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हाजी मस्तान से रियाज़ भाटी तक, 30 सालों तक अंडरवर्ल्ड से कैसे जुड़ी रही है महाराष्ट्र की सियासत

बहुत से राजनेताओं के ऊपर अंडरवर्ल्ड से लिंक होने के आरोप लगते रहे हैं. इंदिरा गांधी की हाजी मस्तान और करीम लाला से मुलाकात के आरोपों से लेकर बाल ठाकरे का अरुण गावली को सपोर्ट करने तक और शरद पवार जैसे नेताओं पर आरोप लगते रहे हैं.

चित्रण । मनीषा यादव । दिप्रिंट

मुम्बई: बुधवार को ‘हाईड्रोजन बम’ गिराने के किए हुए अपने वादे से कुछ घंटे पहले, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी नेता और महाराष्ट्र मंत्री नवाब मलिक ने ट्वीट किया: ‘उनकी नींद ख़राब हो गई है. अब चैन खोने का वक़्त आ गया है’.

सुबह 10 बजे उन्होंने पूर्व सीएम और मौजूदा नेता प्रतिपक्ष, बीजेपी के देवेंद्र फड़णवीस पर एक फर्ज़ी करेंसी रैकेट पर पर्दा डालने और रियाज़ भट्ट जैसे लोगों की सरपरस्ती करने का आरोप लगाया, जिसके संदिग्ध तौर पर अंडरवर्ल्ड से रिश्ते हैं.

मलिक के आरोप लगाने से एक दिन पहले ही, फडणवीस ने उनके परिवार के सदस्यों पर ऐसे लोगों से एक दम सस्ते दामों पर ज़मीन ख़रीदने का आरोप लगाया, जिनके अंडरवर्ल्ड के साथ रिश्ते थे.

बीजेपी नेता आशीष शेलर ने भी बुधवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की, और कहा कि मलिक ने अपना मानसिक संतुलन खो दिया है, जबकि फडणवीस ने कहावत का सहारा लेते हुए, ट्विटर पर ‘दिन का विचार’ में आयरिश नाटककार जॉर्ज बर्नार्ड शॉ का हवाला दिया.

फड़णवीस ने कहा, ‘मैंने बहुत पहले सीख लिया था कि सुअर के साथ कभी कुश्ती नहीं लड़ना है. आप गंदे होते हैं, और इसके अलावा सुअर को इसमें मज़ा आता है!’

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मलिक और फड़णवीस के बीच ये ज़ुबानी जंग, जिसकी नाटकीय स्क्रिप्ट में मुम्बई का डार्क अंडरवर्ल्ड और कथित गंदी राजनीति शामिल है, महाराष्ट्र की राजनीति में पहली बार नहीं है. बल्कि अंडरवर्ल्ड तीन दशकों से अधिक समय से, यहां के राजनीतिक नैरेटिव का हिस्सा रहा है- राजनेताओं के बीच इनसे संबंधों पर आरोपों का आदान-प्रदान हुआ है, जबकि ‘डॉन’ होने के आरोपित लोग, सक्रिय चुनावी राजनीति में भी शामिल हुए हैं.

राजनीतिक विश्लेषक हेमंत देसाई ने दिप्रिंट को बताया, ‘राजनेता समय समय पर अपने विरोधियों के खिलाफ अंडरवर्ल्ड से रिश्तों के आरोप लगाते रहे हैं, जिनका मक़सद ध्रुवीकरण के ज़रिए सांप्रदायिक राजनीति करना होता था. लेकिन, कोई भी कभी इन आरोपों को किसी तार्किक निष्कर्ष तक नहीं ले जा सका.’

देसाई ने बताया कि ऐसे शुरुआती आरोप 1980 के दशक में, छगन भुजबल ने लगाए थे जो उस समय शिवसेना के साथ थे. भुजबल ने, जो अब उद्धव ठाकरे की महाराष्ट्र सरकार में एक एनसीपी मंत्री हैं, आरोप लगाया था कि शरद पवार वसई और विरार के विकास में अंडरवर्ल्ड के हस्तक्षेप की अनुमति दे रहे थे, जो उस समय शांत सी बस्तियां थीं, लेकिन अब मुम्बई के बाहर महत्वपूर्ण शहर बन चुके हैं.

देसाई ने कहा, ‘भुजबल ने शरद पवार को निशाना बनाया था और उस पूरे मामले को ‘भूखंडा चा श्रीखंडा’ (भूखंड का श्रीखंड) बताया था’.


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‘हाजी मस्तान, करीम लाला की राजनेताओं से मुलाक़ातें’

जनवरी 2020 में, शिवसेना के राज्यसभा सांसद संजय राउत ने बहुत से कांग्रेस नेताओं को ग़ुस्सा कर दिया, जब उन्होंने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी करीम लाला जैसे डॉन से मिलने जाती थीं, और तस्कर हाजी मस्तान के साथ महाराष्ट्र प्रशासनिक मुख्यालय मंत्रालय में, ‘एक सम्मानित अतिथि’ जैसा बर्ताव किया जाता था.

लोकमत ग्रुप के एक समारोह में बोलते हुए उन्होंने ये भी कहा, कि दाऊद इब्राहिम, छोटा शकील, और शरद शेट्टी जैसे डॉन इस तरह के मामले तय किया करते थे, कि मुम्बई पुलिस का अगला चीफ कौन होगा.

राउत की टिप्पणी की महाराष्ट्र कांग्रेस के नेताओं ने तीखी आलोचना की, ख़ासकर इसलिए कि शिवसेना अब कांग्रेस और एनसीपी के साथ मिलकर, महा विकास अघाड़ी (एमवीए) के परचम तले महाराष्ट्र पर राज कर रही है. इन टिप्पणियों से बीजेपी को सत्तारूढ़ गठबंधन पर निशाना साधने का मसाला हाथ लग गया, और फड़णवीस ने पूछा कि क्या अंडरवर्ल्ड कांग्रेस को पैसा देता था.

राउत ने ये कहते हुए अपना बयान वापस ले लिया, कि ‘इतिहास से अनजान लोगों ने उनके शब्दों को तोड़-मरोड़ दिया था’. उन्होंने आगे कहा कि वो हमेशा इंदिरा गांधी की सार्वजनिक रूप से प्रशंसा करते थे, और स्पष्ट किया कि उन्होंने लाला से केवल एक बार, पठान समुदाय के नेता के तौर पर मुलाक़ात की थी.

लेकिन, विवाद वहां ख़त्म नहीं हुआ. राउत के शब्दों ने इतिहास का एक पन्ना खोल दिया, और लाला तथा मस्तान के परिजनों ने भी, अपना पक्ष रखा कि असल में हुआ क्या था.

लाला के पोते सलीम ख़ान ने कहा कि ये सिर्फ इंदिरा गांधी नहीं थीं, जो उनके दादा से मिलती थीं; बाल ठाकरे, राजीव गांधी और शरद पवार जैसे नेता भी, मुम्बई या दिल्ली में उनसे मिले थे.

लेकिन वो भी इससे सहमत थे कि राउत के बयानों को तोड़ा-मरोड़ा गया था, और उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि उनके दादा सिर्फ एक कारोबारी थे, और ‘इतने विनम्र थे कि किसी राजनेता या राजनीतिक पार्टी को पैसा नहीं दे सकते थे’.

सुंदर शेखर, जो हाजी मस्तान के दत्तक पुत्र होने का दावा करते हैं, ने कहा कि वो एक ‘पक्के कांग्रेसी’ थे, और वसंत दादा पाटिल, मुरली देवड़ा, तथा सुशील कुमार शिंदे जैसे बहुत से वरिष्ठ कांग्रेसी नेता उनसे मिलते थे.

सीनियर कांग्रेस नेता अनंत गाडगिल ने दिप्रिंट को बताया, ‘किसी कांग्रेस नेता के खिलाफ कभी कोई ठोस आरोप नहीं लगे. 1980 और 1990 के दशकों में, सिर्फ मुस्लिम-विरोधी भावनाएं फैलाने के लिए, कुछ लोगों ने ऐसा माहौल बना दिया, कि कांग्रेस की अंडरवर्ल्ड से नज़दीकियां हैं’.

एक और कांग्रेसी नेता ने, जो अपना नाम नहीं बताना चाहते थे, कहा कि मुम्बई के ऐसे इलाक़ों में जहां कुछ गैंग्सटर्स का दबदबा था, चुनावों से पहले राजनेता उनके संपर्क में रहने लगते थे.

इस नेता ने कहा, ‘सिर्फ कांग्रेस ही नहीं, दूसरी पार्टियों के साथ भी ऐसा ही था. मसलन, राजेंद्र निखलजे (छोटा राजन) का चेम्बूर इलाक़े में प्रभाव था’.

‘तुम्हारा दाऊद, हमारा गावली’

राजनीति, राजनेताओं, और अंडरवर्ल्ड के बीच का कथित रिश्ता 1990 के दशक में, ख़ासकर 1992-93 दंगों और उनके बाद हुए मुम्बई सीरियल धमाकों के बाद, और मज़बूत हो गया. शिवसेना सदस्यों ने मुम्बई की सड़कों पर हुए दंगों में खुलकर हिस्सा लिया, और राज्य तथा उसकी सियासत सांप्रदायिक रंग में बंट गई.

शिवसेना संस्थापक बाल ठाकरे मराठी गैंग्सटर अरुण गावली और उसके लोगों को, ‘आमची मुले’ (हमारे बच्चे) कहकर उनके समर्थन में आ गए. 1995 असेम्बली चुनावों से पहले एक रैली में ठाकरे ने ऐलान कर दिया, ‘अगर तुम्हारे (मुसलमानों के) पास दाऊद है, तो हमारे पास गावली है’.

आख़िर में, 1990 के दशक के अंत में गावली शिवसेना से अलग हो गया. उसने अखिल भारतीय सेना के नाम से अपनी अलग पार्टी बना ली, और 2004 में महाराष्ट्र असेम्बली में विधायक बन गया.

एक वरिष्ठ शिवसेना नेता ने, जो चार दशकों से अधिक समय से पार्टी से जुड़े रहे हैं, नाम न बताने की शर्त पर दिप्रिंट से कहा, कि बाल ठाकरे ने कहा तो ज़रूर था कि ‘अगर तुम्हारे पास दाऊद है, तो हमारे पास गावली है’, लेकिन वो सार्वजनिक भाषण में दिया गया एक बयान था, जिसकी मंशा उस डर का अहसास कराना था, जो एक मराठी आदमी भी दिखा सकता है.

नेता ने कहा, ‘गावली और दाऊद तब तक अलग हो चुके थे. कुछ कांग्रेसी नेता दाऊद की सरपरस्ती करते लग रहे थे. बालासाहेब ने उसी कोण से वो बयान दिया था. ऐसा नहीं है कि बालासाहेब गावली के क़रीब थे, या कभी उसे आश्रय दिया था.’

1993 के मुम्बई धमाकों के बाद, केंद्र सरकार ने तत्कालीन गृह सचिव एनएन वोहरा की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित की, जिसका काम अपराध सिंडिकेट्स की गतिविधियों, और राजनीतिक शख़्सियतों तथा सरकारी अधिकारियों के साथ, उनके रिश्तों का अध्ययन करना था. 5 अक्तूबर 1993 को रिपोर्ट के ग्यारह पन्ने, सार्वजनिक रूप से जारी किए गए.

हालांकि जारी किए गए हिस्से में, विशेष रूप से किसी का नाम नहीं लिया गया, लेकिन रिपोर्ट में कहा गया: ‘बहुत सारे क्राइम सिंडिकेट्स/ माफिया संगठनों ने काफी बाहुबल और धनबल हासिल कर लिया है, और सरकारी पदाधिकारियों, राजनेताओं, तथा अन्य लोगों के साथ के साथ रिश्ते बना लिए हैं, जिससे कि वो दंड मुक्ति के साथ अपना काम कर सकें (जिसकी मिसाल हाल ही मैं मेमन बंधुओं और दाऊद इब्राहिम की करतूतें हैं).

2020 में, सुप्रीम कोर्ट ने लोकपाल की निगरानी में वोहरा कमेटी की जांच किए जाने की एक याचिका को, ये कहते हुए ख़ारिज कर दिया कि ये ‘काल्पनिक’ है, और अदालत ‘ऐसी याचिकाओं को प्रोत्साहित नहीं करती, जो प्रचार के लिए होती हैं’.


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शरद पवार पर आरोप

1993 में, मुम्बई नगर निकाय में एक सहायक निगम आयुक्त जीआर खैरनार ने आरोप लगाया कि शरद पवार, जो उस समय महाराष्ट्र सीएम थे, अपराधियों को बचा रहे थे और उनके अंडरवर्ल्ड के साथ रिश्ते थे.

खैरनार जिन्हें मुम्बई का ‘डिमॉलिशन मैन’ कहा जाता था, अवैध निर्माणों के खिलाफ अपनी कार्रवाई में आक्रामक थे, और उन्होंने खुलकर कहा था कि किस तरह राजनेता उन्हें फोन करके, अंडरवर्ल्ड से जुड़ी संपत्तियों के खिलाफ कार्रवाई न करने का अनुरोध करते थे. 1990 के दशक की राजनीति से वाक़िफ बहुत सारे सूत्रों ने दिप्रिंट को ये बात बताई.

उन्होंने ये भी याद किया कि 1990 के दशक में, किस तरह पवार आलोचनाओं में घिर गए थे, जब उन्होंने अंडरवर्ल्ड से जुड़े दो लोगों को अपने विमान में उड़ने की अनुमति दे दी थी, जब वो केंद्रीय रक्षा मंत्री थे (1991-93). बीजेपी समय समय पर इस मुद्दे को उठाकर, पवार पर निशाना साधती रहती है.

खैरनार के आरोपों के कुछ समय बाद ही, एक पुलिस अधिकारी उल्हास जोशी ने बॉम्बे हाईकोर्ट में हलफनामा देकर कहा, कि केंद्रीय रक्षा मंत्री और फिर महाराष्ट्र सीएम के नाते, पवार ने लगातार ‘अंडरवर्ल्ड से जुड़े तीन गैंग्सटर्स’ को बचाने की कोशिश की. ये थे पप्पू कलानी, हितेंद्र ठाकुर और जयेंद्र (भाई) ठाकुर. उनका आरोप था कि ठाकुरों और कलानी को कांग्रेस सदस्यों की हैसियत से विधायी समितियों में शामिल किया गया, हालांकि वो अपराधिक गतिविधियों के लिए टेररिस्ट एंड डिसरप्टिव एक्टिविटीज (प्रिवेंशन) एक्ट (टाडा) के तहत जेल में बंद थे. उन्होंने ये भी दावा किया कि फरवरी 1993 में पवार ने, तब के महाराष्ट्र सीएम सुधाकर राव नायक को, कलानी के साथ पुलिस हिरासत में नर्मी बरतने का निर्देश दिया था.

जोशी की याचिका उसके बाद आई, जब उनका एक विवादास्पद कार्यकाल के बाद, ठाणे ज़िले से बाहर तबादला कर दिया गया था.

जैसा कि इंडिया टुडे में छपा था, पवार ने उस समय जवाब में कहा था, ‘बहुत आसानी से साबित किया जा सकता है कि आरोप झूठे हैं. वो (जोशी) ख़ुद को एंटी करप्शन ब्यूरो की जांच से बचाना चाह रहे हैं (जो पुलिस अधिकारी की आय से अधिक संपत्ति की जांच कर रहा है). ये (जोशी का हलफनामा) एक हताशा में की गई कार्रवाई है’.

पवार ने आगे कहा था कि चुने गए हर प्रतिनिधि को किसी न किसी सलाहकार समिति में रखा जाता है, और उन्होंने इन आरोपों से इनकार किया कि उन्होंने कभी भी, सुधाकर नायक को कलानी से जेल में नरमी बरतने का निर्देश दिया था.

1995 के चुनावों के क़रीब, बीजेपी ने इन आरोपों को भुनाया था, और तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष गोपीनाथ मुंडे ने, राजनीति के कथित अपराधीकरण के लिए, कांग्रेस के खिलाफ एक पूरी मुहिम चलाई थी.

वरिष्ठ बीजेपी नेता विनोद तावड़े ने दिप्रिंट को बताया, ‘ये मुद्दा मतदाताओं को पहले ही परेशान कर रहा था. मुंडे साहब ने राजनीति के अपराधीकरण के खिलाफ एक मुहिम शुरू कर दी, और लोगों की चिंताओं को लेकर आवाज़ उठाई. इसका परिणाम भी देखने को मिला जब 1995 में कांग्रेस हार गई, और शिवसेना-बीजेपी गठबंधन सत्ता में आ गया’.

एक दूसरे वरिष्ठ बीजेपी नेता ने, जो नाम नहीं बताना चाहते थे, कहा कि अगले दशक के आसपास, पहले मुंडे के गृह मंत्री रहते हुए, और फिर एनसीपी के आरआर पाटिल के समय में, अंडरवर्ल्ड गतिविधियों को थोड़ा थोड़ा करके रोका गया, और उसके असर को कम किया गया.

लेकिन, शरद पवार को 2000 के दशक में भी, अंडरवर्ल्ड की सरपरस्ती के आरोप झेलने पड़े. 2015 में वरिष्ठ अधिवक्ता राम जेठमलानी ने कहा, कि दाऊद इब्राहिम 1993 धमाकों के बाद भारत लौटना चाहता था, लेकिन पवार ने जो उस समय महाराष्ट्र सीएम थे, उसकी पेशकश का जवाब नहीं दिया.

आरोप का जवाब देते हुए पवार ने कहा था: ‘ये सही है कि राम जेठमलानी ने प्रस्ताव दिया था. लेकिन उसके साथ एक शर्त थी कि दाऊद को जेल में नहीं रखा जाना चाहिए; बल्कि उसे घर में रहने की अनुमति होनी चाहिए. हमें वो मंज़ूर नहीं था. हमने कहा कि उसे क़ानून का सामना करना होगा’.

लेकिन, पवार या किसी भी दूसरे नेता के खिलाफ ये आरोप साबित नहीं हो पाए हैं.

‘सियासी रुझान बदल जाते हैं’

हितेंद्र ठाकुर का एक अपना राजनीतिक संगठन है, बहुजन विकास अघाड़ी, जिसने लगातार वसई-विरार बेल्ट में चुनाव जीते हैं, और एक तरह की जागीर स्थापित कर ली है. नवंबर 2019 में जब एमवीए सत्ता में आई, तो ठाकुर ने शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस गठबंधन का समर्थन करने का फैसला कर लिया.

अरुण गावली की अखिल भारतीय सेना की अकेली पार्षद, उसकी बेटी गीता ने 2017 के मुम्बई निकाय चुनावों के बाद, बीजेपी के समर्थन का प्रण लिया था.

इस बीच, पप्पू कलानी के परिजन 2017 में बीजेपी में शामिल हो गए, जिसके बाद पिछले महीने वो एनसीपी में चले गए.

एक बीजेपी नेता ने नाम न बताने की शर्त पर दिप्रिंट से कहा, ‘सियासी रुझान बदल जाते हैं. राजनीतिक समायोजन करने पड़ते हैं, और यही वजह है कि (अंडरवर्ल्ड से रिश्तों से संबंधित) कोई भी आरोप, कभी किसी तार्किक निष्कर्ष तक नहीं पहुंच पाया है’.

एक शिवसेना नेता ने आगे कहा: ‘ये बिल्कुल ऐसा है कि ‘तेरी भी चुप, मेरी भी चुप.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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