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‘मास्टरजी का बेटा’, स्टैंड-अप स्टार से लेकर ‘पेगवंत’ तक: कॉलेज ड्रॉपआउट भगवंत मान कैसे बने पंजाब के CM

पंजाब के नए मुख्यमंत्री को कई बार असफलता मिली तो अप्रत्याशित सफलताओं का आनंद भी मिला और अपने राजनीतिक उत्थान के दौरान व्यक्तिगत संघर्षों का सामना भी करना पड़ा- वह भी सार्वजनिक रूप से.

चित्रण: मनीषा यादव/दिप्रिंट

संगरूर: सतोज गांव का हर शख्स बुधवार को पंजाब के सत्रहवें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने वाले भगवंत मान का करीबी दोस्त या रिश्तेदार होने का दावा करता है.

हम एक साथ स्कूल जाते थे और हम सबसे अच्छे दोस्त हैं ’, ‘वह मुझसे कहता था कि मैं उसकी पसंदीदा चाची हूं’, ‘जब भी वह गांव में आता है तो वह गुरु घर (गुरुद्वारा) आता है और मेरे पैर छूता है’, ‘मैं उनकी बाहों में ही तो बड़ा हुआ हूं’, ‘वह तो मेरी बाहों में बड़ा हुआ है’, ‘वो तो भाई है अपना’- दिप्रिंट द्वारा सतोज गांव के दौरे के दौरान इस तरह की आवाजें हर गली-नुक्कड़ और दरवाजे से गूंज रहीं थीं.

बेशक, यह समझ में आता है कि हर कोई मान के साथ अपना जुड़ाव स्थापित करना चाहता है.

पंजाब में, जहां आम आदमी पार्टी राज्य की 117 विधानसभा सीटों में से 92 सीटें जीतकर भारी बहुमत के साथ सत्ता में आई है. राज्य में मान ही पार्टी के सीएम पद का चेहरा थे.

मान और पार्टी प्रमुख अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में, आप ने मतदान के पारंपरिक पैटर्न को भी तितर-बितर कर दिया, अकाली दल और कांग्रेस की पैठ काफी सीमित कर दी और एक मौजूदा एवं तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों को अपनी-अपनी सीटों से जबरदस्त हार का सामना करना पड़ा.

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इस जीत ने आप को राष्ट्रीय राजनैतिक मानचित्र पर भी ला खड़ा किया है और पार्टी प्रमुख अरविंद केजरीवाल को अंततः दिल्ली की सीमाओं से परे किसी दूसरे राज्य में सरकार बनाने में मदद की है.

48-वर्षीय मान को राजनीति में यह सफलता रातोंरात नहीं मिली है लेकिन उनके परिचितों का कहना है कि उन्होंने अपनी क्षमता का प्रदर्शन बहुत पहले ही कर दिया था.

सतोज स्थित भगवंत मान के घर के बाहर उनके ले-आउट्स | फोटो: रीति अग्रवाल/दिप्रिंट

मान के कॉलेज के दिनों के दोस्त कंवलजीत ढींडसा ने बताया, ‘भगवंत की इस उपलब्धि के बीज दस साल पहले ही पड़ गए थे, जब उन्होंने राजनीति में पदार्पण किया था.’

जब उन्होंने पहली बार 2012 में लहरगागा से और फिर 2017 में प्रकाश सिंह बादल के खिलाफ जलालाबाद से चुनाव लड़ा, तो वे हार गए. लेकिन उन्होंने जो संदेश दिया वह यह था कि यथास्थितिवाद को चुनौती दी जा सकती है. इन दिग्गजों को हराया जा सकता है. और उसने आखिरकार यह कर ही दिया.’


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बगावती लकीर पर चलने वाला शख्स

अपने बचपन में भगवंत मान हर दिन स्कूल जाने के लिए अपने घर से 10 किलोमीटर दूर अपने पिता की साइकिल की पिछली सीट पर सवार होकर जाते थे. इलाके में ‘मास्टरजी’ के नाम से मशहूर उनके पिता मोहिंदर सिंह तीन कमरों वाले छोटे से मिडिल स्कूल के प्रिंसिपल थे और उन्होंने हमेशा युवा मान से पढ़ने, सीखने और शिक्षित बनने की ही बातें की.

लेकिन, मान को हमेशा गाने और चुटकुले सुनाने में ज्यादा दिलचस्पी रहती थी. एक छोटे से लड़के के रूप में, वह अपने सहपाठियों, शिक्षकों, यहां तक कि गांव में आने-जाने वाले वाहनों की भी नकल करता था और सुनने वाला हर कोई हंस पड़ता था.

ढींडसा याद करते हुए कहते हैं, ‘उनकी इसी प्रतिभा ने उन्हें कॉलेज में उन्हें पहचान दिलाई. मुझे याद है कि मैं उनसे पहली बार 1991 में शहीद उधम सिंह कॉलेज की कैंटीन में मिला था. वहां वह चुटकुले सुना रहे थे और ट्रैक्टर की आवाज़ की नकल कर रहा थे. वह वास्तव में एकदम स्वाभाविक लग रहे थे.’

सतोज स्थित घर में युवा भगवंत मान की तस्वीरें | फोटो: रीति अग्रवाल/दिप्रिंट

कॉलेज में मान के सीनियर रहे ढींडसा कई युवा उत्सवों का आयोजन करते थे और उन्होंने हर बार यह सुनिश्चित किया कि भगवंत मान हमेशा लाइन-अप में रहे.

ढींडसा ने कहा, ‘उनकी रचनात्मकता बेजोड़ थी. उन्होंने जो पहला कॉलेज फेस्ट जीता उसमें वह एक कबाड़ीवाले की नकल कर रहे थे और दर्शकों को अपने बीते दिन के बारे में बता रहे थे. इसके लिए उन्होंने एक कबाड़ीवाले के साथ बैठकर कई घंटों बिताए और उसके जीवन, उसके दर्द और उसकी समस्याओं को समझने की कोशिश की. वह मंच पर एक असली कबाड़ीवाला साइकिल लेकर आए थे. उस एक्ट के लिए उन्हें प्रथम पुरस्कार मिला.’

ढींडसा ने कहा कि मान के पिता को यह सब मंजूर नहीं था. वे चाहते थे कि उनका बेटा अपनी डिग्री पूरी करे और फिर सरकारी नौकरी हासिल करे.

लेकिन मान अपने घर में बैठकर गाने का अभ्यास करते रहे, चुटकुले लिखते रहे और एक बड़ा कलाकार होने का सपना देखते रहे.

इसकी वजह से उन्हें अपने पहले साल के बाद ही कॉलेज छोड़ना पड़ा लेकिन उन्होंने जल्दी ही सफलता का मुंह देखा.


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शोबिज में बनाई अपनी जगह

भगवंत मान को पहला बड़ा मौका 1992 में मिला, जब वह केवल 19 साल के थे. लुधियाना के एक संगीत निर्माता जरनैल घुमन का ध्यान मान द्वारा तैयार की गई एक पैरोडी वाले गाने पर पड़ा और उन्होंने इस नौजवान को इसी तरह के व्यंग्यपूर्ण ट्रैक के साथ एक एल्बम बनाने के लिए कहा. फिर वह मान को लुधियाना ले गए और ‘कुल्फी गरम-गरम ‘ नाम से एक कैसेट रिकॉर्ड किया, जिसमें लोकप्रिय पंजाबी गीतों की पैरोडी की गयी थी.

पंजाबी सिनेमा के जाने-माने गायक, अभिनेता और निर्माता करमजीत अनमोल, जिन्होंने कभी मान के साथ कॉलेज फेस्ट में भाग लिया था, के अनुसार यह एल्बम काफी धमाकेदार सफलता वाला साबित हुआ.

अनमोल ने दिप्रिंट को बताया, ‘पूरे भारत में, ‘कुल्फी गरम-गरम ‘ की पचास लाख प्रतियां बिकीं. अगर इसमें पायरेटेड कॉपियों की भी गिनती की जाए तो यह आंकड़ा करोड़ों में हो जाएगी. यह एक सुपरहिट एल्बम था और अपनी तरह का पहला एल्बम था जिसमें मान ने अपने पैरोडी के माध्यम से बात करने के लिए कोई भी सामाजिक मुद्दा अनछुआ नहीं छोड़ा था.‘

कॉलेज के दिनों में अपने दोस्तों को हंसाते भगवंत मान | फोटो: विशेष प्रबंध

साल 1994 तक, मान को पूरे भारत में स्टैंड-अप शो के लिए आमंत्रित किया जाने लगा और जल्द ही वह यूके, यूएस और कनाडा में भी अपने शो करने लगे, जिनमें अक्सर करमजीत अनमोल और कॉमेडियन बिन्नू ढिल्लों सह-कलाकार रूप में उनके साथ रहते थे. उनके सबसे लोकप्रिय नाटकों में से एक का शीर्षक था, ‘नो लाइफ विद वाइफ ‘.

इसके अलावा 1990 के दशक में, मान ने ‘जुगनू केहंदा है ‘ नाम से एक कॉमेडी स्किट-शो का भी सह-निर्माण किया, जो लगभग एक दशक तक अल्फा ईटीसी पंजाबी पर चला. हालांकि, उनके सह-लेखक जगतार जग्गी, जिन्होंने मान के पहले एल्बम में भी अपना योगदान दिया था, ने यह कहते हुए शो छोड़ दिया कि उन्हें इसके लिए पर्याप्त श्रेय नहीं दिया गया था.

कुछ सालों के बाद मान ने राष्ट्रीय रंगमंच पर अपनी जगह बनाई, जब उन्होंने एक स्टैंड-अप कॉमेडी शो, द ग्रेट इंडियन लाफ्टर चैलेंज, में भाग लिया, जिसके जजों (निर्णायकों) में से एक पंजाब कांग्रेस के वर्तमान प्रमुख नवजोत सिंह सिद्धू भी थे.


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अक्खड़ राजनेता

मान के दोस्तों के अनुसार, उनकी राजनीति में छलांग लगभग बिना किसी चेतावनी के ही लगाई गई थी.

ढींडसा ने याद करते हुए कहा, ‘2012 में एक दिन उन्होंने मुझे दिल्ली एयरपोर्ट से फोन किया और कहा, ‘ढींडसा, मैं लहरगागा से चुनाव लड़ रहा हूं’. मैं तो अवाक रह गया, उस समय वह अपने करियर के चरम पर थे.’

उस वक्त लहरगागा विधानसभा सीट पर कांग्रेस की पूर्व सीएम राजिंदर कौर भट्टल का कब्जा था और उन्होंने 1992 के बाद से लगातार यह सीट जीती थी. ढींडसा ने अपने दोस्त को किसी और सुरक्षित सीट से चुनाव लड़ने की सलाह दी, लेकिन मान ने एक ‘जायंट किलर’ बनने की ठान रखी थी. हालांकि इस बार वह फेल हो गए.

2017 में, मान ने फिर से कोशिश की. इस बार उन्होंने जलालाबाद में आप के उम्मीदवार के रूप एक और मौजूदा मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल का सामना किया और फिर से हार गए.

हालांकि, ढींडसा का मानना है कि मान ने पंजाब की राजनीति में बदलाव के लिए बीज सफलतापूर्वक बो दिए थे.

ढींडसा ने कहा, ‘वह दोनों चुनाव हार गए. लेकिन उन्होंने आज पार्टी को इस तरह की बड़ी जीत दिलाई क्योंकि एक व्यक्ति के रूप में उन्होंने आगे बढ़कर रास्ता दिखाया. उन्होंने यह साहस दिखाया कि पंजाब के नेता अपराजेय नहीं हैं कि उन्हें चुनौती दी जा सकती है. और उसी विश्वास के आधार पर ही पर आज आम आदमी पार्टी ने इतनी सीटें जीती हैं. ‘

यहां तक कि आप के भीतर भी मान को संघर्ष के मामले में बेखौफ और नेतृत्व को चुनौती देने के लिए जाना जाता है. 2018 में, जब अरविंद केजरीवाल ने एक अकाली नेता से ड्रग के कारोबार में शामिल होने का आरोप लगाने के लिए माफी मांगी, तो मान ने इसके विरोध में इस्तीफा दे दिया. मगर, दस महीने बाद ही उन्होंने राज्य के पार्टी प्रमुख के रूप में वापसी की.


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‘राजनीति की कीमत उन्हें अपनी शादी से चुकानी पड़ी’

2015 में, मान ने घोषणा की कि उन्होंने और उनकी पत्नी, जिन्होंने उनके पहले के चुनाव अभियानों में उनकी मदद की थी, ने तलाक के लिए अर्जी दी है क्योंकि उन्होंने ‘पंजाब को परिवार के ऊपर’ चुना था.

बिन्नू ढिल्लों ने कहा, ‘एक कलाकार के पास घर पर देने के लिए समय होता है. लेकिन एक राजनेता का काम चौबीसों घंटे का होता है. वह घर पर ठीक से समय नहीं दे पाता था और इस वजह से उसकी शादी टूट गई.’

ढींडसा ने कहा कि मान के धाराप्रवाह बयानों के पीछे उनका दिल टूट रहा था.

संसद के बाहर भगवंत मान | फोटो: प्रवीन जैन/दिप्रिंट

ढींडसा ने कहा, ‘वह अपने पिता की मौत के नुकसान को सहन कर सकता था, लेकिन अपने बच्चों को खोना उसके लिए बहुत अधिक दुख वाला था. 2014 में, जब हमने प्रचार किया था, तब मान की पत्नी और उनके बच्चे भी यहां थे. अगली बार, वह अकेला था. हम देख सकते थे कि इस बात ने उसे किस हद तक परेशान किया. उन्हें अपने दोनों बच्चों (जो अब अमेरिका में हैं) की बेहद याद आती है.

राजनीति ने मान के लिए आर्थिक परेशानियां भी पैदा की. उनके दोस्तों के अनुसार, उन्हें अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए बहुत सारी जमीनें बेचनी पड़ीं और एक समय में उनके पास अपनी कार में पेट्रोल भरवाने के लिए भी पैसे नहीं थे. वर्तमान में उनकी घोषित संपत्ति 1.64 करोड़ रुपये की है.


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‘पेगवंत’ मान: ज्यादा शराब पीने के आरोप

मान के नशे की हालत में संसद आने के आरोप पहले-पहल आप के भीतर से ही लगाए गए थे.

आप के पूर्व सदस्यों योगेंद्र यादव और हरिंदर सिंह खालसा दोनों ने आरोप लगाया था कि उन्हें क्रमशः 2015 और 2016 में मान से ‘शराब की बू’ आई थी.

मान पर एक अंतिम संस्कार और एक गुरुद्वारे में भी नशे की हालत में होने का आरोप लगाया गया था और यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी लोकसभा में उनके शराब पीने की आदतों का मजाक उड़ाया था.

इन घटनाओं की वजह से शराब के कारण अपने पिता को खोने वाले मान को एक क्रूर उपनाम मिला: पेगवंत मान .

इसके बाद, साल 2018 में केजरीवाल ने सार्वजनिक रूप से घोषणा की कि मान ने शराब छोड़ने की शपथ ली है लेकिन इस चुनाव के दौरान भी उनकी ‘शराब’ वाली आदत प्रतिद्वंद्वी दलों के निशाने पर थी.

शराब के इस कथित दुरुपयोग (ज्यादा पीने) के बारे में पूछे जाने पर मान के दोस्तों ने कहा कि इस मुद्दे को कुछ ज्यादा ही बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया है.

ढींडसा ने पूछा, ‘पंजाब में कौन नहीं पीता?’

इस बारे में ढिल्लों ने कहा, ‘वह कुछ भी अवैध तो नहीं कर रहे हैं. अगर वह पीते हैं, किसी ठेके (शराब की दुकान) से ही खरीदते हैं और पीते हैं, इसमें हर्ज क्या है?’


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अच्छी तरह से पढ़े-लिखे और भगत सिंह के प्रशंसक

मान ने भले ही कॉलेज की पढाई बीच में हीं छोड़ दी हो लेकिन उनके दोस्तों का कहना है कि वह बहुत पढ़े-लिखें हैं.

अनमोल ने कहा, ‘पुराने दिनों में अगर भगवंत चुटकुले पढ़ या सुना नहीं रहे होते थे, तो वह रेडियो पर समाचार सुन रहे होते थे.’

उनकी रुचि के अन्य क्षेत्रों में खेल और इतिहास के कुछ निश्चित कालखंड शामिल हैं.

मान के साथ स्कूल जाने वाले जोधा सिंह ने कहा, ‘वह हमेशा पंजाब के नायकों के बारे में मंत्रमुग्ध रहते थे. स्कूल में जब भी कोई आयोजन होता था तो वह शहीद भगत सिंह के बारे में गाने गाते थे.’

उनका यह आकर्षण आज भी जारी है: मान भगत सिंह को दी जाने वाले श्रद्धांजलि के रूप में पीली पगड़ी पहनते हैं और यहां तक कि उन्होंने राजभवन के बजाय इस महान स्वतंत्रता सेनानी के पैतृक गांव खटकर कलां में शपथ लेने का फैसला किया.

पंजाब के इस बार के जनादेश को राज्य की राजनीति में क्रांतिकारी बदलाव के लिए दिया गया जनादेश माना जा रहा है और मान के प्रशंसक केवल यही आशा कर सकते हैं कि वह इस पर खरे उतरेंगे.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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