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राज्यपालों को हटाने की अपील- तिरुवनंतपुरम में आरिफ खान के विरोध में LDF के साथ आए DMK, NCP

CPI (M) महासचिव सीताराम येचुरी ने राजभवन के सामने धरने पर कहा, 'केरल में उच्च शिक्षा को नष्ट करने' के लिए 'आरएसएस के एजेंडे' पर चल रहे है राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान.

15 नवंबर को तिरुवनंतपुरम में एलडीएफ के विरोध प्रदर्शन में सीपीआई (एम) महासचिव सीताराम येचुरी और डीएमके सांसद तिरुचि शिवा | एएनआई

तिरुवनंतपुरम: राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान कई राज्यों में नौ दिनों के लिए लेक्चर देने के लिए यात्रा पर हैं. लेकिन केरल की राजधानी की सड़कों पर, मंगलवार दोपहर को आप जो कुछ भी देखते हैं, वह राजभवन के पदाधिकारी यानी गवर्नर के पोर्ट्रेट की तरह दिखता है और उसने खाकी शॉर्ट्स पहन रखे हैं, हाथ में त्रिशूल है, एक किताब को कुचलते और फाड़ते हुए दिखता है जो कि ऐसा लगता है कि भारत का संविधान है.

ये तस्वीरें भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के नेतृत्व वाले सत्तारूढ़ वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (एलडीएफ) के विरोध मार्च और राजभवन के सामने धरने के साथ लगाई गई होर्डिंग्स पर देखी गईं.

और म्यूजियम व नंदवनम इलाकों से मार्च के दोनों हिस्से निर्धारित धरना स्थल पर एकत्रित हुए, पड़ोसी राज्य तमिलनाडु में सत्तारूढ़ द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) सहित दलों के नेताओं के एक समूह ने इसे राज्यपालों के खिलाफ विपक्ष के शक्ति प्रदर्शन में बदल दिया.

हालांकि, वहां पर मुख्यमंत्री पिनराई विजयन और उनके मंत्री उपस्थित नहीं थे. विजयन 2019 में अपनी नियुक्ति के बाद से ही महामारी के समय को छोड़कर लगातार विरोध में कुछ न कुछ बोलते रहे हैं लेकिन कुछ हफ्ते पहले जब खान ने केरल के विभिन्न विश्वविद्यालयों के 11 कुलपतियों के इस्तीफे पर जोर दिया तो पानी सिर से ऊपर निकल गया.

भीड़ को संबोधित करते हुए माकपा महासचिव सीताराम येचुरी ने अपना भाषण राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) को  लेकर दिया और कहा कि उसका एजेंडा ‘माइंड कंट्रोल’ का है.

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उन्होंने कहा, ‘केरल की शिक्षा प्रणाली की विश्व स्तर पर और भारत दोनों जगह सराहना की जाती है, चूंकि एलडीएफ सरकार चाहती है कि केरल के युवा शिक्षित समाज का नेतृत्व करें और अग्रणी बनें जबकि आरएसएस बिल्कुल इसका उल्टा चाहती है. वे पिछड़े, दुराग्रहवादी विचार, मन पर नियंत्रण चाहते हैं, वे शासन करने के लिए अंध विश्वास और झूठा धर्म चाहते हैं. यही कारण है कि वे केरल में उच्च शिक्षा को नष्ट करने के लिए संवैधानिक पदों का उपयोग कर रहे हैं.

येचुरी ने कहा कि जो भी राज्य राज्यपालों के इस तरह के ‘हस्तक्षेप’ का सामना कर रहे हैं उन्हें साथ आने और इसका विरोध करने की जरूरत है. द्रमुक के राज्यसभा सदस्य तिरुचि शिवा ने तमिल में अपने भाषण में एक कदम आगे बढ़ते हुए कहा कि राज्यों को एक साथ आना चाहिए और केंद्र सरकार से राज्यपाल के पद को समाप्त करने के लिए कहना चाहिए.

उन्होंने कहा, ‘संविधान की बुनियादी विशेषताओं को मजबूत करने के लिए उस पर फिर से विचार करना होगा और आवश्यक संशोधन करने के लिए हाल के अनुभव को ध्यान में रखा जाना चाहिए. यहां तक कि संविधान सभा में भी इस बात पर बहस हुई थी कि राज्यपाल को चुना जाना है या नामित किया जाना है. (लेकिन) स्थिति और अनुभव कहता है कि हमें राज्यपाल की बिल्कुल ज़रूरत नहीं है. राज्यों को एक साथ आना चाहिए और उस कार्यालय को समाप्त करने और सभी राज्यों को अधिक स्वायत्तता देने के लिए जोर देना चाहिए.

शिवा ने कहा कि राज्यपाल का पद निर्वाचित नहीं है, फिर भी निर्वाचित सरकारों को उनकी वजह से समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है. तमिलनाडु में डीएमके का राज्यपाल आर एन रवि के साथ विभिन्न मुद्दों पर टकराव चल रहा है, जिसके परिणामस्वरूप दोनों पक्षों के बीच लड़ाई चल रही है.


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वीसी का मुद्दा अब भी अदालत में

कुलपतियों के मामले पर अभी भी कोर्ट में सुनवाई चल रही है, लेकिन एलडीएफ अब पीछे नहीं हट रहा है. मार्च और धरने में तख्तियां लेकर राज्यपाल पर आरएसएस की तरफ से काम करने का आरोप लगाया.

पोस्टरों पर लिखा था, ‘केरल के राज्यपाल के लोकतंत्र विरोधी रुख के खिलाफ, केरल उच्च शिक्षा को संघ परिवार से बचाने के लिए, भगवाकरण के खिलाफ, एक लाख लोग मार्च करेंगे.

राज्य विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति के रूप में खान कुलपति को हटाने की मांग कर रहे हैं. लेकिन येचुरी ने अपने भाषण में कहा कि राज्यपाल का कुलाधिपति का दर्जा पदेन (उनके पद के आधार पर) नहीं है. उन्होंने कहा, ‘ऐसा इसलिए है क्योंकि राज्य विधानसभा द्वारा पारित एक अधिनियम इस तरह का प्रावधान करता है.’

पिछले हफ्ते, राज्य सरकार ने राज्यपाल को डीम्ड-टू-बी विश्वविद्यालय केरल कलामंडलम के कुलाधिपति के पद से हटा दिया और फिर 14 अन्य स्टेट यूनिवर्सिटीज के भी चांसलर के पद से हटाने के लिए एक अध्यादेश जारी कर दिया.

कुलपतियों को हटाए जाने पर खान का तर्क रहा है कि उनकी नियुक्तियां कभी वैध नहीं थीं क्योंकि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के दिशानिर्देशों के तहत आवश्यक नामों के पैनल के बजाय हर बार उन्हें केवल एक ही नाम की सिफारिश की गई थी. यह सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के बाद हुआ है जिसने इन आधारों पर संबंधित कुलपतियों में से एक की नियुक्ति को रद्द कर दिया था.

आग में घी की तरह केरल उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ ने अब केरल यूनिवर्सिटी ऑफ फिशरीज एंड ओशन स्टडीज के कुलपति के रूप में डॉ. के. रिजी जॉन की नियुक्ति को रद्द कर दिया है. जॉन उन कुलपतियों में से एक हैं, जिन्हें खान ने इस्तीफा देने के लिए कहा था.

राज्य सरकार के सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया है कि इस मामले में अगली कार्रवाई तय करने से पहले महाधिवक्ता की राय का इंतजार किया जा रहा है.

सरकार में एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘डॉ राजश्री जिनकी एपीजे अब्दुल कलाम प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में नियुक्ति को तकनीकी आधार पर रद्द कर दिया गया था, उन्होंने इस मामले में एक पुनर्विचार याचिका दायर की है. हम लोग नजदीकी से इस पर करीब से नजर रख रहे हैं. हमने इस मामले में महाधिवक्ता की राय भी मांगी है.’

अनुवाद: शिव पाण्डेय

संपादन: इन्द्रजीत

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)


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