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ED-राहुल गांधी मामले पर LS अध्यक्ष ओम बिरला बोले- कानून की नजर में सब बराबर, किसी को कोई विशेषाधिकार नहीं

बतौर स्पीकर अपने कार्यकाल के तीन साल पूरे कर चुके बिरला चाहते हैं कि राजनीतिक दल सांसदों के लिए एक आचार संहिता बनाएं. उन्होंने लोकसभा में अपने कार्यकाल और अपनी राजनीतिक विरासत पर दिप्रिंट से बातचीत की.

लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला | प्रवीण जैन/ दिप्रिंट

नई दिल्ली: कथित तौर पर नेशनल हेराल्ड मनी लॉन्ड्रिंग मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की पूछताछ का सामना कर रहे कांग्रेस नेता राहुल गांधी को लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला से कोई मदद मिलने की संभावना नहीं है.

लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने बुधवार को स्पीकर को पत्र लिखकर उनसे इस मामले में हस्तक्षेप करने की मांग की थी और आरोप लगाया था कि ईडी वायनाड के सांसद के साथ दिन में 10-11 घंटे पूछताछ करके उनके साथ ‘अमानवीय व्यवहार’ कर रहा है. चौधरी ने यह भी कहा था कि इसमें ‘राजनीतिक बदला चुकाने की गहरी साजिश’ की बू आ रही है.

ओम बिरला ने दिप्रिंट के साथ एक इंटरव्यू में ईडी-राहुल गांधी मामले में दखल की अनिच्छा दर्शाते हुए इस बात पर जोर दिया कि कानून की नजर में हर कोई बराबर है.

उन्होंने कहा, ‘हर संसद सदस्य के पास विशेषाधिकार होते हैं. उन्हें संसद में अभिव्यक्ति की आजादी हासिल है. जब संसद में उनके किसी काम में बाधा डालने की बात आती है तो उनके पास विशेषाधिकार होते हैं लेकिन कानून तो सभी के लिए समान है. भारतीय संविधान के मुताबिक, कानून के मामलों में किसी को भी कोई विशेषाधिकार हासिल नहीं है. यही हमारे देश के लोकतंत्र की विशेषता है.’

रविवार को बतौर लोकसभा स्पीकर अपने कार्यकाल के तीन साल पूरे कर लेने वाले ओम बिरला यह भी चाहते हैं कि सभी राजनीतिक दल अपने सांसदों के लिए एक आचार संहिता बनाएं, जिसके तहत अन्य बातों के अलावा उन्हें सदन के वेल में प्रवेश से रोका जाए.

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यद्यपि उनका तीन साल का कार्यकाल विधायी कामकाज के लिहाज से काफी सफल रहा है—जिसमें पिछली तीन लोकसभा के आठ सत्रों के मुकाबले अधिक कामकाज हुआ. लेकिन हंगामे ने इस रिकॉर्ड को खराब कर दिया है.

दिप्रिंट के साथ बातचीत में यह स्पष्ट करते हुए कि वह ऐसा क्यों चाहते हैं कि पार्टियां अपने सांसदों के लिए ‘आंतरिक’ आचार संहिता लाएं ओम बिरला ने कहा, ‘विधानसभाओं और लोकसभा में हंगामा पूर्व-नियोजित और संगठित तरीके से होता है. मैंने इस पर सार्वजनिक तौर पर चिंता जाहिर की है… नारेबाजी, तख्तियां दिखाना और सदन के वेल में आना हमारी संसदीय परंपरा… और इसकी गरिमा के अनुरूप नहीं है. लोग अपने सांसदों से बतौर जनसेवक काम करने की उम्मीद करते हैं. वे सवाल पूछते हैं कि अगर सदन नहीं चल रहा तो सांसदों को वेतन और भत्ते क्यों मिल रहे हैं.’

बिरला इन तर्कों को खारिज करते हैं कि विपक्ष के पास हो-हल्ला करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था, खासकर यह देखते हुए कि उस सदन में उसकी अहमियत कुछ खास नहीं रह गई है, जहां सत्ताधारी दल को विशाल बहुमत हासिल है.

लोकसभा अध्यक्ष ने कहा, ‘यदि आप अपनी सीट पर रहकर बोलते हैं और तथ्यों और तर्कों के साथ अपनी बात रखते हैं तो सरकार को आपकी बात सुननी होगी और अध्यक्ष को भी अपनी व्यवस्था देनी होगी.’

उनके पास दिखाने के लिए एक प्रभावशाली रिकॉर्ड है—17वीं लोकसभा के पहले आठ सत्रों के दौरान 106 प्रतिशत उत्पादकता, जबकि 16वीं लोकसभा में इसी अवधि में उत्पादकता 95 प्रतिशत, 15वीं में 71 प्रतिशत और 14वीं में 86 प्रतिशत रही थी. इस अवधि में पेश किए गए और पारित विधेयकों—139 और 149—के मामले में भी 17वीं लोकसभा की स्थिति पिछली तीन लोकसभाओं की तुलना में बहुत बेहतर रही है. विधेयकों पर चर्चा में लगे औसत समय के मामले में भी यही बात लागू होती है.


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‘संसद में कोई स्टीमरोलिंग नहीं’

फिर भी, इस बात को लेकर काफी आलोचना हो रही है कि संसद कैसे निष्क्रिय होती जा रही है क्योंकि बहुत कम ही विधेयक संसदीय समीक्षा के लिए भेजे जाते हैं—17वीं लोकसभा में 2021 तक यह आंकड़ा सिर्फ 13 प्रतिशत रहा. उदाहरण के तौर पर सरकार ने संसद में तीन विवादास्पद कृषि कानूनों को आगे बढ़ा दिया और लोकसभा में विपक्ष की इस मांग को खारिज कर दिया कि इन्हें संसद की स्थायी समिति या प्रवर समिति के पास भेजा जाए.

आखिरकार किसानों के जोरदार तरीके से विरोध जताने के बाद इन कानूनों को बिना किसी चर्चा के चुटकियों में निरस्त करने की नौबत आ गई.

हालांकि, स्पीकर बिरला ने तमाम आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि आठवें लोकसभा सत्र में 50 प्रतिशत से अधिक बिल स्थायी समिति को भेजे गए थे.

उन्होंने कहा, ‘यह तो सरकार पर निर्भर करता है कि वह इस पर विचार करे कि क्या किसी विधेयक को स्थायी समिति को भेजा जाना है या उस पर सदन में चर्चा (और पारित) की जानी है.’

बिरला ने तर्क दिया कि संसद में कोई प्रस्तावित कानून लाने से पहले सरकार जनता की प्रतिक्रिया जानने के लिए मसौदे को प्रसारित करती है और हितधारकों और विशेषज्ञों के साथ परामर्श भी करती है.

यह पूछे जाने पर कि क्या सांसदों को अपने विचार व्यक्त करने—जो उनकी पार्टी के विपरीत हो सकते हैं, में सक्षम बनाने के लिए कानून बनाने के मामलों में ‘व्हिप’ प्रणाली को खत्म कर दिया जाना चाहिए, बिरला ने सीधे तौर पर कोई जवाब नहीं दिया.
उन्होंने कहा, ‘कई सांसद कानून बनाने के दौरान सकारात्मक प्रतिक्रिया देते हैं. लेकिन चूंकि एक खास विचारधारा, एक खास पार्टी से आते हैं, यह एक परंपरा बन गई है कि आप जिस पार्टी या विचारधारा से चुने गए हैं, आपको उसके खिलाफ वोट नहीं देना चाहिए.’

उन्होंने कहा, ‘देश की जनता ने आपको आपकी पार्टी के आधार पर चुना है. लोगों ने पार्टी को कानून बनाने का जनादेश दिया है और सरकार उन योजनाओं और नीतियों के आधार पर काम करती है जिसके लिए उसे जनादेश मिला है.’

अपनी राजनीतिक विरासत पर क्या बोले

व्यक्तिगत स्तर पर एक टिप्पणी में स्पीकर बिरला ने कहा कि उनकी दोनों बेटियों—सिविल सेवक अंजलि और चार्टर्ड अकाउंटेंट आकांक्षा—में से किसी को भी राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं है.

तो, आपकी राजनीतिक विरासत का क्या होगा?

इस पर बिरला ने कहा, “हजारों कार्यकर्ता जो संगठन (भाजपा) के लिए काम कर रहे हैं और समर्पित हैं और जिन्होंने इसके लिए बलिदान दिया है, उन्हें (उनकी राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने का) मौका मिलना चाहिए.’

संसद और सांसदों के कामकाज के तरीके में सुधार पर जोर देते हुए लोकसभा स्पीकर अब नवंबर-दिसंबर में अगले शीतकालीन

सत्र से नए संसद भवन में काम करने की उम्मीद कर रहे हैं.

उन्होंने कहा, ‘नया संसद भवन नए आत्मानिर्भर भारत का दर्पण है.’

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