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भाजपा को महाराष्ट्र में जगह दी और उसने मोहम्मद ग़ोरी की तरह पीठ में खंजर घोपा : सामना

'बीजेपी के बगल में भी कोई खड़ा नहीं होना चाहता था और हिंदुत्व व राष्ट्रवाद जैसे शब्दों को देश की राजनीति में कोई पूछता भी नहीं था तब और उसके पहले भी जनसंघ के दीये में शिवसेना ने तेल डाला है.'

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शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे, फाइल फोटो । ट्विटर

नई दिल्ली: शिवसेना ने मंगलवार को अपने संपादकीय में एनडीए से बाहर होने की घोषणा पर सवाल खड़े करते हुए कहा ‘एनडीए’ के जन्म और प्रसव पीड़ा को शिवसेना ने अनुभव किया है. भारतीय जनता पार्टी के बगल में भी कोई खड़ा नहीं होना चाहता था और हिंदुत्व व राष्ट्रवाद जैसे शब्दों को देश की राजनीति में कोई पूछता भी नहीं था, तब और उसके पहले भी जनसंघ के दीये में शिवसेना ने तेल डाला है.

शिवसेना ने साथ ही भाजपा को आड़े हाथों लेते हुए उसकी तुलना मोहम्मद गोरी से भी की. सामना में लिखा कि,’महाराष्ट्र में भी ऐसे विश्वासघाती और कृतघ्न प्रवृत्ति को हमने कई बार जीवनदान दिया. आज यही प्रवृत्ति शिवसेना की पीठ पर वार करने का प्रयास कर रही है. हालांकि शिवराय के महाराष्ट्र की पीठ में खंजर घोंपनेवालों को आसानी से छोड़ा नहीं जाएगा.’

शिवसेना नेता और राज्यसभा सांसद संजय राउत जो पार्टी के मुखपत्र सामना के संपादक भी हैं, रोज़ ट्वीट कर और अपने संपादकियों के ज़रिए अपनी पार्टी का राजनीतिक रुख सामने रखते रहे हैं. सामना की संपादकीय में शिवसेना के एनडीए से अलग करने की घोषण पर सवा​ल उठाए हैं.

सामना में लिखा है, ‘बालासाहेब ठाकरे, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, जॉर्ज फर्नांडीज और पंजाब के बादल जैसे दिग्गजों ने जब राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की नींव रखी उस समय आज के ‘दिल्लीश्वर’ गुदड़ी में भी नहीं रहे होंगे. कइयों का तो जन्म भी नहीं हुआ होगा. राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की बैठकें होती थीं और महत्वपूर्ण निर्णय पर चर्चा की जाती थी. जॉर्ज फर्नांडीज ‘एनडीए’ के निमंत्रक थे और आडवाणी प्रमुख थे. आज ‘एनडीए’ का प्रमुख या निमंत्रक कौन है इसका उत्तर मिलेगा क्या? शिवसेना को बाहर निकालने का निर्णय किस बैठक में और किस आधार पर लिया गया. ये सारा मामला इतनी हद तक क्यों गया?’

पार्टी मुखपत्र का कहना था कि जिस दिन बालासाहेब ठाकरे का स्मृतिदिवस था उस दिन ‘खुजलीबाजों’ ने ये ‘नीच’ घोषणा बिना विचार विमर्ष या चिट्ठी बाज़ी के की. संपादकीय में आरोप लगाया गया कि ‘जिस ‘एनडीए’ के अस्तित्व को गत साढ़े सात सालों में धीरे-धीरे नष्ट कर दिया, कह रहे हैं कि उस ‘एनडीए’ से शिवसेना को बाहर निकाल दिया. ये अहंकारी और मनमानी राजनीति के अंत की शुरुआत है.’

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महाराष्ट्र में महायुति या महागठबंधन बना कर चुनाव लड़ने वाली भाजपा और शिवसेना के बीच चुनाव के नतीजे आने के बाद, मुख्यमंत्री पद पर लंबी रस्साकशी के बाद ये साफ हो गया कि दोनों दलों में सब कुछ ठीक नहीं. शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे ने कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी से बात की. राष्ट्रवादी कांग्रेस नेता शरद पवार भी लगातार तीनों दलों के साथ आने पर बातचीत कर रहे है. इस सब के बीच संसद के शीतकालीन सत्र में शिवसेना के सांसदों की सीटों को विपक्ष में शिफ्ट किया गया. सत्र के पहले एनडीए की बैठक में शिव सेना शामिल नहीं हुई. इससे पहले शिवसेना सांसद अरविंद सावंत ने मंत्रीमंडल से इस्तीफा भी दे दिया था.

सामना में कहा गया, ‘भारतीय जनता पार्टी का हो-हल्ला है कि शिवसेना ने कांग्रेस से हाथ मिलाया है. हम पूछते हैं कि अगर ऐसा होता दिख रहा है तो राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की बैठक बुलाकर शिवसेना पर आरोप पत्र क्यों नहीं ठोंका.’

अखबार ने साथ ही तीखे शब्दों में भाजपा के गठबंधनों पर सवाल उठाएं. उसने लिखा, ‘कश्मीर में राष्ट्रद्रोही और पाकिस्तानियों के गीत गानेवाली महबूबा मुफ्ती के साथ सत्ता के लिए निकाह करनेवाली भाजपा ने ‘एनडीए’ की अनुमति ली थी क्या? पाकिस्तान समर्थकों को ‘एनडीए’ की बैठक में सम्मान देकर कुर्सी देते समय अनुमति ली थी क्या? नरेंद्र मोदी का विरोध करनेवाले और मोदी पर कठोर टिप्पणी करनेवाले नीतीश कुमार की कमर पर फिर से ‘एनडीए’ की लंगोट पहनाते समय तुमने हमसे अनुमति ली थी क्या?’

सेना के मुखपत्र ने साथ ही मोदी पर निशाना साधते हुए चेतावनी दी, ‘सारे लोगों के मंबाजी के राजनीति की उल्टी गिनती शुरू हो गई है.’

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