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औरंगाबाद के बाद पुणे, उस्मानाबाद और अहमदनगर के नाम बदलने को लेकर विवाद, सेना-कांग्रेस में दरार बढ़ी

शहरों का नाम बदलने की ऐसी और भी मांगों के जोर पकड़ने से वैचारिक रूप से प्रतिद्वंद्वी—शिव सेना, नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) और कांग्रेस—राजनीतिक दलों के नाजुक गठबंधन एमवीए में खाई चौड़ी हो सकती है.

प्रतीकात्मक तस्वीर औरंगाबाद में मुगल काल में बना बीबी का मकबरा /विकीमीडिया कॉमंस

मुंबई: महाराष्ट्र में औरंगाबाद का नाम बदलकर संभाजीनगर किए जाने को लेकर शिवसेना और कांग्रेस के बीच छिड़ी तकरार ने शिवसेना, महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) के साथ-साथ अन्य मराठी संगठनों के नेताओं को कुछ अन्य जगहों के पुन: नामकरण को लेकर बहस शुरू करने का मौका दे दिया है.

अब तक इन नेताओं ने अहमदनगर का नाम बदलकर अंबिकानगर, उस्मानाबाद को धाराशिव और पुणे को जीजापुर करने की मांग रखी है.

औरंगाबाद का नाम बदलने की शिवसेना की मांग तीन दशक पुरानी है, जो शहर में निकाय चुनावों से पहले एक बार फिर सतह पर आ गई है, और यह इस पार्टी और कांग्रेस के बीच विवाद के एक वजह बन गई है. औरंगाबाद का नाम मुगल बादशाह औरंगजेब के नाम पर पड़ा था.

हालांकि, कांग्रेस शहर में मुस्लिम वोटों का अपना जनाधार बचाने के लिए इसका पुरजोर विरोध कर रही है, खासकर यह देखते हुए कि असदुद्दीन ओवैसी के नेतृत्व वाली ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) अपना आधार मजबूत कर रही है.

शिवसेना अध्यक्ष और महाराष्ट्र के सीएम उद्धव ठाकरे ने शुक्रवार को कहा कि कॉमन मिनिमम प्रोग्राम धर्मनिरपेक्षता पर आधारित है और औरंगजेब धर्मनिरपेक्ष नहीं था. ‘औरंगजेब एक धर्मनिरपेक्ष व्यक्ति नहीं था. जबकि हमारे एजेंडे में धर्मनिरपेक्ष शब्द है, औरंगजेब जैसा व्यक्ति इसमें फिट नहीं है.’

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शिवसेना औरंगाबाद का आधिकारिक नाम संभाजीनगर किए जाने की कवायद में तबसे ही लगी है जब इसके संस्थापक बाल ठाकरे ने 1988 में घोषणा की कि इस शहर को मराठा योद्धा महाराज छत्रपति संभाजी के नाम से जाना जाएगा. सीएम ठाकरे का कार्यालय औरंगाबाद के लिए संभाजीनगर नाम का इस्तेमाल भी करता रहा है, जबकि अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल के माध्यम से राज्य सरकार के फैसलों के बारे में ट्वीट करते हुए कांग्रेस को बताता रहा है.

शहरों का नाम बदलने की ऐसी और भी मांगों के जोर पकड़ने से वैचारिक रूप से प्रतिद्वंद्वी—शिव सेना, नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) और कांग्रेस—राजनीतिक दलों के नाजुक गठबंधन एमवीए में खाई चौड़ी हो सकती है.

महाराष्ट्र कांग्रेस के प्रवक्ता सचिन सावंत ने दिप्रिंट को बताया, ‘हमने लगातार यही कहा है कि नाम बदलने की राजनीति अनुचित है. एमवीए के साझा न्यूनतम कार्यक्रम में इसका उल्लेख नहीं किया गया है.’

उन्होंने कहा, ‘इसका विकास से कोई लेना-देना नहीं है. सच्चाई तो यही है कि नाम बदलने की राजनीति का सहारा तब लिया जाता है जब कोई विकास के एजेंडे से लोगों का ध्यान हटाना चाहता है. आज के दिन में इस तरह की राजनीति और नामकरण केवल हिंदू और मुसलमानों को बांटने का कारण ही बनता है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘यह तो तय ही था कि औरंगाबाद के बाद इस तरह की और मांगें सामने आएंगी. लेकिन इस पर हमारा रुख एकदम स्पष्ट है. हम अपने साझा न्यूनतम कार्यक्रम के आधार पर शिवसेना के साथ चर्चा करेंगे.’


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‘संभाजीनगर होना चाहिए, और अंबिकानगर भी होना चाहिए’

अहमदनगर के शिरडी निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाले शिवसेना सांसद सदाशिव लोखंडे ने मांग की है कि औरंगाबाद के साथ-साथ एमवीए सरकार को अहमदनगर जिले का नाम बदलकर अंबिकानगर भी करना चाहिए.

लोखंडे ने 2 जनवरी को संवाददाताओं से कहा, ‘संभाजीनगर की ज्यादातर आबादी की यह अपेक्षा है कि नाम बदला जाना चाहिए. लोग यह मांग कर रहे हैं और एक सांसद के रूप में मेरी भी यही मांग है.’

उन्होंने कहा, ‘इस संबंध में हमारी पार्टी के नेता यानी महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उचित निर्णय लेंगे. लेकिन साथ ही नगर जिले (अहमदनगर जिले) को भी अंबिकानगर के नाम से जाना जाना चाहिए. यह हमारी मांग है. हम अपनी मांग को आगे बढ़ाएंगे और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उचित फैसला लेंगे.’

अहमदनगर का नाम निजाम शाही वंश के मलिक अहमद निजाम शाह के नाम पर पड़ा था. उन्होंने शहर की स्थापना की और इसे अपनी राजधानी बनाया और खुद के नाम पर इसका नामकरण भी कर दिया.

अहमदनगर का नाम बदलकर अंबिकानगर रखने की मांग 2018 में हिंदुत्ववादी नेता मनोहर भिडे, जिन्हें संभाजी भिड़े के नाम से भी जाना जाता है, ने की थी. उन पर पुणे (ग्रामीण) पुलिस ने 1 जनवरी 2018 को भीमा कोरेगांव हिंसा में शामिल होने का मामला दर्ज किया था. बाद में तत्कालीन देवेंद्र फडणवीस सरकार ने उन्हें क्लीनचिट दे दी थी.


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‘धाराशिव मूल नाम था, निजाम ने इसे बदला’

उस्मानाबाद में राज ठाकरे के नेतृत्व वाले मनसे के नेताओं ने जिला कलेक्टर से मुलाकात करके उस्मानाबाद जिले का नाम बदलकर धाराशिव करने का लिखित अनुरोध दिया है.

4 जनवरी की तिथि और स्थानीय एमएनएस नेताओं के हस्ताक्षर वाले पत्र में लिखा है, ‘यह हिंदू हृदय सम्राट बाला साहेब ठाकरे का सपना था कि औरंगाबाद जिले का नाम बदलकर संभाजीनगर और उस्मानाबाद जिले का नाम बदलकर धाराशिव किया जाए.’

पत्र में कहा गया है कि शिवसेना-भाजपा सरकार के महाराष्ट्र में सत्ता में आने के बाद 1995 में जिले का नाम बदलने की प्रक्रिया शुरू हुई थी, लेकिन बाद में यह रुक गई. साथ ही यह भी लिखा गया है, ‘जिले का नाम बदलकर धाराशिव करने की मांग पिछले 30 सालों से की जा रही है, लेकिन अब तक ऐसा नहीं किया गया है. इससे हिंदू भावनाओं को ठेस पहुंचती है.’

मनसे के पत्र में शिवसेना और महाराष्ट्र सरकार पर आरोप लगाया गया है कि वह केवल शहर में निकाय चुनावों के कारण औरंगाबाद का मुद्दा उछाल रही है.

मनसे का कहना है, ‘जब औरंगाबाद को संभाजीनगर किया जा सकता है, तो उस्मानाबाद धाराशिव क्यों नहीं हो सकता? धाराशिव प्राचीन नाम है. शाह उस्मान अली के बाद 1905 में निजाम सरकार ने इसे बदलकर उस्मानाबाद कर दिया था.

पत्र, जिसकी एक प्रति दिप्रिंट के पास है, में पार्टी ने राज्य सरकार को उनकी मांग पर ध्यान देने में विफल रहने पर हिंदू संगठनों की तरफ से गंभीर आंदोलन की चेतावनी दी है.

शिवसेना भी पूर्व में उस्मानाबाद का नाम बदलकर धाराशिव करने की मांग करती रही है. उसकी तरफ से यह मांग आखिरी बार 2018 में तब की गई थी जब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने फैजाबाद का नाम बदलकर अयोध्या किया था.

‘पुणे जीजापुर होना चाहिए’

मराठा संगठन संभाजी ब्रिगेड भी नाम बदलने के विवाद में कूद पड़ा है, उसने मराठा शासक छत्रपति शिवाजी की माता जीजाबाई के नाम पर पुणे का नाम बदलकर जीजापुर करने की अपनी पुरानी मांग को दोहराया है.

मराठा संगठन का तर्क है कि वह जीजाबाई ही थीं जिन्होंने पुणे शहर का निर्माण किया और इसको पूरी तरह बदलकर रख दिया. संगठन ने 2018 में शिवसेना द्वारा औरंगाबाद और उस्मानाबाद का नाम बदलने का मुद्दा उठाए जाने के कुछ दिनों बाद तत्कालीन भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सरकार को एक पत्र भेजकर अपनी मांग उठाई थी.

संभाजी ब्रिगेड के एक पदाधिकारी प्रदीप कंसे ने दिप्रिंट से कहा, ‘जबसे संभाजीनगर का मुद्दा सामने आया है, हमने भी सोशल मीडिया और पारंपरिक मीडिया के जरिये अपनी मांग मुखर की है. हम 12 जनवरी को जीजामाता की जयंती पर एक कार्यक्रम करने जा रहा और तब बाकायदा मंच से अपनी बात रखेंगे.

उन्होंने कहा, ‘हम अपनी कार्यकारी समिति की बैठक के बाद इस मुद्दे को औपचारिक रूप से आगे बढ़ाने की रूपरेखा तय करेंगे.’

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