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महाराष्ट्र में शिवसेना-एनसीपी के साथ कांग्रेस का एक असहज साल बीता, मतभेदों को दरकिनार कर पार्टी ने कहा सरकार नहीं गिरेगी

पार्टी नेताओं का यही कहना है एमवीए का हिस्सा होना न केवल पार्टी को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को सत्ता से बाहर रखने में मदद देता है, बल्कि महाराष्ट्र में उसका आधार मजबूत करने में भी सहायक है.

उद्धव ठाकरे की स्टेट कांग्रेस प्रमुख बालासाहेब थोराट के साथ उद्धव ठाकरे, फाइल फोटो Twitter | @bb_thorat

मुंबई: महाराष्ट्र में 2019 के विधानसभा चुनावों के बाद जारी व्यापक राजनीतिक अनिश्चितता के बीच जब शिवसेना, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) और कांग्रेस में साथ मिलकर सरकार बनाने के लिए बातचीत चल रही थी, वो कांग्रेस पार्टी ही थी जिसके अंदर इस विचार के खिलाफ कई आवाजें उठ रही थीं.

इन तीनों दलों का गठबंधन, जिसे महा विकास अघाड़ी (एमवीए) नाम दिया गया था, इस सप्ताह (28 नवंबर को) जब अपनी सरकार की पहली सालगिरह मनाने जा रहा है, कांग्रेस ऐसी पार्टी के रूप में उभरी है जो सबसे ज्यादा छटपटाती रही है—वह उस गठजोड़ में असहज नजर आ रही है जिसके पक्ष में उसके वरिष्ठ नेता शुरू से ही नहीं थे और जहां वह खुद को तीसरे पहिये के रूप में पाती है.

हालांकि, फिलहाल तो पार्टी नेताओं का यही कहना है कि वे मतभेदों पर ध्यान नहीं देना चाहते हैं. क्योंकि एमवीए का हिस्सा होना न केवल पार्टी को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को सत्ता से बाहर रखने में मदद देता है, बल्कि महाराष्ट्र में उसका आधार मजबूत करने में भी सहायक है.

मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की अगुवाई वाले राज्य मंत्रिमंडल में कांग्रेस के मंत्री विजय वडेट्टीवार ने दिप्रिंट से कहा, ‘तमाम छोटे मुद्दों को बातचीत के जरिये हल किया जा सकता है और हम ऐसा ही कर रहे हैं. एक बात तो तय है कि यह सरकार कहीं नहीं जा रही. इसके गिरने या इसमें कोई टूट-फूट होने के कोई आसार नहीं हैं.’


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‘मंत्रियों की बात नहीं सुनी जा रही, फंड के भी मुद्दे’

महा विकास अघाड़ी में शिवसेना के पास 56 सीटें हैं, एनसीपी के पास 54 विधायक, जबकि कांग्रेस के पास 44 सीटें हैं.

गठबंधन के शुरुआती महीनों से ही कांग्रेस के मंत्री आरोप लगाते रहे हैं कि सरकार में उनकी बातों को कोई तवज्जो नहीं दी जाती है, जहां वह सबसे जूनियर पार्टी घटक हैं. साथ ही वह मुख्यमंत्री से मिलना संभव न होने की बात भी कहते रहे हैं.

एमवीए सरकार में ‘दरकिनार किए जाने’ को लेकर गत जून में राज्य कांग्रेस अध्यक्ष बालासाहेब थोराट, अशोक चव्हाण, वर्षा गायकवाड़, नितिन राउत समेत कांग्रेस के कई मंत्रियों और विधानसभा अध्यक्ष नाना पटोले ने एक बैठक की थी और मुख्यमंत्री के समक्ष इस मुद्दे को उठाने का फैसला किया था.

जैसे-जैसे कांग्रेस के भीतर इस तरह के सुर तेज होते गए, शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना में एक तीखा संपादकीय लिखा, जिसमें पार्टी को लगातार ‘चरमराने वाली पुरानी खाट’ जैसा बताया गया. थोराट ने बाद में कांग्रेस के मुद्दों को उठाने के लिए ठाकरे से मुलाकात की, और कहा कि पार्टी को और कोई परेशानी नहीं है, लेकिन वह सिर्फ बराबरी का दर्जा चाहती है.

फिर, अगस्त में कांग्रेस विधायक कैलाश गोरंटयाल ने कांग्रेस के नेतृत्व वाले कई निर्वाचन क्षेत्रों में विकास निधि बढ़ाने की मांग पूरी न होने पर 11 अन्य विधायकों के साथ भूख हड़ताल पर जाने की धमकी दी. उन्होंने कहा कि कांग्रेस के नेतृत्व वाले कई निर्वाचन क्षेत्रों के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार हो रहा है.

सामना में शिवसेना ने इसे कांग्रेस का आंतरिक मामला बताया और इस पर गेंद उपमुख्यमंत्री और राज्य के वित्त मंत्री अजीत पवार के पाले में डाल दी. हालांकि यह मुद्दा शहरी विकास विभाग के अधीन आता था जिसका नेतृत्व शिवसेना के मंत्री एकनाथ शिंदे करते थे.

थोराट ने तब विरोध कर रहे विधायकों का समर्थन करते हुए कहा था कि सभी विधायकों के लिए विकास निधि में समानता होनी चाहिए.

गोरंटयाल विवाद तो थम गया, लेकिन निधि जारी करने में कथित असमानता का मुद्दा तब एक बार फिर सामने आया जब ऊर्जा मंत्रालय संभाल रहे कांग्रेस के मंत्री नितिन राउत को धन की कमी का हवाला देते हुए एक लोकप्रिय फैसला वापस लेना पड़ा.

राज्य ऊर्जा विभाग ने उन उपभोक्ताओं को राहत के एक प्रस्ताव को मंजूरी दी थी, जिन्हें कोविड-19 लॉकडाउन के बाद बढ़े बिजली बिलों का सामना करना पड़ा था. चूंकि बिजली वितरण कंपनियां लॉकडाउन के दौरान व्यक्तिगत रूप से मीटर रीडिंग नहीं ले सकती थीं, कई उपभोक्ताओं को बढ़े हुए बिजली के बिल मिले थे, और लॉकडाउन पाबंदियों में ढील के बाद यह प्रक्रिया ठीक होने में महीनों का समय लगा.

पिछले हफ्ते राउत ने कहा कि सरकार इस तरह की कोई छूट नहीं दे पाएगी. मंत्री ने मदद न करने के लिए केंद्र सरकार को जिम्मेदार ठहराया. राउत ने संवाददाताओं से कहा, ‘हमने आठ बार वित्त विभाग को प्रस्ताव भेजा था, लेकिन उन्होंने इसे क्लियर नहीं किया.’

कांग्रेस के अन्य मंत्रियों जैसे आदिवासी विकास विभाग का नेतृत्व कर रहे के.सी. पाडवी और स्कूली शिक्षा विभाग देख रहीं वर्षा गायकवाड़ ने भी अपने विभागों में पर्याप्त धन की कमी होने की शिकायत की है, जबकि पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण ने कांग्रेस के नियंत्रण वाले स्थानीय निकायों को पर्याप्त वित्तीय साधन न मिलने की बात कही.

हालांकि, कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने मतभेदों की बात से इनकार किया है.

पूर्व राज्य कांग्रेस प्रमुख माणिकराव ठाकरे ने कहा, ‘ये ऐसे मुद्दे हैं जो आंतरिक रूप से हल किए जा सकते हैं. लेकिन अंतत: ऐसा कोई प्रमुख नीतिगत फैसला नहीं है जिन पर कांग्रेस का अन्य दो गठबंधन सहयोगियों के साथ कोई बड़ा मतभेद हो.’

उन्होंने कहा, ‘हम तो केवल यही उम्मीद करते हैं कि सब कुछ भारतीय संविधान के दायरे में होना चाहिए और इस बात को शिवसेना ने भी स्वीकार किया है.’

अपना नाम छापे जाने के अनिच्छुक एक अन्य वरिष्ठ नेता, जो राज्य मंत्रिमंडल का हिस्सा नहीं हैं, ने कहा, ‘गठबंधन कांग्रेस के लिए भी फायदेमंद है, क्योंकि इससे सरकार में रहकर और अपने मतदाताओं के हितों में फैसले लेकर हमें अपना जनाधार मजबूत करने में मदद मिलती है. कुछ छोटे-मोटे मुद्दे हैं, लेकिन हमारे मंत्रियों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे कैबिनेट के भीतर ही रहें और उससे बाहर न आएं.’

‘तीसरा पहिया’

एमवीए सरकार के एक वर्ष के शासनकाल में एनसीपी प्रमुख शरद पवार के इस अस्थिर गठबंधन को जोड़ने का आधार स्तंभ बनने से एनसीपी और शिवसेना के बीच नजदीकी बढ़ी है और मुख्यमंत्री ठाकरे उनकी बातों पर ध्यान देते हैं.

नाम न छापने की शर्त पर कांग्रेस के एक अन्य वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘शरद पवार बहुत अनुभवी राजनेता हैं और राज्य सरकार को उनके अनुभव का लाभ उठाना चाहिए. लेकिन शरद पवार और मुख्यमंत्री मुलाकात करते हैं और मुद्दों पर चर्चा करते हैं लेकिन कई बार कांग्रेस को इस सबसे शामिल ही नहीं किया जाता.’

इसके अलावा, वित्त विभाग एनसीपी के अजीत पवार के पास होने के साथ विकास निधि के असमान वितरण को लेकर कांग्रेस की तरफ से शिकायतों ने पुराने सहयोगी दलों कांग्रेस और एनसीपी के बीच दरार डाल दी है.

ऐसे कई उदाहरण सामने आए हैं जब कांग्रेस नेताओं ने खुद को शिवसेना-एनसीपी गठबंधन के तीसरे पहिये की तरह महसूस करने की खुलेआम शिकायत की है.

जुलाई में महाराष्ट्र युवा कांग्रेस के अध्यक्ष सत्यजीत तांबे ने एमवीए सरकार की ओर से एक नौकरी पोर्टल के लिए जारी पूरे पेज विज्ञापन पर आपत्ति जताई थी. विज्ञापन में केवल शिवसेना और एनसीपी नेताओं के ही चित्र थे, लेकिन कांग्रेस को छोड़ दिया गया था.

इसी तरह, अगस्त में कांग्रेस की ठाणे इकाई के प्रमुख विक्रांत चव्हाण ने कथित तौर पर कांग्रेस की अनदेखी को लेकर ठाकरे के नेतृत्व वाली सरकार पर निशाना साधते हुए पोस्टर लगवाए थे.

पोस्टरों में कहा गया था कि ठाकरे सरकार सत्ता में नहीं आ पाती अगर कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने समर्थन का हाथ नहीं बढ़ाया होता.

पोस्टरों में लिखा था, ‘सरकार तिगन्चा मग नाव का फकत दोगन्चा (यदि सरकार तीन दलों की है, तो नाम केवल दो दलों का क्यों है?)’

हालांकि, ठाकरे मंत्रिपरिषद में शामिल कांग्रेस के एक नेता ने कहा कि मतभेदों से सरकार को कोई खतरा नहीं है. उन्होंने कहा, ‘शिवसेना का भी तो भाजपा के साथ मतभेद चलता रहता था, जब दोनों दल एक साथ सत्ता में थे. शिवसेना भी तो सरकार की आलोचना करती थी लेकिन क्या सरकार गिर गई थी? नहीं न.’

उन्होंने आगे कहा, ‘यह सरकार भी अपना पूरा कार्यकाल पूरा करेगी.’

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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