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सरकार ने गरीब सवर्णों के लिए 10 फीसदी आरक्षण का बिल संसद में पेश किया

थावरचंद गहलोत ने संशोधन विधेयक संसद में पेश किया और कहा कि अब सबको न्याय, सबका विकास के साथ सामाजिक समरसता बनेगी.

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संसद के शीत सत्र के दौरान लोकसभा का नजारा, फाइल फोटो, लोकसभा | पीटीआई

नई दिल्लीः सरकार ने सामान्य वर्ग के लिए 10 फीसदी आरक्षण का बिल संसद में पेश कर दिया है. सदन में सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत ने संशोधन विधेयक को पेश किया. बिल का सपा, बसपा व अन्य ने समर्थन किया है.

लोकसभा में सवर्णों को 10 फीसदी आरक्षण को लेकर जारी चर्चा में सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत ने अपनी बात रखी.

उन्होंने कहा कि सामान्य वर्ग के लिए ऐतिहासिक फैसले की जरूरत है, हमने जो किया वह आगे भी करेंगे. अब सारे गरीब आरक्षण के दायरे में आयेंगे. मुस्लिम धर्मावलंंबी, ईसाई, सभी धर्मों के गरीब इस प्रावधान के दायरे में होंगे. इससे जुड़े आर्टिकल में संशोधन सोच-समझकर किया गया है. अब सबको न्याय, सबका विकास होगा और सामाजिक समरसता का वातावरण बनेगा. सदन से अनुरोध है कि इसे सर्वसम्मति से पारित करे.

सवर्ण गरीबों के आरक्षण पर बोलते हुए अरुण जेटली ने कहा कि इस मुद्दे पर मौलिक अधिकार बिल में संशोधन के लिए राज्यों के पास जाने की जरूरत नहीं. अगर हम सभी खुद को थोड़ी देर के लिए राजनीति से अलग कर लें तो यह कहूंगा कि आरक्षण का मुद्दा संविधान से पैदा नहीं हुआ. आरंभिक संविधान में सोशलिस्ट शब्द नहीं था. धर्म, जाति के आधार पर आरक्षण का कोई जिक्र नहीं था. हम सभी को अवसरों में बराबरी देंगे ऐसी बात की गई थी.

आर्टिकल 15, जिसके जरिये सामाजिक व शैक्षणिक आधार पर पिछड़े लोगों को खास अवसर की व्यवस्था की गई. बावजूद इसके ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है की गई है कि एससी एसटी व पिछड़े जितनी भी तरक्की कर लें वे जातीय भेदभाव से बाहर निकल पायें. जैसा कि अंबेडकर कहते थे कि एससी व एसटी के लोग चाहे जितनी तरक्की कर लें वे जातीय भेदभाव से बाहर नहीं आ पायेंगे.

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आरक्षण के मसले पर काका कालेलकर की रिपोर्ट, मंडल कमीशन की रिपोर्ट भी मौजूद है, जो इसी तरह की बात करती है. लोगों का मानना है कि आरक्षण 10 फीसदी से ज्यादा होगा तो रद्द हो जाएगा. राज्यों ने भी ऐसी कोशिश की, लेकिन वह नोटिफिकेशन या सामान्य कानून के जरिये थी, जिससे वह रद्द हो गया.

आरक्षण के प्रावधान के लिए संविधान में आर्थिक आधार पर कोई व्यवस्था नहीं है. इसलिए न्यायपालिका ने इसे कभी स्वीकार नहीं किया और रद्द हो गया. सुप्रीम कोर्ट ने कभी नहीं कहा कि आर्थिक आधार पर आरक्षण नहीं दिया जा सकता, उसने हमेशा सामाजिक और शैक्षणिक आधार पर पिछड़े लोगों के लिए 50 फीसदी आरक्षण की सीमा तय की. यह सीमा ऐतिहासिक सामाजिक आधार पर हुए भेदभाव के कारण दिए गया आरक्षण पर थी. इसिलए अनरिजर्व कटेगरी के लोग देश में तमाम परिवर्तनों का फायदा उठाकर आगे बढ़ गये, जबकि भेदभाव के शिकार लोग फायदा नहीं उठा सके.

आखिर कम्युनिस्ट इसका क्यों विरोध कर रहे हैं? वे गरीबों की बात करते हैं तो उन्हें भी गरीब सवर्णों के लिए इस व्यवस्था का समर्थन करना चाहिए. पहले के रिजर्वेशन को बिना नुकसान पहुंचाये यह व्यवस्था की गई है. यह सभी पार्टियों के घोषणा पत्र में भी है. अब सबकी परीक्षा है.

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