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BJP की सहयोगी, मणिपुर में प्रतिद्वंदी NPP के साथ गठबंधन को तैयार है कांग्रेस: पूर्व CM इबोबी सिंह

दिप्रिंट के साथ एक साक्षात्कार में, कांग्रेस नेता ओकराम इबोबी सिंह ने कहा कि पहाड़ी इलाकों में भाजपा की कोई 'पकड़' नहीं है, और राज्य के लोग 'भाजपा’ के पांच साल के शासन से तंग आ चुके हैं'.

मणिपुर के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता ओकराम पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता इबोबी सिंह बुधवार को केइराव निर्वाचन क्षेत्र में | प्रवीण जैन | दिप्रिंट

थौबल : पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता ओकराम इबोबी सिंह ने विश्वास व्यक्त किया है कि आगामी विधानसभा चुनावों के बाद कांग्रेस मणिपुर में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरेगी, लेकिन साथ ही उन्होंने कहा कि यदि किसी वजह से यह संख्या बहुमत से कम रह जाती है, तो वह नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) जैसे ‘समान विचारधारा वाले’ दलों के साथ गठबंधन करने के लिए भी तैयार है.

मेघालय के मुख्यमंत्री कोनराड संगमा के नेतृत्व वाली एनपीपी फिलहाल राज्य में मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह के नेतृत्व वाली मौजूदा भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार का हिस्सा है. एनपीपी और भाजपा मेघालय में संगमा के नेतृत्व वाली सरकार में भी सहयोगी दल हैं. हालांकि, गठबंधन में पड़ी दरार के बीच ये दोनों पार्टियां इस साल का विधानसभा चुनाव अलग-अलग लड़ रही हैं.

मणिपुर के थौबल जिले में स्थित और कांग्रेस पार्टी के गढ़ माने जाने वाले वांगखेम में बुधवार को कांग्रेस की एक रैली के दौरान दिप्रिंट को दिए एक साक्षात्कार में इबोबी ने इस बात की पुष्टि की कि एनपीपी के साथ उनकी बातचीत जारी है.

उन्होंने कहा, ‘हमें उम्मीद है कि कांग्रेस को पूर्ण बहुमत मिलेगा. अगर हमारे पास संख्या कम रह जाती है तो हम एनपीपी जैसी समान विचारधारा वाली पार्टियों के साथ गठबंधन करने के लिए भी तैयार हैं.’

राज्य के तीन बार के मुख्यमंत्री रहे इस नेता ने यह भी दावा किया कि पहाड़ी इलाकों में भाजपा की कोई ‘पकड़’ नहीं है. वे कहते हैं, ‘देखिए, वास्तव में मणिपुर की जनता भाजपा के पांच साल के शासन से और साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी से भी तंग आ चुकी है. इसलिए इस बार ऐसा लग रहा है कि कांग्रेस ही सरकार बनाएगी.‘

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पार्टी के दलबदलुओं पर उन्होंने कहा कि ‘लोग ही उन्हें सबक सिखाएंगे’.

कांग्रेस ने राज्य की 60 विधानसभा सीटों में से 54 पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं, जहां 28 फरवरी और 5 मार्च को दो चरणों में मतदान होना है. नतीजे 10 मार्च को घोषित किए जाएंगे. इस चुनाव में कांग्रेस, भाजपा और एनपीपी के अलावा नगा पीपुल्स फ्रंट (एनपीएफ) भी मैदान में है.


यह भी पढ़ें: एनपीपी प्रमुख कोनराड संगमा बोले- मणिपुर में बीजेपी के साथ गठबंधन ‘बहुत ही ज्यादा चुनौतीपूर्ण’ रहा


‘पहाड़ों में भाजपा की कोई पकड़ नहीं’

भाजपा के बारे में, इबोबी ने दावा किया कि उसके द्वारा अपनी योजनाओं के बारे में तमाम तरह के ‘प्रचार’ के बावजूद, ‘जमीन पर कुछ भी काम नहीं हुआ है’.

उन्होंने कहा, ‘इसलिए इसी ख़ास वजह से मणिपुर के लोगों की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आ रही है. यह सिर्फ यहीं नहीं, बल्कि अधिकांश निर्वाचन क्षेत्रों में है.‘

इबोबी ने कहा, ‘पहाड़ियों में तो भाजपा की कोई पकड़ ही नहीं है. मणिपुर के लोग और विशेष रूप से पहाड़ी इलाकों में रहने वाले लोग कांग्रेस, एनपीपी या किसी अन्य स्थानीय पार्टी को वोट देंगे.‘

एनपीपी और कांग्रेस के बीच चुनाव के बाद संभावित गठबंधन को लेकर काफी सारी अटकलें लगाई जा रही हैं. पिछले पांच वर्षों के दौरान उनकी साझेदारी में पनपे विवाद की बातों के बीच भाजपा और एनपीपी यह चुनाव अकेले लड़ रहे हैं.

उपमुख्यमंत्री और एनपीपी नेता वाई. जॉयकुमार सिंह ने गुरुवार को दिप्रिंट को बताया था कि बीरेन सिंह सरकार ने ‘उनकी शक्तियां कम कर दी थी’.

जॉयकुमार सिंह ने कहा था, ‘मैं, जो एक उप मुख्तमंत्री था, भी पूरे एक साल तक बिना किसी विभाग के था.’

इस महीने कुछ समय पहले असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने राज्य की अपनी यात्रा के दौरान कहा था कि भाजपा मणिपुर में अपने दम पर सरकार बनाएगी और उसे अन्य किसी भी पार्टी के समर्थन की आवश्यकता नहीं होगी.

वहीं, इस हफ्ते की शुरुआत में, एनपीपी अध्यक्ष और मेघालय के सीएम कोनराड संगमा ने दिप्रिंट के साथ एक साक्षात्कार में टिप्पणी की थी कि मणिपुर में भाजपा के साथ उनकी पार्टी का गठबंधन ‘बहुत, बहुत चुनौतीपूर्ण’ था.

हालांकि, भाजपा के प्रदेश प्रभारी भूपेंद्र यादव ने सहयोगी दलों के साथ किसी तरह के मनमुटाव की बातों का खंडन किया.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ’नहीं, यह सही आकलन नहीं है. पिछले पांच वर्षों में हमने कड़ी मेहनत की और लोगों की सद्भावना अर्जित की, इसलिए हमने चुनाव में अकेले जाने का फैसला किया. लेकिन हमारे सहयोगियों के साथ हमारे संबंध प्रभावित नहीं हुए हैं.’

‘कहीं के नहीं रहे कांग्रेस के दलबदलू’

2017 के विधानसभा चुनाव में 2002 से 2012 के तक राज्य की सत्ता में रही कांग्रेस 28 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी.

हालांकि, 21 सीटें जीतने वाली भाजपा एनपीपी, एनपीएफ और लोक जनशक्ति पार्टी के साथ गठबंधन करके सत्ता हासिल करने में कामयाब रही थी .

चुनाव के ठीक बाद राज्य कांग्रेस दलबदल की वजह से टूट गई, और टूट का सिलसिला हाल-फ़िलहाल तक जारी रही. अब इसके 28 विधायकों में से केवल 13 ही बचे हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित भाजपा नेताओं ने लगातार कांग्रेस पर निशाना साधते हुए दावा किया है कि वह पूर्वोत्तर को समझने में विफल रही है.

इन दावों पर टिप्पणी करने के लिए कहे जाने पर कि कांग्रेस राज्य में अपने गढ़ पर कब्जा जमाये रखने के लिए संघर्ष कर रही है, इबोबी ने कहा: ‘जो लोग दलबदलू हैं, वे अब कहीं के नहीं रहें. कई तो टिकट भी नहीं पा सके. लोग यह सब जानते हैं. जनता ही उन्हें सबक सिखाएगी.’

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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