पहली बार पूर्व उप प्रधान मंत्री चौधरी देवी लाल – अभय के दादा द्वारा स्थापित किया गया था.

दिप्रिंट से बात करते हुए अभय चौटाला ने कहा, “मैंने इस पदयात्रा का नाम परिवर्तन यात्रा रखा है. जैसा कि नाम से पता चलता है, परिवर्तन यात्रा का उद्देश्य हरियाणा में बदलाव लाना और किसानों और आम लोगों के शासन को वापस लाना है.”

अभय ने दिप्रिंट को बताया, हरियाणा के लोग चौधरी देवीलाल और ओम प्रकाश चौटाला के नेतृत्व वाले पुराने और अच्छे शासन के लिए तरस रहे हैं.

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पिछले चार वर्षों में पार्टी में धीरे-धीरे गिरावट देखी गई है. साल 2018 में पार्टी में उथल-पुथल देखी गई, जब इनेलो के संरक्षक ओम प्रकाश चौटाला ने अभय के भाई अजय चौटाला के बेटे दिग्विजय और दुष्यंत चौटाला को पार्टी विरोधी गतिविधियों के लिए निष्कासित कर दिया.

ठीक इसी के एक साल बाद हुए हरियाणा विधानसभा चुनावों में, जननायक जनता पार्टी (JJP), जिसकी स्थापना दुष्यंत ने अपने निष्कासन के तुरंत बाद की थी, ने जाट बहुल INLD के पारंपरिक मतदाता आधार में कटौती करते हुए 10 सीटें जीतीं.

जेजेपी ने सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के साथ गठबंधन किया, यहां तक ​​कि दुष्यंत ने उपमुख्यमंत्री का पद भी हासिल कर लिया. इस बीच, INLD – एक पार्टी जिसने 1999 से 2005 तक राज्य पर शासन किया और विभाजन तक राज्य में प्रमुख विपक्ष थी – एक सीट पर सिमट गई.

राजनीतिक जानकारों का मानना ​​है कि अभय की तमाम कोशिशों के बावजूद इनेलो का खोया गौरव दोबारा हासिल करना मुश्किल होगा.

वयोवृद्ध पत्रकार और हरियाणा के लालो के सबरेंज किस्से के लेखक पवन कुमार बंसल कहते हैं, हालांकि इसमें कोई संदेह नहीं है कि देवी लाल एक महान नेता थे, जिनके पास बहुत सारे अनुयायी थे और “लोगों की नब्ज पढ़ने की क्षमता” थी, तब से अब तक राज्य बहुत बदल गया है .

बंसल ने दिप्रिंट को बताया, ‘देवी लाल के जाने के बाद से घग्घर (हरियाणा से होकर गुजरने वाली मौसमी नदी) के नीचे बहुत पानी बह चुका है. “अब, हमारे पास अलग-अलग आकांक्षाओं वाले मतदाताओं की एक अलग पीढ़ी है.”


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देवीलाल की विरासत की लड़ाई

ग्राफिक: रमनदीप कौर | दिप्रिंट

नूंह से शुरू होने वाली पदयात्रा 25 सितंबर को कुरुक्षेत्र में समाप्त होगी. वह दिन महत्वपूर्ण है-उस दिन चौधरी देवीलाल की जयंती है.

यकीनन यात्रा हरियाणा के किसी नेता द्वारा की गई सबसे लंबी यात्रा है – फरवरी 2019 में, अभय के बड़े भाई अजय ने एक महीने की जन आक्रोश यात्रा की, जो महेंद्रगढ़ में शुरू हुई और चंडीगढ़ में समाप्त हुई थी.

राज्य के युवाओं को लामबंद करने के लिए, अभय के बेटों करण और अर्जुन ने युवाओं को नामांकित करने और पिछले सप्ताह पार्टी की युवा शाखा के चुनाव कराने के लिए ‘इनेलो ऐप’ नामक एक मोबाइल एप्लिकेशन ऐप लॉन्च किया.

सिरसा जिला परिषद चुनावों में इनेलो की दिसंबर की जीत ने पार्टी की उम्मीदों को फिर से जगा दिया है.

इस आलोक में देखा जाए तो अभय की यात्रा खोई हुई जमीन को फिर से हासिल करने और खुद को देवीलाल की विरासत के असली दावेदार के रूप में स्थापित करने की लड़ाई प्रतीत होती है.

हालांकि उनका जन्म 25 सितंबर 1915 को हरियाणा के सिरसा जिले के एक गांव तेजाखेड़ा में हुआ था, लेकिन देवीलाल की जड़ें राजस्थान के बीकानेर में हैं.

यह उनके सबसे बड़े बेटे, ओम प्रकाश थे, जिन्होंने अपने उपनाम के रूप में चौटाला का उपयोग करना शुरू किया, जहां उनके पूर्वज हरियाणा आने पर बस गए थे.

देवीलाल के पूर्व राजनीतिक सलाहकार कमल वीर सिंह ने दिप्रिंट को बताया, ‘उसके बाद से उनके बेटे और पोते अपने नाम के साथ चौटाला शब्द का इस्तेमाल कर रहे हैं.’

भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में एक कार्यकर्ता चौधरी देवी लाल, 1977-79 और 1987-89 तक हरियाणा के मुख्यमंत्री थे और 1989-91 में भारत के डिप्टी पीएम थे.

देवीलाल ने ही तत्कालीन प्रधानमंत्री वी.पी. सिंह को 1990 में मंडल आयोग की रिपोर्ट को लागू करने के लिए कहा. उस वर्ष, 9 अगस्त को – प्रधान मंत्री के साथ “मतभेदों” को लेकर मंत्रिमंडल से बर्खास्त किए जाने के कुछ दिनों बाद – देवीलाल ने शक्ति प्रदर्शन के रूप में दिल्ली में एक किसान रैली की.

यह वह घोषणा थी जिसने सिंह को जल्दबाजी में अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण की घोषणा करने के लिए प्रेरित किया.

यह ठीक इसी तरह की लोकप्रियता है जिसे अभय यात्रा के माध्यम से फिर से हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना ​​है कि यह एक लंबी प्रक्रिया है.

हरियाणा के पूर्व मंत्री संपत सिंह, जो 1987 में देवीलाल के मंत्रिमंडल में मंत्री बने थे और दावा करते हैं कि उन्होंने “देवीलाल की उंगली पकड़कर” राजनीति सीखी है, ने कहा कि हालांकि देवीलाल की विरासत कभी नहीं मरेगी, एक पीढ़ीगत परिवर्तन निश्चित रूप से इसकी चमक को फीका कर रहा है.

सिंह ने अब एक कांग्रेस नेता हैं ने दिप्रिंट को बताया, “वृद्धावस्था पेंशन, साइकिल पर टोकन टैक्स की छूट और ट्रैक्टर पर पंजीकरण शुल्क, साक्षात्कार के दौरान नौकरी चाहने वालों के लिए मुफ्त बस यात्रा और स्कूली बच्चों के लिए कुछ ऐसे फैसले उन्होंने किए थे जिसके लिए लोग देवी लाल को याद करते हैं.”

उन्होंने कहा कि चौटाला खानदान में कोई भी नेता कभी भी देवी लाल जैसे नेता से मेल नहीं खा सकता है.

सिंह, जो 1977 से 1978 तक सीएम के रूप में पूर्व के पहले कार्यकाल के दौरान देवीलाल के राजनीतिक सचिव थे, “मुझे नहीं लगता कि अभय सिंह चौटाला की परिवर्तन यात्रा उनकी पार्टी इनेलो को 2005 से खोई हुई जमीन को फिर से हासिल करने में किसी भी तरह से मदद करेगी.”

चौटाला का भविष्य क्या है

देवीलाल के चार पुत्रों में से, उनके सबसे बड़े बेटे ओम प्रकाश चौटाला, अपने पिता के उत्तराधिकारी बने – पार्टी और राज्य दोनों के लिए.

1989 में पहली बार हरियाणा के मुख्यमंत्री के रूप में अपने पिता की जगह लेने के बाद, ओम प्रकाश ने 1990 और 1991 के बीच दो बार राज्य का नेतृत्व किया- दोनों बार एक पखवाड़े से भी कम समय के लिए.

ओपी चौटाला के दो बेटों में से उनके सबसे बड़े अजय ने 90 के दशक में हरियाणा लौटने से पहले राजस्थान की राजनीति में अपना करियर शुरू किया था. 1999 से 2004 तक भिवानी के सांसद के रूप में कार्य करने के बाद, वह 2004 में राज्यसभा सदस्य बने और 2009 तक वहीं रहे, जब उन्होंने डबवाली, हरियाणा से विधानसभा चुनाव सफलतापूर्वक लड़ा.

अगस्त 2020 में – इनेलो के विभाजन के दो साल बाद – उन्हें जेजेपी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया.

दूसरी ओर, अभय ने खुद को राज्य की राजनीति में रखा है, सफलतापूर्वक चार बार विधानसभा चुनाव लड़े – 2000 में रोरी विधानसभा क्षेत्र से और 2009, 2014 और 2019 में ऐलनाबाद से.

जनवरी 2021 में, इनेलो के इकलौते विधायक अभय ने मोदी सरकार के विवादास्पद कृषि कानूनों के विरोध में विधानसभा से इस्तीफा दे दिया. नवंबर 2021 में हुए ऐलनाबाद उपचुनाव में उन्हें फिर से चुना गया.

2013 में, ओ.पी. चौटाला और अजय जूनियर बेसिक प्रशिक्षित (जेबीटी) शिक्षक भर्ती घोटाले में दोषी ठहराए गए 55 लोगों में शामिल थे. उस रैकेट में जेबीटी शिक्षकों की भर्ती में अनियमितता शामिल थी – राज्य के प्राथमिक विद्यालयों में पढ़ाने वाले शिक्षक.

चौटाला परिवार को 10 साल जेल की सजा सुनाई गई थी.

हालांकि, उनकी कानूनी परेशानियां खत्म नहीं हुई थीं. मई 2022 में, ओम प्रकाश को आय से अधिक संपत्ति के मामले में 4 साल की जेल की सजा सुनाई गई थी, हालांकि पिछले अगस्त में सजा को निलंबित कर दिया गया था.

बंसल ने कहा कि जब अभय और अजय दोनों देवीलाल की विरासत पर दावा करने की कोशिश कर रहे थे, तो कोई भी नेता अपने दादा के कद की बराबरी नहीं कर सकता है.

बंसल ने निष्कर्ष निकाला, “मैं कहूंगा कि ओम प्रकाश चौटाला देवीलाल की विरासत को कुछ हद तक आगे बढ़ा सकते हैं, लेकिन क्या अभय या दुष्यंत चौटाला जनता के बीच उतनी ही लोकप्रियता हासिल कर पाएंगे, जितनी देवी लाल की देखी जाती थी.”

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)

(संपादन: अलमीना खातून)


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