होम राजनीति दिल्ली MCD चुनाव: कांग्रेस ने खोयी जमीन पाने के लिए तैनात किए...

दिल्ली MCD चुनाव: कांग्रेस ने खोयी जमीन पाने के लिए तैनात किए कन्हैया कुमार, सचिन पायलट जैसे दिग्गज

कांग्रेस ने 2007 तक एमसीडी पर राज किया, लेकिन इसके बाद से इसने चुनाव हारना शुरू कर दिया. यह दिल्ली में शीला दीक्षित के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ही थी जिसने साल 2011 में एमसीडी को तीन भागों में बांट दिया था, और जिसे इस साल की शुरुआत में मोदी सरकार द्वारा फिर से एकीकरण किया गया.

सिविक सेंटर, दिल्ली नगर निगम का मुख्यालय | फोटोः प्रवीण जैन | दिप्रिंट

नई दिल्ली: राष्ट्रीय राजधानी में राजनीतिक रूप से हाशिये पर धकेल दी गयी कांग्रेस पार्टी दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) के आगामी चुनावों में अपनी खोई हुई जमीन हासिल करने की भरपूर कोशिश कर रही है. एमसीडी के चुनाव 3 दिसंबर को होने हैं और कांग्रेस पार्टी ने इसमें प्रचार के लिए कई राज्यों के बड़े नेताओं की लाइन लगा दी है.

दिप्रिंट द्वारा हासिल की गई कांग्रेस पार्टी के स्टार प्रचारकों की सूची में राजस्थान के नेता सचिन पायलट, हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा, उत्तर प्रदेश की विधायक आराधना मिश्रा, पंजाब कांग्रेस प्रमुख अमरिंदर सिंह राजा वारिंग और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष एवं लोकप्रिय छात्र नेता कन्हैया कुमार के नाम शामिल हैं.

कांग्रेस महासचिव अजय माकन और अरविंदर सिंह लवली, जो पहले पार्टी की दिल्ली इकाई के प्रमुख थे, भी प्रचार में लगेंगे. साथ ही डॉ. अजॉय कुमार, जिन्होंने हाल ही में दिल्ली में पार्टी के प्रभारी के रूप में शक्तिसिंह गोहिल की जगह ली है क्योंकि गोहिल अगले महीने होने वाले गुजरात चुनाव में व्यस्त हैं, भी चुनाव प्रचार करेंगे.

कांग्रेस ने साल 2007 तक राष्ट्रीय राजधानी के नगर निकाय पर एक मजबूत पकड़ का फायदा उठाया था, लेकिन उसके बाद से सीटों के मामले में इसकी हिस्सेदारी घट रही है.

यह पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के नेतृत्व वाली दिल्ली की कांग्रेस सरकार ही थी, जिसने साल 2012 में एमसीडी को उत्तरी दिल्ली नगर निगम (एनडीएमसी), दक्षिणी दिल्ली नगर निगम (एसडीएमसी) और पूर्वी दिल्ली नगर निगम (ईडीएमसी) में तीन हिस्सों में बांट दिया था. इस साल की शुरुआत में केंद्र की भारतीय जनता पार्टी सरकार द्वारा इन तीनों को फिर से एक कर दिया गया.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

दिप्रिंट से बात करते हुए, शीला दीक्षित के बेटे और पूर्व सांसद संदीप दीक्षित ने कहा कि कांग्रेस के नेतृत्व वाली एमसीडी ने उनकी मां द्वारा संचालित दिल्ली सरकार को ‘विपक्षी सरकार’ के रूप में माना. संदीप आने वाले चुनावों के लिए पार्टी के स्टार प्रचारकों में से एक हैं.

संदीप बताते हैं, ‘जब श्रीमती दीक्षित दिल्ली की मुख्यमंत्री थीं और एमसीडी का नेतृत्व कांग्रेस के हाथ में था, तो एमसीडी का पूरा कांग्रेस नेतृत्व उनके खिलाफ था. तो, यह मामला लगभग एक विपक्षी सरकार की तरह का था. वास्तव में, उन्हें (शीला दीक्षित) तब अधिक समर्थन मिला जब एमसीडी भाजपा द्वारा चलाई जा रही थी. वह अधिकारियों के माध्यम से काम करवाती थीं. उन्होंने लोगों को अपने साथ जोड़ने की अपनी क्षमता के माध्यम से काम किया.’


यह भी पढे़ं: MCD चुनाव में टिकट बेचने का आरोप, ACB ने किया ‘आप’ नेता के साले और उसके साथियों को गिरफ्तार


उन्होंने आगे कहा: ‘सात-आठ वर्षों (2007 और 2013 के बीच) के दौरान उनके मुख्यमंत्री के रूप में रहते हुए जब भाजपा एमसीडी चला रही थी तो कभी कोई बड़ी समस्या नहीं आई मुझे याद है कि मुख्यमंत्री के घर के बाहर (भाजपा के नेतृत्व वाले एमसीडी का) एक प्रतिनिधिमंडल डटा रहता, वे विरोध करते, बहुत हो-हल्ला होता, लेकिन एक बार जब वे अंदर आ जाते थे, तो हम सभी की एक अच्छी बैठक होती थी और एमसीडी को वह सब मिल जाता था जो वे चाहते थे.’ संदीप ने कहा, ‘जब शासन के मुद्दों की बात आती थी, तो वह (श्रीमती दीक्षित) कभी राजनीति नहीं करती थीं.‘

उन्होंने दावा किया कि इसके विपरीत दिल्ली के वर्तमान मुख्यमंत्री, अरविंद केजरीवाल, ‘केवल राजनीति ही करते हैं’.

पहले वाली एमसीडी में कांग्रेस पार्टी 2007 तक सत्ता में थी और इसने साल 2002 और 1997 के चुनावों में शानदार जीत हासिल की थी. हालांकि, साल 2007 के बाद, शीला दीक्षित सरकार और एमसीडी के कांग्रेसी नेतृत्व के बीच आपसी लड़ाई के कारण, पार्टी की सीटों का हिस्सा सिकुड़ना शुरू हो गया, जिससे भाजपा को अपना आधार बढ़ाने और साल 2007 का एमसीडी चुनाव जीतने में मदद मिली.

हालांकि, इस बात की कभी पुष्टि नहीं हुई, लेकिन व्यापक रूप से यही माना जाता है कि दीक्षित सरकार और एमसीडी (पार्टी का एक रंग होने के बावजूद) के बीच दरार ही वह वजह थी, जिसके कारण पूर्व मुख्यमंत्री को एमसीडी कानून में दो बार बदलाव करने पड़े. पहला बदलाव, महापौर के कार्यकाल को एक वर्ष की अवधि तक सीमित करने का था; और दूसरा बदलाव एमसीडी को तीन भागों में बांटने का था, जो कथित तौर पर यह सुनिश्चित करने के लिए किया गया था कि राष्ट्रीय राजधानी में प्रशासन पर उनके नियंत्रण को चुनौती न दी जा सके.

प्रासंगिकता खोती कांग्रेस

2007 में कांग्रेस ने एमसीडी की 272 सीटों में से 69 सीटें जीती थीं. फिर साल 2012 में, एमसीडी को तीन अलग-अलग निकायों में विभाजित करने के बाद, उसने तीन नगर पालिकाओं की कुल जमा 272 में से 77 सीटें जीतीं. साल 2017 के अगले चुनाव में इसके द्वारा जीती गई सीटों की संख्या घटकर सिर्फ 31 रह गई.

पिछले 15 सालों के दौरान पार्टी हाशिये पर चली गई है.

इस साल की मुख्य लड़ाई भाजपा और आम आदमी पार्टी के बीच नजर आ रही है, जिसमें कांग्रेस को एक ‘छोटे-मोटे खिलाड़ी’ के रूप में देखा जा रहा है. यहां तक कि भाजपा ने भी इस चुनाव के लिए जारी अपने कैंपेनिंग गीत में कांग्रेस को शामिल करने की जहमत नहीं उठाई है, जबकि वह सीधे तौर पर आप को निशाना बना रही है.

इस बीच कांग्रेस अपने स्टार प्रचारकों के माध्यम से अपनी छाप छोड़ने की कोशिश कर रही है. इस रविवार को पार्टी ने आगामी चुनावों के लिए अपने 250 उम्मीदवारों की सूची भी जारी की.

दिप्रिंट के साथ बात करते हुए, अजय कुमार ने कहा कि स्टार प्रचारकों की सूची में स्थानीय जुड़ाव वाले नेता शामिल हैं और पार्टी स्थानीय मुद्दों पर ही चुनाव लड़ेगी.

कुमार ने कहा, ‘अन्य नाम उन लोगों के हैं जिनका दिल्ली से जुड़ाव है या जिन्होंने दिल्ली में काफी समय बिताया है. उदाहरण के लिए, भूपेंद्र हुड्डा हरियाणा के नेता हैं, लेकिन दिल्ली में लोग उन्हें अच्छी तरह जानते हैं. इसी तरह सचिन भी दिल्ली में काफी समय बिता चुके हैं. लोग उन चेहरों को देखना चाहते हैं. जो राष्ट्रीय नेता चुनाव प्रचार कर रहे हैं वे या तो दिल्ली में रहते हैं या किसी समय दिल्ली में राजनीतिक रूप से जिम्मेदार रहे हैं.‘

उन्होंने कहा: ‘हम सभी सामाजिक वर्गों और सभी धर्मों से कांग्रेस नेताओं के पूरे दायरे को शामिल करने की कोशिश कर रहे हैं, क्योंकि यही तो कांग्रेस है. हम चुनावों को अखिल भारतीय परिप्रेक्ष्य भी देना चाहते हैं. हमारे विरोधी ‘डबल इंजन’ (भाजपा द्वारा उन राज्यों के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला मुहावरा है जहां वह केंद्र के अलावा राज्य की भी सत्ता में है) की बात करते रहते हैं, लेकिन हमें स्थानीय मुद्दों पर लड़ना है.‘

कुमार ने आगे कहा, ‘हम मलेरिया, चिकनगुनिया, डेंगू, दुनिया के सबसे भ्रष्ट विभाग और एक ऐसी प्रदूषित पार्टी से भी लड़ रहे हैं, जिसने दिल्ली को पूरी दुनिया में सबसे प्रदूषित शहर बना दिया है.’


यह भी पढे़ं: दो द्रविड़ पार्टियों के दबदबे वाले TN में कैसे दलित नेतृत्व वाली VCK एक प्रमुख पार्टी बनकर उभर रही है


एमसीडी के सत्ता का खेल

2011 में हुए एमसीडी के बंटवारे के बारे में बात करते हुए, संदीप ने कहा कि उस समय दिल्ली सरकार ने महसूस किया था कि एमसीडी एक ‘महाकाय संस्था’ बन रही थी, जिसके परिणामस्वरूप वह अपने कर्तव्यों को प्रभावी ढंग से निभाने में असमर्थ थी.

संदीप ने कहा, ‘श्रीमती (शीला) दीक्षित ने एमसीडी के लिए आवश्यक सुधारों पर विचार करने के लिए एक समिति का गठन किया था जिसमें एक पूर्व मुख्य सचिव और कुछ अन्य वरिष्ठ लोग शामिल थे. उन्होंने राय दी कि एमसीडी एक विशालकाय निकाय होता जा रहा है और इसे संभालना बहुत मुश्किल है. एमसीडी एक ऐसी संस्था है जो लोगों के घरों की देखभाल करती है, तो कोई भी निकाय किसी सरकार की तरह एक पूरे क्षेत्र को कैसे नियंत्रित कर सकता है?’

उन्होंने कहा: ‘वे (समिति) मूलरूप से एमसीडी को तीन नहीं बल्कि पांच अलग-अलग निकायों में विभाजित करने के विचार के साथ आए थे. क्रॉस-फाइनेंसिंग (एक दूसरे के साथ वित्तीय साधनों को साझा करना) और लोगों और व अन्य प्रकार के संसाधनों को साझा करने की सुविधा के लिए एक विस्तृत योजना भी थी. यह किसी राज्य में कार्यरत पांच जिला सरकारों की तरह होता. दुर्भाग्य से, राजनीति और अन्य चीजों के कारण, अंतिम निर्णय तीन निकायों के विकल्प के साथ जाना था.’

पूर्वी दिल्ली के इन पूर्व सांसद ने दिल्ली में अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी पर राज्य की ओर से संसाधन की साझदारी के कथित विनाश और एमसीडी के प्रति दीर्घकालिक प्रतिबद्धता की कमी का आरोप लगाया.

उन्होंने कहा, ‘उन्होंने एमसीडी के साथ किसी सौतेले बच्चे की तरह व्यवहार किया. उन्हें हस्तक्षेप करना चाहिए था और यह सुनिश्चित करना चाहिए था कि तीनों नगरपालिका संगठनों के पास पर्याप्त पैसा हो. श्रीमती दीक्षित का विचार संसाधनों के बंटवारे में संवेदनशीलता पर आधारित था, सरकार ने तीनों संस्थाओं के लिए एक साझा संसाधन पूल बनाने का प्रस्ताव रखा था. ऐसा कभी हो नहीं सका. एक विचार, जो अपने सृजन के समय काफी अच्छा था, इस तथ्य की वजह से बर्बाद हो गया कि इसके सबसे सकारात्मक तत्व कभी भी कार्यान्वित किये गए विचार का हिस्सा नहीं बने.‘

दिल्ली की स्थानीय शहरी सरकार में कांग्रेस के घटते महत्व के बारे में पूछे जाने पर, संदीप ने कहा कि पार्टी की किस्मत में बदलाव केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए 2 सरकार के अंतिम वर्षों के दौरान ही साल 2012-13 में शुरू हो गया था.

उन्होंने कहा, ‘2जी, 3जी, कॉमनवेल्थ, निर्भया आदि ऐसे मुद्दों पर आधारित एक पूरा भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन खड़ा हुआ था, जो यूपीए के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के खिलाफ उठे मुद्दे थे; लेकिन इसका प्रभाव दिल्ली सरकार पर भी हुआ, क्योंकि दोनों सरकारें एक ही पार्टी की थीं. इसलिए, हमें दोहरी मार झेलनी पड़ी और पार्टी के बारे में धारणा जमीन स्तर तक आ गई.’

संदीप ने यह भी दलील दी कि जब यह धारणा बनाई जा रही थी, तब कांग्रेस ने – केंद्र और दिल्ली दोनों स्तरों पर – अपने काम को प्रचारित करने के लिए पर्याप्त काम नहीं किया. दीक्षित का मुख्यमंत्री के रूप में कार्यकाल साल 2013 में समाप्त हो गया था.

उन्होंने कहा, ‘हमने उस समय तक यह नहीं सीखा था कि मीडिया का इस्तेमाल जनता की धारणा को आकार देने के लिए किया जा सकता है. श्रीमती दीक्षित हमेशा कहती थीं कि उन्होंने साल 2028 तक के लिए दिल्ली का निर्माण कर दिया है. आप अब जिस ढांचे के बारे में बात करती है, चाहे वह स्वास्थ्य सेवा हो, शिक्षा हो या यहां तक कि पर्यावरण संबंधी उपाय हों, कांग्रेस ने उन्हें बहुत पहले ही स्थापित कर दिया था. मैं इस संदेश को सफलतापूर्वक जनता तक नहीं पहुंचा पाने के लिए अपनी पीढ़ी के नेताओं को दोषी ठहराऊंगा.’

संदीप ने आगे कहा, ‘मेरी अपनी समझ है कि कांग्रेस को इस चुनाव में एक अनोखे, सकारात्मक एजेंडे के साथ उतरना चाहिए. निर्माण कार्यों में भ्रष्टाचार जैसे दो-तीन महत्वपूर्ण मुद्दें हैं और साथ ही यह तथ्य भी है कि एमसीडी इलाकों को साफ रखने, अतिक्रमण दूर करने और अनावश्यक ट्रैफिक जाम की अनुमति नहीं देने जैसे अपने छोटे कर्तव्यों का पालन करने में भी सक्षम नहीं रही है. मुझे लगता है कि हमारे एजेंडे को इन मुद्दों का एक बहुत ही स्पष्ट विकल्प प्रदान करना चाहिए.’

भाजपा और आप (केंद्र सरकार-एमसीडी बनाम राज्य सरकार-एमसीडी) दोनों की डबल-इंजन वाले बात पर जोर दिए जाने पर उन्होंने कहा कि एमसीडी दिल्ली सरकार के खिलाफ एक सीमा तक ही राजनीति कर सकती है.

संदीप ने कहा, ‘दिल्ली सरकार फंड (धनराशि) रोक सकती है, दिल्ली सरकार अनुमति वापस ले सकती है, इन सब मामलों में दिल्ली सरकार ही ‘बड़ा भाई’ है. केजरीवाल के साथ दिक्कत यह है कि वह हर बात पर राजनीति करते हैं. ऐसे में अगर भाजपा फिर से एमसीडी चुनाव जीतती है तो वह फिर से राजनीति करेंगे, लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ता. आपको उन्हें एमसीडी फंड से पैसा देना ही होगा. आपको अंततः उन्हें वह अनुमति देनी ही होगी जो वे चाहते हैं. अगर (दिल्ली) सरकार और एमसीडी साथ मिलकर काम करते हैं तो जाहिर तौर पर चीजें तेजी से होती हैं. लेकिन यह कहना कि यह केवल तभी काम करेगा जब एक ही पार्टी (राज्य) सरकार और एमसीडी दोनों में सत्ता में हो, केवल ब्लैकमेल करने की तरह है.’

अनुवाद: रामलाल खन्ना

संपादन: इन्द्रजीत

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: मतदाताओं का प्रबंधन, घर-घर सेवाएं- गुजरात चुनाव के लिए पन्ना प्रमुख नेटवर्क बना BJP का सहारा


 

Exit mobile version